न्यास और उनका जीवन में महत्व
जीवन का आधार गुरु हैं और गुरु ही इस समस्त सृष्टि का आधार भी हैं । इस बात को जितना आसान कहना है, उतना ही कठिन इस बात को आत्मसात करना भी है ।
अगर आत्मसात करना इतना कठिन न होता तो आज की तारीख में न जाने कितने ही गुरुभाई इस तरह से भटकाव से न गुजर रहे होते ....!
एक बार गुरु से दीक्षा प्राप्त हो जाए और उसके बाद भी जीवन में भटकाव बना रहे तो यह कोई सामान्य बात नहीं है । जीवन में गुरु का आगमन ही इस बात की गारंटी है कि अब भटकाव खत्म होने का समय आ गया है । पर आखिर में ऐसा क्यों होता है कि हम बार - बार उसी बिंदु पर आकर खड़े हो जाते हैं जहां से यात्रा शुरु की थी? आखिर हम १ कदम भी आगे बढ़ पाने में सफल क्यों नहीं हो पाते हैं?
पिछली पोस्ट में हमने क्षेत्रज्ञ शब्द को लेकर चर्चा की थी । मैं नहीं जानता कितने लोगों ने इस शब्द को लेकर आत्ममंथन किया था लेकिन ऐसा करना उचित अवश्य है । मैं इस बात को बार - बार कहना चाहुंगा कि जो लोग साधना के पथ अग्रसर हैं, अगर वे आत्ममंथन की क्रिया नहीं करते हैं तो उनको ऐसा करना शुरु कर देना चाहिए । अगर हम साधक बनना चाहते हैं तो हमको एक सफल क्षेत्रज्ञ भी बनना होगा ।
बिना सफल क्षेत्रज्ञ बने, एक सफल साधक बन पाना भी मुश्किल ही होता है ।
अगर हम आध्यात्म के क्षेत्र में हैं और खुद पर नजर नहीं रख पाते हैं तो ये भी मानकर चलिए कि भगवती महामाया की माया हमको बार - बार एक ही झूले में झुलाती रहेगी और हम बार - बार स्वयं को वहीं पर पाएंगे जहां से यात्रा शुरु की थी ।
और, विश्वास कीजिए, यही काम सबसे मुश्किल है । मुश्किल इसलिए कि हमको जीवन भर दूसरों पर नजर रखने की ट्रेनिंग दी जाती है, स्वयं पर नजर रखने का काम प्राथमिकता की सूची में सबसे पीछे होता है । और, इस काम को हम शायद ही कभी करते हों ।
एक क्षेत्रज्ञ के जीवन में जो कुछ भी होता है, वह उस पर बारीक नजर रखता है, लेकिन भाव यहां दृष्टा का होता है, कर्ता का नहीं । अपने विचारों पर भी एक क्षेत्रज्ञ की पैनी दृष्टि रहती है; सही अर्थों में वह इस बात को ठीक तरीके से पहचान सकता है कि कौन सा विचार उसका स्वयं का है और कौन सा विचार काल शक्तियां उसके मस्तिष्क में रोपित कर रही हैं । याद रखिये, विचार ही वह बीज होता है जो बाद में चलकर किसी पेड़ में तब्दील होता है । आज का आपका विचार भविष्य में किसी न किसी कर्म की आधार शिला बनेगा । वह कर्म आगे चलकर आपके 'जी का जंजाल' बनेगा या आपको 'यश का पात्र' बनाएगा, यह तो उस कर्म की प्रकृति तय करेगी, लेकिन इतना तो तय है कि आप किसी भी विचार को हल्के में नहीं ले सकते हैं । इसलिए एक क्षेत्रज्ञ बनना आपके लिए साधना में सफलता की सीड़ी के पायदान की तरह सिद्ध हो सकता है ।
