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गुरु मंत्र और साधना का महत्व-भाग ३

Updated: Aug 29, 2023

समर्पण और ब्रह्माण्ड शक्ति यंत्र


It's not people who hurt you. It is your own mind and vulnerability and, your own emotions that entangle you and make you feel hurt. श्री श्री रविशंकर, आध्यात्मिक गुरु

अगर आप अंग्रेजी समझते हैं तो इस बात का मंतव्य समझ गए होंगे लेकिन फिर भी बहुत से लोग इस बात को शायद स्वीकार न कर पाएं । इसलिए आज इस पर चर्चा करते हैं ।


आजकल जहां देखो वहीं पर संघर्ष है । घर में हो या परिवार में, किसी समाज की बात करें या दो देशों के बीच, सर्वत्र संघर्ष व्याप्त है । हालांकि यह हमेशा सृष्टि के आधे हिस्से में ही रहेगा । आधा हिस्सा हमेशा शांत रहेगा । यही प्रकृति का संतुलन है ।


लेकिन यहां मनुष्य को एक विकल्प हमेशा मिलता है, और वह विकल्प है आपके चयन का । आप किस क्षेत्र को चुनते हैं, संघर्ष का क्षेत्र या शांति का क्षेत्र, चयन हमेशा आपका ही रहेगा ।


श्री श्री रविशंकर जी ने जो बात कही है वह इस परिपेक्ष्य में बहुत महत्वपूर्ण है कि जब यही संघर्ष एक साधक के जीवन में आता है तब उसे किस प्रकार से इसका सामना करना चाहिए । कारण चाहे जो भी हो, जब किसी साधक को जीवन में संघर्ष करना पड़ता है तो उसके मूल में भी यही तथ्य होता है कि जिस तकलीफ से वह गुजर रहा है वह किसी दूसरे के द्वारा दी हुयी नहीं होती है, बल्कि उसके अपने विचार, भावनायें और मन की कमजोरी ही उसका मूल होते हैं ।


वैसे यह समझना इतना भी आसान नहीं है जितनी आसानी से लिख दिया गया है ।


चलिए, समझने के लिए कुछ उदाहरण का सहारा लेते हैं । फर्ज कीजिए कि किसी ने आपसे कुछ ऐसा कह दिया अथवा आपके साथ कुछ ऐसा कर दिया जिससे आपको तकलीफ हो रही है । और, सिर्फ तकलीफ ही नहीं, बहुत ज्यादा तकलीफ हो रही है । ऐसा लगे कि आपके आत्मसम्मान को छिन्न - भिन्न कर दिया हो अथवा आपका सब कुछ बरबाद कर दिया हो अथवा ऐसा भी लग सकता है जैसे अब आपका कोई अपना नहीं रहा, सब पराये हो गये हैं ....


बहुत सी परिस्थितियों में ऐसा भी लग सकता है कि जीवन की समस्त सच्चाई आपके सामने प्रकट हो गयी है और अब कोई भी भरोसे लायक नहीं बचा है ...


तकलीफ का चेहरा किसी भी प्रकार का हो सकता है, शब्द भी परिस्थिति के हिसाब से बदल जाएंगे लेकिन आशय आप समझ गये होंगे ।


अब सवाल उठता है कि आखिर इस तकलीफ का मूल हमारे अपने विचार, भावनायें या मन की कमजोरी कैसे हो सकती हैं?


इस चीज को समझना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले ऊर्जा के मूल तथ्य को समझना होगा ।


इस ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी है वह सब ऊर्जा का ही रूपांतरण है । वैज्ञानिकों ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है -

Energy can neither be created nor destroyed - only converted from one form of energy to another. This means that a system always has the same amount of energy, unless it's added from the outside. The law of conservation of energy.

अर्थात आप ऊर्जा को न तो उत्पन्न कर सकते हैं और न ही नष्ट कर सकते हैं । ऊर्जा को केवल एक रुप से दूसरे में बदला जा सकता है । इसका मतलब यह भी है कि किसी भी सिस्टम में हमेशा एक निश्चित मात्रा में ही ऊर्जा रहेगी, बशर्ते बाहर से कुछ ऊर्जा न दे दी जाए ।


इसका एक ही मतलब है कि अगर किसी ने आपको तकलीफ दी है तो उसने केवल अपनी ऊर्जा आपको ट्रांसफर कर दी है । अब उसका प्रभाव कैसा होगा यह उस ऊर्जा की प्रकृति तय करेगी । अगर वह नकारात्मक है तब आपके जीवन में नकारात्मक विचार आयेंगे । फलस्वरुप घटनायें भी नकारात्मक प्रवृत्ति की ही होंगी । अगर ऊर्जा सकारात्मक है तब वह आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लायेगी ।


