मैं गर्भस्थ शिशु को चेतना देता हूं
चैतन्य संस्कार से संबंधित वो मंत्र जो प्रकृर्ति निर्मित हैं । जिनको न देवताओं ने बनाया है, न गंधर्वों ने, न यक्षों ने, न किन्नरों ने, न मनुष्यों ने और न ही ऋषियों ने । जो स्वयंभू हैं, जो अपने आप में उत्पन्न हैं, जो मंत्र अपने आप में दिव्य और चेतना युक्त हैं, उन मंत्रों को सद्गुरुदेव ने उसी ध्वनि में उच्चरित किया है (क्योंकि मंत्र के साथ ध्वनि अत्यंत आवश्यक और अनिवार्य तत्व है), जिस ध्वनि के साथ प्रकृर्ति ने इन मंत्रों को निर्मित किया है । प्रकृर्ति के वातावरण से जिस ध्वनि के साथ उत्पन्न हुये हैं, उसी ध्वनि के साथ सदगुरुदेव ने इन मंत्रों को स्पष्ट किया है ।
सदगुरुदेव डा. नारायण दत्त श्रीमाली जी
इन मंत्रों के संदर्भ में सदगुरुदेव ने स्पष्ट कहा है कि जिनके पास श्रवण करने के लिए ये मंत्र हों, वे अपने परिवार को तो सुनायें, इनका उपयोग तो करें, मगर इनको दूसरों को दें नहीं । दूसरों को सुनायें अवश्य, दूसरे भी लाभान्वित हों ऐसा प्रयत्न तो करें।
सदगुरुदेव ने पूर्ण भव्यता, श्रेष्ठता और प्राणश्चेतना के साथ इन मंत्रों का उच्चारण किया है जिनको सुनना, ह्रदय में उतारना, शरीर के सातों द्वारों को खोलना और, क्रिया-योग और कुण्डलिनी जागरण का प्रारंभिक और अंतिम श्रेष्ठतम प्रयोग है । जिसके माध्यम से कुण्डलिनी जागरण हो सकती है, जिसके माध्यम से क्रिया योग संपन्न हो सकता है, जिसके माध्यम से शरीर के सातों द्वार जाग्रत हो सकते हैं, जिसके माध्यम से नर अपने आप में पूर्ण पुरुष बन सकता है और जिसके माध्यम से जीवन की पूर्ण सफलता, श्रेष्ठता और संपन्नता प्राप्त हो सकती है ।
गुरुभाइयों में भी अधिकतर लोग इस कैसेट से परिचित नहीं होंगे । मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि इस कैसेट के नाम की वजह से ही अधिकतर लोग इसको सुनने का प्रयास नहीं किये होंगे । गुरुधाम से इसकी कैसेट आपको "मैं गर्भस्थ शिशु को चेतना देता हूं" के नाम से मिलेगी लेकिन, आप इसके नाम से भ्रमित न हों कि ये सिर्फ गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए ही चैतन्य संस्कार विधान है ।
दरअसल, यह विधान तो सभी उम्र वर्ग के लोगों के लिए समान रुप से उपयोगी है जो जीवन के किसी भी हिस्से में स्वयं को या परिवार को चैतन्य संस्कार से युक्त करना चाहते हैं । हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगर किसी गर्भवती स्त्री को इन मंत्रों को सुनाया जाए तो गर्भ में पल रहे बच्चे को सीधे ही ब्रह्माण्डीय चेतना से जोड़ा जा सकता है । इससे गर्भ में पल रहे बच्चे की चेतना का विकास पूर्ण रुप से हो जाता है ।
जिस प्रकार से महाभारत काल में अर्जुन ने अपने पुत्र को गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन सिखा दिया था, आप भी अपने होने वाली संतान को किसी भी विद्या से परिचित करा सकते हैं । जो लोग इस विद्या का प्रयोग अपनी गर्भवती पत्नि या परिवार के किसी सदस्य पर किये हैं, वो इस बात से भली भांति परिचित हैं कि उनकी संतानों का चेतना स्तर कितना अद्वितीय और श्रेष्ठ रहा है । वैसे इससे मिलने वाले लाभों के बारे में अगर पूरा ग्रंथ ही लिख दिया जाए तो भी कम ही होगा ।
