भाग 3 - काल ज्ञान, गुरु साधना एवं यज्ञ महोत्सव, अलीगढ़
क्रिया योग विशेषांक के प्रथम भाग में क्रिया योग के जिन 5 मुख्य स्तंभों की चर्चा की गयी थी, वह निम्न प्रकार हैं -
हमारे मन की भावनायें और उनकी दिशा
हमारे प्रयासों की स्थिरता
समस्या या कार्य के प्रति हमारा दृष्टिकोण
काल ज्ञान
गुरु साधना
मन की भावनाओं और उनकी दिशा पर चर्चा इस श्रृंखला के प्रथम भाग में हो गयी है, समस्या के प्रति हमारा दृष्टिकोण कैसा हो, इस विषय पर पिछले लेख में चर्चा हो ही चुकी है । अगर आपने इन लेखों को नहीं पढ़ा है तो एक बार अवश्य पढ़ लीजिए । इससे इस विषय को आत्मसात करने में बहुत मदद मिलेगी ।
काल ज्ञान एवं गुरु साधना
काल क्रम में हम सभी एक तरह से अंधे ही हैं । 1 दिन तो बहुत दूर की बात है, हम ये भी नहीं जानते कि हम 1 क्षण बाद भी जीवित रहेंगे या नहीं । जीवन की घटनायें (अच्छी या बुरी) को जान पाना तो बहुत दूर की चीज हैं ।
काल ज्ञान के माध्यम से इस तथ्य को आत्मसात करना बहुत ही सहज तरीके से संभव है कि जीवन की प्रत्येक घटना और विषय वस्तु पहसे से ही निर्धारित है । इसका साधारण सा मतलब है कि जो होना है, वह होगा ही और, सामान्य स्तर पर इसको बदला नहीं जा सकता । समझने वाली बात ये भी है कि जब आपकी चेतना का स्तर ऊपर की ओर उठने लग जाता है तब काल क्रम की किसी भी घटना को बदलने की आवश्यकता भी खत्म हो जाती है । और, कहीं पर कुछ बदलने की आवश्यकता पड़ती भी है तो गुरु सत्ता उसमें स्वयं ही जरूरी बदलाव कर देती है ।
तो आप जरा ये भी सोचकर देखिये कि इतने सब कुछ में आप कहां पर है?
बस, यही समझने की आवश्यकता है और यही हमारी आज की चर्चा का विषय है ।
मैं, मेरा, मेरे लिए....
ये समस्या का पहला बिंदु है । मैं ये हूं, मैं वो हूं, यह मेरा है, वह मेरा है, फलानी चीज मेरे लिए है, मेरा फायदा हो गया, मेरा नुकसान हो गया, मुझे कम से कम ये तो मिलना ही चाहिए था, ये मेरा आत्मसम्मान है, मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंची, मेरा अपमान हो गया, मुझे सम्मान मिला .. वगैरा, वगैरा
कभी सोचा है कि हम ऊपर लिखे इन शब्दों से कितना घिरे रहते हैं, और न सिर्फ शब्दों से बल्कि इन शब्दों में समाहित अनंत ऊर्जा से । दिन, रात, सुबह, शाम ...ऐसा कौन सा समय है जब ये शब्द और इनकी ऊर्जा हमको प्रभावित नहीं करती है और अंत में आकर हमारे अपने दुखों का कारण बन जाती है । थोड़ा ध्यान करिये कि इन्हीं शब्दों की ऊर्जा से हम अपने मन में ही एक और संसार बसा लेते हैं जिसमें हम जीते हैं और उसी में हम मरते रहते हैं । कभी उस संसार से बाहर आने की भी हिम्मत नहीं पड़ती है । बाहर की दुनिया से हमारा संपर्क भी बहुत सीमित रहता है ।
वैसे भी बाहर की दुनिया से संपर्क हो भी तो कैसे, सबने तो अपने - अपने संसार अपने मन में ही बना लिये हैं और, एक - दूसरे से संपर्क होता ही तब है जब कुछ जरूरत पड़ती है ।
वैसे, ध्यान देने वाली बात तो ये भी है कि हम ये भी नहीं जानते कि सामने वाले की दुनिया में टाइम बम है या हाइपरसोनिक मिसाइल या फूलों की घाटी 😇
तो जब एक व्यक्ति की दुनिया का सामना दूसरे व्यक्ति की दुनिया से होता है तो कभी फूल बरसते हैं तो कभी बम धमाके होते हैं 😄और फिर क्रिया - प्रतिक्रिया का सिलसिला जो शुरु होता है, वह कभी नहीं थम पाता । कभी - कभी तो ये व्यक्ति की मृत्यु के साथ ही जाकर विराम लेता है ।
ये सब बस बात को कहने का तरीका है, लेकिन मैं उम्मीद करता हूं कि आप इसका आशय समझ गये होंगे 🌹
तो करना क्या चाहिए?
