सदगुरुदेव महाराज परमहंस स्वामी श्री निखिलेश्वरानंद जी के चरणों में मेरा कोटि कोटि प्रणाम 🙏🌹
छर्रा (अलीगढ़) यज्ञ महोत्सव संपन्न हो चुका है । दिव्यता क्या होती है, ये तो केवल सदगुरुदेव महाराज के श्रीचरणों में बैठकर ही अहसास की जा सकती है या फिर सदगुरुदेव महाराज के आशीर्वाद से संपन्न होने वाले इस प्रकार के यज्ञ महोत्सव में ही प्रत्यक्ष महसूस की जा सकती है । जिन भाई - बहनों ने इस यज्ञ में भाग लिया था, उन सबको बहुत - बहुत साधुवाद 🌹
आपमें से अधिकांश लोग उस यज्ञ महोत्सव के फोटो और वीडिओ सोशल मीडिया के माध्यम से देख चुके हैं पर इस ब्लॉग के पाठक पूरे विश्व में मौजूद हैं और इस अदभुत आध्यात्मिक कार्यक्रम के आनंद को आप सबके साथ बांटने में जो आनंद है, वह कहीं और नहीं मिल सकता । सदगुरुदेव महाराज का आशीर्वाद आप सब पर समान रुप से सदैव से मौजूद रहा है और आगे भी ऐसा ही होता रहे, ऐसी ही शुभेच्छा है ।
मैं यज्ञ महोत्सव के फोटो यहां पर शेयर कर रहा हूं, आप सब भी आनंद लीजिए -
(छर्रा यज्ञ महोत्सव, 2023)
सहारनपुर यज्ञ महोत्सव
मेरे जीवन में ऐसा अदभुत और दुर्लभ मौका पहली बार आ रहा है जब एक यज्ञ महोत्सव के आयोजन के मात्र 2 महीने के भीतर ही एक और यज्ञ महोत्सव की भावभूमि न सिर्फ तैयार हो जाए बल्कि सदगुरुदेव महाराज की आज्ञा से यज्ञ महोत्सव ही निर्धारित हो जाए ।
आगामी जनवरी 24 और 25, 2024 को एक और अदभुत यज्ञ महोत्सव का आयोजन निर्धारित हुआ है और आप सब सपरिवार आमंत्रित हैं । यह यज्ञ उत्तर प्रदेश के ही सहारनपुर जिले में होगा । मां शाकुंभरी के सिद्ध क्षेत्र में होने वाले इस यज्ञ के मुख्य जजमान डॉ अजय प्रताप हैं और यज्ञ के आयोजक तो आप और हम सब ही हैं । मिलजुल कर इस आयोजन को सफल बनाने का दायित्व आप और हम सब का ही है ।
मैंने महसूस किया था कि अपने कुछ गुरु भाई और बहन पिछले यज्ञ महोत्सव में भाग लेते - लेते रह गये थे । कारण कुछ भी रहे हों लेकिन इस प्रकार के यज्ञ में भाग न ले पाना जीवन के सौभाग्य का हाथों से फिसलना ही कहा जा सकता है । मैंने अपनी तरफ से सभी को समय पर सूचना दे दी थी, पर शायद सदगुरुदेव महाराज की इच्छा के विपरीत इस प्रकार के परम दुर्लभ यज्ञ में भाग ले पाना भी संभव नहीं हो पाता है ।
अगर आप इस यज्ञ महोत्सव में भाग लेना चाहते हैं तो आपको अपने हृदय की गहराइयों से सदगुरुदेव महाराज के श्री चरणों में ही प्रार्थना करनी चाहिए, केवल वही हैं जो माया का परदा हटाकर इस प्रकार के आध्यात्मिक कार्यक्रम में भाग लेने की भावभूमि प्रदान कर सकते हैं ।
यज्ञ के मुख्य जजमानः डॉ अजय प्रताप सिंह
आयोजन स्थलः SBI कॉलोनी, दिल्ली रोड, सहारनपुर (विकास भवन के ठीक सामने)
गुरु पूजन, कलश स्थापन एवं यज्ञ प्रारंभः 24 जनवरी, 2024, प्रातः 5 बजे
यज्ञ पूर्णाहुतिः 25 जनवरी, 2024, प्रातः 10 बजे
प्रयास कीजिए कि आप लोग 23 जनवरी, 2024 की शाम तक यज्ञ स्थल पर पहुंच जाएं । आपके रहने और भोजन - पानी की व्यवस्था आयोजकों की तरफ से ही है, इसलिए इस ओर से निश्चिंत रहें ।
आयोजन स्थल की दूरी रेलवे स्टेशन की दूरी मात्र 4 किमी है । इसलिए यज्ञ स्थल तक बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है । आवश्यकता पड़ने पर वाहन की व्यवस्था भी की जा सकती है इसलिए इस ओर से भी निश्चिंत रहें ।
यज्ञ में योगदान कैसे करें?