अब इसका विज्ञान समझिये -


जब कोई व्यक्ति आपको गाली देता है या आपका अपमान करता है या ऐसा कोई कार्य करता है जो आपकी इच्छा के विरुद्ध है तो इसका मतलब है कि वह जबरदस्ती अपनी ऊर्जा को आपमें ट्रांसफर करता है । अब अगर आपका अपने विचारों पर नियंत्रण नहीं है और आपके मनोभाव स्थिर प्रकृति के नहीं हैं तो वह ऊर्जा आपको न सिर्फ प्रभावित करेगी बल्कि आपकी अपनी ऊर्जा का ह्रास कर देगी । फलस्वरुप आप हताश, निराश और ऊर्जाहीन हो जाएंगे । सामने वाले की नकारात्मक ऊर्जा, आपके अंदर की नकारात्मक ऊर्जा को ही बढ़ावा देगी जो किसी भी रुप में सामने आ सकता है । जैसे कि क्रोध, हीनता की भावना, मानसिक रुप से परेशान होना, स्वयं से भरोसा उठ जाना, ईश्वर से भरोसा उठ जाना इत्यादि - इत्यादि ।


इसी संदर्भ में - अगर आप सकारात्मक ऊर्जा से भरे हुये हैं, साधनात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण हैं अथवा अपने विचारों को पहचान कर उन पर नियंत्रण कर सकते हैं तब उस नकारात्मक ऊर्जा के सैलाब को आसानी से पार किया जा सकता है । यहां मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ऐसी घटनाओं का प्रभाव नहीं पड़ेगा, प्रभाव तो अवश्य पड़ेगा लेकिन आप आसानी से मात्र कुछ घंटों में या अधिक से अधिक 2 - 3 दिन में ही इस परिस्थिति से बाहर आ सकते हैं ।


अब सवाल उठता है कि इस काम को किया कैसे जाए? कुछ तरीके हैं जिनको अपनाकर आप इन परिस्थितियों से बाहर आ सकते हैं -

  1. हर सवाल का जवाब देने की आवश्यकता नहीं होती है । कभी - कभी मात्र सुन लेने से भी परिस्थितियों को विपरीत होने से बचाया जा सकता है

  2. हमेशा स्वयं को प्रमाणित करने की भी आवश्यकता नहीं होती है कि आप सही हैं । सामने वाला व्यक्ति आपको उकसाये और आपको गलत प्रमाणित करने की कोशिश करे, उस परिस्थिति में भी आप शांत ही रहें, सुनते रहें तब भी परिस्थिति को विपरीत होने से बचाया जा सकता है ।

  3. अगर किसी परिस्थिति में आपके आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंच रही है, तब भी शांत ही रहें । अगर संभव हो तो उठकर चले जायें लेकिन अपने आप को सही साबित करने की कोशिश न करें ।

अब आप कहेंगे कि ऐसी परिस्थिति में शांत कौन रह सकता है? आपको तो जीवन भर यही सिखाया गया है कि ईंट का जवाब पत्थर से ही देना चाहिए । संस्कृत में एक मुहावरा भी है सठे साठ्यम समाचरेत अर्थात् दुष्ट व्यक्ति के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए


है न... !?


यही सब तो सीखा है हमने । इसीलिए तो संसार में इतने सारे युद्ध हो रहे हैं । सब स्वयं को सही साबित करना चाहते हैं कि जो वह हैं, जो वह कह रहे हैं, जो वह कर रहे हैं वही सही, बाकी सब गलत हैं ।


घर - परिवार के अंदर होने वाले झगड़े भी तो यही कहानी कहते हैं कि सठे साठ्यम समाचरेत...


सब एक दूसरे को सठ साबित करके ही मानते हैं और, फिर परिणाम - अलगाव, मनमुटाव, दिलों की दूरियां इत्यादि - इत्यादि ।


अब आप कहेंगे कि ऐसी परिस्थिति में तो शांत रहना संभव ही नहीं है ....


आपकी बात सही भी है क्योंकि आम जनमानस तो जानता ही नहीं है कि ऐसी परिस्थिति में करना क्या चाहिए । पर हम यहां आम जनमानस की बात ही नहीं कर रहे । यहां तो साधक वर्ग की बात चल रही है - कम से कम एक साधक को तो पता होना ही चाहिए कि ऐसी परिस्थिति में क्या किया जाना चाहिए था ।


अब इसको मैं आपको एक अन्य उदाहरण से समझाता हूं (कृपया बहुत अधिक तर्क में न जाएं, प्रश्न की मूल भावना को समझने का प्रयत्न करें) -


अगर आपसे कोई पूछे कि किसी भी घर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा क्या होता है तो आप क्या कहेंगे?

