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मनोकामना पूर्ति साधना-2

Updated: Aug 7

पुष्पदंत प्रणीत भक्ति साधनाः साधना विधि, मंत्र और सिद्धि


वर्ष 1984 में सदगुरुदेव ने पुष्पदंत प्रणीत भक्ति साधना पर शिविर में विस्तार से समझाया था । यह लेख उसी शिविर के प्राप्त वीडिओ के आधार पर है । इस लेख में पुष्पदंत प्रणीत भक्ति साधना की विधि और मंत्र का विस्तृत वर्णन है । जो शिवभक्त, गुरुभाई, श्रोता या पाठक गण इस साधना को करना चाहते हैं, उनको श्रावण मास में पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इस साधना को संपन्न करना चाहिए । बिना श्रद्धा और विश्वास के की गई साधना का फल भी उसी तरह सीमित रहता है जिस प्रकार बिना जल के बंजर जमीन में खड़े हुये पेड़ से प्राप्त फल।

अपने गुरु परिवार में भी कभी - कभी ऐसे भाइयों से भी सामना हो ही जाता है जो वर्षों तक भटकना तो पसंद करते हैं किंतु सदगुरुदेव के वर्षा-रुपी आशीर्वाद तले, अपनी मरुस्थल तुल्य जमीन पर साधना, विश्वास, श्रद्धा और तप के बीज बोना पसंद नहीं करते, ऐसे लोगों को साधना में क्या सफलता मिल सकेगी, ये तो वही जानें और सदगुरुदेव । जिनकी आंखों में अपने गुरु के प्रति प्रेम का भाव नहीं है, गुरु के प्रति समर्पण नहीं हैं, गुरु के लिए अश्रु नहीं हैं, गुरु के वचन पर विश्वास नहीं है, गुरु की आज्ञा पालन की कोई इच्छा ही नहीं है, वो लोग गुरु तक पहुंच भी जाएं तो भी उनकी आत्मा तृप्त नहीं हो सकेगी । पूर्णता प्राप्त करना तो बहुत दूर की बात है ।


एक बात ध्यान रखिये, गुरु को मंत्रों में नहीं बांधा जा सकता, गुरु को मंत्र की गिनती से भी कोई लेना देना नहीं होता । गुरु तो प्रेम की डोरी से बंधे हुये होते हैं । जहां आपकी आंखों में अपने गुरु के लिए अश्रु आते हैं, गुरु तो आप स्वयं ही वहां उपस्थित हो जाते हैं । इसलिए माला गिनना छोड़िए और हर एक मंत्र को ही पुष्प समझकर गुरु को अर्पित कर दीजिए । आंसू की हर एक बूंद पर गुरु का नाम अंकित कीजिए और अपने ह्रदय को उन अश्रुओं से मांजिए । क्योंकि मलिन ह्रदय में गुरु विराजमान नहीं हो सकते । कर सकिये तो इतना ही कीजे और गुरु के दर्शन तो बहुत छोटी सी चीज है, गुरु ही स्वयं आपके न हो जाएं तो कहना ।

पुष्पदंत प्रणीत भक्ति साधनाः


मूल साधना तो बहुत लंबी चौड़ी है । ताड़ पत्रों के 32 पृष्ठों में अंकित इस साधना को अगर आज की पुस्तकों के हिसाब से देखा जाए तो कम से कम 300 पेज बनेंगे । पहले जमाने में छोटे - छोटे महीने अक्षरों में लिखा जाता था; एक ताड़ पत्र पर ज्यादा से ज्यादा अक्षर समा सकें, ऐसी उनकी कोशिश रहती थी । उस समय के लोग मोती की तरह अक्षर लिख सकते थे और कम से कम जगह में ज्यादा से ज्यादा अक्षर लिखने की कोशिश करते थे । इसलिए इतना लंबा चौड़ा विधान संभव नहीं है । मगर इसका मुख्य हिस्सा और मुख्य भाग जो आपसे संबंधित है, और जितना आपसे संबंधित है, वह सदगुरुदेव ने स्पष्ट किया है ।

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