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चाक्षुष्मति साधना - भगवान सूर्य का आशीर्वाद

Updated: Aug 7

आज चंद्रग्रहण का अवसर है । आपमें से अधिकांश साधकों ने ग्रहण काल में की जाने वाली कोई न कोई साधना अवश्य की ही होगी । कुछ साधनाओं को मैंने व्यक्तिगत रुप से भी लोगों तक पहुंचाया है । अगर आपने अभी तक कोई साधना नहीं की है तब भी अवश्य करें, ग्रहण काल से 6 घंटे पहले और ग्रहण समाप्ति के 6 घंटे बाद तक भी वातावरण में ऊर्जा बरकरार रहती है, इसलिए इस पूरे काल में कभी भी साधना संपन्न कर सकते हैं ।


आज का विषय चाक्षुष्मति साधना से संबंधित है । सदगुरुदेव ने चाक्षुष्मति साधना का वरदान बहुत पहले से ही अपने सभी शिष्यों को प्रदान कर रखा है । इस साधना के प्रभाव से नेत्र संबंधित विकार पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं । आपमें से बहुतों ने इस साधना को संपन्न किया ही होगा और इसका लाभ उठाया होगा, ऐसा मेरा विश्वास है ।

पर यह विश्वास हमेशा से था, ऐसा बिलकुल नहीं है । मैंने तो पहली बार चाक्षुष्मति साधना के विषय में सदगुरुदेव रचित पुस्तक से ही जाना था । एक स्तोत्र के रुप में दी गयी साधना चूंकि स्वयं सदगुरुदेव द्वारा प्रदत्त थी, तो उस पर संशय करना तो मेरे लिए कभी संभव ही नहीं था लेकिन उससे कुछ होगा या नहीं होगा, ऐसा कभी कुछ मन में आया ही नहीं । अगर कहूं कि उस साधना को करने की इच्छा भी कभी मन में नहीं आयी ।


इस संदर्भ में एक घटना का जिक्र करना बहुत महत्वपूर्ण है । साल 2016 की बात है जब घर में किसी ऐसे अतिथि का आगमन हुआ जो हमारे बड़े भाई साहब के रिश्ते में श्वसुर लगते हैं तो, मन में जिज्ञासा हुयी कि क्या बात है । मेरी तो मुलाकात भी पहली ही बार हुयी थी । अपने 8 - 10 साल के पुत्र के साथ वह घर पर विराजे थे । कारण पूछने पर बताया कि इसकी एक आंख में चोट लग गयी थी और अब इसमें रोशनी बहुत कम हो गयी है । सीधे शब्दों में कहें तो एक 10 साल का बच्चा एक आंख से अंधा होने के कगार पर था ।


जिस अस्पताल का उन्होंने रेफरेंस दिया था वह था चित्रकूट का नामी रामजानकी अस्पताल । बड़े से बड़े नेत्र रोगों का वहां इलाज आसानी से हो जाता था, वहां पर डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी थी, लेकिन चेतावनी भी दी थी कि कोई जरुरी नहीं कि बच्चे की आंख की रोशनी वापस आ ही जाए । इसलिए वह चित्रकूट से चले आये और एक उम्मीद में अलीगढ़ चले आये कि शायद यहां कुछ समाधान मिल जाए ।


बड़े भाई साहब फार्मासिस्ट हैं तो उन्होंने कई नामी डॉक्टरों से उनका परिचय करवाया जो मेरे गृह जनपद अलीगढ़ में ही नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं । डॉक्टरों से मेल - मुलाकात का दौर चल ही रहा था । हम भी कुशल क्षेम जानने की कोशिश ही कर रहे थे, और कर भी क्या सकते थे ।


एक दिन सुबह के समय जब वो सूर्यदेव को अर्घ्य दे रहे थे तो मैं भी छत पर ही मौजूद था । उन्होने मुझसे पूछा कि क्या चाक्षुष्मति साधना मेरे पास मिल सकती है? मैंने सदगुरुदेव की पुस्तक लाकर उनको दे दी कि इसमें आपको प्रामाणिक रुप से चाक्षुष्मति स्तोत्र प्राप्त हो सकता है । हमारी बात यहीं पर समाप्त हो गयी लेकिन उन्होंने उसी समय कुछ संकल्प अपने मन में लेकर भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित कर दिया । कुछ अन्य ब्राह्मण जनों को फोन पर ही इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए कहा कि इस स्तोत्र का 1.25 लाख जप करना है । वह स्वयं भी साधना में बैठे और उनके साथी भी अपने - अपने स्थानों पर ही साधना रत हो गये ।


ऐसा होता हुआ देखना ही मेरे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था कि 1 महीने के भीतर ही उस बच्चे की आंख की रोशनी पूरी तरह से वापस आ गयी थी । लेकिन इसके पीछे साधना की शक्ति काम कर रही थी और साथ ही भगवान सूर्यदेव का आशीर्वाद । साधना की शक्ति का इस तरह से प्रत्यक्ष प्रमाण मेरे मन के किसी भी प्रकार के संशय दूर करने के लिए काफी था ।


हालांकि जब मुझे स्वयं नेत्रों की समस्या का सामना करना पड़ा तो वह पुस्तक मेरे लिए किसी कारणवश उपलब्ध नहीं हो पायी और जो भी साधना विधि मुझे प्राप्त हो रही थी, उस पर मैं चाह कर भी विश्वास नहीं कर पा रहा था । तो वापस मैंने सदगुरुदेव से ही प्रार्थना की । तब उन्होंने मुझे एक और आसान साधना विधि प्रदान की, वह मैं आपके समक्ष रख रहा हूं । इस साधना के नियमित अभ्यास से आंखों की समस्या का निदान होता ही है ।

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