हो सकता है कि किसी को बेडरूम महत्वपूर्ण लगे या किसी को साधनात्मक स्थल महत्वपूर्ण लगे या किसी को कोई और भी जगह महत्वपूर्ण लग सकती है । लेकिन मेरी नजर में रसोई सबसे महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि अगर किसी घर में भोजन की व्यवस्था न हो तो फिर वहां आप न साधना कर सकते हैं और न ही ज्यादा दिन तक रुक सकते हैं ।


और, रसोई में सबसे महत्वपूर्ण स्थान कौन सा होता है?


हो सकता है कि कोई चूल्हे की बात कहे या फिर किसी और चीज की । लेकिन मेरी नजर में सिंक एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है । क्योंकि यही वह स्थान है जहां से गंदे पानी की निकासी होती है । अगर यह सिंक रसोई में मौजूद न हो तो कुछ ही दिन में वहीं नरक बन जाएगा ।


ठीक वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है । जब जीवन में कठिन समय आता है तब चारों तरफ से नकारात्मक ऊर्जा का सैलाब जैसा आने लग जाता है । यूं भी सामान्य जीवन में भी अधिकतर आपको ऐसे लोग ही ज्यादा मिलेंगे जो सकारात्मकता को बेकार की चीज समझते हैं और आपको भी अपनी नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित करते रहेंगे ।


अब ऐसा भी नहीं है कि आप जाकर हिमालय में बैठ जाओगे और ऐसे लोगों से बचे रहोगे, तब .... तब क्या करेंगे ....?

वही करेंगे जो रसोई में सिंक करती है ... अर्थात नकारात्मक ऊर्जा के इस सैलाब को सीधे ब्रह्मांड में विसर्जित कर देंगे

मतलब सीधा सा है, अगर लोग आपको नकारात्मक ऊर्जा देते हैं तो चुपचाप लेते रहिए और चुपचाप ही उसे ब्रह्मांड में विसर्जित कर दीजिए।


अगर ऐसा एक बार होता है तो एक बार विसर्जित कर दीजिए, अगर ऐसा बार - बार होता है तो आप भी उस ऊर्जा को बार - बार ब्रह्माण्ड में विसर्जित कर दिया कीजिए । बस, खुद को खाली रखिये और अपने पास कुछ न रखिये ।


यहां यह भी जान लीजिए कि अगर आपने इस नकारात्मक ऊर्जा के किसी भी हिस्से को, किसी भी रुप में अपने पास रखने की कोशिश भी की तो आपके जीवन की शांति भंग हो जाएगी ।


वैसे, अब आप भी समझ गये होंगे कि चूंकि लोगों को इस नकारात्मक ऊर्जा को सीधे ब्रह्माण्ड में सिंक करने की कला नहीं आती है तो लोग इस ऊर्जा से इतना भर जाते हैं कि बाद में बस ... जब तक कोई ज्वालामुखी जैसा न फट जाए तब तक कुछ भी शांत नहीं होता है । और समाज, घर, परिवारों में कितने लोग ज्वालामुखी बने घूमते रहते हैं, कहने की कोई आवश्यकता नहीं है ।

 

अब ज्ञान तो दे दिया कि ब्रह्माण्ड में सिंक कर दो लेकिन ये काम होगा कैसे......!?


आसान है -


४ माला गुरु मंत्र की जप कीजिए, १ माला चेतना मंत्र और १ माला गायत्री मंत्र की । इतने मात्र से आप चाहें तो सीधे ब्रह्माण्ड का द्वार खोला जा सकता है जहां आपके शरीर से नकारात्मक ऊर्जा निकलकर ब्रह्माण्ड में कुछ क्षण मात्र में विसर्जित हो सकती है ।


आप कह सकते हैं कि यह कैसे संभव हो सकता है? एक साधारण साधक ब्रह्माण्ड का द्वार कैसे खोल सकता है, इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता...


