सदगुरु कृपा विशेषांक - क्रिया योग विशेषांक (भाग 2)
- Rajeev Sharma
- Aug 20, 2024
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Updated: Aug 5
भाग 2 - मंत्र की शक्ति एवं प्रयासों की स्थिरता
पिछले लेख में क्रिया योग के जिन 5 मुख्य स्तंभों की चर्चा की गयी थी, वह निम्न प्रकार हैं, मन की भावनाओं और उनकी दिशा पर पिछले लेख में ही चर्चा हो गयी है -
हमारे मन की भावनायें और उनकी दिशा
हमारे प्रयासों की स्थिरता
समस्या या कार्य के प्रति हमारा दृष्टिकोण
काल ज्ञान
गुरु साधना
हमारे प्रयासों की स्थिरता और समस्या के प्रति हमारा दृष्टिकोण
किसी भी कार्य को पूर्ण रूप से संपन्न करने के लिए शरीर में तो स्थिरता चाहिए ही, साथ में मन भी स्थिर होना बहुत आवश्यक है । जिसक कार्य में मन न लगे, उस कार्य की पूर्णता में संदेह रहता है । अगर खींच-खांच कर काम पूरा कर भी लिया गया तो उस कार्य से कुछ लाभ मिलने वाला नहीं है ।
इसलिए स्थिरता बहुत आवश्यक तत्व है ।
अब सवाल ये उठता है कि शरीर तो स्थिर कर लेंगे लेकिन मन को स्थिर कैसे कर सकते हैं?
तो इसका जवाब बहुत ही आसान है - जब भी हम कोई भौतिक या आध्यात्मिक कर्म करते हैं तो यहां भाव कर्ता का न होकर केवल मूकदर्शक का रहता है । ऐसा करने मात्र से जिस (नकारात्मक) भाव या ऊर्जा की आपने पहचान की थी, निरंतर साधना करते रहने से उस नकारात्मक भाव या ऊर्जा में कमी आने लग जाती है और आप अपने आपको अंदर से खाली महसूस करने लगते हैं, ऐसा लगता है कि जैसे आपके सिर से बहुत बोझ उतर गया हो, आप स्वयं में सहज महसूस करने लगते हैं, और मन में नकारात्मक शक्ति का जो स्थान खाली हुआ था, साधना की पवित्र ऊर्जा पाकर अब आपका मन भी आनंद से भरा रहने लगता है ।



