अंक विद्या-भाग ३
- Rajeev Sharma
- Nov 9, 2020
- 12 min read
Updated: Aug 7
दीपावली पूजनः लक्ष्मी पूजन
आपके मन में विचार तो अवश्य आया ही होगा कि दीपावली पूजन का अंक विद्या से क्या लेना - देना ...!? अखबारों में या गुरुधाम से आयी पत्रिका में या किसी अन्य माध्यम से लक्ष्मी पूजन का समय तो प्राप्त हो ही जाता है । पूजन सामग्री लोग बाजार से खरीद ही लेते हैं या जो लोग गुरु परंपरा से जुड़े हुये हैं, वे गुरुधाम से लक्ष्मी पूजन की सामग्री प्राप्त कर ही लेते हैं । ज्यादातर लोग लक्ष्मी पूजन की विधि तो जानते ही हैं, वर्षों से पूजन जो करते आ रहे हैं, तो अलग से सीखने की आवश्यकता ही क्या है?
पर क्या हमने कभी ये भी सोचा है कि वर्षों से लक्ष्मी पूजन करते आ रहे हैं, जय लक्ष्मी मईया करते - करते हमारे दादा, परदादा गुजर गये और, आज भी हम प्रत्येक दीपावली पर अपने परिवार के साथ लक्ष्मी पूजन करते ही आ रहे हैं तो फिर हम परेशान क्यों रहते हैं । आप कह सकते हैं कि धन की तो हमारे जीवन में कमी नहीं है पर, क्या जीवन में उतना ही आनंद भी है जितना हमारे पास धन है?
वैसे, सत्य यह भी है कि 99% लोग धन की कमी से ही परेशान रहते हैं और जब भी लक्ष्मी पूजन करते हैं या साधना करते हैं तो मांगते केवल धन ही हैं । हालांकि एक सत्य यह भी है कि इस दुनिया में मात्र 1 प्रतिशत लोगों के पास बाकी के 99 प्रतिशत लोगों से ज्यादा धन है और मुझे नहीं लगता कि इन 1% में से कोई भी लक्ष्मी साधना करता होगा । तो यह असंतुलन तो है ही यहां, पर ये प्रारब्ध की वजह से है, और प्रारब्ध का इससे क्या संबंध है - इस चीज की गहराई में जाना फिलहाल हमारा उद्देश्य नहीं है पर, ये चीज हमेशा रहेगी और, दुनिया में सभी लोग कभी भी अमीर नहीं हो सकते ।
सदगुरुदेव ने 80 के दशक में एक शिविर के दौरान बहुत ही महत्वपूर्ण प्रवचन दिया था और एक दुर्लभ प्रयोग संपन्न करवाया था । इस प्रयोग को दीपावली की रात्रि को ही संपन्न किया जाता है और दीपावली की रात्रि में 1 क्षण ऐसा आता है जब सारे ग्रह एक ही नाड़ी पर आ जाते हैं - उस समय की हुयी लक्ष्मी साधना की तुलना किसी भी अन्य साधना से नहीं की जा सकती है । इस लेख का संदर्भ और सार भी वही है ।
ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने एक श्लोक कहा है -
लक्ष्मीर्वदेन्यं वहितं परेषं सुखं परेषां वदतं वरेण्यं ।
आचिंतयाम् वदनं भवतं श्रियेयं मम पूर्ण रुप मपरं महितं श्रिये च ।।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को महारात्रि के शब्द से संबोधित किया गया है । इसलिए कि यह एक पर्व वर्ष में केवल एक बार आता है । ये केवल एक दिन है लक्ष्मी साधना के लिए । अन्य पर्व तो साल में कई बार आ जाते हैं यथा भगवती जगदंबा के लिए - साल में २ बार नवरात्रि आती है । भगवान शिव के लिए भी साल में कम से कम 2 बार साधना-पूजन का अवसर प्राप्त होता ही है लेकिन लक्ष्मी जी के लिए वर्ष में केवल एक ही दिन आता है । और यदि सही अर्थों में देखा जाए तो केवल एक रात्रि ही गृहस्थ लोगों को प्राप्त होती है । यदि हम साधनात्मक दृष्टि से इस एक रात्रि का उपयोग कर लेते हैं तो निश्चय ही पूरा वर्ष आर्थिक दृष्टि और सौभाग्य की दृष्टि से भी मंगल, उन्नति दायक बना रहता है ।