इसका उत्तर सिर्फ एक ही वाक्य से दिया जा सकता है - चूंकि आप विश्वास नहीं कर सकते, इसीलिए आप इस काम को नहीं कर सकते । दूसरे शब्दों में यह कार्य आपके लिए संभव नहीं है ।


हम तो इस कार्य को रोज करते हैं इसलिए यहां बता रहे हैं कि आप भी कर लो, थोड़ी शांति रहेगी जीवन में ।


आप कह सकते हैं कि आप इस काम को तो रोज करते हैं पर आपसे क्यूं नहीं होता है?


ये सवाल सही है ... पर इसका मूल कारण जाने बिना उत्तर स्पष्ट नहीं हो सकता ।


दरअसल इन सारे कार्यों के लिए जो ऊर्जा चाहिए होती है वह प्राप्त होती है सदगुरुदेव से । सदगुरुदेव ही आपको उन क्षणों में वह ऊर्जा प्रदान कर देते हैं जब आप ब्रह्माण्ड का द्वार खोल सकते हैं और अपने अंदर की सारी नकारात्मक ऊर्जा को ब्रह्माण्ड में विलीन कर सकते हैं ।


तब सवाल उठता है कि सदगुरुदेव आपको यह ऊर्जा क्यों नहीं देते ....!?


तो इसका उत्तर है .... समर्पण का अभाव ।

 

समर्पण


समर्पण सीखना हो तो एक शिशु से सीखिए जो केवल अपनी मां को ही जानता है । और अपनी मां की गोदी में आने के लिए रो - रोकर गुहार लगाता है । फिर देखिए कि मां भी अपने सारे काम छोड़कर अपने शिशु को गोद में उठा ही लेती है ।


पर आज मैं आपको इस उदाहरण के माध्यम से समर्पण नहीं बताऊंगा । ऐसा इसलिए कि जो गुरुभाई किसी भयंकर समस्या से पीड़ित हैं, उनको इस मां - शिशु के उदाहरण से नहीं समझाया जा सकता । उनके लिए उदाहरण चाहिए पानी में डूबते हुए एक ऐसे व्यक्ति का, जिसको तैरना नहीं आता है ।


अब जरा फर्ज कीजिए कि आप ही वह व्यक्ति हैं जिसको तैरना नहीं आता । अपनी या किसी और की गलती से आप पानी में गिर जाते हैं । पानी गहरा भी है तो, अब आप क्या करेंगे ....?


कहने को तो आप कह सकते हैं कि आप चिल्लायेंगे, चीखेंगे ....वगैरा, वगैरा । लेकिन मेरी नजर में एक ड़ूबता हुआ व्यक्ति हाथ - पैर मारने और छटपटाने के अलावा कुछ और कर ही नहीं सकता ।


वो बेचारा चिल्ला भी नहीं सकता क्योंकि किसी भी क्षण वह पानी में डूब सकता है ।


मृत्यु का भय उसको सिवाय हाथ - पैर मारने के कुछ भी नहीं करने देगा ।


अब जरा एक क्षण विचार करके यह बताइये कि अगर कोई व्यक्ति आपको बचाने आये तो आप सबसे पहले क्या करेंगे ...??


कहने को आप कुछ भी कहते रहें लेकिन जो अनुभवी हैं वह जानते हैं कि डूबने वाला व्यक्ति, बचाने वाले को ही डुबा सकने की क्षमता रखता है । वह बचाने वाले को ही कस कर पकड़ लेगा, उस पर चढ़ने की कोशिश करेगा, और अगर अतिशयोक्ति नहीं है तो उस पर चढ़कर उसे भी डुबा देगा और फिर बाद में खुद भी डूब जाएगा ।


आप कहेंगे कि फिर उसे क्या करना चाहिए था ...?


करना क्या था, पहले तो उसे यह विश्वास करना चाहिए कि जो व्यक्ति उसे बचाने आया है, वह उसे बचा ही लेगा ।


दूसरी बात उसके दिशा निर्देशों का पालन करे ।


और यही सबसे बड़ी बात होती है कि एक डूबता हुआ व्यक्ति भी अपने बचाने वाले पर इतना विश्वास कर सके कि मात्र कुछ क्षणों का विश्वास और दिशा निर्देशों का पालन उसको मृत्यु के मुख से बचा सकता है ।


बस... यही होता है समर्पण ।


बस यही चाहिए होता है, किसी डूबते हुए को बचाना तो बहुत आसान काम होता है । एक बार वह समर्पण कर दे, फिर तो उसे मात्र उंगली पकड़कर भी पानी से बाहर निकाला जा सकता है ।


ये बात अलग है कि तट पर पहुंचने में समय लग सकता है लेकिन डूबने वाला व्यक्ति अगर समर्पण में कमी न करे, और छटपटाए न, तो बचाने वाला उसको किनारे तक पहुंचा ही देगा ।


कुछ याद आया ...!?


