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चैतन्य संस्कार के गोपनीय मंत्र

Updated: Aug 7

मैं गर्भस्थ शिशु को चेतना देता हूं

चैतन्य संस्कार से संबंधित वो मंत्र जो प्रकृर्ति निर्मित हैं । जिनको न देवताओं ने बनाया है, न गंधर्वों ने, न यक्षों ने, न किन्नरों ने, न मनुष्यों ने और न ही ऋषियों ने । जो स्वयंभू हैं, जो अपने आप में उत्पन्न हैं, जो मंत्र अपने आप में दिव्य और चेतना युक्त हैं, उन मंत्रों को सद्गुरुदेव ने उसी ध्वनि में उच्चरित किया है (क्योंकि मंत्र के साथ ध्वनि अत्यंत आवश्यक और अनिवार्य तत्व है), जिस ध्वनि के साथ प्रकृर्ति ने इन मंत्रों को निर्मित किया है । प्रकृर्ति के वातावरण से जिस ध्वनि के साथ उत्पन्न हुये हैं, उसी ध्वनि के साथ सदगुरुदेव ने इन मंत्रों को स्पष्ट किया है ।
सदगुरुदेव डा. नारायण दत्त श्रीमाली जी

इन मंत्रों के संदर्भ में सदगुरुदेव ने स्पष्ट कहा है कि जिनके पास श्रवण करने के लिए ये मंत्र हों, वे अपने परिवार को तो सुनायें, इनका उपयोग तो करें, मगर इनको दूसरों को दें नहीं । दूसरों को सुनायें अवश्य, दूसरे भी लाभान्वित हों ऐसा प्रयत्न तो करें।


सदगुरुदेव ने पूर्ण भव्यता, श्रेष्ठता और प्राणश्चेतना के साथ इन मंत्रों का उच्चारण किया है जिनको सुनना, ह्रदय में उतारना, शरीर के सातों द्वारों को खोलना और, क्रिया-योग और कुण्डलिनी जागरण का प्रारंभिक और अंतिम श्रेष्ठतम प्रयोग है । जिसके माध्यम से कुण्डलिनी जागरण हो सकती है, जिसके माध्यम से क्रिया योग संपन्न हो सकता है, जिसके माध्यम से शरीर के सातों द्वार जाग्रत हो सकते हैं, जिसके माध्यम से नर अपने आप में पूर्ण पुरुष बन सकता है और जिसके माध्यम से जीवन की पूर्ण सफलता, श्रेष्ठता और संपन्नता प्राप्त हो सकती है ।


गुरुभाइयों में भी अधिकतर लोग इस कैसेट से परिचित नहीं होंगे । मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि इस कैसेट के नाम की वजह से ही अधिकतर लोग इसको सुनने का प्रयास नहीं किये होंगे । गुरुधाम से इसकी कैसेट आपको "मैं गर्भस्थ शिशु को चेतना देता हूं" के नाम से मिलेगी लेकिन, आप इसके नाम से भ्रमित न हों कि ये सिर्फ गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए ही चैतन्य संस्कार विधान है ।


दरअसल, यह विधान तो सभी उम्र वर्ग के लोगों के लिए समान रुप से उपयोगी है जो जीवन के किसी भी हिस्से में स्वयं को या परिवार को चैतन्य संस्कार से युक्त करना चाहते हैं । हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगर किसी गर्भवती स्त्री को इन मंत्रों को सुनाया जाए तो गर्भ में पल रहे बच्चे को सीधे ही ब्रह्माण्डीय चेतना से जोड़ा जा सकता है । इससे गर्भ में पल रहे बच्चे की चेतना का विकास पूर्ण रुप से हो जाता है ।

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