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Writer's pictureRajeev Sharma

अंक विद्या-भाग ३

Updated: Nov 8, 2023

दीपावली पूजनः लक्ष्मी पूजन


आपके मन में विचार तो अवश्य आया ही होगा कि दीपावली पूजन का अंक विद्या से क्या लेना - देना ...!? अखबारों में या गुरुधाम से आयी पत्रिका में या किसी अन्य माध्यम से लक्ष्मी पूजन का समय तो प्राप्त हो ही जाता है । पूजन सामग्री लोग बाजार से खरीद ही लेते हैं या जो लोग गुरु परंपरा से जुड़े हुये हैं, वे गुरुधाम से लक्ष्मी पूजन की सामग्री प्राप्त कर ही लेते हैं । ज्यादातर लोग लक्ष्मी पूजन की विधि तो जानते ही हैं, वर्षों से पूजन जो करते आ रहे हैं, तो अलग से सीखने की आवश्यकता ही क्या है?


पर क्या हमने कभी ये भी सोचा है कि वर्षों से लक्ष्मी पूजन करते आ रहे हैं, जय लक्ष्मी मईया करते - करते हमारे दादा, परदादा गुजर गये और, आज भी हम प्रत्येक दीपावली पर अपने परिवार के साथ लक्ष्मी पूजन करते ही आ रहे हैं तो फिर हम परेशान क्यों रहते हैं । आप कह सकते हैं कि धन की तो हमारे जीवन में कमी नहीं है पर, क्या जीवन में उतना ही आनंद भी है जितना हमारे पास धन है?


वैसे, सत्य यह भी है कि 99% लोग धन की कमी से ही परेशान रहते हैं और जब भी लक्ष्मी पूजन करते हैं या साधना करते हैं तो मांगते केवल धन ही हैं । हालांकि एक सत्य यह भी है कि इस दुनिया में मात्र 1 प्रतिशत लोगों के पास बाकी के 99 प्रतिशत लोगों से ज्यादा धन है और मुझे नहीं लगता कि इन 1% में से कोई भी लक्ष्मी साधना करता होगा । तो यह असंतुलन तो है ही यहां, पर ये प्रारब्ध की वजह से है, और प्रारब्ध का इससे क्या संबंध है - इस चीज की गहराई में जाना फिलहाल हमारा उद्देश्य नहीं है पर, ये चीज हमेशा रहेगी और, दुनिया में सभी लोग कभी भी अमीर नहीं हो सकते ।


सदगुरुदेव ने 80 के दशक में एक शिविर के दौरान बहुत ही महत्वपूर्ण प्रवचन दिया था और एक दुर्लभ प्रयोग संपन्न करवाया था । इस प्रयोग को दीपावली की रात्रि को ही संपन्न किया जाता है और दीपावली की रात्रि में 1 क्षण ऐसा आता है जब सारे ग्रह एक ही नाड़ी पर आ जाते हैं - उस समय की हुयी लक्ष्मी साधना की तुलना किसी भी अन्य साधना से नहीं की जा सकती है । इस लेख का संदर्भ और सार भी वही है ।


 

ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने एक श्लोक कहा है -


लक्ष्मीर्वदेन्यं वहितं परेषं सुखं परेषां वदतं वरेण्यं ।

आचिंतयाम् वदनं भवतं श्रियेयं मम पूर्ण रुप मपरं महितं श्रिये च ।।


कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को महारात्रि के शब्द से संबोधित किया गया है । इसलिए कि यह एक पर्व वर्ष में केवल एक बार आता है । ये केवल एक दिन है लक्ष्मी साधना के लिए । अन्य पर्व तो साल में कई बार आ जाते हैं यथा भगवती जगदंबा के लिए - साल में २ बार नवरात्रि आती है । भगवान शिव के लिए भी साल में कम से कम 2 बार साधना-पूजन का अवसर प्राप्त होता ही है लेकिन लक्ष्मी जी के लिए वर्ष में केवल एक ही दिन आता है । और यदि सही अर्थों में देखा जाए तो केवल एक रात्रि ही गृहस्थ लोगों को प्राप्त होती है । यदि हम साधनात्मक दृष्टि से इस एक रात्रि का उपयोग कर लेते हैं तो निश्चय ही पूरा वर्ष आर्थिक दृष्टि और सौभाग्य की दृष्टि से भी मंगल, उन्नति दायक बना रहता है ।