हम सभी कुछ न कुछ करना चाहते हैं । बिना कुछ किये हम रह नहीं सकते और यही समस्या का दूसरा बिंदु है ।
लेकिन वास्तविकता ये है कि आप कुछ कर भी नहीं सकते ।
आप कह सकते हैं कि कि भई, हम तो खाते हैं, पीते हैं, सोते हैं, नौकरी करते हैं, व्यापार करते हैं, झगड़ा करते हैं, प्रेम करते हैं वगैरा ... वगैरा तो, कुछ न कुछ तो कर ही रहे हैं जी ।
ये भी सच है कि आप ऊपर लिखी हुयी चीजें कर रहे हैं । आप नौकरी करते हैं, व्यापार करते हैं, आप झगड़ा भी करते हैं, आप प्रेम भी करते हैं, आप चिंतन भी करते हैं और आप ही चिंता भी करते हैं लेकिन यहां जो चीज आप नहीं जानते वह ये है कि आप वही कर रहे हैं जो पहले से निर्धारित है ।
ये तो बस किसी फिल्म की स्क्रिप्ट (कहानी) की तरह ही है जिसमें हम सब एक पात्र का रोल निभा रहे हैं ।
अंतर बस इतना है कि यहां कोई डायरेक्टर नहीं दिखता है और उस ईश्वर की माया हमको हमेशा इस भ्रम में रखती है कि जो भी कुछ हो रहा है, वह हम ही कर रहे हैं ।
जो लोग इस बात को समझते हैं, वह ये भी जानते हैं कि काल शक्तियां ही हमारे मन में विचारों का बीज रोपती हैं और धीरे - धीरे उसको पनपने का मौका देती हैं ।
प्रश्नः जब कुछ कर ही नहीं सकते तो फिर इस चर्चा का लाभ ही क्या है?
उत्तरः इस चर्चा का लाभ तब मिलेगा जब आप इस चर्चा के मूल तथ्य को आत्मसात करने का प्रयास करेंगे ।
प्रश्नः तो क्या हम कुछ भी कर्म नहीं करते हैं?
उत्तरः नहीं ।
प्रश्नः कर्म की परिभाषा क्या है?
उत्तरः विवेक पूर्वक किया हुआ कार्य ही कर्म की श्रेणी में जाएगा । बाकी को तो आप प्रारब्ध ही समझें, अर्थात् पूर्व निर्धारित कर्म ।
प्रश्नः क्या किसी उदाहरण से इसको समझा जा सकता है?
उत्तरः अवश्य समझा जा सकता है ।
मान लीजिए कि किसी व्यक्ति से आपका झगड़ा हो गया । आपका मन पर नियंत्रण नहीं था तो झगड़ा हो गया । यहां तक तो चलो फिर भी ठीक ही है । अब इसके बाद का सोचिये कि हमारा व्यवहार किस चीज से नियंत्रित हो रहा है, क्या हम वह कर रहे हैं जो धर्मसम्मत है या वह कर रहे हैं जो हमारा मन हमसे करने को कह रहा है ।
तो अगर मन में गुस्सा होते हुये भी आप अपने विवेक से वह सभी कार्य करते रहें जो सही हैं, उचित हैं तो आप समझ लीजिए कि समय की विपरीत धारा में भी आप कर्म ही कर रहे हैं । और, यही कर्म सत्कर्म में बदल जाता है।
और अगर, आपका व्यवहार आपकी भावनाओं से प्रभावित हो गया है तो समझ लीजिए कि यह प्रारब्ध का हिस्सा है।
प्रश्नः इसको कैसे जाना जा सकता है और कैसे पहचान सकते हैं?