सदगुरुदेव महाराज की कृपा से इस यज्ञ की व्यवस्था करने में सक्षम सभी गुरु - भाई बहन एक साथ आ चुके हैं । अलीगढ़ यज्ञ महोत्सव में बहुत से गुरु भाई - बहनों ने इस यज्ञ में योगदान किया था, तो आप सबका भी स्वागत है । सबको इसका फल मिले और सभी इस यज्ञ से प्राप्त पुण्य के भागी बनें, इसलिए यज्ञ में आने वाले योगदान को यज्ञ में ही प्रयोग किया जाएगा ।
अगर आप किसी भी प्रकार से योगदान करना चाहते हैं तो आप यहां दिये गये QR Code के माध्यम से कर सकते हैं ।
अगर आप Phone Pay या Google Pay पर Phone number के माध्यम से योगदान करना चाहते हैं तो आप 8979480617 पर कर सकते हैं ।
आप जो भी योगदान करें, उसका डिटेल आप WhatsApp पर "एकोहि निखिलं" ग्रुप में अवश्य शेयर कर दें । मैं ग्रुप की लिंक यहां शेयर कर रहा हूं -
आप सबसे निवेदन है कि इस ग्रुप को केवल वही लोग ज्वॉइन करें जो या तो यज्ञ में भाग लेने की इच्छा रखते हैं या यज्ञ महोत्सव में किसी भी प्रकार से योगदान करना चाहते हैं । अलीगढ़ यज्ञ महोत्सव में प्राप्त योगदान का डिटेल इसी ग्रुप में शेयर किया गया था । ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है ताकि योगदान से प्राप्त धनराशि को लेकर पारदर्शिता बनी रहे ।
हाल - फिलहाल के लिए तो इस प्रकार से योगदान लिया जा रहा है । पर भविष्य में प्रयास यही रहेगा कि इस प्रकार के यज्ञ आयोजनों के लिए हम एक फंड बना लें । ऐसा फंड यज्ञ महोत्सव के आयोजनों में तो प्रयुक्त हो ही सकेगा, आपके अपने क्षेत्र में (केवल) गुरु त्रिमूर्ति संस्पर्शित शिविरों में भी किया जा सकेगा ।
हालांकि यह भविष्य की परिकल्पना है, सदगुरुदेव महाराज ही जानें कि कैसे होगा 🌹😇
यज्ञ में किन मंत्रों का प्रयोग होगा?