लेकिन लक्ष्मी का तात्पर्य केवल रुपया, पैसा या धन नहीं होता है । लक्ष्मी तो जब जीवन में आती है तो अपने १००८ स्वरूप में आती है । अगर धन लक्ष्मी का स्वरूप है तो परिवार में सुख-शांति भी लक्ष्मी का ही स्वरूप है तो, परिवार का पूरा होना भी लक्ष्मी ही है, जीवन में बाधाओं और परेशानियों पर विजय पाना भी लक्ष्मी का ही रुप है । आरोग्यता भी लक्ष्मी है और जब हम जीवन में आनंद की प्राप्ति करते हैं तो वह भी लक्ष्मी के बिना संभव हो ही नहीं सकता है ।


सदगुरुदेव ने भी अपने प्रवचनों में बहुत बार बताया है कि प्रत्येक साधना में चिंतन का बहुत महत्व है । यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारा चिंतन कैसा हो । लक्ष्मी साधना में हमारा चिंतन जीवन की पूर्ण उन्नति और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होना चाहिए । हमारे जीवन में जो भी न्यूनतायें हों, जिस भी वजह से हमारे जीवन में परेशानियां हों, व्याधि, देवबाधा या पितृबाधा हो, चाहे शत्रु हों या किसी और प्रकार की समस्या हो, उन सारी समस्याओं के समाधान के लिए इस महारात्रि को प्रयोग में लिया गया है ।


सदगुरुदेव समझाते हैं कि दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के कई प्रकार हैं, मगर विश्वामित्र ने अपने श्लोक में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है - उन्होंने कहा है कि अगर हम वर्ष भर भी लक्ष्मी साधना न कर सकें, आराधना न कर सकें, तो भी इसकी कोई आवश्यकता नहीं है । विश्वामित्र ने अपने श्लोक में यहां तक कहा है कि अगर दीपावली की रात्रि को पूरी रात्रि पूजन नहीं करें, तब भी आवश्यक नहीं है ।


मगर इस पूरी रात्रि में एक विशेष क्षण, एक विशेष समय - उस विशेष समय में यदि लक्ष्मी से संबंधित प्रयोग संपन्न कर लिया जाता है तो सब कुछ प्राप्त हो जाता है जो हजार वर्ष की साधना से भी प्राप्त नहीं हो पाता ।

सदगुरुदेव ने यहां क्षण शब्द का प्रयोग किया है और उसे पूरी तरह से स्पष्ट भी किया है । अधिकतर लोगों को यह नहीं पता होता है कि क्षण क्या होता है और ज्यादातर समय, सेकंड को ही क्षण मान लिया जाता है । लेकिन यह सही तथ्य नहीं है ।


यहीं पर ज्योतिषीय ज्ञान काम आता है और, यहीं पर अंक विद्या काम आती है ।


एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थिति होती है कि वर्ष में केवल एक बार सभी ग्रह एक ही नाड़ी पर आ जाते हैं । सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि ये सब ग्रह हैं और मनुष्य का सारा जीवन इन ग्रहों से संचालित होता है । मगर इन ग्रहों का अध्ययन अपने आप में ज्योतिष नहीं कहलाता । ज्योतिष इस बात को भी नहीं कहता कि १२ राशियां कौन सी होती हैं और, कौन सी राशि में कौन सा ग्रह है, इसको भी ज्योतिष नहीं कहता । ज्योतिष का सूक्ष्म अध्ययन इन ग्रहों से भी सूक्ष्म में नक्षत्र पद्धति है । 12 राशियां हैं और 27 नक्षत्र हैं, हमारी प्रत्येक राशि उन नक्षत्रों से संचालित हैं । अश्वनी के 4, भरणी के 4 और कृत्तिका का 1 चरण मेष राशि कहलाता है अर्थात इन 9 चरणों को मिलाकर 1 राशि बनती है । इसी प्रकार 12 राशियों में प्रत्येक में 9 – 9 चरण होते हैं ।


