चैतन्य संस्कार मंत्र और कार्य सिद्धि
- Rajeev Sharma
- Mar 18, 2020
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Updated: Aug 8
कार्य सिद्धि से तात्पर्य होता है कि जब हम किसी कार्य को करने की इच्छा रखते हैं, उसमें हमें सफलता प्राप्त होना । अब बात चाहे किसी परीक्षा में सफलता की हो, किसी नौकरी की प्राप्ति की बात हो, समाज में यश और सम्मान प्राप्त करने की हो या फिर चाहे किसी अधिकारी से मतभेदों को दूर करने की हो, वहां हम कार्य सिद्धि शब्द का प्रयोग करते हैं ।
आगे बढ़ने से पहले यहां ये स्पष्ट करना जरूरी है कि जो भी प्रयोग या मंत्र यहां पर पोस्ट किये जाते हैं, वो पूरी तरह अनुभवगम्य होते हैं, प्रामाणिक होते हैं और पूरी तरह से परखे हुये होते हैं । अतः प्रयोग या मंत्र की प्रामाणिकता पर संदेह करना व्यर्थ होता है । अलबत्ता ये बात और है कि किसी को किसी साधना में तुरंत सफलता प्राप्त होती है तो किसी को समय लगता है । उसके मूल में साधक का अपना ऊर्जा स्तर होता है ।
जो लोग पहले से ही किसी न किसी साधना में अभ्यासरत होते हैं, उनको इन साधनाओं को आत्मसात करने में समय कम लगता है । और जो लोग पहले कभी भी साधना नहीं किये हैं, उनको अपना ऊर्जा स्तर बढ़ाने में समय लग सकता है । दोनों ही परिस्थितियों में आपके गुरु ही मार्गदर्शन करते हैं । और गुरु के प्रति समर्पण ही आपकी कार्य सिद्धि में मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है ।
साधना में सफलता गुरु के प्रति समर्पण पर निर्भर करती है । अगर हमारा समर्पण गुरु के प्रति नहीं है तो साधना में सफलता की बात करना ही बेमानी है । और, समर्पण करने के लिए आपको कहीं पर जाकर अपना माथा पटकने की जरुरत नहीं है । समर्पण तो ह्रदय से होता है । समर्पण तो प्रेम का ही दूसरा स्वरुप है । समर्पण तो एक ऐसी क्रिया है जिसमें हम अपने गुरु या इष्ट से एकाकार हो जाते हैं, अपने गुरु की इच्छा को ही अपने लिए आदेश मानते हैं और जो भी कार्य हम करते हैं वह, हमारे लिए गुरुसेवा ही बन जाती है । अब अगर आप नौकरी कर रहे हैं तो ये नौकरी ही आपके लिए गुरुसेवा है, अगर आप बिजनेस कर रहे हैं तो ये बिजनेस ही आपके लिए गुरुसेवा है । सीधा तात्पर्य ये है कि जहां स्वार्थ का भाव खत्म हो जाता है वहां सेवा का भाव पूर्ण रुप से स्पष्ट हो जाता है ।
और सेवा भाव से की गयी कोई भी क्रिया समर्पण ही कहलाती है । और हमारा ये समर्पण हमारे गुरु के प्रति होता है, उस परमात्मा के प्रति होता है । यहां हमारी आसक्ति खत्म होने लग जाती है और साधना की क्रिया भी उस गुरु से जुड़ने की क्रिया बन जाती है ।