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मनोकामना पूर्ति साधना-2

Updated: Sep 1, 2023

पुष्पदंत प्रणीत भक्ति साधनाः साधना विधि, मंत्र और सिद्धि


वर्ष 1984 में सदगुरुदेव ने पुष्पदंत प्रणीत भक्ति साधना पर शिविर में विस्तार से समझाया था । यह लेख उसी शिविर के प्राप्त वीडिओ के आधार पर है । इस लेख में पुष्पदंत प्रणीत भक्ति साधना की विधि और मंत्र का विस्तृत वर्णन है । जो शिवभक्त, गुरुभाई, श्रोता या पाठक गण इस साधना को करना चाहते हैं, उनको श्रावण मास में पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इस साधना को संपन्न करना चाहिए । बिना श्रद्धा और विश्वास के की गई साधना का फल भी उसी तरह सीमित रहता है जिस प्रकार बिना जल के बंजर जमीन में खड़े हुये पेड़ से प्राप्त फल।

 

अपने गुरु परिवार में भी कभी - कभी ऐसे भाइयों से भी सामना हो ही जाता है जो वर्षों तक भटकना तो पसंद करते हैं किंतु सदगुरुदेव के वर्षा-रुपी आशीर्वाद तले, अपनी मरुस्थल तुल्य जमीन पर साधना, विश्वास, श्रद्धा और तप के बीज बोना पसंद नहीं करते, ऐसे लोगों को साधना में क्या सफलता मिल सकेगी, ये तो वही जानें और सदगुरुदेव । जिनकी आंखों में अपने गुरु के प्रति प्रेम का भाव नहीं है, गुरु के प्रति समर्पण नहीं हैं, गुरु के लिए अश्रु नहीं हैं, गुरु के वचन पर विश्वास नहीं है, गुरु की आज्ञा पालन की कोई इच्छा ही नहीं है, वो लोग गुरु तक पहुंच भी जाएं तो भी उनकी आत्मा तृप्त नहीं हो सकेगी । पूर्णता प्राप्त करना तो बहुत दूर की बात है ।


एक बात ध्यान रखिये, गुरु को मंत्रों में नहीं बांधा जा सकता, गुरु को मंत्र की गिनती से भी कोई लेना देना नहीं होता । गुरु तो प्रेम की डोरी से बंधे हुये होते हैं । जहां आपकी आंखों में अपने गुरु के लिए अश्रु आते हैं, गुरु तो आप स्वयं ही वहां उपस्थित हो जाते हैं । इसलिए माला गिनना छोड़िए और हर एक मंत्र को ही पुष्प समझकर गुरु को अर्पित कर दीजिए । आंसू की हर एक बूंद पर गुरु का नाम अंकित कीजिए और अपने ह्रदय को उन अश्रुओं से मांजिए । क्योंकि मलिन ह्रदय में गुरु विराजमान नहीं हो सकते । कर सकिये तो इतना ही कीजे और गुरु के दर्शन तो बहुत छोटी सी चीज है, गुरु ही स्वयं आपके न हो जाएं तो कहना ।

 

पुष्पदंत प्रणीत भक्ति साधनाः


मूल साधना तो बहुत लंबी चौड़ी है । ताड़ पत्रों के 32 पृष्ठों में अंकित इस साधना को अगर आज की पुस्तकों के हिसाब से देखा जाए तो कम से कम 300 पेज बनेंगे । पहले जमाने में छोटे - छोटे महीने अक्षरों में लिखा जाता था; एक ताड़ पत्र पर ज्यादा से ज्यादा अक्षर समा सकें, ऐसी उनकी कोशिश रहती थी । उस समय के लोग मोती की तरह अक्षर लिख सकते थे और कम से कम जगह में ज्यादा से ज्यादा अक्षर लिखने की कोशिश करते थे । इसलिए इतना लंबा चौड़ा विधान संभव नहीं है । मगर इसका मुख्य हिस्सा और मुख्य भाग जो आपसे संबंधित है, और जितना आपसे संबंधित है, वह सदगुरुदेव ने स्पष्ट किया है ।

साधना क्रम में मुख्य रुप से तीन बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है -