इसका सीधा तात्पर्य यह हुआ कि राशि से सूक्ष्म है नक्षत्र, नक्षत्र से सूक्ष्म है उसके चरण और, चरण से भी अगर सूक्ष्म जाएं तो नाड़ी विज्ञान कहलाता है । ज्योतिष की एक मूल पद्धति है नाड़ी विज्ञान । जिसमें आपने सुना ही होगा कि अंत्य नाड़ी, मध्य नाड़ी और सूक्ष्म नाड़ी, और 1 चरण के वापिस 24 हिस्से किये हैं ।


या ये कहा जाए कि 1 घंटा, 1 घंटे के अगर 60 हिस्से कर दिये तो 1 मिनट, 1 मिनट के अगर 60 हिस्से कर दिये जाएं तो 1 सेकंड, 1 सेकंड के 60 हिस्से कर दिये तो 1 पल, पल के 60 हिस्से कर दिये तो विपल, और, विपल के 60 हिस्से कर दिये जाएं तो क्षण ।


अर्थात 1 सेकंड का 10 हजारवां हिस्सा क्षण कहलाता है ।


उन क्षणों पर किस समय कौन सा ग्रह संचालित होता है, इसको नाड़ी साधना कही जाती है या नाड़ी के माध्यम से उन ग्रहों का अध्ययन किया जाता है ।

विश्वामित्र ने अपने श्लोक में कहा है कि वर्ष में केवल 1 बार, 1 नाड़ी पर सारे ग्रह आ जाते हैं यानि ग्रह संचालित होते – होते एक स्टेज ऐसी आ जाती है जब सारे ग्रह एक ही नाड़ी पर आ जाते हैं । जैसे, जब ग्रहण होता है तो सूर्य और चंद्र एक ही नाड़ी पर आ जाते हैं । और जब एक ही नाड़ी पर आ जाते हैं तो चंद्रमा को सूर्य की रोशनी नहीं मिल पाती है तो ग्रहण का योग बन जाता है । उसी प्रकार सभी नक्षत्र जब एक राशि पर आ जाएं, एक नाड़ी पर आ जाएं, उस समय अगर लक्ष्मी की साधना की जाए या उस समय जो भी अपने मन की इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जाए तो निश्चय ही कार्य सिद्धि होती ही है । ऐसा इसलिए कि समय अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण है ।

लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिए काल की साधना अत्यंत अनिवार्य है और, काल का मतलब है समय, क्षण, मुहूर्त । इसलिए हमारे शास्त्रों में वृषभ लग्न का या सिंह लग्न का या इस दीपावली की रात्रि का महत्व दिया गया है ।

दीपावली की रात्रि को जगदंबा की साधना होती ही नहीं है, नवरात्रि में लक्ष्मी की साधना होती ही नहीं है । अगर फाल्गुन मास में शिवरात्रि होती है तो शिव की पूजा होती है, विष्णु की पूजा नहीं होती । इसका मतलब है कि प्रत्येक दिन एक विशेष देवता के लिए निर्धारित है । निर्धारित है क्योंकि उस दिन उस देवता का प्रभाव इस समाज में, इस देश में, इस वातावरण में व्यापक रुप से होता ही है । ये अलग बात है कि हम समझ सकें या नहीं समझ सकें ।


