भाव ज्ञान
पिछली पोस्ट में हमने राशियों को लेकर चर्चा की थी । अब थोड़ी सी चर्चा कुंडली के भाव को लेकर भी करना आवश्यक है । प्रश्न ये भी हो सकता है कि ये भाव होते क्या हैं । या इन भावों का ज्ञान करने से होगा क्या । या प्रश्न ये भी हो सकता है कि क्या बिना भाव का ज्ञान प्राप्त किये हम अपने प्रश्न का जवाब हासिल नहीं कर सकते हैं?
आपको शायद यकीन न हो लेकिन जन्म कुंडली हमारे पूरे जीवन का ब्लूप्रिंट है । इसमें हमारे पूरे जीवन की घटनाओं को सूक्ष्म रूप में स्वयं विधाता ने ही लिख रखा है लेकिन चूंकि हम इसका गणित नहीं समझ पाते हैं तो ब्लूप्रिंट हाथ में होते हुए भी हम अपने प्रश्न का जवाब हासिल नहीं कर पाते हैं ।
होता क्या है कि हम लोगों के जीवन में अनेक प्रश्न होते हैं लेकिन कुंडली देखते समय हम ये समझ ही नहीं पाते हैं कि आखिर कुंडली में हमें क्या – क्या देखना चाहिए जिससे हमें हमारे प्रश्न का उत्तर स्पष्ट हो सके । तो मैं कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर अपनी राय यहां रख रहा हूं जो परमपूज्य सदगुरुदेव महाराज डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा प्रदत्त ज्ञान पर आधारित हैं ।
सबसे पहली बात ये है कि भविष्य-फल स्पष्ट करते समय भाव, भाव का स्वामी एवं कारकत्व ग्रह पर भी विचार कर लेना चाहिए । उदाहरण के लिए संतान पर विचार करना हो तो पंचम भाव, पंचम भाव का स्वामी तथा संतान का कारक गुरु, इन तीनों पर एक साथ विचार करना चाहिए ।
अब अगर आपको यही ज्ञान नहीं होगा कि संतान के लिए किस भाव को देखना है या फिर संतान सुख के लिए कौन सा ग्रह जिम्मेदार है तो आप कैसे पता कर सकेंगे? हालांकि और भी तथ्यों को देखना आवश्यक होता है लेकिन हम ज्योतिष सीखने की प्रक्रिया में चीजों को एक – एक करके ही सीखेंगे ताकि ज्योतिष सीखना रोचक बन सके । इसलिए आज की पोस्ट का विषय ही है – भाव ज्ञान ।
ये भाव एक निश्चित क्रम में होते हैं । यानी कुंडली में सबसे ऊपर का भाव प्रथम है और बायीं तरफ से गिनते हुये हम पूरे बारह भावों का देखते हैं और प्रथम भाव के दाहिनी तरफ ऊपर की ओर बारहवां भाव या जिसको द्वादश भाव भी कहते हैं, होता है ।
इनको आप किसी घर में बने हुये कमरे समझिए और जैसा कि हम जानते हैं कि घर में कमरे अपनी जगह पर स्थिर होते हैं लेकिन घर में रहने वाले सदस्य अपनी जगह बदल सकते हैं । कुंडली में यही स्थिति भाव, ग्रह और राशियों पर भी लागू होती है । कहने का तात्पर्य है कि भाव तो स्थिर रहते हैं लेकिन इनमें राशि और ग्रह की स्थिति बदल सकती है और वह जन्म समय के हिसाब से निर्धारित होती है ।
दूसरे शब्दों में कहें तो प्रथम भाव हमेशा ही प्रथम रहेगा फिर चाहे उसमें कोई भी राशि हो या ग्रह की मौजूदगी हो । इसी प्रकार बाकी के भावों पर भी यही तथ्य लागू होगा ।
अब एक नजर भावों की तरफ भी डालते हैं कि आखिर किस भाव से क्या देखा जाता है । नीचे एक चार्ट से आप संक्षिप्त में जान सकते हैं कि किस भाव से हम किस – किस विषय का ज्ञान कर सकते हैं ।