चूंकि सदगुरुदेव ने स्वयं इस बात को कहा है कि इस कैसेट की कोई कॉपी न बनायी जाए; ये उनका आदेश है । इसलिए इस कैसेट को आप यहां से डाउनलोड़ करने का प्रयास नहीं करें, क्योंकि इससे आपको इस मंत्र से होने वाले फायदे नहीं मिल सकेंगे ।
हालांकि उन्होंने इस कैसेट को दूसरों को सुनाने से मना नहीं किया है, इसलिए इस कैसेट का मुख्य भाग जिसमें सिर्फ चैतन्य संस्कार मंत्र दिया गया है, यहां पर पोस्ट किया जा रहा है । बाकी के तीन हिस्सों में सदगुरुदेव ने प्रवचन के माध्यम से इस मंत्र के महत्व पर प्रकाश डाला है, अगर आप लोग उस प्रवचन को भी सुनना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में जाकर टिप्पडी के माध्यम से बता दीजिए । अगर, 15 - 20 लोग भी उस महत्वपूर्ण प्रवचन को सुनना चाहते हैं तो उनको यूट्यूब पर अपलोड़ करके इसी लेख में अपडेट कर दिया जाएगा ।
यहां पर इस मंत्र को पोस्ट करने का केवल और केवल मात्र एक ही कारण है कि इन अद्भुत, दुर्लभ और महत्वपूर्ण मंत्रों से आपका परिचय हो सके।
चूंकि आपका इस कैसेट से कोई परिचय नहीं है, इसलिए आप इस ब्लॉग पर ही इन मंत्रों को सुनें, 1 बार सुनें, 10 बार सुनें या 1000 बार या इससे भी बढ़कर रोज सुनें, इसमें कोई बुराई नहीं है ।
आप इन मंत्रों से मिलने वाली ऊर्जा को मात्र सुनकर भी महसूस कर सकते हैं और, अगर जीवन में इसका वास्तविक लाभ उठाना चाहें तो गुरुधाम से इसकी मूल कैसेट (मैं गर्भस्थ शिशु को चेतना देता हूं) मंगा लें । कैसेट कोई ज्यादा महंगी नहीं है और रु. 200 - 300 में उपलब्ध हो जाएगी । अगर आप न मंगा सकें तो आप हमें मैसेज कर सकते हैं, हम आपके लिए व्यवस्था करवा देंगे । पर गुरुआज्ञा के विपरीत जाकर, इस कैसेट की कोई कॉपी न करें और न ही इसको यहां से डाउनलोड़ करने का प्रयास ही करें ।
आजकल तो COD से भी कैसेट मिल जाती है । अतः कैसेट की मूल प्रति मंगाना ही श्रेष्ठ रहेगा ।
यह एक बहुत ही उच्च कोटि की विद्या है और सदगुरुदेव ने इसकी मूल ध्वनि को स्पष्ट करते हुये ही इस मंत्र का उच्चारण किया है तो इसका महत्व कोटि - कोटि गुना बढ़ जाता है । मैंने स्वयं इस मंत्र का अपने जीवन में प्रयोग किया है और पाया है कि वास्तव में ही यह बहुत ही तीव्र, श्रेष्ठ और उच्च कोटि का मंत्र है । और प्रयोग के समय इस कैसेट की मूल प्रति से ही इन मंत्रों का श्रवण किया गया था ।
इसी कैसेट में ही आपको सदगुरुदेव से संबंधित वे पाँचों श्लोक मिलेंगे जो प्रकृर्ति निर्मित हैं और इनको भी सदगुरुदेव ने पहली बार ही स्पष्ट किया था । यही वो पांच मंत्र हैं जिनमें पूर्ण गुरुतत्व समाहित है और जिनके माध्यम से गुरु स्वयं हमारे शरीर में समाहित हो सकते हैं, हमारा पूर्ण रुप से समर्पण हो जाता है, एक - दूसरे से पूर्ण संबंध स्थापन हो जाता है । एक तरह से देखा जाए तो गुरु तत्व अपने आप में जागृत, चैतन्य और विकसित हो जाता है ।
पूर्वां परेवां मदवं गुरुर्वै चैतन्य रुपं धारं धरेषं । गुरुर्वै सतां दीर्घ मदैव तुल्यं गुरुर्वै प्रणम्यं गुरुर्वै प्रणम्यं ।। 1 ।।
अचिन्त्य रुपं अविकल्प रुपं ब्रह्मा स्वरुपं विष्णु स्वरुपं । रुद्र त्वमेव परतं परब्रह्म रुपं गुरुर्वं प्रणम्यं गुरुर्वं प्रणम्यं ।। 2 ।।
