भाग 2 - मंत्र की शक्ति एवं प्रयासों की स्थिरता
पिछले लेख में क्रिया योग के जिन 5 मुख्य स्तंभों की चर्चा की गयी थी, वह निम्न प्रकार हैं, मन की भावनाओं और उनकी दिशा पर पिछले लेख में ही चर्चा हो गयी है -
हमारे मन की भावनायें और उनकी दिशा
हमारे प्रयासों की स्थिरता
समस्या या कार्य के प्रति हमारा दृष्टिकोण
काल ज्ञान
गुरु साधना
हमारे प्रयासों की स्थिरता और समस्या के प्रति हमारा दृष्टिकोण
किसी भी कार्य को पूर्ण रूप से संपन्न करने के लिए शरीर में तो स्थिरता चाहिए ही, साथ में मन भी स्थिर होना बहुत आवश्यक है । जिसक कार्य में मन न लगे, उस कार्य की पूर्णता में संदेह रहता है । अगर खींच-खांच कर काम पूरा कर भी लिया गया तो उस कार्य से कुछ लाभ मिलने वाला नहीं है ।
इसलिए स्थिरता बहुत आवश्यक तत्व है ।
अब सवाल ये उठता है कि शरीर तो स्थिर कर लेंगे लेकिन मन को स्थिर कैसे कर सकते हैं?
तो इसका जवाब बहुत ही आसान है - जब भी हम कोई भौतिक या आध्यात्मिक कर्म करते हैं तो यहां भाव कर्ता का न होकर केवल मूकदर्शक का रहता है । ऐसा करने मात्र से जिस (नकारात्मक) भाव या ऊर्जा की आपने पहचान की थी, निरंतर साधना करते रहने से उस नकारात्मक भाव या ऊर्जा में कमी आने लग जाती है और आप अपने आपको अंदर से खाली महसूस करने लगते हैं, ऐसा लगता है कि जैसे आपके सिर से बहुत बोझ उतर गया हो, आप स्वयं में सहज महसूस करने लगते हैं, और मन में नकारात्मक शक्ति का जो स्थान खाली हुआ था, साधना की पवित्र ऊर्जा पाकर अब आपका मन भी आनंद से भरा रहने लगता है ।
इसको पहिचानेंगे कैसे कि हम मूकदर्शक बनकर साधना कर पा रहे हैं?
कल्पना कीजिए कि आप किसी जगह पर नौकरी करते हैं या व्यापार कर रहे हैं या ऐसा भी हो सकता है कि आप किसी नये व्यापार को शुरु करना चाहते हैं या किसी व्यक्ति विशेष के कारण आपके जीवन में बहुत कष्ट है ।
परिस्थिति कोई भी हो सकती है लेकिन काल क्रम की इस परिस्थिति के कारण आपके मन में विचारों का प्रवाह शुरु हो जाता है । कुछ इसमें अच्छे हो सकते हैं और कुछ तकलीफदेह हो सकते हैं ।
अगर विचारों की मात्रा कम होती है तो आप उसको मैनेज कर सकते हैं लेकिन किसी कारणवश विचारों की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाए तो ये चिंता में बदल जाता है या व्यक्ति अवसाद का भी शिकार हो सकता है । कभी - कभी ये विचार इतने भी तीव्र हो सकते हैं कि व्यक्ति आत्महत्या के बारे में भी विचार करने लग जाता है कि "इससे तो अच्छा मर जाना है" ।
लेकिन इस बात का व्यक्ति अंदाजा नहीं लगा पाता कि मर जाने से समस्या खत्म नहीं हो जाती है । ये भी संभव है कि मरने के बाद आपको भूत, प्रेत या बह्मराक्षस की योनि मिले तो जो कष्ट 2 - 4 साल में खत्म हो जाता, अब वो 1000 साल से कम में खत्म नहीं होने वाला ।
इसका सीधा कारण यह है कि इन योनियों की उम्र ही 500 - 1000 साल की होती है । और, इस योनि में जाकर भी आप क्या करेंगे, ये तो आप ही जानो या विधाता जाने ।
तो अब आप सोच लीजिए कि मर जाने से समस्या खत्म होती है या बढ़ जाती है ।
तो अब करें क्या?