जब हम जीवन में किसी भयंकर समस्या में घिरे हुए होते हैं तब भी क्या हम सदगुरुदेव के प्रति समर्पण कर पाते हैं? सदगुरुदेव की प्रेरणा से अगर कोई बचाने आता है तब क्या हम उसके दिशा निर्देशों का पालन करते हैं ? क्या हम अपनी छटपटाहट को कम करके साधना पर ध्यान केन्द्रित कर पाते हैं? क्या हम उन कलाओं को सीखने का प्रयास कर पाते हैं जिनके माध्यम से हम ग्रहों की ऊर्जा को नियंत्रित कर सकते हैं अथवा अपनी नकारात्मक ऊर्जा को ब्रह्माण्ड में विसर्जित कर सकते हैं?


अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो ध्यान रखिये, आपको समस्या से निकालना सदगुरुदेव के लिए क्षण मात्र का काम है लेकिन अगर नहीं करते हैं तो फिर शिकायत करना भी फिजूल है ।

 


अद्भुत ब्रह्माण्ड शक्ति यंत्र


सदगुरुदेव प्रदत्त इस ब्रह्माण्ड यंत्र के अनंत प्रयोग हैं । सब कुछ ब्रह्माण्ड से ही प्राप्त होता है और यह यंत्र आपको सीधे ब्रह्माण्ड से ही संपर्कित कर देता है । तो जो भी चाहिए, सीधे ब्रह्माण्ड़ से ही मांग लीजिए, स्वतः ही मिल जाएगा ।

ब्रह्माण्ड़ अद्भुत यंत्र


प्रयोग का तरीका


आप इस यंत्र को चाहे तो प्रिंट कर लीजिए या हाथ से किसी सफेद कागज (बिना लाइन वाला) पर बना लीजिए । चाहें तो इसको लैमीनेट भी करवा सकते हैं जिससे ये खराब न हो ।


यंत्र का सामान्य पूजन कर लें ।


जब भी प्रयोग करना हो तो इस यंत्र पर अपना हाथ इस तरह से रखें कि यंत्र पूरा ढक जाए और निम्न मंत्र की एक माला जप कर लीजिए -


।। ॐ बृह्माण्डाय अद्भुत शक्ति प्रदाय नमः ।।


चाहें तो बायां हाथ यंत्र के ऊपर रख सकते हैं और दाहिने हाथ से एक माला इस मंत्र का जप किया जा सकता है ।

यह यंत्र और मंत्र बहुत प्रभावशाली हैं और बहुत शीघ्र ही इसका प्रभाव सामने आ जाता है ।


अब सवाल यह है कि ब्रह्माण्ड़ से मांगा क्या जाए?


किसी भी सूरत में अपनी छोटी मानसिकता का परिचय न दें । यह मंत्र अत्यंत उच्च आध्यात्मिक शक्तियों का स्रोत है, वही मांगें जो सदगुरुदेव आपसे कहें । अगर समर्पण कर देंगे तो स्वतः ही इस बात का बोध हो जाता है कि सदगुरुदेव आपसे क्या मांगने के लिए कह रहे हैं ।


अपना ही उदाहरण देता हूं - एक बार जब बहुत मानसिक व्याकुलता थी तो मैंने समस्या का समाधान नहीं मांगा था बल्कि धैर्य, सहजता और सरलता मांगी थी । प्रसन्नता मांगी थी । क्योंकि जब यह तत्व जीवन में होंगे तो समस्या का समाधान तो स्वतः ही हो जाएगा । यह सब मुझे भयंकर मानसिक परेशानी के बीच मात्र 10 मिनट में ही प्राप्त हो गया था । इसी कारण बाद में समस्या का भी समाधान शीघ्र ही हो गया था ।


अब आपको क्या मांगना है, आप जानें । मैं तो आपको वह दे सकता हूं जिसे देने की आज्ञा और प्रेरणा मुझे सदगुरुदेव से मिलती है ।


आप सबके जीवन में सकारात्मकता आये, आप अपनी समस्याओं का समाधान साधनाओं के माध्यम से कर सकें और इससे भी बढ़कर ब्रह्माण्ड़ के रहस्यों से परिचित हो सकें, ऐसी ही शुभेच्छा है ।


अस्तु ।

 

अद्भुत ब्रह्माण्ड़ यंत्र को आप यहां से डाउनलोड़ करके प्रिंट कर सकते हैं -

बृह्माण्ड अद्भुत शक्ति यंत्र
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