मनोकामना पूर्ति साधना-1
- Rajeev Sharma
- May 29, 2020
- 9 min read
Updated: Aug 7
पुष्पदंत प्रणीत भगवान शिव का अद्भुत मनोकामना पूर्ति साधना
मेरी ससुराल उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में है और मैंने कभी नहीं सोचा था कि यहां आकर उस साधना विधान की छवि देखने को मिलेगी जिसे स्वयं सदगुरुदेव ने दशकों पहले ही स्पष्ट कर दिया था । हालांकि मेरी ससुराल वालों का सदगुरुदेव से सीधा कोई नाता नहीं रहा है पर मैं ये देखकर बहुत आश्चर्यचकित हुआ था कि इतना दुर्लभ विधान क्रम इस क्षेत्र में वर्षों से प्रचलित है ।
हालांकि, सैकड़ों वर्ष के काल क्रम में इस विधान में पंडितों ने बहुत सारे बदलाव कर दिये हैं पर मूल तथ्य जो है वह है शिवलिंग के निर्माण की विधि, वह आज भी जस की तस है । उसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है । यह सब मेरे लिए बहुत ही आश्चर्यजनक तथ्य रहा है ।

शिवलिंग निर्माण
आज जिस महत्वपूर्ण साधना क्रम पर चर्चा की जा रही है, वह है पुष्पदंत प्रणीत मनोकामना पूर्ति साधना विधान ।
इससे पहले आपने पुष्पदंत का नाम सदगुरुदेव की आवाज में उच्चरित प्रातः स्मरणीय वेद श्रुतियां (भाग 1) में सुना है जिसमें सदगुरुदेव ने भगवान शिव के गण, पुष्पदंत द्वारा रचित, शिव महिम्न स्तोत्र का उच्चारण किया है । यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्तोत्र है और इसको प्रतिदिन सुनने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती ही है ।
सदगुरुदेव ने अपने प्रवचन में इस साधना की स्थिति और महत्व स्पष्ट किया है ।
एक बार दक्ष ने मृत्युंजय यज्ञ, विश्व विजय की कामना से किया । उसमें सभी देवताओं का आवाहन किया गया । विष्णु, ब्रह्मा, इंद्र, यम, कुबेर सबका आवाहन किया गया था । मगर उस यज्ञ में शिव का न तो आवाहन किया गया और न ही शिव को यज्ञ में निमंत्रित किया गया । सती अपने पिता के इस कार्य को महसूस कर अत्यधिक दुखी हुयी और उसने शंकर से पूछा कि मेरे पिता का यह कार्य शोभनीय नहीं है । फिर भी अगर आप आज्ञा दें तो मैं यज्ञ में जाकर देखना चाहती हूं कि ऐसा क्यों हुआ ।