पहले तो गुरु धारण करें । यहां गुरु धारण करने का तात्पर्य गुरु दीक्षा प्राप्त करने से नहीं है बल्कि अपने प्रत्येक कार्य में गुरु को साक्षी बना लेने से है ।
गुरु सत्ता तो हम सबके हृदय में ही विराजमान है लेकिन हम कभी भी उसको साक्षी बनाने का प्रयत्न ही नहीं करते । हम तो ये सोचते हैं कि सारे काम तो हमारे ही हैं तो हमें ही करने हैं । और फिर नतीजा - उन सारे कामों को हम ही करते हैं, जिसकी वजह से उन सभी कर्मों के परिणामों की जिम्मेदारी भी हमारी ही हो जाती है ।
इसके स्थान पर अगर हम अपने सभी विचारों और कार्यों की जिम्मेदारी गुरु को सोंपकर खुद उनके सेवक बन जायें तो इन सारे कार्यों की जिम्मेदारी और इनके परिणामों की जिम्मेदारी दोनों ही गुरु की हो जाती हैं । तो जरा सोचकर देखिये कि क्या गुरु का कोई भी कार्य आजतक गड़बड़ हुआ है? क्या कभी गुरु की पराजय भी हो सकती है? नहीं न ।
तो हम बेवजह ही इतना वजन अपने सिर पर रखकर क्यों चलते हैं? क्यों नहीं, अपना सब कुछ गुरु को सोंप देते हैं?
शक्ति प्रवाह, साधना और सिद्धि – २ वाले लेख में इस बात को विस्तार से बताया गया था, अगर समय मिले तो उस लेख को एक बार अवश्य पढ़ें, इससे गुरु को जिम्मेदारी सोंपने की बात आसानी से समझ आ जाएगी ।
एक बार सौंपने की ये क्रिया आपने अपने हृदय की गहराइयों से कर दी तो, फिर भले ही आप ही व्यापार कर रहे हैं, आप ही नौकरी कर रहे हैं, आप ही शत्रु से मोर्चा ले रहे हैं, आप ही अपने बच्चों को पाल रहे हैं लेकिन अब यहां पर भाव सेवक का हो जाता है न कि स्वामी का ।
अब दुकान आपकी नहीं है, आप तो वहां पर गुरु के सेवक हैं और गुरुजी ने आपको दुकान की जिम्मेदारी सौंप दी है, तो अब आपको उसके नफे - नुकसान से कोई लेना देना नहीं है ।
अगर पति पत्नि में झगड़ा है तो आप उसको इस भाव से लीजिए कि मेरे सदगुरुदेव महाराज ने मुझे वैवाहिक सुख का आशीर्वाद दिया है तो मैं अपने पति या पत्नी में भी अपने गुरु को ही देखने का प्रयास करूं । ऐसा इसलिए है कि मेरे गुरु तो सभी में मौजूद हैं । और, गुरु के सामने हमारा कैसा अंहंकार । हमारा अपना क्या अस्तित्व । जो है सो गुरु ही हैं । हम तो सेवक हैं ।
अगर संतान कहना नहीं मानती हैं तो आप उनको भी सदगुरुदेव को सौंपकर निश्चिंत हो जायें कि जो सदगुरुदेव महाराज चाहें, वैसे हो । अब ये संतान अच्छी बनती है तो अच्छी बात है, अगर बिगड़ जाती है तो गुरु जी जानें ।
अब आप सवाल ये भी पूछ सकते हैं कि क्या सब कुछ इस प्रकार से छोड़कर माला जपते रहना उचित है?
ये उचित है या अनुचित, पूरा लेख पढ़कर ही तय कीजिए लेकिन पहले प्रक्रिया को गंभीरता से समझने का प्रयास कीजिए । कुछ चीजों पर स्वयं ही चिंतन करें, जैसे कि -
क्या हमारे होते हुये भी गुरु को किसी कार्य को करने की आवश्यकता पड़नी चाहिए?
क्या हम अपने गुरु के किसी भी कार्य को पूरी कुशलता से अंजाम देते हैं या ढुलमुल रवैये के साथ?