  1. क्रिया विशेष

  2. मंत्र

  3. विधि

यह साधना क्यों की जाती है, इसका भी उल्लेख पिछली पोस्ट में किया गया है ।


क्रिया विशेष में साधक श्रावण मास में पहले सोमवार से इस साधना को प्रारंभ कर सकता है । सावन कृष्ण पक्ष, प्रथम सोमवार ।


उस दिन, स्नान करके, पवित्र वस्त्र धारण करके, आसन पर बैठ जाए और, सामने मिट्टी से निर्मित शिवलिंग बनाये । तालाब की मिट्टी खोद - खोदकर चिकनी मिट्टी ले, उससे शिवलिंग बनाये । अगर शहरों में तालाब नहीं हो, तो कहीं सिद्ध स्थान हो, वहां की मिट्टी ले लें । उसमें वर्णित है तालाब की मिट्टी । मगर चिकनी मिट्टी होनी चाहिए, बालू मिट्टी से तो बनेगा नहीं । क्योंकि पूरे संसार में बालू मिट्टी का शिवलिंग तो केवल एक ही है । क्योंकि बालू मिट्टी से बना हुआ शिवलिंग बनता ही नहीं है, बालू के कण आपस में जुड़ते ही नहीं हैं। मगर दक्षिण में रामेश्वरम मंदिर का जो शिवलिंग है, वह समुद्र की जो मिट्टी है, जो बालू है, उसी बालू का बना हुआ है, बालू मिट्टी का बना हुआ है ।


साधक, चिकनी मिट्टी से शिवलिंग बनाये और इसके आकार का हिसाब ऐसे रहेगा कि जितनी उसकी वेदी है, जितना उसका नीचे का शक्तिपीठ है, उससे आधा शिवलिंग बने । यह उसका प्रमाण होना चाहिए । नीचे की वेदी अगर 6 अंगुल है तो शिवलिंग 3 अंगुल का होना चाहिए ।


इसी प्रकार मिट्टी से गणपति, कार्तिकेय, नंदी और पार्वती का निर्माण किया जाना चाहिए ।


इसके बाद इसी मिट्टी की छोटी - छोटी गोलियां बनायें और गोली पर चावल का एक दाना (अक्षत) लगा दें । इस प्रकार 1100 छोटे - छोटे शिवलिंग बनायें । 1 बड़ा शिवलिंग बाकी छोटे - छोटे शिवलिंग । गोली बनायीं और उसके ऊपर अक्षत लगा दिया । इस प्रकार 1100 शिवलिंग बनायें । फिर 1100 शिवलिंग रखके, मध्य में शिवलिंग (जो आपने बनाया है) स्थापित करें, उनके बायीं ओर पार्वती का स्थापन करें, दायीं ओर गणपति स्थापन करें । पीछे की ओर कार्तिकेय स्थापन करें और सामने नंदी को स्थापन करें ।

शिवलिंग निर्माण

इस सभी को स्थापन करके फिर इनकी पंचोपचार पूजा करें । 5 चीजों से पूजा करें । जल से (थोड़ा हाथ छिड़ककर) स्नान करायें, फिर अक्षत, पुष्प (पुष्प में केवल आक के पुष्प काम आते हैं, और किसी पुष्प का प्रयोग नहीं होता) फिर भोग और आरती । उनकी सामान्य क्रम से पूजा करें और पूजा करने के बाद पुष्पदंत प्रणीत अमोघ मंत्र का जप करें


।। ॐ त्र्यंबकं पाशुपतये सिद्धिं देहि प्रसन्नो भव बंधनात मुक्षीयमामृतात ।।

।। Om Tryambakam Pashupataye Siddhim Dehi Prasanno Bhav Bhandhanaat Muksheey Maamrataat ।।


