लंबी साधनाओं का महत्व
जीवन में एक बात जो साधारण तौर पर देखने को मिलती है वो ये कि जब जीवन में समस्याओं का आगमन होता है तो ऐसा लगता है कि कोई कुछ चमत्कार कर दे और हमारी समस्या खत्म हो जाए ।
ज्यादातर लोग तो ये चाहते हैं कि कोई ऐसा बाबा मिल जाए जो हमारी सारी टेंशन खत्म कर दे । पैसा चाहे कितना ही लग जाए, कोई चिंता नहीं, पर काम हो जाना चाहिए । इन लोगों को न तो आध्यात्मिक साधनाओं से कोई लेना देना रहता है और न ही इस बात से कि जिस प्रारब्ध को वो चमत्कार से काटने की बात कर रहे हैं, उसका भोग तो उन्हीं को भोगना होगा । लेकिन, उनका तो बस एक ही ध्येय रहता है कि बस, पैसे ले लो और येन केन प्रकारेण काम कर दो ।
काल की गति अपने निश्चित क्रम से होती है और, आज नहीं तो कल उस कर्म का फल भोगना ही पड़ता है जो उस कर्म विशेष से संबंधित है । तो, जब समस्या आती है तो किसी भी रुप में सामने आ सकती है जैसे कि व्यक्ति बीमार पड़ सकता है, घर परिवार में कलह हो सकती है, कारोबार बंद हो सकता है या फिर जीवन में दरिद्रता ही छा सकती है ।
कई बार हमारे प्रारब्ध का भोग हम सीधे न भोगकर हमारे किसी प्रिय के माध्यम से भी भोगते हैं । सोचिये कि आप किसी से बेइंतहा प्रेम करते हैं और वह व्यक्ति बीमार पड़ जाए या उसका एक्सीडेंट हो जाए । अब परेशानी आपको तो नहीं होनी चाहिए थी लेकिन आप न सिर्फ उसका कष्ट महसूस कर पाते हैं बल्कि उसको ठीक करने के लिए अपने निजी सुख का भी त्याग कर देते हैं । अगर लाखों भी खर्च हो जाएं तो आप परवाह नहीं करते ।
तो भोग किसका हुआ? आपका या आपके प्रियजन का?
इसका जवाब कठिन नहीं है लेकिन जटिल अवश्य है । आप सोच रहे होंगे कि कष्ट तो आपके प्रियजन का है और आप तो सहानुभूति वश उसकी मदद कर रहे हैं । पर ऐसा नहीं होता - प्रकृति में कोई भी कार्य ऐसे ही नहीं होता । प्रत्येक घटना के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है और जितने भी लोग उस प्रारब्ध को भोगने के लिए मौजूद होने चाहिए, वह वहां पर होंगे ही । इससे बचना संभव ही नहीं है ।
इसी को होनी कहते हैं और ये हमें वहां तक खींचकर ले जाती है जहां हमें होना चाहिए था । फिर चाहे वह सहानुभूति बनकर ही हमारे सामने क्यों न आ जाए । और, यही सहानुभूति हमें वहां तक ले जाती है जहां हमें होना चाहिए था । वैसे ये प्रेम भी हो सकता है और नफरत भी और गुस्सा या दुख भी ।
काल कोई भी रुप रखकर हमारे दिल - दिमाग में आ सकता है और हमें उस प्रारब्ध का भोग भोगने के लिए विवश कर सकता है ।
अब यहां आपका पैसा क्या कर लेगा? काल को आपका जितना धन खर्च कराना होगा, वह करवा ही लेगा । फिर चाहे आपको कर्ज ही क्यों न लेना पड़े । यही नियति है । यही कर्मफल का भोग है ।
यह तो बहुत ही कड़वी बात है पर क्या इस कर्मफल से कोई बचाव संभव है?