जब हम गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य करते हैं तो क्या हमारा अहंकार, क्रोध, वासनायें, महत्वाकांक्षायें, दुख इत्यादि हमारे रास्ते में बाधक बनते हैं या हम उनकी गठरी बनाकर उनको अपने जीवन से बाहर फेंक देना उचित समझते हैं?
जब स्वामी गुरु हैं, और गुरु के किसी कार्य को अंजाम देना है, उनकी आज्ञा का पालन करना है तो उचित तो यही है कि हम सब कुछ करेंगे, पूरी कुशलता से करेंगे, बच्चों को भी अच्छी परवरिश देंगे, व्यापार करने के लिए भी पूरी मेहनत तो करेंगे लेकिन अपने लिए नहीं, अगर करना ही है तो अपने गुरु के लिए करेंगे । गुरु को साक्षी मानकर करेंगे ।
इतनी मेहनत के बाद काम होता है तो अच्छी बात है, नहीं होता है तो गुरु जी जानें । अगर हमारा मन इसमें कुछ खुरापात करता है तो अपने मन से कह दीजिए कि अगर कोई शिकायत करनी है तो गुरुजी से जाकर करो ।
आप और आपका मन दो अलग - अलग सत्ता हैं । तो ये कोई जरूरी नहीं है कि जो आपका मन आपसे कहे, आप उसे मानने के लिए बाध्य हों ही ।
अगर इस भाव को हमने अपने मन में स्थान दे दिया तो फिर साधना करने के लिए समय तो स्वतः ही मिल जाएगा । और इसी साधना की ऊर्जा आपको वापस आत्मबल प्रदान करती रहेगी जो किसी भी समस्या को सुलझाने के लिए बहुत आवश्यक है ।
तो हमें क्या - क्या नहीं करना है -
चिंता नहीं करनी । चिंता करने का काम गुरुजी का है ।
हमें किसी भी परिस्थिति को ठीक करने का प्रयास नहीं करना है, बल्कि जो हमारा धर्म है, कर्तव्य है, जिम्मेदारी है, सिर्फ उसे करना है । और, करने के बाद भूल जाना है कि उसका कुछ रिजल्ट भी आता है । ऐसा इसलिए कि ये हमारा काम था ही नहीं, ये तो गुरु कार्य था हमारे लिए ।
यही है अपने शरीर के साथ मन को स्थिर रखने का रहस्य ।
क्रमशः....
आयुर्वेद और हमारा जीवन
DXN Masala Tea
चाय तो हम सब पीते हैं । चाय एक बहुत ही बेहतरीन पेय पदार्थ है और सैकड़ों सालों से बहुत से देशों में चाय का सेवन हो ही रहा है और मेरा भी मानना है कि सबको चाय पीनी ही चाहिए । कारण कि इसमें फ्लेवेनॉइड होते हैं । और ये हमारी उम्र के बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर सकते हैं ।
चाय पीने के और भी फायदे हैं लेकिन चाय को लेकर सारी कहानी मजेदार ही हो, जरूरी नहीं है । हम सब जानते हैं कि बाजार में बहुत सारे ब्रांड पहले से मौजूद हैं । यहां किसी भी ब्रांड की आलोचना करना हमारा काम नहीं है लेकिन जो तथ्य हैं, वह तो सामने रखे ही जा सकते हैं । आप किसी भी ब्रांड की चाय उठा लीजिए, कोई भी ब्रांड ऐसा नहीं मिलेगा जिसकी चाय में पेस्टीसाइड (कीटनाशक पदार्थ) न मौजूद हों । दरअसल चाय के पेड़ पर कीड़े लगते ही हैं और चाय कंपनियां इन कीड़ों को मारने के लिए पेस्टीसाइड का इस्तेमाल करती हैं । लेकिन आप शायद न जानते हों, ये पेस्टीसाइड दरअसल जहर होते हैं । जिस जगह पर पेस्टीसाइड का स्प्रे हो रहा हो, आप वहां बिना मास्क लगाये 2 मिनट नहीं ठहर सकते ।
और, यही पेस्टीसाइड बाद में इन चाय के माध्यम से आपके शरीर में आ जाते हैं । और, इनका दुष्प्रभाव ... अपने चारों तरफ नजर उठाकर देख लीजिए । रक्त चाप, डायबिटीज, लिवर की बीमारियां ... और भी न जाने क्या - क्या । कहां से आ रही हैं ये सब बीमारियां?
