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चैतन्य संस्कार मंत्र और लक्ष्मी प्राप्ति

Updated: Sep 3, 2023

मेरी उम्मीद से अधिक भाई लोगों ने सदगुरुदेव की अप्रतिम कृति 'मैं गर्भस्थ शिशु को चेतना देता हूं' कैसेट में रुचि दिखाई है । मैं उम्मीद ये भी करता हूं कि आप सबने इस कैसेट की मूल प्रति भी गुरुधाम से मंगवा ली होगी । अगर नहीं मंगवाई है तो आपको ये कार्य अतिशीघ्र कर देना चाहिए । क्योंकि सदगुरुदेव की ही प्रेरणा से आज उन तथ्यों पर चर्चा होगी कि इन चैतन्य संस्कार मंत्र का प्रयोग हम लक्ष्मी प्राप्ति के लिए कैसे कर सकते हैं ।


और सिर्फ लक्ष्मी प्राप्ति पर ही चर्चा क्यों, जीवन के विविध पक्षों पर भी हम आज चर्चा करने ही वाले हैं । क्योंकि हमारा इस ब्लॉग को लिखने का मूल उद्देश्य ही है कि किस प्रकार से साधनाओं के माध्यम से व्यावहारिक जीवन में भी सफलता प्राप्त करें ।


उद्देश्य अनेक हो सकते हैं । कोई जीवन में लक्ष्मी की प्राप्ति चाहता है, कोई जीवन में विद्या प्राप्त करना चाहता है, कोई रोगों से मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, अनेकानेक पक्ष हो सकते हैं पर, सत्य यही है कि हम सब जीवन में अपने अभीष्ट को प्राप्त करना ही चाहते हैं और जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं । वैसे, सत्य यह भी है कि संघर्ष तो बहुत लोग करते हैं पर सफलता किसी - किसी को ही प्राप्त होती है ।


तो आखिर सफलता के मूल में है क्या? वो कौन सा तरीका है जिससे हम अपने अभीष्ट की प्राप्ति सहज तरीके से कर सकते हैं ।


तो इस प्रश्न के उत्तर में हमें चैतन्यता को समझना होगा । दरअसल हमारे मन और शरीर की चेतना ही वो मूल है जिसके आधार पर ये तय होता है कि हम किसी उद्देश्य के लिए कितना और किस स्तर का प्रयास कर सकते हैं ।

उदाहरण के लिए, अगर किसी पाँचवीं क्लास के बच्चे को गणित का कोई कठिन सवाल हल करने के लिए दिया जाए तो उसके लिए बहुत मुश्किल होगा । पर अगर किसी MSc के छात्र से उसे हल करने के लिए कहा जाए तो हो सकता है कि वो उस सवाल को 2 मिनट में ही हल कर दे । आप कहेंगे कि ये कौन सी बड़ी बात हो गयी । MSc के छात्र ने तो जीवन भर गणित पढ़ा है तो उसने अगर 2 मिनट में किसी सवाल को हल कर दिया तो इसमें अचरज करने की कौन सी बात है ।


बिलकुल सही सोचा आपने । पर जरा ये भी तो सोचिये कि क्या हमने ऐसे जीनियस बच्चे नहीं देखे हैं जो कम उम्र में भी ऐसी कमाल की चीजें कर जाते हैं जो बड़े - बड़ों को भी अचरज में डाल देती हैं । और आजकल की ही जनरेशन को देख लीजिए, एक 50 साल का व्यक्ति आज भी स्मार्टफोन को हाथ में लेने से डरता है पर एक 2 साल का बच्चा आपके फोन को उलट - पुलट कर रख देगा, आप बस एक बार फोन का लॉक खोलकर दे तो दीजिए । सारी फाइलें इधर से उधर न हो जायें तो कहना :-)


ये चीजें मनुष्य के मन की चैतन्य अवस्था का ही एक उदाहरण हैं । पर ऐसे सैकड़ों उदाहरण हो सकते हैं जिन पर चर्चा करना फिलहाल हमारा उद्देश्य नहीं है ।


पर इतने उदाहरण से आप स्पष्ट रुप से समझ ही सकते हैं कि चैतन्यता का मनुष्य के जीवन में क्या महत्व है ।

अब आप इतना समझ ही गये हैं तो बस इतना करना है कि हम उन साधनाओं को करें जिनके माध्यम से मनुष्य की चैतन्यता ऊर्ध्वमुखी हो जाती है । सामान्य तौर पर इसके लिए सदगुरुदेव ने चेतना मंत्र प्रदान किया था जो निम्न प्रकार है, हालांकि इसका वर्णन हम अपनी पिछली पोस्टों में कर चुके हैं और प्राणप्रतिष्ठा प्रयोग में इसकी विधि के बारे में बताया जा चुका है -


चेतना मंत्र


।। ॐ ह्रीं मम् प्राण देह रोम प्रतिरोम चैतन्य जाग्रय ह्रीं ॐ नमः ।।

।। Om hreem mam pran deh rom pratirom chaitanya jaagray hreem om namah ।।


गुरु पूजन और गणेश पूजन के उपरांत, इस मंत्र की एक माला करना पर्याप्त रहता है ।

इसके अलावा हमारी चेतना को ऊर्ध्वमुखी करने का सबसे तेज प्रयोग चैतन्य संस्कार मंत्रों के माध्यम से भी होता है । मात्र 15 - 16 मिनट के भीतर ही हमारी चेतना अपने उच्चतम और पवित्रतम स्तर तक पहुंच सकती है । जब इन मंत्रों को सुना जाता है तो शरीर में विद्यमान प्रत्येक प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा शरीर से बाहर निकलकर भाग जाती है, हमारी कुण्डलिनी में कंपन शुरु हो जाते हैं हैं और शरीर, ऊर्ध्वमुखी चेतना से युक्त हो जाता है ।