यज्ञ में मूल रूप से गुरु मंत्र से ही आहुति दी जाएंगी । हालांकि मूल गुरु मंत्र के अतिरिक्त भी सदगुरुदेव प्रदत्त विभिन्न बीज मंत्रों के साथ गुरु मंत्र से आहुति दी जाएंगी, इनमें मुख्य रुप से क्रीं, क्लीं, ह्रीं बीज युक्त गुरु मंत्र से आहुतियां देना सुनिश्चित किया गया है । प्रयास यही रहेगा कि प्रत्येक मंत्र को कम से कम 2 से 3 घंटे का समय मिल सके ।
इसके अलावा माता शाकम्बरी दुर्गा, बटुक भैरव, नवग्रह, दुर्गा ३२ नाम, साबर सुमेरू मंत्र, महाविद्याओं में माता कमला, माता पीतांबरा और मां भुवनेश्वरी, महाकाली मां के लिए अर्गला का प्रथम मंत्र विशेष रुप से यज्ञ में प्रयोग होगा ।
अलीगढ़ यज्ञ महोत्सव में महाशांति विधान से संबंधित विशेष और दुर्लभ मंत्रों से आहुतिया दी गयी थीं और इसका प्रभाव यज्ञ में भाग लेने वाले प्रत्येक (सौभाग्यशाली) साधक को आने वाले समय में स्वतः ही स्पष्ट हो जाएगा । प्रयास यही रहेगा कि इन विधान से संबंधित विशेष मंत्रों को इस यज्ञ में भी शामिल किया जाए ।
न जाने किसके सौभाग्य से हमें भी इतनी जल्दी ही दुबारा इस प्रकार के यज्ञ में भाग लेने का सौभाग्य मिल रहा है, कौन जाने फिर इस तरह के यज्ञ में भाग लेने का अवसर कब मिल सकेगा । और, मिलेगा भी या नहीं, कौन जाने । इसलिए, अगर 100 काम छोड़कर भी इस दुर्लभ यज्ञ में भाग ले सकें तो भी बहुत सस्ता सौदा है ।
यज्ञ में भाग लेने के नियम
कोई विशेष नियम नहीं है लेकिन कुछ अपेक्षायें हैं -
अपनी धोती, गुरु चादर और आसन साथ लायें । पिछली बार कुछ गुरु भाई अपनी गुरु चादर नहीं लाये थे, हम लोग गुरु - शिष्य परंपरा के द्योतक हैं, अगर हम ही अनुशासन में न होंगे तो बाकी लोगों से क्या अपेक्षा करना । इसलिए इस यज्ञ में भाग लेने वाले सभी लोग अपनी गुरु चादर अवश्य लायें ।
यज्ञ के दौरान शुचिता का ध्यान रखें । जैसे कि लघुशंका के बाद इंद्रिय प्रक्षालन (पानी से धोना), स्नान और आचमन के बाद ही यज्ञ में वापस बैठें। अगर (स्वास्थ्य कारणों से) नहाना संभव न हो तो कम से कम ठीक से हाथ, पैर, मुंह धोकर ही वापस आयें । शौच के बाद स्नान करना अनिवार्य रहेगा ।
हम लोग यज्ञ के समय व्रत में रहेंगे तो फलाहार की व्यवस्था रहेगी और आशा की जाती है कि हम लोग व्यर्थ के कार्य - कलापों में स्वयं को व्यस्त नहीं करेंगे ।
भगवती महामाया की माया और गुरु कृपा प्राप्ति
जो जीव को यही भुला दे कि वह जीव नहीं है बल्कि परमात्मा का ही अंश है वही माया है । अब सवाल उठता है कि आखिर यह माया है क्या?
श्रीदुर्गासप्तशती में तांत्रोक्त देवीसूक्तम् का वर्णन है जिसमें देवता भगवती की स्तुति करते हुये कहते हैं कि
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु निद्रा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
वैसे तो यह स्तोत्र थोड़ा बड़ा है पर पूरा स्तोत्र लिखने की यहां आवश्यकता नहीं है बल्कि उसका भावार्थ समझने की आवश्यकता है । यहां देवताओं ने जो स्तुति की है उसका मतलब है कि हे भगवती! समस्त भूतों में आप ही शक्ति बनकर स्थित है, आप ही निद्रा हैं, आप ही क्षुधा है, आप ही तृष्णा हैं, आप ही समस्त चेतन और अचेतन में स्थित हैं, आप ही लज्जा है, आप ही शांति हैं और आप ही लक्ष्मी हैं, आप ही स्मृति हैं । दया भी आप ही हैं, तुष्टि भी आप ही हैं, माता भी आप ही हैं और भ्रम भी आप ही हैं ।
ऐसा क्या है जो भगवती का ही स्वरुप न हो?
