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सदगुरु कृपा विशेषांकः जीवन एक संतुलन

Updated: Aug 5

भाग 1 - परीक्षा की कसौटी


पूर्व में, परम पूज्य सदगुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी, और आज गुरु त्रिमूर्ति ने सदैव ही अपने स्वयं के जीवन के माध्यम से हम सभी शिष्यों को बहुत कुछ सिखाने का प्रयास किया है और ये करके भी दिखाया है कि हमारा जीवन दो ध्रुवों को संतुलित करने की प्रक्रिया का हिस्सा मात्र है जिसमें एक ध्रुव भौतिक जीवन से संबंधित है और दूसरा आध्यात्मिक जीवन से, बाकी सब इसके ही अंतर्गत आता है ।


हमारे गुरुजन भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को पूरी तरह आत्मसात करके ही, समाज के बीच में जाकर उन तथ्यों को सहज रूप में रख रहे हैं जिनको पाना तो उनकी अनुपस्थिति में असंभव सा ही रहता । जिस पवित्रतम आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह आज इस देश में हो रहा है, उसके मूल में हमारी गुरु परंपरा का बहुत बड़ा योगदान है । यही भारतवर्ष की श्रेष्ठता है और मैं कहता हूं कि भारत को जगदगुरु बनने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह तो चिरकाल से ही जगदगुरु रहा है और आगे भी रहेगा ।


लेकिन इस तथ्य को समझना उन लोगों को लिए बहुत कठिन है जो आध्यात्म को भौतिक, और, भौतिकता को आध्यात्मिक नजरिये से देखने का प्रयास करते हैं । मैं पिछले कुछ समय से इस विषय पर लिखने के लिए उचित शब्दों को खोज रहा हूं लेकिन मिल ही नहीं रहे, और मिलेंगे कहां से - ये तो पूर्णतः अनुभव का विषय है ।


फिर भी चलिए, लिखने का प्रयास करते हैं ...


पिछले कुछ समय में बहुत से भाई - बहनों के फोन आये हैं । ज्यादातर अपनी समस्या के समाधान के लिए ही फोन करते हैं । मैंने इसमें कुछ चीजों पर गौर किया है जो यहां पर लिखना उचित है -


  • हर किसी को लगता है कि उसके जीवन में महान कष्ट है !

  • जो कष्ट उनको है, शायद उसे कोई समझ नहीं पाता है !

  • क्या ऐसी कोई साधना है जिससे उनकी समस्या का हल हो सकता है?

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