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चाक्षुष्मति साधना - भगवान सूर्य का आशीर्वाद

Updated: Aug 29, 2023

आज चंद्रग्रहण का अवसर है । आपमें से अधिकांश साधकों ने ग्रहण काल में की जाने वाली कोई न कोई साधना अवश्य की ही होगी । कुछ साधनाओं को मैंने व्यक्तिगत रुप से भी लोगों तक पहुंचाया है । अगर आपने अभी तक कोई साधना नहीं की है तब भी अवश्य करें, ग्रहण काल से 6 घंटे पहले और ग्रहण समाप्ति के 6 घंटे बाद तक भी वातावरण में ऊर्जा बरकरार रहती है, इसलिए इस पूरे काल में कभी भी साधना संपन्न कर सकते हैं ।


आज का विषय चाक्षुष्मति साधना से संबंधित है । सदगुरुदेव ने चाक्षुष्मति साधना का वरदान बहुत पहले से ही अपने सभी शिष्यों को प्रदान कर रखा है । इस साधना के प्रभाव से नेत्र संबंधित विकार पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं । आपमें से बहुतों ने इस साधना को संपन्न किया ही होगा और इसका लाभ उठाया होगा, ऐसा मेरा विश्वास है ।

पर यह विश्वास हमेशा से था, ऐसा बिलकुल नहीं है । मैंने तो पहली बार चाक्षुष्मति साधना के विषय में सदगुरुदेव रचित पुस्तक से ही जाना था । एक स्तोत्र के रुप में दी गयी साधना चूंकि स्वयं सदगुरुदेव द्वारा प्रदत्त थी, तो उस पर संशय करना तो मेरे लिए कभी संभव ही नहीं था लेकिन उससे कुछ होगा या नहीं होगा, ऐसा कभी कुछ मन में आया ही नहीं । अगर कहूं कि उस साधना को करने की इच्छा भी कभी मन में नहीं आयी ।


इस संदर्भ में एक घटना का जिक्र करना बहुत महत्वपूर्ण है । साल 2016 की बात है जब घर में किसी ऐसे अतिथि का आगमन हुआ जो हमारे बड़े भाई साहब के रिश्ते में श्वसुर लगते हैं तो, मन में जिज्ञासा हुयी कि क्या बात है । मेरी तो मुलाकात भी पहली ही बार हुयी थी । अपने 8 - 10 साल के पुत्र के साथ वह घर पर विराजे थे । कारण पूछने पर बताया कि इसकी एक आंख में चोट लग गयी थी और अब इसमें रोशनी बहुत कम हो गयी है । सीधे शब्दों में कहें तो एक 10 साल का बच्चा एक आंख से अंधा होने के कगार पर था ।


जिस अस्पताल का उन्होंने रेफरेंस दिया था वह था चित्रकूट का नामी रामजानकी अस्पताल । बड़े से बड़े नेत्र रोगों का वहां इलाज आसानी से हो जाता था, वहां पर डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी थी, लेकिन चेतावनी भी दी थी कि कोई जरुरी नहीं कि बच्चे की आंख की रोशनी वापस आ ही जाए । इसलिए वह चित्रकूट से चले आये और एक उम्मीद में अलीगढ़ चले आये कि शायद यहां कुछ समाधान मिल जाए ।


बड़े भाई साहब फार्मासिस्ट हैं तो उन्होंने कई नामी डॉक्टरों से उनका परिचय करवाया जो मेरे गृह जनपद अलीगढ़ में ही नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं । डॉक्टरों से मेल - मुलाकात का दौर चल ही रहा था । हम भी कुशल क्षेम जानने की कोशिश ही कर रहे थे, और कर भी क्या सकते थे ।


एक दिन सुबह के समय जब वो सूर्यदेव को अर्घ्य दे रहे थे तो मैं भी छत पर ही मौजूद था । उन्होने मुझसे पूछा कि क्या चाक्षुष्मति साधना मेरे पास मिल सकती है? मैंने सदगुरुदेव की पुस्तक लाकर उनको दे दी कि इसमें आपको प्रामाणिक रुप से चाक्षुष्मति स्तोत्र प्राप्त हो सकता है । हमारी बात यहीं पर समाप्त हो गयी लेकिन उन्होंने उसी समय कुछ संकल्प अपने मन में लेकर भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित कर दिया । कुछ अन्य ब्राह्मण जनों को फोन पर ही इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए कहा कि इस स्तोत्र का 1.25 लाख जप करना है । वह स्वयं भी साधना में बैठे और उनके साथी भी अपने - अपने स्थानों पर ही साधना रत हो गये ।


ऐसा होता हुआ देखना ही मेरे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था कि 1 महीने के भीतर ही उस बच्चे की आंख की रोशनी पूरी तरह से वापस आ गयी थी । लेकिन इसके पीछे साधना की शक्ति काम कर रही थी और साथ ही भगवान सूर्यदेव का आशीर्वाद । साधना की शक्ति का इस तरह से प्रत्यक्ष प्रमाण मेरे मन के किसी भी प्रकार के संशय दूर करने के लिए काफी था ।


