top of page

सदगुरु कृपा विशेषांकः लक्ष्य भेदन सिद्धि - 2

Updated: Aug 29, 2023

प्रक्षेपण क्रिया साधना


पिछली पोस्ट में हमने देखा था कि किस प्रकार से संधान क्रिया संपन्न की जा सकती है । संधान का मतलब है निशाना साधने की क्रिया । लेकिन प्रक्षेपण का तात्पर्य है कि कितनी तीव्रता या वेग से उसे लक्ष्य पर छोड़ा जाए ।

यह क्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि निशाना सही होने के बाद भी अगर तीव्रता कम हुयी तो कार्य की पूर्णता में संदेह रहता है ।


वरिष्ठ गुरुभाईयों ने बताया है कि अगर इस प्रयोग को सफलता पूर्वक संपन्न कर लिया जाए तो इस शक्ति के प्रयोग से आप अपनी साधनाओं में आ रही विघ्न - बाधाओं का भी निराकरण कर सकते हैं ।

इस प्रयोग में जिस मंत्र का प्रयोग सदगुरुदेव ने बताया है वह निम्न प्रकार है -


प्रक्षेपण क्रिया मंत्र


।। ह्रीं क्लीं हसौः ।।

(Hreem Kaleem Hasouh)


ह्रीं - महासरस्वती का बीज मंत्र है ।

क्लीं - काम बीज मंत्र है ।

हसौः - यह राज राजेश्वरी का बीज मंत्र है ।


इन तीन बीज मंत्रों से संयुक्त यह मंत्र अत्यंत दुर्लभ और प्रचण्ड शक्ति युक्त है ।


जिन लोगों ने सदगुरुदेव महाराज के समय में शिविरों में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त किया है, वह लोग जानते हैं कि सदगुरुदेव एक - एक बीज मंत्र के महात्म्य का समय - समय पर विस्तृत रुप से व्याख्या करते ही थे । अकेला ह्रीं बीज ही महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का बीज मंत्र है । क्लीं काम बीज मंत्र है - जीवन में जो कामनायें होती हैं वह इस मंत्र के माध्यम से पूर्ण होना संभव हैं और भगवती राज - राजेश्वरी जीवन में समस्त ऐश्वर्य प्रदान करने में समर्थ हैं ।


साधना विधिः


एक बार में आसनस्थ होने पर 11 माला मंत्र जप करना है । इस मंत्र की कुल 300 माला मंत्र जप करना है । कुल 9 दिन में यह पूरा मंत्र जप हो जाना चाहिए ।


वस्त्र और आसन - लाल

माला - तुलसी की माला छोड़कर किसी भी माला से जप किया जा सकता है ।

दिशा - पूर्व या उत्तर

साधना समय - किसी विशेष समय की अनिवार्यता मंत्र जप काल में नहीं है ।


ब्रह्मचर्य आदि नियमों की कोई आवश्यकता नहीं है । फिर भी अगर कर सकें तो उचित ही रहता है ।

वैसे तो साधना के दौरान बाहर का भोजन अथवा यात्रा आदि नहीं करनी चाहिए । फिर भी अगर किसी कारणवश ऐसा करना पड़ जाए तो जितने दिन भी घर से बाहर रहे हैं या घर से बाहर भोजन किया है तो उतने दिन गुणित 3 माला हर दिन के हिसाब से नवार्ण मंत्र की कर ली जाए तो दोष नहीं लगता है ।


विशेष - यदि इसी समय संधान क्रिया के मंत्र जप भी किये जा रहे हैं तो जैसे ही उस दिन का संधान क्रिया का मंत्र जप समाप्त हो, तत्काल प्रक्षेपण क्रिया का भी मंत्र जप किया जा सकता है ।

 

प्रक्षेपण क्रिया साधना संपन्न करने के बाद आखिरी पड़ाव है - लक्ष्य क्रिया साधना ।


लक्ष्य क्रिया साधना


संधान का मतलब है निशाना साधने की क्रिया । प्रक्षेपण का तात्पर्य है कि कितनी तीव्रता से शक्ति को लक्ष्य पर छोड़ा जाए । लेकिन लक्ष्य क्रिया का तो तात्पर्य ही है कि कार्य को सफलता के द्वार पर ही ला देना ।

लक्ष्य क्रिया साधना के लिए सदगुरुदेव ने जो मंत्र बताया है, वह निम्न प्रकार है -


लक्ष्य क्रिया साधना मंत्र -

।। हंसः सोSहम् हंसः ।।

(Hansah Soham Hansah)