साधारणतया साधना करते रहने मात्र से ही एक क्षेत्रज्ञ अपने विचारों पर नियंत्रण रख सकता है लेकिन कभी - कभी ऐसा भी होता है कि किसी कारणवश किसी विचार की उपस्थिति कष्टप्रद हो जाती है, चाहकर भी उस विचार को आप अपने मस्तिष्क में आने से रोक नहीं सकते । लेकिन अगर आपको इस बात का अहसास है कि यह विचार आपका स्वयं का नहीं है, उस स्थिति में एक क्षेत्रज्ञ जब भी सदगुरुदेव से प्रार्थना करेगा, तब सदगुरुदेव निश्चय ही कृपा करते हैं और और उस क्षेत्रज्ञ को उस विचार-पाश से मुक्ति दिलाते ही हैं । सीधी भाषा में - सदगुरुदेव आपको उस क्षण में निहित काल - शक्तियों के प्रभाव से मुक्त कर देते हैं ।
पर ध्यान रखिए, गुरु आपके नौकर नहीं हैं । अगर आपको उनसे कुछ चाहिए तो समर्पण भी आपको ही करना होगा और समर्पण की भाषा को केवल ह्रदय से उत्पन्न आंसुओं की भाषा से ही व्यक्त किया जा सकता है । जिह्वा की भाषा का इसमें शायद ही कोई महत्व हो ।
गुरु मंत्र साधना में न्यास
प्रत्येक साधना में विनियोग और न्यास का वर्णन अवश्य दिया जाता है । इसका कारण यह है कि न्यास करने से साधक और इष्ट के बीच में संबंध मजबूत होता है । एक तरीके से देखा जाए तो हम न्यास के माध्यम से इष्ट को ही अपने शरीर में स्थापित करते हैं । गुरु मंत्र साधना में भी विभिन्न न्यासों का विवरण सदगुरुदेव ने दशकों पहले ही प्रदान कर दिया था ।
ये बात अलग है कि दैनिक साधना विधि पुस्तक में केवल जरूरी न्यास ही दिये गये हैं । इसका कारण शायद यह रहा हो कि प्रत्येक गृहस्थ मुश्किल से ही साधना के लिए समय निकाल पाता है । अगर उसको ठीक से न्यास करने के लिए दे दिये जाएं तो उसकी साधना का आधा समय तो केवल न्यास करने में ही निकल जाएगा, फिर वह मंत्र जप भी ठीक से नहीं कर पायेगा ।
लेकिन यह स्थिति उन लोगों के लिए ठीक है जो नये - नये साधना क्षेत्र में आये हैं । पुराने साधकों को न सिर्फ साधना का समय बढ़ाना चाहिए बल्कि न्यास के समस्त तरीकों का प्रयोग अपनी दैनिक साधना में अवश्य करना चाहिए । इन न्यासों के प्रयोग से किसी भी साधक की आध्यात्मिक उन्नति होती ही है । फिर वापस उसी बिंदु पर नहीं आना पड़ता जहां से यात्रा शुरु की जाती है ।
कुछ महत्वपूर्ण न्यास यहां दिये जा रहे हैं जो गुरु मंत्र की साधना से पहले अवश्य करने चाहिए । श्रेष्ठ साधक इन न्यासों को अपने दैनिक जीवन में अवश्य प्रयोग करते हैं -
विनियोगः ॐ अस्य गुरु मंत्रस्य ब्रह्म-विष्णु-महेश्वरा ऋषयः गायत्री उष्णिक्-अनुष्टुप छन्दांसि, महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती देवताः, ब्रह्म शाकम्भरी भीमा शक्तयः ब्रह्माण्ड बीजानि, ॐ कीलकं अग्नि वायु सूर्याः तत्वानि अमुक कार्य सिद्धयर्थे मंत्र जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि न्यास – इस न्यास को करने से सारा शरीर दिव्य और चैतन्य हो जाता है ।
ॐ ब्रह्म विष्णु महेश्वर ऋषिभ्यो नमः – शिरसि
ॐ गायत्री-उष्णिक्-अनुष्टुप छन्देभ्यो नमः – मुखे
ॐ महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती देवताभ्यो नमः – ह्रदि
ॐ ब्रह्म शाकम्भरी-भीमा-शक्तिभ्यो नमः – दक्ष स्तने
ॐ ब्रह्माण्ड बीजानि नमः – वाम स्तने
ॐ ह्रीं कीलकाय नमः – नाभौ
ॐ अग्नि-वायु-सूर्य तत्वेभ्यो नमः – नेत्रयो
ॐ अमुक कार्य सिद्धयर्थे मंत्र जपे विनियोगः नमः – सर्वांगे