हालांकि जब मुझे स्वयं नेत्रों की समस्या का सामना करना पड़ा तो वह पुस्तक मेरे लिए किसी कारणवश उपलब्ध नहीं हो पायी और जो भी साधना विधि मुझे प्राप्त हो रही थी, उस पर मैं चाह कर भी विश्वास नहीं कर पा रहा था । तो वापस मैंने सदगुरुदेव से ही प्रार्थना की । तब उन्होंने मुझे एक और आसान साधना विधि प्रदान की, वह मैं आपके समक्ष रख रहा हूं । इस साधना के नियमित अभ्यास से आंखों की समस्या का निदान होता ही है ।

 

चाक्षुष्मति साधना


विनियोग


अस्याश्चक्षुष्मतीविद्याया ब्रह्मा ऋषिः । गायत्रीच्छन्दः । श्रीसूर्यनारायणो देवता । ॐ बीजम् । नमः शक्तिः । स्वाहा कीलकम् । चक्षुरोगान्निवृत्तये जपे विनियोगः ।


ध्यान मंत्र


चक्षुस्तेजोमयं पुष्पै कन्दुकम विभ्रति करैः ।

रौप्यसिंहासनारूढ़ां देवीं चक्षुष्मती भजे ।।

ओSम् सूर्यायाक्षितेजसे नमः खेचराय नमः, असतो मा सद् गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्माSमृतं गमय । उष्णो भगवान शुचिरुपः । हंसो भगवान शुचिरप्रतिरुपः ।


वयः सुपर्णा उप सेदुरिन्द्रं प्रियमेधा ऋषयो नाघमानः । अप ध्वान्तमूपुर्णुहि पूर्धि चक्षुर्मुमुग्ध्यSस्मान्निधयेव बद्धान् । पुण्डरीकाक्षाय नमः । पुष्करेक्षणाय नमः । अमलेक्षणाय नमः । कमलेक्षणाय नमः । विश्वरुपाय नमः । श्री महाविष्णवे नमः । इति षोडशम् समष्टिरुपिणी चक्षुष्मती विद्या दूरदृष्टिः सिद्धिप्रदा ।


चक्षुष्मती विद्या का पाठ


ॐ चक्षुष्चक्षु तेजः स्थिरो भव । मां पाहिपाहि । त्वरितं चक्षुरोगान् प्रशमय प्रशमया मम जातरुपं तेजो दर्शय दर्शय, यथाहमन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय, कृपया कल्याणं कुरु कुरु । मम यादि यानि पूर्व जन्मोपार्जितानि चक्षुः प्रतिरोधकदुष्कृतानि तानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय । ओSम् नमश्चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्य-भास्कराय । ओSम् नमः करुणाकराय मृताय । ओSम् नमो भगवते श्री सूर्यायाक्षितेजसे नमः । ओSम् खेचराय नमः । ओSम् महासेनाय नमः । ओSम् तमसे नमः । ओSम् रजसे नमः । ओSम् सत्याय (सत्त्वाय) नमः । ओSम् असतो मा सद् गमय । ओSम् तमसो मा ज्योतिर्गमय । ओSम् मृत्योर्माSमृतं गमय । उष्णो भगवान्छुचिरुपः हंसो भगवानछुचिरुपः प्रतिरुपः ।


ओSम् विश्वरुपे घृणिन जातवेदसे हिरण्मयै ज्योतिरुपं तपन्तम् ।

सहस्ररश्मिः शतधा वर्तमानः पुरः प्रजानामुदयत्येक्ष सूर्यः ।।

ओSम् नमो भगवते श्री सूर्यायादित्यायाक्षितेजसे - होवा हिनि स्वाहा ।।

ओSम् वयः सुपर्णा उपसेदुरिन्द्र प्रियमेधा ऋषयो नाघमानाः ।।

अप ध्वान्तमूपुर्णहि पूर्धि चक्षुर्मुमुग्ध्यSस्मान्निधयेव बद्धान् ।।


ओSम् पुण्डरीकाक्षाय नमः । ओSम् पुष्करेक्षणाय नमः ।

ओSम् कमलेक्षणाय नमः । ओSम् विश्वरुपाय नमः ।

ओSम् श्री महा विष्णवे नमः । ओSम् सूर्यनारायणाय नमः ।

ओSम् शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

अस्तु ।

 

आप इस साधना को PDF में यहां से डाउनलोड़ कर सकते हैं ।

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साधकों के मन में स्तोत्र में स्थान विशेष को लेकर (उच्चारण को लेकर) अनेक समय प्रश्न आते हैं । मैं इस स्तोत्र से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी लिंक के रुप में दे रहा हूं -

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