प्राणप्रतिष्ठा प्रयोग के गूढ़ तथ्य
- Rajeev Sharma
- Jan 20, 2020
- 13 min read
Updated: Aug 8
सदगुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी ने दशकों पहले ही प्राण प्रतिष्ठा प्रयोग के गूढ़ तथ्यों को स्पष्ट कर दिया था । हम लोग सौभाग्यशाली हैं कि वह कैसेट हमें प्राप्त हो सकी और उससे भी बढ़कर, इस कैसेट के आवाज इतनी साफ है कि इसमें वर्णित तथ्यों को आसानी से समझा जा सकता है ।
यहां ध्यान देने वाली चीज ये हैं कि जिस जमाने में ये कैसेट रिकार्ड हुयीं थीं वो वीसीआर पर चलने वाली कैसेट थीं, जो 30 - 40 साल बाद खराब होने लग जाती हैं । गुरुभाइयों के अथक प्रयासों से ये कैसेटें डिजिटल रुप में हमें उपलब्ध हुयी हैं । इनकी अहमियत देखते हुये, हम इसे लिखित रुप में आप सबको उपलब्ध करवा रहे हैं ।
सबका अपना योगदान है ।
आप सब अपने जीवन में इस प्रयोग को अवश्य करके देखें और इनका लाभ उठायें । ये दुर्लभ ज्ञान तो हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक धरोहर है, इसे संभालकर रखें । सदगुरुदेव के प्रवचन का मुख्य अंश यूट्यूब पर अपलोड़ कर दिया गया है और इसी लेख के आखिर में पोस्ट कर दिया गया है ।
आगे के लेख में उस प्रवचन को शब्दशः लिख दिया गया है, ताकि किसी को प्रवचन के वीडिओ को समझने में दिक्कत न हो । प्राण प्रतिष्ठा के मूल मंत्र को भी सदगुरुदेव द्वारा बतायी विधि से लिख दिया गया है और आप प्रिंट करने के लिए पोस्ट के आखिर में दी गयी PDF file डाउनलोड़ कर लीजिए ताकि किसी भी प्रकार की असुविधा न हो ।
वैसे बेहतर तो यह रहेगा कि आप एक तरफ यूट्यूब पर पोस्ट की गयी वीडिओ का चला लें और साथ ही साथ इस लेख को पढ़ते रहें । इससे आप सदगुरुदेव के प्रवचन को बेहतर तरीके से आत्मसात कर सकेंगे ।
अपने प्रवचन में सदगुरुदेव ने स्पष्ट किया है कि ...
प्राणप्रतिष्ठा से तात्पर्य यह है कि कोई भी मूर्ति, चित्र या यंत्र अपने आप में विशेष प्रभाव युक्त नहीं होता । मनुष्य भी अपने आप में प्रभाव युक्त नहीं होता । यदि केवल शिष्य या केवल व्यक्ति स-शरीर, स-प्राण विद्यमान है, तब भी वह प्राण प्रतिष्ठा युक्त या दीक्षा युक्त नहीं है, उसमें विशेष शक्ति का संचार नहीं हैं, तब तक उसकी ऊर्ध्वगामी प्रक्रियायें या जीवन में ऊंचा उठने की जो प्रक्रिया होनी चाहिए, वह नहीं हो पातीं ।
जीवन में दो स्थितियां हैं - हमारे शरीर के दो भाग हैं । नाभि से नीचे का सारा भाग गृहस्थ भाग है, निम्न भाग है और, उन अंगों का उपयोग करने से मनुष्य ज्यादा से ज्यादा गृहस्थ या ज्यादा से ज्यादा सांसारिक प्रवृत्तियों में उलझता है । नाभि से ऊपर का सारा भाग ऊर्ध्व चेतना युक्त कहलाता है । और, ऊपर का भाग जाग्रत होने से व्यक्ति ऊर्ध्वमुखी बनता है, प्राणश्चेतना युक्त बनता है, ब्रह्माण्ड साधना में युक्त बनता है और ब्रह्ममय बनता है ।
व्यक्ति की दोनों प्रवृत्तियां हैं । निम्न प्रवृत्तियां, बिना प्रयास के संभव हैं और, नाभि से ऊपर की प्रवृत्तियों के लिए विशेष ज्ञान, विशेष मार्गदर्शन, विशेष अध्ययन और विशेष अध्येता की जरूरत होती है ।