साधारण तौर पर कर्मफल से बचने का कोई उपाय नहीं है । लेकिन जो लोग जीवन की शुरुआत से ही आध्यात्मिक रास्ते पर चल पड़ते हैं, उनके जीवन में कई पड़ाव ऐसे आ आते हैं जहां पर पहुंचकर वह कर्मफल का आंशिक भुगतान उस कष्ट को सहकर और आंशिक भुगतान अपनी साधना के माध्यम से कर सकते हैं ।
पर इन सबके मध्य एक अहम कड़ी होती है - जीवन में सद्गुरु की प्राप्ति । अगर जीवन में कोई सद्गुरु मिल जाएं तो ही उन साधनाओं की प्राप्ति हो सकती है जिनके माध्यम से आगे चलकर कर्मफल में न्यूनता लायी जा सकती है । या अगर गुरु कृपा कर दें तो उस कर्मफल को बहुत हद तक नष्ट भी किया जा सकता है । लेकिन ये इतना भी आसान नहीं है जितना कह दिया है । पूरा का पूरा जीवन ही आध्यात्म को समर्पित हो जाए और गुरु के समक्ष नतमस्तक होकर, पूरी तरह समर्पित होकर, गुरु के वचनों को जीवन का आधार बना लिया जाए तो ही ऐसा संभव हो पाता है ।
एक साधारण व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता, साधारण लोग तो भगवती महामाया की माया में भटकते हुये अपने कर्म का भोग ही भोगते रहते हैं । उसके संसार की माया से ही फुर्सत नहीं मिल सकती । अब ये साधारण व्यक्ति एक करोड़पति या अरबपति भी हो सकता है और एक गरीब भी ।
मतलब सिर्फ इतना सा है कि जो आध्यात्म का पथिक है, वही असाधारण रुप से गुरु - शिष्य परंपरा के इन गूढ़ तथ्यों को आत्मसात कर सकता है । बाकी तो धनवान (या गरीब) होते हुये भी साधारण मनुष्य की श्रेणी में कहलाये जाएंगे क्योंकि उनको माया से बाहर निकलने का ज्ञान देने वाला कोई नहीं मिलता ।
तो फिर करना क्या चाहिए?
पिछले वर्ष 2 विशिष्ट लेख प्रकाशित हुये थे -
इन दोनों लेखों का समय निकालकर अध्ययन करें और अपने आप को लंबी साधनाओं के लिए तैयार करें । बाकी सभी साधनाओं को कुछ समय के लिए एक तरफ उठाकर रख दें और केवल गुरु साधनाओं पर ही ध्यान केंद्रित करें ।
गुरु साधनाओं में भी कुछ साधनायें शुरुआत में ही कर लेनी चाहिए -
गुरु प्राणश्चेतना मंत्र - कम से कम 1008 पाठ अवश्य ही कर लें ।
गुरु मंत्र - कम से कम एक बार सवा लाख मंत्र जप का अनुष्ठान अवश्य कर लें ।
दरिद्रता निवारण साधना - इस मंत्र की कम से कम 1500 माला अवश्य संपन्न कर लें ।
किसी भी साधना के लिए कम से कम 40 दिन का समय अवश्य लें । इससे न सिर्फ मंत्र जप की ऊर्जा को आत्मसात किया जा सकता है बल्कि इतनी आध्यात्मिक ऊर्जा को प्रकट किया जा सकता है कि समय आने पर आपके कर्म फल के भोग को क्षीण किया जा सकता है ।
लेकिन कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा के प्रारंभ न करें और जो भी मंत्र जप करें, उसे अपने सदगुरुदेव के श्रीचरणों में ही समर्पित कर दें । गुरु स्वतः ही आपके कर्म फल से जुड़े खातों की पूर्ति करने में आपकी मदद करते हैं ।
तो समस्या आने पर इधर - उधर न भागिए । साधना करिये और लंबी साधनाओं में बैठने का मानस बनाइये । समय आने पर आपको स्वतः ही समस्या से मुक्ति मिल जाएगी ।
और, इन सबके बीच आपका गुरु के प्रति प्रेम, समर्पण और श्रद्धा अखंड और अगाध होना चाहिए । गुरु के प्रति विश्वास इतना मजबूत हो कि अगर गर्दन भी कटने वाली हो तो मन में ये विचार न आये कि गुरु जी के होते हुये ऐसा कैसे हो गया, बल्कि चिंतन यही रहे कि सदगुरुदेव ने जरुर कोई परीक्षा ली होगी और, मुझे इसमें पास होना ही है ।
यही चिंतन उस सफलता की चाबी है जिसे पाकर हम अपने अंतर के कचरे को खाली कर सकते हैं और अपने हृदय में साक्षात सद्गुरुदेव महाराज को विराजित कर सकते हैं । कहने का अब कोई अर्थ नहीं है फिर भी जान लीजिए कि अब जीवन में या तो समस्या रहेगी या फिर सदगुरुदेव । दोनों एक साथ कभी नहीं रह सकते ।
श्री हित चतुरासी जी
