प्रथम भाव - मेष राशि
अब तक हमने राशि, उनके स्वामी, ग्रह एवं कारकों के बारे में जाना है, ये भी जाना है कि ग्रह एवं उनसे मिलने वाले शुभ/अशुभ फल किस प्रकार के होते हैं । राशियों के स्वभाव की भी हमने चर्चा की थी, अब समय आ गया है कि हम ये जानने का प्रयास करें कि कुंडली के प्रत्येक भाव में किस राशि का प्रभाव कैसा पड़ता है ।
दरअसल मनुष्य के स्वभाव पर इन राशियों का प्रभाव पड़ता ही है । अगर हम किसी राशि के स्वभाव को जान जायें तो कुंडली में उस राशि की स्थिति जानने मात्र से ही व्यक्ति विशेष के स्वभाव को समझना भी कठिन नहीं रहा जाता है ।
इस समझने के लिए हमें कुंडली के प्रत्येक भाव का भी ज्ञान होना चाहिए ।
कुंडली का प्रथम भाव
कुंडली का पहला भाव ही लग्न कहलाता है । पहले भाव से हम किसी व्यक्ति के निम्न पहलुओं पर विचार करते हैं -
व्यक्तित्व
स्वास्थ्य
स्वभाव एवं विचारधारा
रंग, रूप एव कद - काठी
भविष्य का व्यक्तित्व
मां से विरासत में संपत्ति
लंबी यात्रायें
कुंडली का पहला भाव सभी भावों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह जीवन की शुरुआत का प्रतीक है।
यह नई शुरुआत और हमारे जीवन में आने वाले शुरुआती परिवेश को संदर्भित करता है। जैसा कि इसे तनु भाव के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है शरीर का घर, पहला घर हमारे व्यक्तित्व, शारीरिक विशेषताओं, शक्ति, रूप और यौन अपील का संकेतक है। यह भाव हर समय हमें आकार देने का काम करता है। यह घर उस व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जो हम बन रहे हैं और बनेंगे, हमारे आत्म और बाहर दोनों से।
शरीर के संबद्ध अंग: सिर, ऊपरी चेहरे का क्षेत्र और सामान्य रूप से शरीर।
प्रथम भाव के संबंध : आप स्वयं, रिश्तेदार।
प्रथम भाव की गतिविधियाँ: वर्तमान समय में होने वाली सभी गतिविधियाँ, लगातार साँस लेना, भोजन को पचाना शामिल है। व्यक्ति का स्वरूप, जाति, आयु, विवेक, दिमाग, सुख-दुख आदि के संबंध में विचार किया जाता है।
आगे बढ़ने से पहले राशि स्वरूप भी जानना आवश्यक है ।
राशि स्वरूप
अब इसको समझेंगे कैसे?