सदगुरुदेव ने 1 क्षण की महत्ता कितने आसान तरीके से समझायी है इसको ऐसे समझा जा सकता है कि प्रत्येक लग्न लगभग 2 घंटे 40 मिनट की होती है । तो ये लगभग ढाई घंटे का समय तो बहुत स्थूल चीज हुयी और, ज्योतिष का मतलब है सूक्ष्म में जाना । सदगुरुदेव ने पहले ही कहा है कि घंटा अपने आप में महत्वपूर्ण नहीं है, घंटे से सूक्ष्म है मिनट, मिनट से सूक्ष्म है सेकंड फिर पल है, विपल है और फिर क्षण ।


उस क्षण विशेष को नाड़ी कहा गया है, उस नाड़ी विशेष में सभी ग्रह एक नाड़ी पर आयें, उस समय अगर कोई भी साधना करें, चिंतन करें तो निश्चय ही उस कार्य में सफलता या सिद्धि प्राप्त होती ही है ।


यहां तक तो कोई भी व्यक्ति सदगुरुदेव का वीडिओ देखकर समझ सकता है, जान सकता है और इस बात का महत्व समझ सकता है कि उस विशेष क्षण में, उस विशेष नाड़ी में साधना संपन्न करने से क्या - क्या प्राप्त किया जा सकता है । लेकिन इस वीड़िओ में भी सदगुरुदेव ने यह नहीं बताया है कि इस क्षण की गणना कैसे की जाती है ।

दरअसल सभी चीजें जरूरी नहीं है कि एक ही स्थान पर प्राप्त हो जायें । जिस शिविर में सदगुरुदेव ने इस प्रयोग को उस विशेष नाड़ी में संपन्न करवाया था, वह तो स्वयं सदगुरुदेव के ही हाथों से हुआ था इसलिए जिन साधकों ने उस साधना शिविर में भाग लिया था, उनको जीवन पर्यंत उसका लाभ मिला ही है । पर सदगुरुदेव ने ही एक अन्य स्थान पर इस बात का रहस्य प्रकट किया था कि आखिर उस क्षण की गणना की कैसे जाती है ।

किसी भी समय का मध्यकाल ही उसका वह क्षण होता है जब उस क्षण विशेष पर वह घटना संपन्न होती है । यानी कि लग्न के मध्यकाल में सभी ग्रह एक नाड़ी पर उपस्थित होते हैं ।और, यही वह क्षण होता है जब लक्ष्मी जी का पूजन या साधना या कोई विशेष प्रयोग संपन्न करने से सफलता प्राप्त होती ही है।

आपने इस बात को ग्रहण के समय महसूस किया होगा । आजकल तो तकनीक इतनी आगे बढ़ गयी है कि टीवी पर भी आपको लोग बताते हुये मिलेंगे कि ग्रहण कब शुरु होगा, कब खत्म होगा और किस समय सूर्य को चंद्रमा पूरी तरह से ढक लेगा । वो लोग 1 - 1 सेकंड का हिसाब बताते हुये चलते हैं ।


ठीक इसी प्रकार से दीपावली की रात्रि में भी उस क्षण की गणना की जाती है । हमें यहां पर 2 विशेष लग्न के बारे में सदगुरुदेव ने बताया है, वृषभ और सिंह लग्न । इन दो लग्नों का प्रयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि ये लग्न स्थिर प्रकृर्ति की हैं । स्थिर लग्न में पूजन करने से ही जीवन में स्थिरता आती है । वृषभ लग्न का प्रयोग ग्रहस्थ या व्यापारी वर्ग के लिए उचित होता है और सिंह लग्न का प्रयोग साधक वर्ग के लिए । वैसे आप किसी भी लग्न का चुनाव अपनी सुविधा के हिसाब से कर सकते हैं ।


अब मध्यकाल की गणना कैसे की जाती है, इसको भी देखते हैं -


उदाहरण के लिए इस बार दिल्ली में वृषभ लग्न का समय शाम को 5ः28 बजे से 7ः24 बजे तक है । दिल्ली में ही सिंह लग्न का समय रात्रि को 11ः59 बजे से 2ः16 बजे तक है ।