इस मंत्र की रुद्राक्ष की माला से मंत्र जप करें। अगर संभव हो तो सामने दीपक लगा दें, अन्यथा कोई आवश्यकता नहीं है । इस मंत्र की 11 माला जप करें । इसके बाद वो जो 1100 शिवलिंग और शिवलिंग बनायें हैं, उनको किसी तालाब या नदी में विसर्जित कर दें यानि जल में छोड़ दें । इस प्रकार नित्य करें । और, यह साधना श्रावण कृष्ण पक्ष प्रथम सोमवार से प्रारंभ होती है और अंतिम सोमवार तक चलती है । अब इसमें 30 दिन हो सकते हैं, 24 दिन हो सकते हैं, 27 भी हो सकते हैं और 28 दिन भी हो सकते हैं । क्योंकि, पहला सोमवार 2-3 दिन जाने के बाद भी हो सकता है और अंतिम सोमवार श्रावण पूर्णिमा से पहले जो भी सोमवार आये, तब तक इस साधना करें ।


यह साधना ज्यादा से ज्यादा 30 दिन की हो सकती है और कम से कम 24 दिन की हो सकती है । सदगुरुदेव स्पष्ट करते हैं कि इस साधना का प्रारंभ पहले सोमवार से करना है और समापन अंतिम सोमवार को करना है । केवल सावन महीने में ही ।


समापन करने के बाद उसी दिन, अर्थात जिस दिन समापन किया है, यह मंत्र जप संपन्न होकर 11 बटुकों को भोजन करावे । 11 बटुक अर्थात 11 बालक जो अविवाहित हों ।


इसे पुष्पदंत प्रणीत भक्ति साधना कहा गया है । सदगुरुदेव ने अत्यंत ही संक्षिप्त रुप में इस दुर्लभ विधान को समझाया है, जितना आपके लिए उपयोगी है, बस उतना ही समझाया है ।


यह साधना अत्यंत सामान्य तो दिखाई तो जरुर देती है, मगर इसका प्रभाव अत्यधिक आश्चर्यजनक होता है । जिस प्रकार एक छोटा सा अणुबम (किलो भर का) टेबल पर सामान्य सा पड़ा दिखाई देता है, लेकिन उसमें क्षमता और ताकत अपने आप में अदभुत और आश्चर्यजनक होती है । उसी प्रकार से इस साधना का प्रभाव अत्यधिक आश्चर्यजनक होता है ।


इस साधना को करने से, अगर सकाम्य साधना हो, जहां मन में कोई इच्छा है तो गारंटी के साथ निश्चित रुप से वह इच्छा पूरी होती है । फिर चाहे वह आर्थिक उन्नति की बात हो, सौभाग्य प्राप्ति की इच्छा हो, रोगी के लिए, बंधन मुक्ति के लिए हो, जो भी आपकी इच्छा हो । उस कामना की पूर्ति तो होती ही है और यदि निष्काम साधना है तो जो तथ्य पिछली पोस्ट में बताये थे उनकी प्राप्ति होती ही है । इस साधना को करने में अधिक से अधिक 7 या 8 घंटे लगते हैं । मगर यह साधना दिन को करनी चाहिए । रात्रि को यह साधना करना निषेध है ।


ब्रह्मचर्य का पालन करें । एक समय भोजन करें ।


शिवलिंग रोज बनेंगे, रोज विसर्जन होगा ।


शिवलिंग स्थापन के लिए - लकड़ी का एक पट्टा सा बना लें । लकड़ी के पट्टे पर कपड़ा बिछा दें, सफेद या लाल, उसके ऊपर सारे शिवलिंग स्थापन होते हैं । पहले मिट्टी को लेकर जैसे आटे की लोई बनायी जाती है, उसी तरह से मिट्टी को एकरस बना लें । उसमें पहले पांचों बड़े - बड़े बना दें, बाकी मिट्टी के 1100 शिवलिंग बना दें ।


अपने आप बनाने में बहुत कम समय लगता है मगर, इसमें दूसरे का सहारा नहीं लें । ऐसा न करें कि 2-3 लड़कों को सिखा दें कि किस प्रकार से शिवलिंग बनाते हैं और उनसे शिवलिंग बनवा लें ।


खुद ही शिवलिंग बनायें और खुद ही विसर्जित करें ।


इस साधना को पुरुष भी कर सकते हैं और सौभाग्यवती स्त्रियां भी कर सकती हैं । विधवा या कुंवारी स्त्रियां इस साधना को नहीं कर सकतीं ।


सदगुरुदेव ने इस प्रवचन में स्पष्ट कहा है, "मेरा स्वयं का अनुभव रहा है कि इस साधना से आदमी की इच्छा पूर्ति अवश्य होती है" ।