हमारे शरीर में और इस चराचर जगत में ऐसा कुछ है ही नहीं जो उस भगवती आदि शक्ति का ही स्वरूप न हो ।
जब कुछ भी हमारा है ही नहीं तो फिर हम ये मान कैसे लेते हैं कि यहां पर कुछ भी हमारा है ।
हम सोचते हैं कि ये शरीर हमारा है, ये मन हमारा है, ये पत्नी हमारी है, ये संतान हमारी है, ये धन हमारा है, ये चिंता हमारी है । पर ये सब भ्रम है और उसके अलावा कुछ नहीं है । और ये भ्रम भी माता आदिशक्ति का ही एक स्वरूप है जो हमें हर क्षण भरमाये रखता है कि ये सब हमारा है ।
यही माया है ।
लेकिन इस माया की विलक्षणता इस बात में भी है कि ये वही स्वरूप धारण कर लेती है जो हम इच्छा करते हैं और साथ ही साथ भुला भी देती है कि जो कुछ भी आज हमारे जीवन में हैं वह हमारी अपनी इच्छा के कारण ही है ।
हम किसी अवस्था को सुख कहते हैं और किसी अवस्था को दुख कहते हैं । कारण देखें तो यह कर्म का प्रभाव नजर आता है पर कर्म भी तो किसी न किसी इच्छा का ही परिणाम था । तांत्रोक्त देवीसूक्त में ये श्लोक भी स्पष्ट ही है -
या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
अर्थात सभी भूतों में आप ही इच्छा रूप में स्थित हैं, हे देवी! आपको नमस्कार है ।
तो इच्छा भी हमारी कहां हुयी?
तो प्रश्न यह उठता है कि जब इच्छा भी हमारी नहीं थी तो उसका फल हम क्यों भोगेंगे?
तो इसका उत्तर यही है मेरे प्रिय भाई, जब तक आप ये मानेंगे कि इच्छा आपकी थी, तब तक भोग भी आपको ही भोगना पड़ेगा । और, जब आप यह जान जाएंगे और साथ में मान भी जाएंगे कि इच्छा तो कभी हमारी होती ही नहीं है तो फिर भोग भी आपको नहीं भोगना पड़ेगा ।
प्रश्नः तो फिर भोग कौन भोगेगा?
जब व्यक्ति आध्यात्मिक पथ पर चलता है तो वहां मंजिल केवल एक ही है । कर्म - बंधन से मुक्त होना । इसी को शास्त्रों में मोक्ष भी कहा गया है । तो जब कर्म बंधन से मुक्त हो जाना है तो फिर भोग से भी मुक्त हो जाना है । उस स्थिति में ईश्वर चाहें गरीब बना दें तो अभाव में भी ईश्वर के प्रति भाव बना रहता है और प्रभाव में भी ईश्वर के प्रति भाव बना रहता है । राजा जनक भी इसी वजह से विदेह कहलाये थे और माता सीता का तो एक नाम ही वैदेही पड़ गया ।
प्रश्नः आध्यात्म की इतनी गूढ़ बातें हमारी समझ में नहीं आती हैं, कोई आसान सा उपाय बतायें ।
सब कुछ तो स्पष्ट ही बता दिया है फिर भी मैं समझता हूं कि चेतना के स्तर में भिन्नता होने की वजह से जरूरी नहीं है कि सब कुछ समझ में आ ही जाए । इसके लिए एक तरीका और भी है, श्रीराम रक्षा स्तोत्र में एक दोहा है -
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः । स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ।।
आप अपने गुरु को, इष्ट को या कहें तो भगवान को ही अपना सर्वस्व मान लीजिए । सच कहूं तो आप उनको अपना स्वामी मान लीजिए और, आप स्वयं उनके दास बन जाइये । इतना करने मात्र से भी आपका काम हो जाएगा ।
प्रश्नः मैं तो उनका दास ही हूं पर फिर भी मेरी चेतना का विकास क्यों नहीं हो रहा?
सच में दास होते तो उनके चरण स्पर्श का सुख अवश्य मिलता । उनकी सेवा का सुख अवश्य मिलता । और, ये भी जान लीजिए कि अगर अपने गुरु को स्पर्श नहीं कर पाते हैं या उनकी सेवा का सुख नहीं मिल पाता है तो चेतना में भी वृद्धि होने वाली नहीं है । यानी, संसार के बाकीं संबंधों की तरह ही यहां भी स्पर्श का महत्व है । चेतना मिलती ही तब है जब गुरु का स्पर्श मिले ।
प्रश्नः गुरु तो व्यासपीठ पर विराजमान रहते हैं । उनको स्पर्श करने का या उनकी सेवा का सुख नहीं मिल पाता है, क्या करें?
