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सदगुरु कृपा विशेषांकः लक्ष्य भेदन सिद्धि - १

Updated: Aug 29, 2023

संधान क्रिया साधना


रामायण के दो प्रसंग आप सबको अवश्य याद होंगे -


पहला - जब धनुष यज्ञ हुआ तो श्री राम ने भगवान शिव के धनुष को तोड़ दिया था और माता सीता के साथ उनका विवाह संपन्न हुआ । उस समय परशुराम जी ने आकर सब लोगों पर अपना क्रोध जताया था । उस समय परशुराम के अहंकार को नष्ट करने के लिए श्री राम ने परशुराम के विष्णु धनुष पर तीर का संधान करके कहा था कि मुनिवर आप बतायें कि क्या इस तीर के प्रयोग से आपके "मन के समान गति" को नष्ट कर दूं?


संधान मात्र से ही परशुराम जी को श्री राम की शक्ति का अहसास हो गया था क्योंकि उनको पता था कि उनके विष्णु धनुष पर उनसे ज्यादा समर्थ व्यक्ति ही तीर का संधान कर सकता है । परशुराम जी को दशावतारों में माना जाता है तो उनसे ज्यादा समर्थ तो केवल श्री नारायण के अवतार ही हो सकते हैं । इतना भाव मन में आने मात्र से ही उन्होंने भगवान श्री राम को पहचान लिया ।


दूसरा - जब समद्र तट पर श्री राम तीन दिन तक समुद्र की अभ्यर्थना करते रहे थे कि समुद्र उनको रास्ता दे दे । जब 3 दिन बीत गये तो श्री राम को क्रोध आ गया और अग्निबाण के संधान कर दिया । संधान मात्र से ही समुद्र प्रकट हो गया । जो समुद्र 3 दिन तक श्री राम की प्रार्थना अनसुनी करता रहा, अग्निबाण के संधान से ही ड़र के मारे सामने आ गया ।


इसमें दो चीजें तो स्पष्ट हो ही जाती हैं - पहली तो यह है कि शक्ति होनी चाहिए । अगर शक्ति नहीं होगी तो कार्य करने की क्षमता भी न आ सकेगी । दूसरा - शक्ति के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती । बहुत से बहुत संधान कर देने मात्र से ही कार्य संपन्न हो जाते हैं । अगर सामने वाला समझदार है तो शक्ति के संधान मात्र से ही आपका कार्य संपन्न कर देगा और अगर फिर भी न समझे तो शक्ति का प्रयोग करने में कोई बुराई नहीं है ।


हालांकि मेरे अनुभव में शक्ति के प्रयोग की आवश्यकता दरअसल कभी पड़ती ही नहीं है ।

 

मैंने बहुत से गुरु भाई - बहनों को देखा है, सालों - साल साधना करते रहते हैं । एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी साधना चलती ही रहती है । ये क्रम कभी समाप्त नहीं होता लेकिन उनकी समस्यायें जस की तस रहती हैं । न तो चेतना के स्तर पर ही उन्नति हो पाती है और न ही भौतिक जीवन में ।


अब ऐसा भी नहीं है कि उनके द्वारा की जा रही साधना में कमी है या उस साधना मंत्र में कोई दोष है ।


तब समस्या कहां है?


समस्या कहीं नहीं है । ये तो बस प्रक्रिया को समझने की बात है ।


फर्ज कीजिए कि आपके पास एक बंदूक है और एक कारतूस है । लेकिन आपको न तो निशाना ही लगाना आता और न ही बंदूक का ट्रिगर दबाना आता तो समस्या आने पर वह बंदूक आपके किस काम आ पाएगी?


ठीक यही लॉजिक साधना के संदर्भ में भी काम करता है । अगर आपको संधान क्रिया, प्रक्षेपण क्रिया और लक्ष्य क्रिया का ज्ञान नहीं है तो आप शक्ति संपन्न होते हुये भी कुछ न कर सकेंगे । आप हजार साधनायें कर लीजिए पर जब तक इन क्रियाओं को करना नहीं सीखेंगे तब तक शक्ति का प्रयोग करना संभव न हो सकेगा । मैं ये नहीं कहता कि शक्ति के प्रयोग के केवल यही तरीके हैं लेकिन प्रत्येक गुरु अपने शिष्यों को इन क्रियाओं को विभिन्न तरीकों से आत्मसात करना सिखाते ही हैं ।


लक्ष्य भेदन क्रिया दरअसल तीन क्रियाओं का समन्वित स्वरूप है -

  • संधान क्रिया (जैसे तीर को धनुष पर चढ़ाकर प्रत्यंचा खींच दी जाती है वैसे ही शक्ति को भी प्रयोग के लिए तैयार किया जाता है)