यदि सकाम्य साधना की जाए; कोई एक कामना हो तो अवश्य ही पूरी होती है । ऐसे तो आप 25 इच्छायें लेकर बैठ जायें तो अलग बात है मगर, कामना एक होनी चाहिए ।

 

सदगुरुदेव ने इसी प्रवचन में हास-परिहास करते हुये एक पुरानी घटना का जिक्र किया जिसमें एक कायस्थ व्यक्ति अपनी चतुरता से भगवान शिव से एक ही वरदान में कई वरदान मांग लेता है ।


सदगुरुदेव हंसते हुये बताते हैं कि श्रीवास्तव या कायस्थ लोग चतुर कहलाते ही हैं । अगर कोई कायस्थ व्यक्ति मर जाये तो तब जानें जब चालीसा हो । वो मर जाए और 40 दिन बीत जायें तब भरोसा करना कि वो मर गया । नहीं तो भरोसा नहीं, कभी भी वापस खड़ा हो सकता है ।


यमराज के जो सेक्रेटरी हैं, चित्रगुप्त, वो भी कायस्थ हैं और, वहां पर कोई सिफारिश चलती नहीं है । वो उनकी जाति के बारे में खुद मदद करें तो कर सकते हैं ;-)


तो हुआ यूं कि एक बार एक कायस्थ व्यक्ति ने भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया । भक्ति करने वाले से भगवान शिव ने प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा ।


भगवान शिवः मैं बहुत खुश हूं, एक वरदान मांग । एक से ज्यादा वरदान मांग नहीं सकता । क्या वरदान दूं?

कायस्थः आप बहुत खुश हैं । आप तो भोलेनाथ हैं, मैं तो आपके शरणगत हूं; एक दिन की मुझे मोहलत दी जाए, मैं कल मांग लुंगा।


भगवान शिवः वरदान तो तुरंत मांगना होता है ।

कायस्थः मैं तुरंत मांगने को तैयार हूं पर जब आप दर्शन दे दिये तो, एक तो आपके दर्शन का फल और, दूसरा वरदान देने की हां भर दिये । दर्शन का फल तो ये कि मुझे वरदान मिलेगा और हां भर दी है तो मुझे एक दिन और दे दो ।


भगवान शिवः बात तो सही है :-|

कायस्थः दर्शन दिये तो उसका भी तो पुण्य मिलना चाहिए कि नहीं । वो तो अलग है । मैंने आपकी भक्ति की है, आप तो उसका वरदान दे रहे हैं, दर्शन का वरदान क्या हुआ । दर्शन का भी वरदान दीजिए नहीं तो आइंदा से कौन करेगा आपके दर्शन ।


भगवान शिवः अच्छा चल । कल मांग लेना । कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गये ।

कायस्थ घर आकर अपनी पत्नि से कहता है कि बावरी अब तो सब कुछ मामला बैठ गया है अब तो भगवान शंकर स्वयं आ गये हैं । अब बोल क्या मांगना है तुमको ।


पत्निः पुत्र नहीं है । शादी किये हुये 18 साल हो गये हैं, आपको संतान तो हुयी नहीं, दवायें लीं, आपने ये किया, वो किया पर कोई संतान नहीं हुयी है । पुत्र ही मांग लो ।

कायस्थः अरे पुत्र तो मांग लेंगे पर घर में खाने के लिए अन्न नहीं हैं । 18 साल से दुखी हो रहे हैं । भगवान से 1 - 2 लाख रुपये मांग लें तो ज्यादा अच्छा नहीं रहेगा ?