आज हम जिस विषय पर बात कर रहे हैं, यह ऊर्ध्वमुखी साधना के लिए है, जीवन को अभ्युत्थान देने की साधना के लिए है, जीवन को ऊंचा उठाने की साधना के लिए है । इसलिए चाहे आपके सामने किसी भी प्रकार की साधना हो, यदि केवल मूर्ति ही कोई ताकतवान होती तो जयपुर में 300 घराने ऐसे हैं जो मूर्तियों का निर्माण करते रहते हैं । और, सैकड़ों लक्ष्मी की मूर्तियां उन्होंने बनायी होंगी और, बेची होंगी ।
यदि मूर्ति ही कोई ताकतवान हो तो, उनके अपने घर में 20 - 30 लक्ष्मी की मूर्तियां तो हर समय विद्यमान रहती हैं । हमारे घर में, पूजा स्थान में तो 1 लक्ष्मी की मूर्ति रहती है या मंदिर में 1 लक्ष्मी की मूर्ति होती है, मगर वे जीवन भर दरिद्र के दरिद्र ही बने रहते हैं । खाते हैं, कमाते हैं मगर, संपन्न नहीं हो पाते । मूर्ति अपने आप में संपन्नता नही दे सकती । मगर वही मूर्ति वहां से खरीदकर जब मंदिर में स्थापित करते हैं तो विशेष मुहुर्त में, विशेष मंत्रों से प्राण प्रतिष्ठा करते हैं और विशेष प्राण प्रतिष्ठा युक्त होने पर ही उस मूर्ति में वह चमत्कार या वह विशेषता आ पाती है जिसकी वजह से उसके अध्ययन से, उसकी साधना से, उसकी सेवा से व्यक्ति संपत्तिवान बन सकता है । इसलिए विश्वामित्र संहिता में एक प्रमाण दिया है कि किस प्रकार से हम ये अनुभव करें कि इस मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा हुयी है या नहीं हुयी है ।
पंडित तो मंत्र पढ़ लेंगे, जब आप अपने घर में बुलायेंगे तो पंडितजी कुछ भी मंत्र पढ़ें, आपसे तो वो ज्यादा विद्वान नहीं है। क्योंकि वो जो मंत्र पढ़ रहे हैं वो आप हिंदी में भी मंत्र पढ़ रहे हैं, आप विद्वान हैं । और वह कह देंगे कि चलो बच्चा ये मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी, और ऐसा पंडित लोग करते हैं ।
जोधपुर में 5000 पंडितों के घर हैं । और अगर एक घर में 3 का औसत मानें, 1 पिता और 2 बेटे तो, 15000 पंडित हैं । और यदि बिलकुल निष्पक्ष दृष्टि से देखा जाए तो मेरी दृष्टि में उन 15000 पंडितों में केवल 22-23 पंडित हैं, बाकी सभी आजीविका वृत्ति करके कमाने - खाने वाले हैं । पंडित तो सभी हैं । सभी को मैं नमन करता हूं । पर जिनको विद्वान कहा जाना चाहिए, ऐसे केवल 22 या 23 हैं ।
बाकी ब्राह्मण तो कोई भूखे नहीं मर रहे हैं । बाकी लोगों को भी जजमान मिल रहे हैं । और जजमानों को भी पंडित मिल रहे हैं । वे पंडित विधि भी करवाते होंगे, पूजा - पाठ भी करवाते होंगे, यजमान का कल्याण भी करते होंगे और, यजमान भी उपकृत होता होगा । मगर जब तक सही ज्ञान नहीं है, जब तक सही मंत्रोच्चारण नहीं है, विधि अध्येता नहीं है तब तक किसी प्रकार का लाभ नहीं हो सकता ।
इसलिए विश्वामित्र संहिता में बताया है कि प्राण प्रतिष्ठा का एक ही कसौटी है कि मूर्ति को या चित्र को या यंत्र को रख दिया जाए और, उससे 6 फीट की दूरी पर एक बड़ा शीशा रख दिया जाए, मुंह देखने का, बीच में मलमल का पर्दा लटका दिया जाए । मलमल के परदे के उस तरफ शीशा हो, बीच में 3 फीट की दूरी पर और, इधर पंडित बैठ जाए, वह मूर्ति रख दें, यजमान भी बैठ जाए । और, फिर प्राण प्रतिष्ठा पंडित जी करें । और पूर्ण प्राण प्रतिष्ठा का प्रयोग होने के बाद ज्यों ही प्राण प्रतिष्ठा का अंतिम मंत्र उच्चारण हो, उस समय वह पर्दा हटा दिया जाए । और, पर्दा हटाते ही अगर वह शीशा टूटकर गिर जाता है, उसके तेज के प्रभाव से, तो समझना चाहिए कि प्राण प्रतिष्ठा हुयी है ।