वर्ण मातृका न्यास – इससे गुरु, ब्रह्म स्वरूप बनकर साधक के शरीर में समाहित हो जाते हैं ।
ॐ ॐ अं आं कं खं गं घं ड़ं इं ईं – ह्रदयाय नमः
ॐ परम उ ऊं चं छं जं झं ञं ऋं – सिरसे स्वाहा
ॐ तत्वाय लृं टं ठं डं ढं णं लृं लृं – शिखायै वौषट्
ॐ नारायणाय एं तं थं दं धं नं ऐं – कवचाय हुम्
ॐ गुरुभ्यो ओं पं फं बं भं मं औं – नेत्र त्रयाय वौषट्
ॐ नमः अं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं अं: – अस्त्राय फट्
सारस्वत न्यास – इसके करने से शरीर के जड़ता, आलस्य और पाप नष्ट हो जाते हैं ।
इसमें गुरु मंत्र का जप निम्न स्थानों पर दाहिने हाथ की उंगलियां रखते हुये करें ।
कनिष्ठिका – 6 बार
अनामिका – 6 बार
मध्यमा – 3 बार
तर्जनी – 4 बार
अंगुष्ठ – 6 बार
करतलकरपृष्ठ – 6 बार
पृष्ठभाग – 11 बार
मणिबन्ध – 8 बार
हस्त – 9 बार
ह्रदय – 10 बार
सिर – 11 बार
शिखा – 12 बार
दोनों कवच – 6 बार
दोनों नेत्र – 6 बार
सर्वांग – 15 बार
मातृका न्यास – यह न्यास करने से साधक त्रिकालज्ञ, एवं त्रैलोक्य विजयी हो जाता है ।
ॐ गुरुभ्यो ब्राह्मी पूर्वतो मां पातु । ॐ गुरुभ्यो माहेश्वरी आग्नेय मां पातु । ॐ गुरुभ्यो कौमारी दक्षिणे मां पातु । ॐ गुरुभ्यो वैष्णवी नैऋते मां पातु । ॐ गुरुभ्यो वाराही पश्चिमे मां पातु । ॐ गुरुभ्यो इन्द्राणी वायव्ये मां पातु । ॐ गुरुभ्यो चामुण्डे उत्तरे मां पातु । ॐ गुरुभ्यो महालक्ष्मी ऐशान्ये मां पातु । ॐ गुरुभ्यो व्योमेश्वरी ऊर्ध्वे मां पातु । ॐ गुरुभ्यो सप्त-द्वीपेश्वरी भूमौ मां पातु । ॐ गुरुभ्यो कामेश्वरी पाताले मां पातु ।
ब्रह्म न्यास – इस न्यास से साधक चिरयौवन मय बना रह कर सभी दृष्टियों से पूर्णता प्राप्त करता है ।
ॐ ब्रह्म शून्य आसनायै नमः – पूर्वांगे मां पातु
ॐ विमुक्तायै ज्ञान खड्गे हस्तायै नमः – दक्षिणे मां पातु
ॐ चैतन्य पल्लवायै नमः – पृष्ठे मां पातु
ॐ गुरुवै सर्व सिद्धि हस्तायै नमः – वामांगे मां पातु
ॐ सर्व सिद्धि प्रदायै नमः – मस्तकादि चरणान्तं मां पातु
ॐ शिष्य प्रियायै नमः – पादादि मस्तकान्तं मां पातु
शून्य न्यास – इस न्यास को करने से साधक के मन की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है ।
ॐ ब्रह्मणे नमः – पादादि नाभि पर्यन्तं सदा मां पातु
ॐ नारायणाय नमः नाभौ विशुद्धि पर्यन्त मां पातु
ॐ रुद्राय नमः ब्रह्म रन्ध्रान्ते नेत्रयोः मां पातु
ॐ त्रिलोचनाय नमः पादयोः मां पातु
ॐ दिव्याय नमः करयोः मां पातु
ॐ ज्ञानाय नमः नेत्रयोः मां पातु
ॐ दिव्य चेतनायै नमः सर्वांगे मां पातु
ॐ आनन्द-मय परमात्मने नमः परात्पर-देहभागे मां पातु
देवी न्यास – इस न्यास को करने से साधक को सिद्धाश्रम प्राप्ति होती है ।
ॐ गुरुवै अष्टादश भुजायै नमः मध्ये मां पातु ।
ॐ चैतन्य षोडश भुजायै नमः ऊर्ध्व मां पातु ।
ॐ कालक्षयायै दश भुजायै नमः अधः मां पातु ।
ॐ शत्रुमर्दनायै नमः हस्तयोः मां पातु ।
ॐ ज्ञानाय नमः नेत्रयोः मां पातु ।
ॐ दिव्यायै नमः पादयो मां पातु ।
ॐ महेशाय नमः सर्वांगे मां पातु ।
वर्ण न्यास – इस न्यास से जीवन के सभी रोग समाप्त हो जाते हैं ।