जीवन में गुरु की कृपा भी भगवत्कृपा से ही मिलती है । और भगवान की कृपा संतों की कृपा से मिलती है । तो अगर आप गुरु की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो किसी संत का आश्रय लीजिए । उनको ही अपने गुरु का स्वरूप मानकर उनकी सेवा कीजिए । इससे गुरु सेवा का भी फल मिलेगा और संत के साथ रहने से आपकी चेतना का भी विकास स्वतः ही होता रहेगा ।
पर इसमें भाव और श्रद्धा गुरु के प्रति ही रहेगी । स्वरूप फिर चाहे जो भी रहे । गुरु चेतना तो कण - कण में व्याप्त है और उस संत के हृदय में मौजूद गुरु सत्ता ही आपका कल्याण कर देगी ।
प्रश्नः चारों तरफ तो पाखंड विराजमान है, सच्चा संत कहां से खोजूं?
आप सच्चे संत को नहीं खोज सकते । एक सच्चा संत ही आपको खोज सकता है । आपको तो बस एक शिशु की भांति अपने गुरु को याद करना है । उनकी याद में आंखों में आंसूं आ जायें तो समझ लीजिए कि मन, हृदय एक शिशु के समान बन रहा है । और, ऐसी स्थिति में ही किसी संत या संत के दास का ही आपसे मिलन होगा ।
अगर संत मिल जाएं तो उनका दास बन जाइये । संत न मिलें तो भी कोई बात नहीं, किसी संत का दास ही मिल जाए तो उसे ही अपने स्वामी (गुरु) का स्वरूप मानकर अपना स्वामी बना लीजिए । भले ही आप उनको ये न बतायें कि आपने उनको अपना स्वामी मान लिया है लेकिन उनके प्रति आपके समस्त प्रयास एक सेवक की ही भांति रहें तो ही उचित है ।
लेकिन, भाव और श्रद्धा आपकी अपने गुरु के प्रति ही रहेगी, स्वरूप के प्रति नहीं । स्वरूप तो आपके लिए प्रेम और गुरु सेवा का एक माध्यम है ।
प्रश्नः क्या किसी दास को अपना स्वामी बनाना उचित है?
अगर वह सच में दास होगा तो सबसे पहले यही काम करेगा कि आपसे अपना पिंड छुड़ायेगा । देखिये, एक दास सच में बहुत स्वार्थी व्यक्ति होता है 😄 । वह अपनी दास की कुर्सी या पदवी किसी को नहीं देगा । जब वह देखेगा कि लोग उसको ही स्वामी बना दे रहे हैं (और दास का पद उससे छीन ले रहे हैं) तो वह अपने आप ही आपको अपने स्वामी के पास पहुंचा देगा और स्वामी से कहेगा - "लो संभालों अपने नये दास को" ।
यही पहचान होती है भगवान या गुरु के दास की कि वह किसी का स्वामी नहीं बनना चाहता ।
एक बात ये भी ध्यान रखिये, कि अगर कोई आपका स्वामी बनने का प्रयास करे, तो वहां से भागने में ही भलाई है ।
थोड़ा ध्यान देंगे तो संत तुलसीदास, रविदास, सूरदास, रैदास इत्यादि संत तो अपने आपको प्रभु का दास ही मानते थे और आज पूरी दुनिया उनको पूजती है । आपको भले ही उस काल के किसी करोड़पति का नाम न याद होगा, लेकिन सूर, कबीर, तुलसी का नाम आज भी जन जन की जुबान पर है । ईश्वर की भक्ति है ही ऐसी कि दास को कोटि कोटि जन्म तक अमर कर देती है ।
तो अगर गुरु तक पहुंचना चाहते हैं तो आप दासानुदास बन जाइये । यानि जरूरत पड़े तो आप किसी दास के भी दास बन जाइये ।
प्रश्नः क्या इससे मेरी चेतना का विकास हो सकेगा?