आसान है । शुरुआत प्रथम भाव यानी लग्न से करते हैं । ऊपर बता ही दिया गया है कि प्रथम भाव से जुड़े कौन - कौन से पक्ष हैं । अब देखते हैं कि प्रथम भाव में किस राशि के आने से कैसा प्रभाव पड़ता है ।
प्रथम भाव में मेष राशि
कुंडली में प्रथम भाव में अगर 1 अंक है तो वह मेष राशि कहलाती है, जैसे -
ऊपर ही राशि स्वरूप में आपने देखा कि मेष राशि पुरुष जाति की है । इसका स्वभाव चंचल (द्विस्वभाव) है और इसका तत्व अग्नि है ।
हमने राशि और उनके स्वामी वाले लेख में देखा था कि मेष राशि का स्वामी मंगल है ।
मंगल का कारकत्व - हिम्मत, रोग, गुण, छोटा भाई, भूमि, शत्रु ।
इसका मतलब है कि जहां भी मेष राशि होगी, वहां उसके स्वामी का ही प्रभाव दिखाई देगा । मंगल ग्रह जीवन में पराक्रम और उत्साह का कारक होता है यही कारण है कि मेष राशि के जातक जल्दी क्रोधित होते हैं, पर जल्दी मान भी जाते हैं। द्विस्वभाव राशि होने पर इनका मन चलायमान रहता है जो इनके निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है । मेष राशि के जातक किसी भी काम को करने या करवाने और प्रबंधन का कार्य करने में सक्षम होते हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता बहुत अच्छी होती है और वे जीवन में स्वयं अपना रास्ता तय करते हैं। मेष राशि के जातकों का स्वास्थ्य अच्छा होता है, लेकिन उन्हें अपच और स्नायु संबंधी विकारों का भी ध्यान रखना चाहिए।
तो, अगर मेष राशि किसी व्यक्ति के पहले भाव यानी लग्न में हो तो उस व्यक्ति के व्यक्तित्व पर भी इसका पूरा असर पड़ेगा ही, जैसे -
कद – मंझला
रक्तिम बहुल
गौर वर्ण
चंचल नेत्र
तीक्ष्ण दृष्टि युक्त
तुरंत मन की थाह पाने वाला
लंबा चेहरा
मोटी और मजबूत जांघें
भूरे रंग से मिश्रित काले बाल
चमकदार दांत
चतुर
तुरंत निर्णय लेने में सक्षम
स्वतंत्र विचारों का धनी
संकटों में भी मुस्कुराने वाला और बाधाओं को पार करने वाला
धार्मिक मामलों में लचीला
सामाजिक रूढियों के प्रति विद्रोही विचार रखकर भी उनका पालन करने वाला
राज्य और समाज में प्रगति करने वाला
जाति में श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाने वाला
दानी
जल से भय लेकिन दुर्गम कार्य करने को तैयार
वैज्ञानिक विचार एवं कार्यों में विशेष रुचि
प्रत्येक कार्य को योजनाबद्ध ढंग से करने वाला
साधारण कुल में जन्म लेकर भी अपनी प्रतिभा के बल पर उच्च पद
थोड़ी सी विपरीत बात या कार्य से परम क्रोध लेकिन शांत भी शीघ्र
धार्मिक कार्यों के अतिरिक्त कला, विज्ञान, संगीत और ज्योतिष में रुचि
सौंदर्य के प्रति स्वाभाविक रुझान
जीवन में उत्थान – एवं पतन अवश्यंभावी है ।
बाधक राशि
मेष राशि के लिए बाधक राशि कुंभ है जिसके स्वामी शनि हैं । बाधक राशि जिस भाव की होती है, उस भाव के फल में न्यूनता लाती है । इसका मतलब है कि शनि की दशा - उपदशा में कुंभ राशि यानी एकादश भाव न्यून फलदायक होगा । ऐसा इसलिए कि मेष लग्न वाले जातकों के लिए एकादश भाव में ही कुंभ राशि है ।
शनि बाधक ग्रह होने से दशम भाव भी न्यून फलदायक होगा क्योंकि शनि, मकर और कुंभ दोनों के ही स्वामी हैं ।
श्रीकालपुरुष चक्रम् से इस बात को समझा जा सकता है कि जब भी मेष लग्न के जातकों के जीवन में शनि की दशा या उपदशा होगी, तब शरीर के वो अंग भी प्रभावित होंगे जो शनि से संबंधित हैं - अर्थात मकर और कुंभ से संबंधित हैं । पिछली पोस्ट (राशि एवं राशि स्वामी, ग्रह एवं कारक) में इस बात को बताया गया था कि राशियों से जुड़े इन अंगों का स्थान कहां - कहां है तो उसको फिर से न बताकर केवल स्थान बताया जा रहा है -
मकर का स्थान - दोनों घुटने
कुंभ का स्थान - दोनों जांघें
लेख आपको रुचिकर लगा या नहीं, राय अवश्य दें ।
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नहीं
अस्तु ।