  • प्रक्षेपण क्रिया (शक्ति को प्रयोग हेतु मुक्त कर देना जैसे कि तीर को चला देना)

  • लक्ष्य भेदन (लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाना)


ये बहुत ही दुर्लभ प्रयोग हैं और गुरु परंपरा से ही प्राप्त होते हैं । हम लोग सौभाग्यशाली रहे कि वरिष्ठ गुरुभाईयों ने इन प्रयोगों को हमें सिखाया । इनका प्रयोग तो सदगुरुदेव का वरदान ही है । ये परंपरा चलती रहे, आने वाली पीढ़ियां भी इस ज्ञान से खुद को परिचित करा सकें और इस ज्ञान को आप क्रियात्मक स्वरुप में, व्यावहारिक रुप में भी प्रयोग में ला सकें, इसी हेतु इनको यहां पर बताया जा रहा है ।

 

संधान क्रिया साधना विधि


प्रथम क्रिया है संधान क्रिया साधना । इस क्रिया में प्रयुक्त मंत्र भगवती राजराजेश्वरी षोडशी त्रिपुर सुंदरी का बीज मंत्र "त्रीं" (Treem) और भगवती छिन्नमस्ता के महाकाली कुल से युक्त होने के कारण "क्रीं" (Kreem) बीज से संयुक्त इस प्रकार है -


।। क्रीं त्रीं क्रीं ।।

(Kreem Treem Kreem)


इस साधना के लिए वैसे तो कोई विशेष नियम नहीं हैं लेकिन जो बातें आपको ध्यान रखनी चाहिए वह मैं यहां लिख देता हूं -


इस साधना को 3 दिन के अंदर ही संपन्न किया जाना है, कम या अधिक दिन नहीं ।


इसमें कुल 150 माला मंत्र जप संपन्न किया जाना है । एक बार में आसन पर बैठने के बाद केवल एक बार 24 माला मंत्र जप ही संपन्न किया जा सकता है । इसका तात्पर्य है कि दिन में 2 या 3 बार मंत्र जप हेतु बैठा जा सकता है ।

वस्त्र और आसन लाल ही होने चाहिए ।


दिशा पूर्व या उत्तर होनी चाहिए । मंत्र जप हेतु कोई समय विशेष निर्धारित नहीं है ।


मंत्र जप के लिए मूंगा माला, रुद्राक्ष माला या हकीक माला का प्रयोग किया जा सकता है ।


संधान क्रिया की साधना संपन्न करने का मतलब है कि आप सूक्ष्म रुप से इस बात के लिए तैयार हो गये हैं कि आप शक्ति का प्रयोग कर सकें । हालांकि इसके लिए ऊपर बताए गये क्रम को भी पूरा करने की आवश्यकता होती है लेकिन इस क्रम को संपन्न करने के बाद व्यक्ति सूक्ष्म रुप में भी शक्ति की उपस्थिति को महसूस कर सकता है ।

इस क्रिया को आप मनोयोग पूर्वक, सफलता पूर्वक संपन्न कर लें, अगली पोस्ट में प्रक्षेपण क्रिया के विषय में बताया जाएगा ।

(क्रमशः)

 

अष्टक वर्ग


ज्योतिष की इस अद्भुत विधा के बारे में आप सब जानते हैं । जो लोग नहीं जानते हैं उन्होंने इस ब्लॉग के माध्यम से भी काफी कुछ पढ़ लिया है ।


अष्टक वर्ग पर हम लोगों ने पिछली पोस्टों में बहुत कुछ सीखा है । फिलहाल WhatsApp और Telegram दोनों पर ही इससे संबंधित गणना सीखने - सिखाने का अभ्यास चल रहा है । अगर आप भी गणना करना सीखना चाहते हैं तो आप इन दोनों में से ही किसी एक ग्रुप में जुड़ सकते हैं । अभी बहुत ज्यादा आगे नहीं गये हैं और प्राथमिक गणनायें सीखने पर ही कार्य चल रहा है । इसलिए जो लोग नये हैं वह भी यहां आकर अभ्यास करना सीख सकते हैं । वैसे तो मैं प्रयास करता हूं कि जो भी जानकारी दी जाए उसके माध्यम से ज्योतिष से अपरिचित व्यक्ति भी गणना करना सीख सकते हैं फिर भी अगर किसी को दिक्कत आती है तो वह ग्रुप में अपनी समस्या सामने रख सकता है । ज्योतिष की इस सदगुरुदेव प्रदत्त विधा को सीखना निःशुल्क है लेकिन वही लोग जुडें जो ज्योतिष के माध्यम से अपने जीवन को ऊपर उठाना चाहते हैं । मैं लिंक यहीं नीचे दे रहा हूं, आप सब जिज्ञासुओं का स्वागत है -


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अस्तु ।

 

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