उत्तरः ज्योतिष के माध्यम से । विगत लगभग 3 वर्षों से अष्टक वर्ग ज्योतिष पर लगातार सेशन चल ही रहे हैं । जिन लोगों ने अष्टक वर्ग को समझकर अपने जीवन में अपनाने का प्रयास किया है, उनको इसका लाभ भी मिला है । मैंने इस विषय पर लगातार सेशन करते रहने का प्रयास किया है । अब पारिवारिक जिम्मेदारियां भी हैं तो उतने सेशन नहीं हो पाते हैं लेकिन इसका एक तरीका भी निकाला गया है ।
अष्टक वर्ग और वैदिक ज्योतिष को लेकर एक कोर्स डिजाइन किया गया है जिसमें मात्र 10 सेशन में ज्योतिष से संबंधित आधारभूत गणनायें और जानकारी आपको दे दी जाती है । उसके बाद फिर आप अपना अभ्यास करते रहेंगे तो ज्योतिष के मूल तथ्यों को आसानी से आत्मसात किया जा सकता है । मैं भी लगातार मदद करता ही हूं । अगर आप ज्योतिष के मूल तथ्यों को सीखना चाहें तो आसानी से ऐसा कर सकते हैं । मैं यहां कोर्स की लिंक शेयर कर रहा हूं -
गुरु साधना
जीवन में ज्ञान ही तब मिलता है जब हम गुरु का आश्रय लेते हैं । इसलिए अगर आप काल ज्ञान की विद्या प्राप्त करना चाहते हैं तो भी आपको गुरु साधनाओं का अभ्यास करना ही होगा । बिना इसके ज्योतिष को सीख लेने पर भी उसको आत्मसात कर पाना थोड़ा मुश्किल ही रहता है । इस विषय पर वेबसाइट पर बहुत से लेख पहले से उपलब्ध हैं, सदगुरु कृपा विशेषांक में आपको अपनी जरूरत के लगभग सभी लेख मिल जाएंगे, मैं यहां उसकी लिंक शेयर कर रहा हूं -
अलीगढ़ यज्ञ महोत्सव
सदगुरुदेव महाराज की प्रेरणा और आज्ञा से एक और यज्ञ महोत्सव की भूमिका तैयार हो गयी है । आगामी 6 और 7 नवंबर को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में ही एक महान यज्ञ का आयोजन होने जा रहा है ।
मुझे उम्मीद है कि सहारनपुर में संपन्न हुये यज्ञ की दिव्यता का अहसास आप सबने किया ही होगा । अगर आप किसी कारणवश उस यज्ञ में भाग नहीं ले सके थे तो इस यज्ञ में अवश्य भाग लें । सहारनपुर यज्ञ पर भी एक लेख प्रकाशित किया गया था, अगर आपने उसे नहीं पढ़ा है तो मैं यहां उसकी लिंक शेयर कर देता हूं । उस लेख में उससे पहले संपन्न हुये यज्ञ से संबंधित तस्वीरें भी मौजूद हैं । एक बार पढ़ लीजिए, बहुत आनंद आयेगा...