इस मंत्र को सुनने के बाद गुरु मंत्र का कम से कम 11 माला जप अवश्य करना चाहिए । आप इस बात का प्रत्यक्ष अहसास कर सकेंगे कि सर्दी में भी आपको पसीना आ सकता है (आप ये न सोचें कि पसीना लाने के लिए गुरु मंत्र जप किया जाता है, ये तो मंत्र जप करने पर शरीर में गुरु मंत्र की दिव्य ऊर्जा का संचार होता ही है तो पसीना आना स्वाभाविक है) । इतना करने के उपरांत ही हमें लक्ष्मी साधना में बैठना चाहिए क्योंकि यही वो समय होता है जब हमारी चेतना अपने उच्चतम स्तर पर होती है और उस वक्त जो कार्य किया जाता है वो पूरी एकाग्रता, शक्ति और चैतन्यता का मिश्रण होता है । इस समय पर किया गया कार्य, साधारण साधना के मुकाबले कम समय में ही सफलता दिला सकता है । यह एक अनुभूत तथ्य है ।


आज चूंकि चर्चा लक्ष्मी प्राप्ति की साधना पर है तो सदगुरुदेव प्रदत्त लक्ष्मी आबद्ध प्रयोग यहां दिया जा रहा है । गुरु पूजन, गणेश पूजन, चेतना मंत्र और चैतन्य संस्कार मंत्रों को सुनने के बाद ही इस साधना में बैठना चाहिए ।


लक्ष्मी आबद्ध प्रयोग


यह साधना मूल रुप से जोधपुर गुरुधाम से प्रकाशित पत्रिका में प्रकाशित हुयी है । मेरे पास इस साधना का केवल स्क्रीनशॉट ही उपलब्ध था पर जब इस प्रयोग को किया तब महसूस हुआ कि पत्रिका में प्रकाशित सभी साधनायें अद्वितीय हैं और इस साधना को सबके समक्ष रखना ही चाहिए । अब यह बता पाना संभव नहीं है कि पत्रिका के किस अंक में यह साधना प्रकाशित हुयी थी लेकिन पत्रिका में दी हुयी साधना में कोई भी बदलाव नहीं किया गया है ।


यह साधना विश्वामित्र प्रणीत है और इसको ग्रहण काल में या किसी भी कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को भी संपन्न किया जा सकता है । यह साधना मात्र 1 दिन की है । लेकिन मेरी राय में, सामान्य दिनों में, लक्ष्मी साधना का अभ्यास प्रतिदिन संपन्न किया जाना चाहिए ।


इस साधना में आवश्यक सामग्री लक्ष्मी आबद्ध यंत्र और लक्ष्मी माला हैं । आप गुरुधाम से ये साधना सामग्री मंगा सकते हैं ।


(जिन भाइयों ने विजय माला सिद्ध कर ली हो, वे उसी विजय माला से इस साधना को संपन्न कर सकते हैं । अथवा, जिस माला से आप अपना गुरु मंत्र जप करते हैं, उस माला से भी इस साधना को संपन्न किया जा सकता है । अगर आप लक्ष्मी आबद्ध यंत्र की व्यवस्था नहीं कर पाते हैं तो इस साधना को गुरु यंत्र पर ही संपन्न कीजिए । जिसके पास यंत्र की भी व्यवस्था न हो, वे मानसिक रुप से संपूर्ण पूजन को संपन्न करें)


साधक को पीले वस्त्र धारण करने चाहिए ।


सामने बाजोट पर पीले रंग का वस्त्र बिछा लें । गुलाब की पंखुड़ियों से त्रिकोण बनाकर उस पर यंत्र को स्थापित करें । यंत्र के सामने घी का दीपक पूरे साधना काल में जलते रहना चाहिए । यंत्र का पंचोपचार पूजन संपन्न करें ।

यंत्र के सामने एक ताम्र पात्र में केसर से स्वास्तिक बनाकर उस पर माला को रखें और माला का भी पूजन करें ।


ध्यान


हाथ जोड़कर लक्ष्मी जी का ध्यान करें -


।। सौवर्णे पद्म पद्मामल कमल कृतं युग्मशः पाणियुग्मे विभ्रन्ती शोभायोदगा सहित जलधिगा सज्जलोच्छन्न रात्री वैधात्री बाहु द्वन्द्व करा भयार्द्र ह्रदया भक्त प्रियोल्लासिनी लक्ष्मी में भवने वसत्वनुदिन चन्द्रा हिरण्यमायपि ।।


यंत्र और माला पर पुष्प अर्पित करें । निम्न मंत्र का 21 माला मंत्र जप करना है ।


मंत्र


।। ॐ ह्रीं लक्ष्मी आगच्छाय फट् ।।

।। Om Hreem Lakshmi Aagachhay Phat ।।


प्रयोग समाप्त होने के उपरांत उपरोक्त मंत्र से ही यंत्र पर 11 गुलाब के पुष्प अर्पित करें ।


आप सबके जीवन में लक्ष्मी जी अपने 1008 स्वरूपों के साथ विराजमान हों, ऐसी ही शुभकामना करते हैं ।


अस्तु ।

 

लक्ष्मी आबद्ध प्रयोग की PDF फाइल आप यहां से डाउनलोड़ कर सकते हैं ।

लक्ष्मी आबद्ध प्रयोग
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