हम सबने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रास लीला करने के बारे में पढ़ा है, सुना है । पर मुझे नहीं लगता कि हममें से अधिकांश को रासलीला का मतलब भी पता है ।
प्रातः स्मरणीय स्वामी जी के श्रीमुख से ही मैंने पहली बार श्री हित चतुरासी जी के बारे में सुना था और जब इसको पहली बार सुना, तब ही इसके बारे में मैं समझ पाया । भगवान की लीलाओं के बारे में शब्दों के माध्यम से समझना अत्यधिक कठिन है । मेरा मानना है कि अगर भगवान की रास लीला के बारे में समझना है तो इससे बेहतर कोई और स्तोत्र नहीं हो सकता ।
इसीलिए मैं इस स्तोत्र के बारे में अपना कुछ भी अनुभव नहीं लिख रहा हूं । आप सुनें, अनुभव करें और अगर उचित लगे तो अपने अनुभव कमेंट सेक्शन में पोस्ट कर सकते हैं ।
(श्री हित चतुरासी जी का सुस्वर गायन)
अनुभव चाहे जैसा भी रहे, लेकिन अगर इस स्तोत्र को मात्र कुछ दिन भी सुन लिया जाए तो जीवन पहले जैसा नहीं रह जाएगा । हमारे भाव हमारे ही अंतर्मन को छू सकने में समर्थ हो जाते हैं और ईश्वर की उपस्थिति का अहसास वास्तविक रुप में संभव हो जाता है ।
इसलिए इस स्तोत्र को अपने घर में बजायें और संभव हो तो नित्य श्रवण करें ।
अष्टक वर्ग - सेशन 3
दिन - रविवार, अक्टूबर 22, 2023
समय - शाम 3 बजे से 4 बजे तक
अष्टक वर्ग पर यह तीसरा सेशन होने जा रहा है । पिछले 2 सेशन में हमने कुंडली के भावों के बारे में जाना है । आने वाले रविवार को हम ग्रहों के बारे में जानने का प्रयास करेंगे जिसमें मुख्य रुप से ग्रह, ग्रहों का प्रभाव, ग्रहों की दृष्टि और ग्रहों का आपस में तालमेल कैसे रहता है ।
जो लोग पहले ही ₹100 का Subscription Plan ले चुके हैं, उनको इस सेशन का टिकट खरीदने की आवश्यकता नहीं है । उनका प्लान तीन महीने तक वैध है । सेशन से संबंधित जानकारी शनिवार तक उनके ईमेल पर आ जाएगी । कृपया ईमेल से प्राप्त लिंक से ही ज्वॉइन करें ताकि किसी तकनीकी समस्या का सामना न करना पड़े ।
इसके अलावा आपको निखिल ज्योति वेबसाइट पर ही अष्टक वर्ग ग्रुप भी ज्वॉइन कर लेना चाहिए ताकि ज्योतिष पर चर्चा भी समय - समय पर की जा सके । यहां समय - समय पर ज्योतिष से जुड़े गोपनीय तथ्य भी साझा किये जाएंगे । आप ग्रुप यहां से ज्वॉइन कर सकते हैं -
आयुर्वेद और हमारा जीवन
माना जाता है कि अगर पेट साफ रहे तो शरीर बीमारियों से मुक्त रहता है । पर कई बार जीवन की आपाधापी में हम सबसे ज्यादा अनदेखी पेट की ही कर जाते हैं जिससे अपच, पेट का साफ न रहना और लीवर से संबंधित समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं । कई बार बढ़ती उम्र के कारण भी पेट परेशान करता है ।
वैसे तो नियमित आहार - विहार, सलाद और फलों के जूस के सेवन मात्र से ही पेट को आराम पहुंचाया जा सकता है । फिर भी विभिन्न कारणवश अगर पेट गड़बड़ हो जाए या लीवर परेशान करने लगे तो आज आपके समक्ष एक ऐसे आयुर्वेदिक औषधि को रखा जा रहा है जिसके नियमित सेवन से आप अपने पेट की परेशानियों से मुक्ति पा सकते हैं ।
Digesol from IHS
Digesol के औषधि तत्व आपके पेट को न सिर्फ ठीक रखने में मदद करते हैं बल्कि भोजन को पचाने में मदद करते हैं । इससे भूख भी खुलकर लगती है और पेट दर्द या सीने में जलन की शिकायत से भी मुक्ति मिल जाती है ।
Digesol के नियमित सेवन से पेट गैस से भी मुक्ति मिलती है और आप अपनी दैनिक जीवनचर्या को खुलकर जी पाते हैं । बाकी की जानकारी आपको प्रोडक्ट पेज पर मिल जाएगी । मैं यहां लिंक शेयर कर रहा हूं ।
आप सबके जीवन में समस्याओं से मुक्ति मिल सके, जीवन में आप आनंद ले सकें और एक स्वस्थ जीवन आपको प्राप्त हो, ऐसी ही शुभेच्छा है ।
अस्तु ।
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