कल हमने देखा कि श्री कालपुरुष चक्र में प्रत्येक राशि का शरीर में स्थान निश्चित होता है । सदगुरुदेव प्रदत्त इस ज्ञान की महत्ता केवल इस बात से भी समझी जा सकती है कि अगर हम केवल शरीर - राशि संबंध को भी ठीक से समझ लें तो हम जीवन की ज्यादातर समस्याओं को व्यावहारिक तरीके से बहुत ही आसानी से सुलझा सकते हैं ।
एक बार शरीर के इन स्थानों को लिखना भी उचित रहेगा -
मेष सिर तुला नाभि के नीचे
वृष मुख वृश्चिक लिंग
मिथुन स्तन मध्य धनु उरु
कर्क हृदय मकर दोनों घुटने
सिंह उदर कुंभ दोनों जांघें
कन्या कमर मीन दोनों पैर
आशा है, इस बार आपको बेहतर तरीके से स्पष्ट हो गया होगा कि शरीर में किस राशि का स्थान कहां पर है ।
अब इन राशियों के स्वामियों पर भी एक नजर डालते हैं -
ग्रह (राशि स्वामी) राशि
सूर्य सिंह (5)
चंद्र कर्क (4)
मंगल मेष (1) वृश्चिक (8)
बुध मिथुन (3) कन्या (6)
गुरु धनु (9) मीन (12)
शुक्र तुला (7) वृष (2)
शनि मकर (10) कुंभ (11)
इससे स्पष्ट है कि सूर्य और चंद्र को छोड़कर प्रत्येक ग्रह, दो राशियों का स्वामी होता है ।
जब एक ज्योतिषाचार्य कुंडली का विवेचन करता है तो बहुत सारे तथ्यों का विश्लेषण करता है लेकिन हम विश्लेषण करें, उससे पहले हमें आधारभूत जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है । ऐसा इसलिए है कि जो व्यक्ति कुंडली में भाव, राशि और ग्रहों का आपस में क्या संबंध है, ये समझ सकता है, वही आपके प्रश्न का उत्तर भी दे सकता है ।
आने वाले समय में हम वैदिक ज्योतिष पर सेशन करेंगे, उस समय इन आधारभूत बातों पर चर्चा कर पाना शायद संभव न हो, इसलिए अभी से इनको ध्यान देकर सीख लीजिए, ताकि जब चर्चा होगी, तब आप भी सक्रिय रुप से भाग ले सकेंगे । अन्यथा, आप बस ये देखते रहेंगे कि हम लोग कैसे विश्लेषण करते हैं और ज्योतिष सीखने - सिखाने की प्रक्रिया का जो उद्देश्य है, वह अपने मूल रूप में नहीं रह सकेगा । मैं प्रयास कर रहा हूं कि एक दिन के लिए केवल वही जानकारी यहां प्रेषित की जाए जो आप आसानी से समझ सकते हैं, इसलिए इसका लाभ उठायें ।
ग्रह एवं कारक
सूर्य पराक्रम, तेजस्विता, झगड़े, क्रोध, मार-पीट, हिंसक कार्य एवं हिम्मत
चंद्र सौम्यता, सज्जनता, शील, संकोच, लज्जा, भावुकता, सुंदरता, जलयात्रा
मंगल युद्ध, नेतृत्व, सेनापतित्व, पुलिस, मिलटरी की नौकरी, अस्त्र-शस्त्र संचालन, कृषि, भूमि संबंधी कार्य, भूगर्भ विशेषज्ञ, मकान बनवाना, भूमि खरीदना, डॉक्टरी शिक्षा, पशुपालन
बुध व्यापार, लेन-देन, खरीदना-बेचना, वणिक-वृत्ति, कंजूसी, ऐश्वर्य भोग, क्लर्की, स्टेनो-टाइपिस्ट, वायुयान चालक
बृहस्पति शिक्षा, पांडित्य, वेद-पठन, वाद-विवाद, शास्त्रार्थ, धार्मिक कार्यों का ज्ञान, लेक्चरर, प्रोफेसर, गजेटेड़ अफसर, नेतृत्व प्रधान कार्य
शुक्र सुंदरता, स्वच्छता, शारीरिक यष्टि, विश्वसुंदरी पद, संगीत, शारीरिक संगठन, तेजस्विता, सुकुमारता, विदेश यात्रा, विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों से संपर्क, हड्डियों के जोड़ तोड़ का विशेषज्ञ, प्रेम संबंधी कार्य, दलाली, वेश्यावृत्ति, भोग-विलास, कामातुरता
शनि धूर्तता, छल, कपट, धोखा, हिंसा, चौर्य-कर्म, डाकू, हिंसक व्यक्तित्व, लोहे का व्यापार, तिल, तेल, ऊन का व्यापार आदि का भी कारक है
राहु आलस्य, अस्थिरता, स्थावर, संपत्ति, योगाभ्यास, उदर रोग, वाहन, जननेता, विधान सभाई व लोक सभा पद, कूटनीतिज्ञता, राजदूत
केतु धन-लाभ, लेखन, शत्रु विजय, स्वभूमि से स्थानांतरण, बहु भाषा भाषी, सफल वक्ता, विविध व्यसन, नशीली वस्तुओं का व्यापार, तस्कर, ठगी, विष-विक्रेता, मशीनी कार्यों में प्रवीणता
इनको रटना नहीं है लेकिन 2 - 4 बार इसको ध्यान से पढ़ेंगे तो ये आसानी से समझ आ सकता है कि किस कार्य के लिए कौन सा ग्रह जिम्मेदार होता है ।
अस्तु ।
आज यहां मैं एक पोल भी रख रहा हूं ताकि आप भी अपनी राय दे सकें कि सीखने की प्रक्रिया आपके लिए जटिल तो नहीं है न :-)
ज्योतिष सीखने में आपको आनंद तो आ रहा है न?
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