जब हम किसी सीढ़ी पर चढ़ते हैं तो क्या पहली और आखिरी सीढ़ी की शक्ल और आकार में अंतर होता है? नहीं न! लेकिन अगर हम आखिरी सीढ़ी तक पहुंचना चाहते हैं तो पहली सीढ़ी पर तो कदम रखना ही होगा । गुरु भी सीढ़ी के आखिरी पायदान की तरह हैं । उन तक पहुंचने के लिए भी आपको कुछ सीढ़ियां चढ़नी ही पढ़ेंगी। ध्यान रखिये, पहली सीढ़ी ही आपको आखिरी पायदान तक पहुंचने का रास्ता प्रशस्त करती है । इसलिए पहली सीढ़ी का भी वही महत्व है जो आखिरी सीढ़ी का है ।
आयुर्वेद और हमारा जीवन
अपने जीवन को सुरक्षित रखने के लिए हम न जाने कितनी सुख सुविधायें जुटा लेते हैं । लाखों - करोड़ों खर्च करके घर ही बना लेते हैं । मर जाएंगे तो घर वालों को एक सहारा मिलेगा, ये सोचकर टर्म इंश्योरेंस करवा लेते हैं और हर साल उसका प्रीमियम भरते हैं । अगला जीवन अच्छा मिले तो उसके लिए इसी जीवन में माला हाथ में थामकर भगवान का नाम भजते रहते हैं ।
सब कुछ तो करते हैं लेकिन अपने शरीर का ध्यान नहीं रख पाते हैं प्रभु जी । क्या करें, जो मिलता है उसी को तो खायेंगे न । अब जितना ज्ञान है, समझ है, उसी हिसाब से तो करेंगे न साहब ।
सच भी है । अब जिस चीज के बारे में जानते ही नहीं हैं, उसका इस्तेमाल करेंगे कैसे ।
यही वजह है कि हम अपने ब्लॉग पर प्रकृति में उपलब्ध उन चीजों के बारे में भी बताते हैं जो न सिर्फ हमारे शरीर में विभिन्न पोषक तत्वों की पूर्ति करती हैं, बल्कि हमारे दैनिक जीवन की समस्याओं में भी बहुत हद तक राहत पहुंचा देती हैं ।
हमारे देश में महिलाओं को एक आम समस्या से जूझना पड़ता है, कमर दर्द, पैर की पिंडली का दुखना, शरीर में आयरन की कमी और इससे भी ज्यादा एक ऐसी कमजोरी का बने रहना तो उनके लिए थकान का सबब बन जाती है ।
हमने पिछले पोस्ट में कोकोजी के बारे में बताया था । कोकोजी का स्वाद कुछ कुछ चॉकलेट जैसा होता है तो इसको दूध में मिलाकर पीने से बच्चों को बहुत अच्छी लगती है । बच्चों का विकास भी बहुत अच्छे से होता है । अगर इसी कोकोजी को महिलायें पीयें तो महिलाओं को एक बेहतरीन पेय पदार्थ मिल जाता है ।
और, अगर कोकोजी के साथ साथ स्पायरुलिना का भी सेवन किया जाए तो 2 - 3 महीने के भीतर ही महिलायें अपने आपको फिर से स्वस्थ बना सकती हैं । स्पायरुलिना वैसे तो समुद्र में पायी जाती है लेकिन कंपनिया इसको अपने फार्म में भी उगाकर, उसे प्रोसेस करके, खाने लायक बनाकर भी मार्केट में ले आयी हैं ।
वैसे तो ये पाउडर की शक्ल में भी मिलता है, लेकिन कैप्सूल या टैबलेट की तरह खाना इसको ज्यादा आसान है । रोज के 3 कैप्सूल सुबह और 3 कैप्सूल शाम को खाने से किसी भी तरह की कमजोरी को कुछ ही समय में ठीक किया जा सकता है । मैं इसकी लिंक यहां शेयर कर रहा हूं -
आप सभी अपने जीवन को स्वस्थ बना सकें, ऐसी ही सदगुरुदेव महाराज से प्रार्थना करता हूं ।
इसके अलावा, आप सबको मैं अपने हृदय की गहराइयों से सहारनपुर में होने वाले परम पावन और दुर्लभ यज्ञ महोत्सव में निमंत्रण देता हूं । आप सब अपनी - अपनी क्षमतानुसार यज्ञ में भाग ले सकें, उस महान पुण्य के भागी बन सकें जिससे आपका संपूर्ण जीवन ही ऊंचाइयों की ओर अग्रसर हो सके, ऐसी ही शुभेच्छा है ।
अस्तु ।
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