इसी दिव्य मंत्र के माध्यम से लंकापति रावण ने समस्त देवी - देवताओं को अपनी कैद में करके इच्छानुसार चलने को बाध्य कर दिया था ।


साधना विधान


एक बार में आसनस्थ होने पर 21 माला मंत्र जप करना है । इस मंत्र की कुल 21 माला मंत्र जप करना है । मतलब कि एक ही दिन का विधान है । और यह मंत्र जप पारद शिवलिंग पर त्राटक करते हुये ही किया जा सकता है ।

एक दिवस की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद हर दिन 10 - 15 मिनट चलते फिरते भी किया जा सकता है ।


ब्रह्मचर्य आदि नियमों की कोई आवश्यकता नहीं है । फिर भी अगर कर सकें तो उचित ही रहता है ।


वैसे तो साधना के दौरान बाहर का भोजन अथवा यात्रा आदि नहीं करनी चाहिए । फिर भी अगर किसी कारणवश ऐसा करना पड़ जाए तो जितने दिन भी घर से बाहर रहे हैं या घर से बाहर भोजन किया है तो उतने दिन गुणित 3 माला हर दिन के हिसाब से नवार्ण मंत्र की कर ली जाए तो दोष नहीं लगता है ।


विशेष - यदि इसी समय संधान या प्रक्षेपण क्रिया के मंत्र जप भी किये जा रहे हैं तो जैसे ही उस दिन का संधान या प्रक्षेपण क्रिया का मंत्र जप समाप्त हो, तत्काल प्रक्षेपण क्रिया का भी मंत्र जप किया जा सकता है ।

लक्ष्य क्रिया साधना की एक और विशेष बात है - जो साधक सूक्ष्म शरीर जागरण का अभ्यास कर रहे हैं, उनको इस प्रयोग को संपन्न करना ही चाहिए । इससे उनकी रजत रज्जू विशेष प्रभाव युक्त हो जाती है । हालांकि यह जप पारद शिवलिंग पर लगातार दृष्टि रखते हुये ही किया जा सकता है ।

 

आप सभी गुरुभाई, बहनें, पाठक गण अपने जीवन में इन दुर्लभ प्रक्रियाओं को सीख सकें, उनको समय रहते संपन्न कर सकें और इससे भी बढ़कर जीवन में सफलता प्राप्त कर सकें, ऐसी ही शुभेच्छा है ।

अस्तु ।

 

अष्टक वर्ग


ज्योतिष की इस अद्भुत विधा के बारे में आप सब जानते हैं । जो लोग नहीं जानते हैं उन्होंने इस ब्लॉग के माध्यम से भी काफी कुछ पढ़ लिया है ।


अष्टक वर्ग पर हम लोगों ने पिछली पोस्टों में बहुत कुछ सीखा है । फिलहाल WhatsApp और Telegram दोनों पर ही इससे संबंधित गणना सीखने - सिखाने का अभ्यास चल रहा है । अगर आप भी गणना करना सीखना चाहते हैं तो आप इन दोनों में से ही किसी एक ग्रुप में जुड़ सकते हैं । अभी बहुत ज्यादा आगे नहीं गये हैं और प्राथमिक गणनायें सीखने पर ही कार्य चल रहा है । इसलिए जो लोग नये हैं वह भी यहां आकर अभ्यास करना सीख सकते हैं । वैसे तो मैं प्रयास करता हूं कि जो भी जानकारी दी जाए उसके माध्यम से ज्योतिष से अपरिचित व्यक्ति भी गणना करना सीख सकते हैं फिर भी अगर किसी को दिक्कत आती है तो वह ग्रुप में अपनी समस्या सामने रख सकता है । ज्योतिष की इस सदगुरुदेव प्रदत्त विधा को सीखना निःशुल्क है लेकिन वही लोग जुडें जो ज्योतिष के माध्यम से अपने जीवन को ऊपर उठाना चाहते हैं । मैं लिंक यहीं नीचे दे रहा हूं, आप सब जिज्ञासुओं का स्वागत है -


Telegram: https://t.me/+EQxzNhGPjrQxMDk1


WhatsApp: https://chat.whatsapp.com/Ev9IPy58VpZ90aIo5WUO7i


इसके अलावा प्रत्येक रविवार को सांय 3 बजे से टेलीग्राम पर वीडिओ कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हम लोग ज्योतिष पर विभिन्न तथ्यों पर चर्चा करते हैं । मीटिंग की लिंक वहीं पर शेयर कर दी जाती है । अगर आप लोग भी इस वीडिओ सैशन के माध्यम से अपने प्रश्न रखना चाहते हैं तो भी आपका स्वागत है ।


अस्तु ।

 
bottom of page