मैंने महसूस किया था कि अपने कुछ गुरु भाई और बहन चाहकर भी पिछले यज्ञ महोत्सवों में भाग लेते - लेते रह गये थे । कारण कुछ भी रहे हों लेकिन इस प्रकार के यज्ञ में भाग न ले पाना जीवन के सौभाग्य का हाथों से फिसलना ही कहा जा सकता है । मैंने अपनी तरफ से सभी को समय पर सूचना दे दी थी, पर शायद सदगुरुदेव महाराज की इच्छा के विपरीत इस प्रकार के परम दुर्लभ यज्ञ में भाग ले पाना भी संभव नहीं हो पाता है ।
मैं एक बार फिर से इस बात को दोहरा रहा हूं कि अगर आप इस यज्ञ महोत्सव में भाग लेना चाहते हैं तो आपको अपने हृदय की गहराइयों से सदगुरुदेव महाराज के श्री चरणों में ही प्रार्थना करनी चाहिए, केवल वही हैं जो माया का परदा हटाकर इस प्रकार के आध्यात्मिक कार्यक्रम में भाग लेने की भावभूमि प्रदान कर सकते हैं ।
यज्ञ के मुख्य जजमानः तेज प्रताप सिंह
आयोजन स्थलः पंचनगरी कॉलोनी, सासनी गेट से मात्र 1 किमी अंदर, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
गुरु पूजन, कलश स्थापन एवं यज्ञ प्रारंभः 6 नवंबर, 2024, प्रातः 5 बजे
यज्ञ पूर्णाहुतिः 7 नवंबर, 2024, प्रातः 10 बजे
आयोजन स्थल की लोकेशन यज्ञ से कुछ दिन पहले WhatsApp ग्रुप में शेयर कर दी जाएगी । ग्रुप की लिंक नीचे ही दी गयी है ।
प्रयास कीजिए कि आप लोग 5 नवंबर, 2024 की शाम तक यज्ञ स्थल पर पहुंच जाएं । आपके रहने और भोजन - पानी की व्यवस्था आयोजकों की तरफ से ही है, इसलिए इस ओर से निश्चिंत रहें ।
आयोजन स्थल की दूरी रेलवे स्टेशन की दूरी मात्र 3 किमी है । इसलिए यज्ञ स्थल तक बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है । आवश्यकता पड़ने पर वाहन की व्यवस्था भी की जा सकती है इसलिए इस ओर से भी निश्चिंत रहें ।
यज्ञ में योगदान कैसे करें?
सहारनपुर यज्ञ महोत्सव में मेरे आग्रह करने के बावजूद यज्ञ महोत्सव का पूरा भार मुख्य आयोजक डॉ अजय ने अपने कंधों पर ले लिया था और बहुत सुंदर व्यवस्था की थी । यज्ञ में बहुत दूर - दूर से गुरु भाई - बहन आये थे और किसी को किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं हुयी थी । इसके लिए मैं उनका आज भी मन से आभार व्यक्त करता हूं ।
हालांकि यज्ञ में योगदान को लेकर मेरा मत थोड़ा सा अलग है । मैं चाहता हूं कि यज्ञ एक सार्वजनिक कार्यक्रम बने और इसमें सहयोग भी सबकी तरफ से ही आये, और इसका पुण्य भी सब लोग प्राप्त करें । अब भले ही कोई भाई - बहन केवल ₹100 का योगदान करना चाहते हैं तो भी उनका स्वागत है । मकसद ये है कि किसी भी तरह से आपकी यज्ञ में एंट्री हो जाए । इससे होगा ये कि यज्ञ से प्राप्त पुण्य पर आपका भी उतना ही अधिकार बनेगा, जितना सबका है ।
अगर आप किसी भी प्रकार से योगदान करना चाहते हैं तो आप यहां दिये गये QR Code के माध्यम से कर सकते हैं ।
अगर आप Phone Pay या Google Pay पर Phone number के माध्यम से योगदान करना चाहते हैं तो आप 8979480617 पर कर सकते हैं ।
इस यज्ञ आप जो भी योगदान करें, उसका डिटेल आप WhatsApp पर यज्ञ महोत्सव, अलीगढ़ ग्रुप में अवश्य शेयर कर दें । मैं ग्रुप की लिंक यहां शेयर कर रहा हूं -
आप सबसे निवेदन है कि इस ग्रुप को केवल वही लोग ज्वॉइन करें जो या तो यज्ञ में भाग लेने की इच्छा रखते हैं या यज्ञ महोत्सव में किसी भी प्रकार से योगदान करना चाहते हैं । अलीगढ़ यज्ञ महोत्सव में प्राप्त योगदान का डिटेल इसी ग्रुप में शेयर किया जाएगा । ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है ताकि योगदान से प्राप्त धनराशि को लेकर पारदर्शिता बनी रहे ।
यज्ञ में किन मंत्रों का प्रयोग होगा?