मैं ये नहीं कहता कि सबके पीछे सिर्फ चाय ही है । लेकिन ये एक महत्वपूर्ण कारक अवश्य है ।
इसके अलावा, आपने ये भी देखा होगा कि आप चाहें कितनी भी अच्छी चाय पी रहे हों, एक बार में ज्यादा से ज्यादा 2 कप ही पी सकेंगे । और, अगर ज्यादा चाय पीएंगे तो पेट में एसिडिटी की समस्या होना बहुत आम बात है ।
मैं आपको चाय पीना छोड़ने के लिए नहीं कह सकता, चाय पीना हमारी संस्कृति का हिस्सा बन चुका है । लेकिन चाय का ब्रांड बदलने के लिए अवश्य कह सकता हूं । पिछली पोस्ट में हमने रेशी गैनो चाय (Reishi Gano Tea) के बारे में बताया था । आज आपको यहां उसी चाय के एडवांस वर्जन के बारे में जानने को मिलेगा ।
पहले तो ये देखना जरूरी है कि इस चाय में आखिर है क्या - क्या ।
अश्वगंधा (Ashwagandha),
दालचीनी (Cinnamon),
अथिमधुरम (Athimathuram - Licorice),
तुलसी (Tulsi),
लौंग (Cloves),
अदरक (Ginger),
इलायची (Cardamom) :
इसका मतलब है कि सुगंधित मसालों का एक गर्मजोशी भरा आलिंगन और असम सीटीसी चाय का बोल्ड स्वाद।
DXN Masala Tea के फायदे
इम्यूनिटी बूस्टर - यह चाय आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और आपको मौसमी बीमारियों से बचाती है।
तनाव से राहत - इसमें मौजूद अश्वगंधा की वजह से तनाव कम करके मानसिक शांति तो मिलती ही है, बढ़ती उम्र के साथ जो मांस पेशियों में खिंचाव की समस्या आने लगती है, उसमें भी आराम मिलने लग जाता है ।
बेहतर पाचन - यह चाय आपके पाचन तंत्र को सुधारती है, जिससे आप हल्का और ऊर्जावान महसूस करते हैं। अगर बढ़ती उम्र के साथ पेट ठीक नहीं रहता है तो इस चाय को रोजाना प्रयोग करें । आराम मिलेगा ।
शरीर को डिटॉक्स करें - यह चाय शरीर में इकट्ठा हो चुके विषैले पदार्थों को बाहर करने में मदद करती है, जिससे आपकी त्वचा और भी चमकदार बनती है।
और अश्वगंधा तो दिल के लिए वरदान है और इस चाय के नियमित प्रयोग से शरीर में थकान भी कम ही होती है ।
इसके औषधीय गुणों के अलावा 250 ग्राम की ये चाय 5 व्यक्तियों के एक सामान्य परिवार में कम से कम 2 महीने तक चल जाती है बशर्ते इसको बिना दूध का ही बनाया जाए ।
तो, अगर आप इसको निर्देशित तरीके से इस्तेमाल करेंगे तो ये न सिर्फ आपको स्वस्थ रहने में मदद करेगी, बल्कि आपके रसोई का बजट भी कम कर सकती है । एक बार इस्तेमाल करके तो देखिये ।
बाकी की जानकारी आपको प्रोडक्ट पेज पर ही मिल जाएगी । मैं यहां नीचे इसका लिंक दे रहा हूं -
अगर आप इस चाय को प्रयोग करना चाहते हैं तो निखिल ज्योति की वेबसाइट पर ही इसे खरीद सकते हैं, हमारे स्टॉकिस्ट, कूरियर के माध्यम से डिलीवरी पूरे भारतवर्ष में कर सकते हैं । इसलिए इस ओर से निश्चिंत रहें कि ये आपके पास पहुंचेगी कैसे :-)
अस्तु ।
Jai sadgurdev Maharaj ki