आदित्य भैरव सायुज्य श्री सौभाग्य कृत्या प्रयोग
- Rajeev Sharma
- Dec 29, 2019
- 6 min read
Updated: Aug 8
गुह्य रहस्य पद्धति ग्रंथ

आदित्य भैरव यंत्र
आप सभी को आसन सिद्धि विधान और माला सिद्धि विधान, दोनों ही प्राप्त हो चुके हैं । हालांकि माला सिद्धि विधान को संपन्न करने में अभी समय है किंतु आसन सिद्धि विधान को किसी भी सप्ताह में संपन्न किया ही जा सकता है । और ये देखते हुये कि विशिष्ट समय पर ही विशिष्ट साधनायें संपन्न की जा सकती हैं, इसलिए इस क्रम को रोकना उचित नहीं होगा ।
नववर्ष का आगमन सामने ही है । कुछ इसका नाच गाकर स्वागत करेंगे, कुछ पार्टी करके, प्रत्येक व्यक्ति का अपना तरीका है नववर्ष के स्वागत का । परंतु जो श्रेष्ठ साधक हैं वो श्रेष्ठ समय को हाथ से जाने नहीं देते । वो तो इन महत्वपूर्ण समय पर उन श्रेष्ठ क्रियाओं को आत्मसात करते हैं जो न सिर्फ उनका बल्कि उनकी आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक उपहार सिद्ध होती है ।
वरिष्ठ गुरुभाइयों द्वारा आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त इस प्रयोग के बारे में अपनी तरफ से कुछ भी लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है । इसलिए इस प्रयोग को मैं वरिष्ठ गुरुभाइयों के शब्दों में ही यहां सबके समक्ष रख रहा हूं ।
हम सब जानते हैं कि वह दिन जब हम जीवन का प्रारंभ करते हैं हम सभी के लिए नव वर्ष कहलाता है, मान्यताओं, संस्कारों और तथ्यों के आधार पर एक सामान्य वर्ष में कई बार नव वर्ष मनाया जाता है, जैसे नवरात्रि को हिंदू संस्कृति का तो भिन्न भिन्न प्रान्तों के अपने नव वर्ष होते है तो स्वयं का जन्मदिन भी व्यक्ति विशेष के लिए नव वर्ष ही होता है। मानव चिंतन सदैव इस ओर रहा है कि कैसे हम अपने मनोवांछित को प्राप्त कर न्यूनताओं को समाप्त कर सकें और सार्थक कर सकें अपना नव वर्ष । सदगुरुदेव हमेशा नव वर्ष के अवसर पर साधकों को विलक्षणता प्रदान करने वाले नवीन तथ्यों से परिचित तो करवाते ही थे, साथ ही साथ दिव्यपात श्रेणी की विभिन्न दीक्षाओं को भी उन्होंने देना प्रारंभ किया था, जिससे साधक सामान्य न होकर अद्भुत हो जाये... ।
परन्तु १९९८ के बाद वे सारे क्रम ही लुप्त हो गए और अन्य कोई उन तथ्यों को समझा पाए ऐसा संभव ही नहीं था। हमारे विभिन्न ज्ञात और लुप्त तंत्र ग्रन्थ प्रमाण हैं उन उच्चस्तरीय साधनाओं के जिनका प्रयोग कर साधक अपनी जीवन शैली में आमूल-चूल परिवर्तन कर सकता है और वर्ष भर के लिए श्रेष्ठता तो प्राप्त कर ही सकता है, ऐसा ही एक ग्रन्थ है “गुह्य रहस्य पद्धति” जो पूरी तरह दिनों ,महीनों और वर्षों को अनुकूल बनाने और गतिमान वर्ष, माह और दिवस के अधिष्ठाता ग्रह ,देव शक्ति, मातृका और मुंथा को वश में करके स्वयं का भाग्य लेखन करने की गुह्यतम पद्धति पर आधारित है, पूरा ग्रन्थ ही २२८ प्रयोगों से युक्त है, भिन्न भिन्न दिवसों और महीनों के अपने अपने प्रयोग हैं, परन्तु उन सब में जो सभी के लिए प्रभावकारी पद्धति है उसी का विवेचन में इस लेख में कर रहा हूं।
सदगुरुदेव के सन्यासी और सिद्ध शिष्य स्वामी शिव योगत्रयानंद जी ने वो ग्रन्थ दिखाया था जो पूरी तरह हस्तलिखित था और उन्होंने ही उन क्रियाओं को कैसे किया जाये और कब कब कैसे उनका प्रयोग किया जाता है ये भी समझाया था । उन्होंने बताया था कि इस प्रयोग को दो तरीकों से किया जा सकता है –
१. या तो जब सामूहिक मान्यताओं के आधार पर नव वर्ष प्रारंभ हो तब
२. या जब साधक का जन्मदिवस हो या उसकी पारिवारिक या धार्मिक मान्यताओं के आधार पर जब नव वर्ष प्रारंभ होता हो ।
चाहे आप किसी भी क्रम को मानते हों तब भी आप दो तरीके से इस प्रयोग को कर सकते हो –
१. या तो सूर्योदय के समय का का आश्रय लेकर साधना की जाये
२. या फिर जिस समय साधक का जन्म हुआ हो उस समय पर इसे संपन्न किया जाये ,भले ही आप १ जनवरी को इसका प्रयोग कर रहे हो परन्तु तब भी आप इसे इन दोनों में से कोई समय पर कर सकते हो, अर्थात मान लीजिए कि किसी का जन्म २४ अगस्त को रात्रि में ९.३५ पर हुआ है तब ऐसे में साधक १ जनवरी को ही या तो सूर्योदय के समय इस साधना को कर सकता है या फिर रात्रि में ९.३५ पर । दोनों ही समय प्रभावकारी हैं और कोई दोष नहीं है।
आप चाहे आत्मविश्वास की मजबूती चाहते हों या फिर रोजगार की प्राप्ति या वृद्धि, सम्मान चाहते हो या फिर संतान सुख या संतान या परिवार का आरोग्य ,आर्थिक उन्नति चाहते हो या कार्य में सफलता, जीवन में प्रेम की अभिलाषा हो या फिर विदेश यात्रा का स्वयं के भाग्य में अंकन, ये प्रयोग सभी अभिलाषाओं की पूर्ति करता है।
सदगुरुदेव ने १९९१-१९९२ में पहली बार साधकों के सामने नवरात्रि में सौभाग्य कृत्या का प्रयोग करवाया था । और नवरात्रि चूंकि सनातन नववर्ष का आगमन पर्व होता है अतः उन्होंने उपहार स्वरूप इस क्रिया को सभी साधकों को प्रदान किया था, उसी क्रम में उनके आशीर्वाद से ये “आदित्य भैरव सायुज्य श्री सौभाग्य कृत्या प्रयोग” हमारे लिए प्राप्त हुआ है, गुरु मंत्र की १६ माला अनिवार्य हैं उन्हीं क्षणों में साधकों के द्वारा इस प्रयोग के पहले तभी ये प्रयोग पूर्णता प्रदान करता है।