यज्ञ में मूल रूप से गुरु मंत्र से ही आहुति दी जाएंगी । हालांकि मूल गुरु मंत्र के अतिरिक्त भी सदगुरुदेव प्रदत्त विभिन्न बीज मंत्रों के साथ गुरु मंत्र से आहुति दी जाएंगी, इनमें मुख्य रुप से क्रीं, क्लीं, ह्रीं बीज युक्त गुरु मंत्र से आहुतियां देना सुनिश्चित किया गया है । प्रयास यही रहेगा कि प्रत्येक मंत्र को कम से कम 2 से 3 घंटे का समय मिल सके ।
इसके अलावा इस बार नवग्रह शांति मंत्र के लिए भी विशेष समय निर्धारित किया गया है । ऐसा इसलिए कि ज्यादातर गुरुभाई ग्रह जनित पीड़ा से परेशान हैं । जीवन में शांति आए, उसके लिए इस मंत्र को स्थान देना ही होगा ।
छर्रा यज्ञ महोत्सव में महाशांति विधान से संबंधित विशेष और दुर्लभ मंत्रों से आहुतिया दी गयी थीं और इसका प्रभाव यज्ञ में भाग लेने वाले प्रत्येक (सौभाग्यशाली) साधक को स्वतः ही स्पष्ट हो गया होगा । प्रयास यही रहेगा कि इन विधान से संबंधित विशेष मंत्रों को इस यज्ञ में भी शामिल किया जाए ।
न जाने किसके सौभाग्य से हमें भी इतनी जल्दी ही दुबारा इस प्रकार के यज्ञ में भाग लेने का सौभाग्य मिल रहा है, कौन जाने फिर इस तरह के यज्ञ में भाग लेने का अवसर कब मिल सकेगा । और, मिलेगा भी या नहीं, कौई नहीं जानता । इसलिए, अगर 100 काम छोड़कर भी इस दुर्लभ यज्ञ में भाग ले सकें तो भी बहुत सस्ता सौदा है ।
यज्ञ में भाग लेने के नियम
कोई विशेष नियम नहीं है लेकिन कुछ अपेक्षायें हैं -
अपनी धोती, गुरु चादर और आसन साथ लायें । पिछली बार कुछ गुरु भाई अपनी गुरु चादर नहीं लाये थे, हम लोग गुरु - शिष्य परंपरा के द्योतक हैं, अगर हम ही अनुशासन में न होंगे तो बाकी लोगों से क्या अपेक्षा करना । इसलिए इस यज्ञ में भाग लेने वाले सभी लोग अपनी गुरु चादर अवश्य लायें ।
यज्ञ के दौरान शुचिता का ध्यान रखें । जैसे कि लघुशंका के बाद इंद्रिय प्रक्षालन (पानी से धोना), स्नान और आचमन के बाद ही यज्ञ में वापस बैठें। अगर (स्वास्थ्य कारणों से) नहाना संभव न हो तो कम से कम ठीक से हाथ, पैर, मुंह धोकर ही वापस आयें । शौच के बाद स्नान करना अनिवार्य रहेगा ।
हम लोग यज्ञ के समय व्रत में रहेंगे तो फलाहार की व्यवस्था रहेगी और आशा की जाती है कि हम लोग व्यर्थ के कार्य - कलापों में स्वयं को व्यस्त नहीं करेंगे ।
क्रिया योग से संबंधित इन तीन लेखों के माध्यम से आप क्रिया योग के शुरुआती पक्ष से परिचित हो सके हैं । मैं सदगुरुदेव महाराज से करबद्ध प्रार्थना करता हूं कि इसी प्रकार से हम सबको राह दिखाते रहें और अपना आशीर्वाद प्रदान करते रहें ।
आप सब इस यज्ञ में भाग ले सकें, अपने जीवन को ऊर्ध्वगामी बना सकें, जीवन की चुनौतियों का सामना करते हुये पूर्णता के पथ पर अग्रसर होते रहें, ऐसा ही शुभेच्छा है ।
अस्तु ।
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