पत्निः आपने मेरी बात कभी मानी नहीं है । अगर कुछ मांगना है तो संतान मांगो । आपके पास लाख रुपये होंगे भी तो भोगेगा कौन । संतान ही मांगो ।


अब बेचारा कायस्थ, अपनी माता के पास गया जो आंखों से अंधी हो चुकी थी । उसने जब भगवान शिव से वरदान की बात बतायी और कहा कि बोल तेरी भी कोई इच्छा है तो । तो माता ने कहा कि बेटा मैंने तुझे पैदा किया, बड़ा किया । अब मुझे दिखाई नहीं देता । मैने तो जिंदगी में कुछ देखा ही नहीं । अगर तू मांग सकता है तो भगवान से मेरे लिए आंखें मांग ले । कायस्थ सोचने लगा कि अब ये तीसरी आफत पैदा हो गयी । मैं अपने लिए धन मांग रहा था, पत्नि को संतान चाहिए थी और अब ये मां के लिए आंखें । धन की इच्छा लिए मन में पत्नि के पास गया था, उसने संतान के लिए कह दिया । मां के पास गया तो उसने आंखें मांग लीं । इधर मां कहती है कि अगर तू मेरे लिए इतना नहीं कर सकता तो तू मेरा बेटा नहीं ।


बेचारा रात भर सो नहीं पाया । सुबह 11 बजने को हो आये । अब बहुत चिंता में पड़ गया कि भगवान शिव आते ही होंगे, क्या चीज मांगूं । तीनों ही महत्वपूर्ण हैं; मुझे धन की इच्छा है, पत्नी को संतान चाहिए और मां को आंखें ।


आखिर क्या वरदान मांगूं भगवान से।

नियत समय पर भगवान शिव फिर प्रकट हो गये ।


भगवान शिवः सोच लिया ?

कायस्थः भगवन, 24 घंटे तो हो गये सोचते - सोचते । ये बताइये कि आप एक ही वरदान देना चाहते हैं या 3 दे सकते हैं?

भगवान शिवः मैं एक ही वरदान दुंगा । मैंने तुझे पहले ही कह दिया था कि सिर्फ एक ही वरदान मिलेगा । एक से ज्यादा वरदान मांगने की सोचना भी मत ।

कायस्थः भगवान, मैं तो चाहता था कि आप मेरी कुछ इच्छायें पूरी कर दो । अगर आप मुझे वरदान ही देना चाहते हैं तो मुझे वरदान दीजिए, "मेरी मां अपनी आंखों से अपने परपोतों को सोने के कटोरों में दूध पीता हुआ देखे" ।


भगवान शिव ने मुस्कुराकर पूछाः तू कौन है?

कायस्थः भगवन, मैं कायस्थ हूं ।

भगवान शिवः तुम्हारे दर्शन करके मैं बहुत धन्य हुआ ।


सदगुरुदेव कहते हैं कि इस कायस्थ ने एक ही वरदान में अपनी मां की आंखें भी मांग लीं, और उनकी उम्र भी बढ़वा ली क्योंकि पहले तो उसके पुत्र हो, और फिर उसके पुत्र के भी पुत्र हो, तभी तो परपोता होगा । और जब घर में पैसा होगा तभी तो सोने का कटोरा घर में आयेगा ।


खैर, भगवान शिव ने उसे वरदान भी दिया और उसकी मनोकामना भी पूरी हुयी ।


ये तो खैर चतुराई है, बात को कहने का एक तरीका है पर, पुष्पदंत प्रणीत भक्ति साधना में साधक को किसी एक इच्छा को रखकर ही साधना करनी चाहिए । इस साधना को करने से मनोकामना तो पूर्ण होती ही है, एक अपूर्व आनंद की भी सृष्टि होती है ।


इस दृष्टि से ये साधना बहुत महत्वपूर्ण है, सरल है और प्रभावी है ।


यदि आपको अपने जीवन में कभी समय मिले तो इस साधना को अवश्य संपन्न करें । तभी आप इस बात को महसूस कर सकेंगे कि यह साधना अत्यधिक श्रेष्ठ, प्राणदायिनी और आनंददायक साधना है ।

 

पुष्पदंत प्रणीत इस साधना की PDF फाइल आप यहां से डाउनलोड़ कर सकते हैं । इस फाइल में केवल साधना से संबंधित ही तथ्य दिये गये हैं, बाकी प्रवचन का हिस्सा आप ब्लॉग पर ही पढ़ सकते हैं ।



आप सभी अपने जीवन में पुष्पदंत प्रणीत भक्ति साधना को संपन्न कर सकें, भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें और इससे भी बढ़कर, जीवन में आनंद की प्राप्ति कर सकें, ऐसी ही शुभेच्छा है ।

अस्तु ।

 

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