भविष्य में लग्न का समय आप पत्रिका जोधपुर या अखबारों में भी निकलता है या पंचांग से निर्धारित कर सकते हैं । लग्न का समय जो भी हो, उसका क्षण विशेष निर्धारित करने का तरीका यही रहेगा ।

अब पहले वृषभ लग्न को देखते हैं कि उसमें वह विशेष क्षण कितने बजे आयेगा । शाम को 5ः28 बजे से 7ः24 तक रहने वाली वृषभ लग्न कुल 116 मिनट की है ।


अब 116 को 2 से भाग देते हैं जिससे कुल लग्न का मध्य समय ज्ञात हो सके ।


116 / 2 = 58


यानी कि, शाम को 5ः28 बजे से ठीक 58 मिनट बाद वह समय होगा जब हम इसे लग्न का मध्यांतर कह सकते हैं । और यह समय होगा शाम को 6ः26 बजे ।


अर्थात 6 बजकर 26 मिनट पर जाकर वृषभ लग्न का मध्यांतर माना जाएगा । पर सदगुरुदेव ने कहा है कि मिनट भी स्थूल है और उससे भी सूक्ष्म है सेकंड । इसलिए हम सेकंड की भी गणना करेंगे ।


तो 1 मिनट में होते हैं 60 सेकंड । यहीं से आप 26 वें मिनट को 60 सेकंड मानकर उसका भी आधा कर दीजिए ।

अर्थात शाम को 6 बजकर 25 मिनट 30 सेकंड पर वह विशेष क्षण होगा जब सभी ग्रह एक ही नाड़ी पर आ जाएंगे । अगर आप इससे भी सूक्ष्म जाना चाहते हैं तो वह समय शाम को 6 बजकर 25 मिनट 29 सेकंड और 15 विपल होगा । पर चूंकि हमारी घड़ी केवल सेकंड तक का ही समय शुद्धता से बता सकती है इसलिए हम शाम को 6 बजकर 25 मिनट और 30 सेकंड के समय को वह विशेष क्षण या नाड़ी मानेंगे, जिस पर साधना करके आप अपने जीवन की कामनाओं की पूर्ति कर सकते हैं।


अब सवाल उठता है कि इस विशेष क्षण पर साधना या प्रयोग कौन सा किया जाए जिससे जीवन में सफलता प्राप्त हो ही । तो इसके लिए भी सदगुरुदेव के उसी शिविर में संपन्न करवाये हुये उसी प्रयोग को स्थान देते हैं जिसके लिए सदगुरुदेव ने इतनी सूक्ष्मता के साथ लक्ष्मी तत्व को आत्मसात करने का मार्ग बताया है ।


इस साधना के मूल प्रयोग को यूट्यूब पर अपलोड़ कर दिया गया है -

विशेष दीपावली साधना (मूल प्रयोग)


इसी मूल प्रयोग की Audio file यहां दी जा रही है, जिसे आप डाउनलोड़ करके अपने फोन या कंप्यूटर में सेव कर सकते हैं -



आप जिस भी माध्यम से इस प्रयोग संपन्न करना चाहें, कर सकते हैं ।


वह विशिष्ट मंत्र इस ऑडिओ / वीडिओ फाइल में लगभग 8 वें मिनट से शुरु होकर 11 वें मिनट तक सदगुरुदेव ने उच्चरित किया है । इस विशिष्ट मंत्र से पहले गणपति पूजन और गुरु पूजन सदगुरुदेव ने संपन्न करवाया है । विशिष्ट मंत्र के बाद में आरती और समर्पण स्तुति हैं ।