हे आदिदेवं प्रभवं परेषां अविचिन्त्य रुपं ह्रदयस्त रुपं । ब्रह्माण्ड रुप परमं प्रमितं प्रमेयं गुरुर्वै प्रणम्यं गुरुर्वै प्रणम्यं ।। 3 ।।
ह्रदयं त्वमेवं प्राणं त्वमेवं देवं त्वमेवं ज्ञानं त्वमेवं । चैतन्य रुप मपरं त्वहि देव नित्यं गुरुर्वै प्रणम्यं गुरुर्वै प्रणम्यं ।। 4 ।।
अनादि अकल्पिर पवां पूर्ण नित्यं अजन्मा अगोचर अदिर्वां अहित्यं । अदैवां सरै पूर्ण मदैव रुपं गुरुर्वै प्रणम्यं गुरुर्वै प्रणम्यं ।। 5 ।।
गुरु के इन पांचों श्लोकों के साथ, उन विशिष्ट पंच श्लोकों का भी उच्चारण करना चाहिए जिनके माध्यम से निखिलेश्वरानंद पूर्ण रुप से गुरु रुप में आपके सामने स्पष्ट होते हुए आपको चैतन्य दीक्षा दे सकें और चैतन्य मंत्रों के साथ आपके शरीर में, आपके प्राणों में, आपकी चेतना में और, आपने जीवन में समावेश हो सकें । इसलिए सदगुरुदेव ने पूज्यपाद निखिलेश्वरानंद जी से संबंधित उन पांचों श्लोकों का भी उच्चारण किया है जो अपने आप में अद्वितीय हैं, और इन पांचों श्लोकों को भी सदगुरुदेव ने पहली बार ही उच्चरित किया है ।
आदोवदानं परमं स्वदेयं प्राणं प्रमेयं परसं प्रभूतं । पुरुषोत्तमां पूर्ण मदैव रुपं निखिलेश्वरोयं प्रणमं प्रणामि ।। 1 ।।
अहिर्भोतरुपं सिद्धाश्रमोSयं पूर्ण स्वरुपं चैतन्य रुपं । दीर्घोवतां पूर्ण मदैव नित्यं निखिलेश्वरोयं प्रणम्यं नमामि ।। 2 ।।
ब्रह्माण्डमेवं ज्ञानोर्णवापं सिद्धाश्रमोSयं सवितं सदैयं । अजन्मं प्रभां पूर्ण मदैव चित्यं निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि ।। 3 ।।
गुरुर्वै त्वमेवं प्राण त्वमेवं आत्म त्वमेवं श्रेष्ठ त्वमेवं । आविर्भयां पूर्ण मदैव रुपं निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि ।। 4 ।।
प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं परेषां प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं दिनेशां । प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं सुरेशां निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि ।। 5 ।।
ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ और चेतना में अद्वितीय, सिद्धाश्रम के प्राण संस्कारित, अद्वितीय और ब्रह्माण्ड स्वरूप निखिलेश्वरानंद को मैं प्रणाम करता हूं, जिन्होंने ज्ञान और चेतना को अद्वितीय रुप से स्पष्ट किया है ।
यहां चैतन्य मंत्रों का सदगुरुदेव ने स्पष्ट उच्चारण किया है जो चैतन्य दीक्षा के लिए और, चेतना संस्कार के लिए अलौकिक और अद्वितीय मंत्र हैं ।
मैं गर्भस्थ शिशु को चेतना देता हूं (मुख्य भाग, मंत्र सहित)
आप चैतन्य मंत्रों का यहां चाहे जितनी बार श्रवण कर सकते हैं किंतु आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप इस कैसेट को डाउनलोड़ करके इसकी प्रतिलिपि नहीं बनायेंगे । यह गुरु आज्ञा का उल्लंघन होगा । धन्यवाद ।
आप "मैं गर्भस्थ शिशु को चेतना देता हूं" कैसेट की मूल प्रति को प्राप्त करने के लिए जोधपुर गुरुधाम से संपर्क कर सकते हैं अथवा नई दिल्ली में नारायण मंत्र साधना विज्ञान के नीचे दिये पते या फोन पर भी संपर्क किया जा सकता है -
नारायण मंत्र साधना विज्ञान, 8 भगवती विला, संदेश विहार, पीतम पुरा, दिल्ली । मोबाइलः 8447126005, 9582393805
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