ऊपर संक्षिप्त में बताया गया है, इससे आप ज्यादातर प्रश्नों के उत्तर जान सकते हैं, इसको आप किसी डायरी में नोट कर लीजिए ।
हालांकि कई बार हमें विस्तृत जानकारी की भी आवश्यकता पड़ती है, इसलिए मैं उसको भी यहां पर रख रहा हूं ताकि आवश्यकता पड़ने पर आपके पास जानकारी उपलब्ध रहे ही ।
प्रथम भाव
इस भाव से किसी भी जातक के शरीर, प्रारंभिक जीवन, बचपन, स्वास्थ्य, आचरण कृशता, पुष्टता, रंग, गुण, आत्मबल, ख्याति, रुप, आयु, सुख, दुख, मस्तिष्क, आकृति, स्वभाव, व्यक्तित्व, शारीरिक गठन और चरित्र का अध्ययन किया जाता है ।
दूसरा भाव
धन, कोष, पैतृक धन, कुटुंब, मित्र, पशु, बंधन, जेलयात्रा, आंख, नाक, स्वर, सुंदरता, गायन, प्रेम, सुखभोग, संचित पूंजी, क्रय-विक्रय, दलाली, भोजन, कलात्मक रुचि, आदतें, मृत्यु का कारण, एक्सीडेंट, स्वार्थता, निजत्व एवं रहस्यात्मकता का ज्ञान दूसरे भाव से किया जाता है । इस भाव को मारकेश भाव भी कहा जाता है ।
तीसरा भाव
जातक से छोटे भाई बहन,नौकर चाकर, पराक्रम, हिम्मत, व्यापार, उद्यम, मेहनत, भूषण, साहस, शौर्य, धैर्य, दमा, गुर्दा, खांसी, क्षय, श्वास, प्राणायाम, योगाभ्यास, तत्परता, वचन, चातुर्य, भतीजे-भतीजियां, अन्य पारिवारिक संबंध आदि का अध्ययन लग्न के तीसरे भाव से किया जाता है ।
चौथा भाव
मस्तिष्क शांति, घरेलू जीवन, मातृ-सुख, घर, गांव, चौपाए, बंधु-बांधव, सुख-शांति, मित्र, अंतःकरण की स्थित मातृभूमि, वाहन, यान, मकान, जायदाद, बाग-बगीचा, पेट से संबंधित रोग, यकृत, मनोरंजन, छल-कपट, दया, उदारता, गृह-संपत्ति, भूमि संबंधी मामले, गर्दन और कंधों का ज्ञान इसी भाव से किया जाता है । यह स्थान विशेषतः माता एवं वाहन का है ।
पांचवां भाव
विद्या, संतान, दादा, कार्य - प्रवीणता, भावनायें, जातक की ख्याति, बुद्धि, प्रबंध क्षमता, नीति, विनय, देशभक्ति, गर्भ-स्थान, नौकरी छूटना, धन मिलने का उपाय, अनायास धन प्राप्ति, लॉटरी, सट्टा, जुआ, जठराग्नि, गुणा, वाक् स्थान, हाथ का यश, मूत्र पिण्ड, नम्रता आदि का अध्ययन पंचम भाव से किया जाता है ।
छठां भाव
शत्रु, चिंता, भय, रोग, झगड़े, मुकदमे, छुरे बाजी, झंझट, परतंत्रता, क्षति, गुदा स्थान, मामा की स्थिति, ननिहाल, पीड़ा, कर्ज, गलतफहमियां, दुख, बीमारी और अनुचित कार्यों का अध्ययन छटे भाव से किया जाता है ।
सातवां भाव
स्त्री, स्त्री का स्वास्थ्य, मदन-पीड़ा, काम-क्रीड़ा, दैनिक रोजगार, छूत, भोग-विलास, काम-चिंता, जननेन्द्रिय, जननेन्द्रिय संबंधी रोग, व्यापार, विवाह, प्रेम, प्रेम से संबंधित बदनामी, प्रेम सफलता, प्रेमी-प्रेमिका मिलन, स्त्री का रुप रंग, शील, चरित्र, (स्त्री की कुंडली हो तो पति का रंग, रुप, गुण, चरित्र), तलाक, पति-पत्नी में अनबन, व्यापारिक सहयोगी, कूटनीतिज्ञता, साधारण - प्रसन्नता, मारक स्थान एवं बवासीर आदि रोगों का अध्ययन सप्तम् भाव से किया जाता है ।
आठवां भाव
