प्रथम भाव - वृष राशि
वृषभ (Taurus): राशि क्रम में दूसरे नंबर की राशि वृष है जिसका चिन्ह ही बैल का है । वृषभ राशि स्वभाव से ही परिश्रमी, सहनशील और धैर्यवान है। उनका स्वभाव ठंडा होता है लेकिन क्रोध आने पर उग्र रूप धारण कर लेते हैं । वस्तुओं का सही तोल-मोल करते हैं, पर निर्णय लेने की क्षमता कम होती है। ये दूसरों पर निर्भर रहकर कार्य करते हैं लेकिन अपनी दिमागी क्षमता को भली-भांति जानते हैं। वृषभ राशि के जातक अपनी दिनचर्या में किस तरह का परिवर्तन पसंद नहीं करते हैं। ये स्वभाविक रूप से अंतर्मुखी और बहुत विश्वसनीय होते हैं। ये वे लोग होते हैं जिन पर आप मदद के लिए भरोसा कर सकते हैं। सुरक्षा और प्रतिबद्धता इनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। वृषभ राशि के जातक अपने साथी को स्वतंत्रता देने के लिए इच्छुक नहीं होते हैं। ये लोग छोटी-छोटी इच्छा पूरी होने की ख्वाहिश रखते हैं। वृषभ राशि के लोग बुरे वक्त में गंदी आदतों में आसानी से फंस जाते हैं। ये लोग पेशे से बिल्डर और निवेशक आदि होते हैं।
अर्थात वृष लग्न के जातक के लिए जाति स्त्री, संज्ञा स्थिर और तत्व भूमि है । इनके बारे में आने वाले लेखों में स्पष्ट किया जाएगा लेकिन उदाहरण के लिए यहां बताना उचित होगा कि ऐसे जातकों का स्वभाव स्थिर होता है । चंचलता का प्रभाव उनमें नहीं पाया जाता है ।
स्वामी शुक्र है जो एक शुभ ग्रह है और पत्नी, वाहन, आभूषण, प्रेम, सुख, प्यार का कारक है ।
तो, ऐसे जातक जिनके लग्न में वृष राशि (2 का अंक) हो तो उनका जीवन शुक्र ग्रह से प्रभावित रहता है । ऐसे जातकों का पूरा व्यक्तित्व कुछ इस तरह से वर्णन किया जा सकता है -
इस लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति की प्रवृत्तियां भी सांड की तरह ही होती हैं ।
शरीर से बलिष्ठ और पुरुषार्थी
होंठ जरूरत से ज्यादा मोटे, कान और आंख लंबी होती हैं ।
चेहरा आकर्षक होता है ।
उन्नत ललाट और लंबे हाथ इस व्यक्ति की विशेषता होती है ।
हर समय नवीन शोध में लगे रहते हैं ।
स्वभाव से गंभीर एवं कम मित्र रखते हैं ।
अनुचित कार्य करते हैं और बाद में घंटों पछताते रहते हैं ।
चूंकि सारी प्रवृत्तियां ही सांड की तरह होती हैं तो अपने आप में मस्त एवं धुन के पक्के होते हैं ।
जिस काम को एक बार छेड़ लिया तो फिर उसके पीछे पूरी तरह से लग जाना ही इनका स्वभाव है ।
निरंतर योजनायें बनाते हैं और अपने आइडिया को वास्तविक रूप देने में लगे रहते हैं । एकदम नया तरीका रहता है इन लोगों का ।
इनकी रुचि वाद्य संगीत आदि में रह सकती है ।
विभिन्न भोग भोगने में हमेशा लगे रहते हैं ।
बाधक राशि
सदगुरुदेव महाराज ने बताया है कि बाधक ग्रहों की तरह बाधक राशियां भी होती हैं । बाधक राशि जिस भाव की होती है, उस भाव के फल में न्यूनता या बाधा लाती है । बाधक ग्रह अपनी दशा - उपदशा में उस भाव को जिस भाव में वह बैठा होता है, हानि पहुंचाता है ।
वृष लग्न वाले जातकों के लिए बाधक राशि वृश्चिक है । वृश्चिक स्वामी के राशि मंगल हैं ।
इसका मतलब है कि जिस जातक का वृष लग्न है, उसके लिए द्वादश (बारहवां) भाव न्यून फलदायक होगा तथा मंगल बाधक ग्रह होने से सप्तम भाव भी न्यून फलदायक होगा ।
बाधक राशि की दशा - उपदशा में जातक के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव
शरीर में राशियों का स्थान श्री कालपुरुष चक्रम से पता लग सकता है । तो बाधक राशि का प्रभाव जानने के लिए आपको यह देखना चाहिए कि वृष लग्न के जातकों के लिए बाधक राशि वृश्चिक का स्थान शरीर में कहां है । चूंकि वृश्चिक का स्थान मनुष्य का गुह्य प्रदेश है तो मंगल की दशा या उपदशा आने पर जातक को गुप्त रोगों की संभावना हो सकती है । या उस स्थान से जुड़े अन्य रोग भी हो सकते हैं । चूंकि वृष के स्वामी शुक्र हैं जो पत्नि के भी कारक हैं तो बहुत संभव है कि मंगल की दशा - उपदशा में वैवाहिक सुख की कमी हो जाए । लेकिन, इस तरह का फलादेश करने के लिए अन्य ग्रहों की उपस्थिति का भी ध्यान रखना होगा ।
चूंकि मंगल मेष राशि का भी स्वामी है जिसका स्थान मनुष्य के सिर में बताया गया है । तो सिर दर्द, पीड़ा या अन्य रोग भी हो सकते हैं । चोट लग सकती है या दुर्घटना में सिर को क्षति पहुंच सकती है । हालांकि उसके लिए भी बाकी ग्रहों का अध्ययन करना उचित रहेगा लेकिन यहां उदाहरण देकर ये समझाने का प्रयास किया जा रहा है कि वृष लग्न के जातकों के लिए जब भी मंगल की दशा या उपदशा आयेगी, तब शरीर के इन स्थानों के प्रभावित होने की पूरी संभावना है ।
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