अगर आप चाहें तो पूरे विधि - विधान से भी गुरु पूजन, गणपति पूजन और लक्ष्मी पूजन संपन्न कर सकते हैं । और इसकी विधि आपको पत्रिका से प्राप्त हो जाएगी । पत्रिका की एक प्रति हम यहां भी अपलोड़ कर रहे हैं ताकि जिन भाईयों-बहनों को पत्रिका प्राप्त नहीं हो पाती हैं, वह इससे वंचित न रहें ।


आपको बस उस विशेष क्षण का ध्यान रखना है कि जब वह विशेष क्षण आये तो, सभी ग्रह एक ही नाड़ी पर होंगे, उस समय सदगुरुदेव जी द्वारा उच्चरित लक्ष्मी मंत्र का उच्चारण हो रहा हो । चूंकि मंत्र स्वयं 2 - 3 मिनट का है तो आप कैसेट इस प्रकार चलायें कि (अगर वृषभ लग्न पर पूजन कर रहे हैं तो) शाम को 6 बजकर 26 मिनट पर वह मंत्र उच्चरित हो रहा हो ।


इसके लिए आपको इस कैसेट को कई बार सुनना चाहिए । सदगुरुदेव की प्रेरणा से ही इस दुर्लभ विधान को दीपावली से कम से कम 4- 5 दिन पहले पोस्ट किया जा रहा है तो आपको इसे कई बार सुनने का मौका मिलेगा ही । आप पहले इस कैसेट को कई बार सुनिये, अभ्यास कीजिए, सदगुरुदेव क्या - क्या कह रहे हैं, उसको आत्मसात कीजिए, दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का प्लान बनाइये कि किस समय क्या करना है ताकि ऐन वक्त पर हड़बड़ी न हो कि अब क्या करें, तब क्या करें ।


पूजन के समय ऑडियो या वीडिओ सुनने की व्यवस्था पहले से करके रखें । घर में सभी को सूचित कर दें कि इस बार का पूजन कुछ विशिष्ट होने जा रहा है । संभव हो तो घर में बाकी सदस्यों को भी इस रिकॉर्डिंग को पहले से ही कई बार सुनायें । जिससे पूजन में शामिल सभी लोग इस क्षण की महत्ता को समझे सकें । और, इससे भी बढ़कर सबके जीवन में लक्ष्मी जी का आगमन हो सके, उनकी मनोकामनायें पूरी हो सकें, इससे बढ़कर और क्या गुरुसेवा हो सकती है । इसमें बढ़-चढ़कर भाग लें और अपना जीवन भी सफल करें ।


विशेष दीपावली साधना के इस शिविर की रिकॉर्डिंग जिसमें सदगुरुदेव ने पूरी चैतन्यता के साथ इस प्रयोग की महत्ता को समझाया है, वह सुनना चाहते हैं तो वह भी यूट्यूब पर अपलोड़ कर दी गयी है -

(विशेष दीपावली साधना - संपूर्ण प्रवचन सहित प्रयोग)


इस संपूर्ण साधना प्रयोग की Audio file यहां दी जा रही है, जिसे आप डाउनलोड़ करके अपने फोन या कंप्यूटर में सेव कर सकते हैं -



अगर आप विधि - विधान से लक्ष्मी पूजन संपन्न करना चाहते हैं तो अक्तूबर माह की नारायण मंत्र साधना विज्ञान पत्रिका आप यहां से डाउनलोड़ कर सकते हैं ।




अगर आप विभिन्न शहरों में वृषभ लग्न और सिंह लग्न का समय देखना चाहते हैं तो नारायण मंत्र साधना विज्ञान पत्रिका के नवंबर माह के अंक के पेज 22 से आपको यह जानकारी मिल जाएगी ।



आप इस दीपावली पर इस विशिष्ट क्षण में, इस दुर्लभ प्रयोग को संपन्न कर सकें, भगवती महालक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकें, अपने मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकें और इससे भी बढ़कर जीवन में उस आनंद की प्राप्ति कर सकें जो गुरु के चरणों में ही रहकर मिल सकता है, ऐसी ही शुभेच्छा है ।


अस्तु ।

 

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