आयु, मानसिक व्यथा, मृत्यु, पुरातत्व प्रेम, पुरातत्वान्वेषण, विदेश-निवास, गूढ़ युक्तियां, पूर्व संचित द्रव्य, गड़ा हुआ धन, पूर्वजन्म ज्ञान, मृत्यु के पश्चात की स्थिति, ऋण, संग्राम, दृव्य आदि नष्ट, मृत्यु का कारण, अपमृत्यु, निम्नता, पतन, समुद्र यात्रा, लिंग-योनि रोग आदि का अध्ययन इस भाव से होता है ।
नवम भाव
भाग्य, भाग्योन्नति, भाग्य अवनति, धर्म-परिवर्तन, धार्मिक कट्टरता, ईश्वर प्राप्ति, गुरु, तप, दैव-बल-पुण्य, तीर्थ यात्रा, पास, ऐश्वर्य, मानसिक वृत्ति, विदेश-गमन, वायुयान यात्रा, पितृ-सुख, दान, पुण्य, यज्ञ, पोते, पड़पोते, सहानुभूति, प्रसिद्धि, नेतृत्व, कर्तव्यनिष्ठा आदि का अध्ययन नवम भाव से किया जाता है ।
दसवां भाव
राज्य, मान, नौकरी, सेवा वृत्ति, प्रतिष्ठा, पिता के संबंध में जानकारी, पितृ सुख, व्यापार, पितृ-दृव्य, कर्म, समाज, हुकूमत, अधिकार, ऐश्वर्य, भोग, कीर्ति लाभ, नौकरी का प्रकार, अफसर पद, राजकीय अथवा अर्ध राजकीय-सेवा, विदेश यात्रा, आत्मविश्वास, ज्ञान तथा जीवन-पद्धति का प्रकार आदि का विचार इसी भाव से होता है ।
ग्यारहवां भाव
लाभ, आमदनी, आवश्यकता पूर्ति, गुप्त धन, राज-दृव्य, भूषण, वस्त्रादि, गज, अश्व, मोटर, वायुयान-सुख, बड़े भाइयों की संख्या व उनसे सुख, बड़े भाइयों से लाभ-हानि एवं स्वतंत्र चिंतन आदि का ज्ञान एकादश भाव से किया जाता है ।
बारहवां भाव
हानि, दान, व्यय, दण्ड, व्यसन, बाहरी स्थानों से संबंध, शत्रु का विरोध, नेत्र पीड़ा, फिजूलखर्ची, अतिरिक्त एवं आकस्मिक खर्चे, मोक्ष, एवं मृत्यु के पश्चात प्राणी की गति का ज्ञान द्वादश भाव से करना चाहिए ।
ग्रह एवं विशिष्ट कारक
पिछली पोस्ट (राशि एवं राशि स्वामी, ग्रह एवं कारक) में ग्रह और उनका संबंध किस कारक से है, वहां विस्तार से बताया गया था । एक बार संक्षेप में यहां भी बता देते हैं ताकि उनका संदर्भ बना रहे, लेकिन जब भी विस्तार से देखने की आवश्यकता हो तो उसे अवश्य देखियेगा –
सूर्यः आत्मा, पिता, प्रभाव, स्वास्थ्य, शक्ति, लक्ष्मी
चंद्रः मन, बुद्धि, राज्य-कृपा, माता, संपत्ति
मंगलः हिम्मत, रोग, गुण, छोटा भाई, भूमि, शत्रु
बुधः विद्या, बंधु, विवेक, मित्र, वाणी, कार्य - क्षमता
गुरुः धन, शरीर, ज्ञान, पुत्र, देह, सुंदरता
शुक्रः पत्नी, वाहन, आभूषण, प्रेम, सुख, प्यार
शनिः आयु, जीविका, नौकरी, मृत्यु का कारण, विपत्ति
राहुः दादा
केतुः नाना
मेरे विचार में अब आप समझ ही गये होंगे कि जब भी मानस में कोई प्रश्न आये तो उसे कुंडली में कैसे देखना चाहिए । मैं ये नहीं कह रहा कि इतना देखने मात्र से आप अपने प्रश्न का जवाब हासिल कर लेंगे लेकिन कम से कम शुरुआत तो हो जाए ।
तो अब कुछ समय के लिए आप भाव ज्ञान का अभ्यास करें, कौन सा ग्रह किस तथ्य का कारक है, इसका भी अभ्यास करें । अगर इतना कर लिया तो फिर समझिए कि ज्योतिष का कम से कम 20 प्रतिशत ज्ञान तो आपको हो ही गया । बाकी तो फिर अभ्यास और अनुभव की ही बात है ।
अस्तु ।