ॐ परम नमः – ब्रह्म रन्ध्रे ॐ तत्वाय नमः – दक्ष नेत्रे ॐ नारायणाय नमः – वाम नेत्रे ॐ गुरुभ्यो नमः – दक्ष-वाम कर्णे ॐ नमः मुखे ॐ ॐ नमः – सर्वांगे ।
विन्ध्य न्यास – इस न्यास से जीवन के सभी दुख दूर हो जाते हैं ।
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ।
पैरों से लगाकर सिर तक और सिर से लगाकर पैरों तक ९ – ९ बार यह मंत्र उच्चारण करते हुए स्पर्श करें ।
व्यापक न्यास – इस न्यास से समस्त देवताओं का सानिध्य प्राप्त होता है ।
गुरु मंत्र को मस्तक से पैरों तक उच्चारण करते हुए आठ बार जपें ।
ॐ परम – पैरों से मस्तक तक आठ बार जपें ।
ॐ तत्वाय – सामने के भाग पर स्पर्श करते हुए आठ बार मंत्र जपें ।
ॐ नारायणाय – उच्चारण करते हुए सिर पर स्पर्श करते हुए आठ बार मंत्र जपें ।
ॐ गुरुभ्यो – उच्चारण करते हुए पीछे के भाग पर आठ बार मंत्र जपें ।
ॐ नमः – मंत्र उच्चारण करते हुए पूरे शरीर पर आठ बार मंत्र उच्चारण करें।
षडंग न्यास - इस न्यास को करने से त्रैलोक्य साधक के वश में हो जाता है ।
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ह्रदयायै नमः
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः सिरसे स्वाहा
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः शिखायै वषट्
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः कवचाय हुम्
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
इसके बाद “नारायण” बीज को गौर वर्ण का ध्यान करते हुए गुरु स्तोत्र का पाठ करें ।
(नारायण मंत्र साधना विज्ञान में भी इस बार (जुलाई 2021 अंक) श्री सदगुरु स्तोत्रम् को प्रकाशित किया गया है । पेज ५८ पर आप इस स्तोत्र को देख सकते हैं । इस अंक की प्रति आप पोस्ट के नीचे दी गयी लिंक से डाउनलोड़ कर सकते हैं ।)
इसके बाद “गुरुभ्यो” बीज का शुक्ल वर्ण का ध्यान करते हुए निम्न श्लोक का उच्चारण करें ।
द्विदल कमलमध्ये बद्धसंवित्समुद्रं धृतशिवमयगात्रं साधनानुग्रहार्थम् । श्रुति शिरसिविभान्तं बोधमार्तण्डमूर्ति शमिततिमिरशोक श्रीगुरू भावयामि ।। ह्रदंबुजेकर्णिकमध्यसंस्थं सिंहासने संस्थितदिव्यमूर्तिम् । ध्यायेद् गुरू चन्द्रशिलाप्रकाशं चित्पुस्तकाभीष्टवरंदधानम् ।।
इसके बाद “नमः” बीज मंत्र का उच्चारण करते हुए निम्न पाठ करें ।
ब्रह्मानन्दं परम-सुखदं केवलं ज्ञानमूर्ति द्वन्दातीतं गगन-सदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् । एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरु तं नमामि ।।
इसके बाद मूल षडंग न्यास करें ।
(पहली बार में कर-न्यास कर लें, उसके बाद अंग-न्यास कर लें)
व्यापक न्यास –
ॐ ॐ नमः शिरसि ॐ प नमः नेत्रयोः ॐ र नमः ललाटे ॐ म नमः ग्रीवा ॐ त नमः भ्रुवौ ॐ त्वा नमः कर्णयोः ॐ य नमः गण्डयोः ॐ ना नमः मुखे ॐ रा नमः दन्त-पंक्तयोः ॐ य नमः जिह्वायां ॐ णा नमः स्कन्धयोः ॐ य नमः कण्ठे ॐ गु नमः भुजयोः ॐ रू नमः ह्रदि ॐ भ्यो नमः पार्श्वयोः ॐ न नमः पृष्ठे ॐ मः नमः नाभौ
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः सर्वांगे
दिक न्यास –
ॐ ॐ प्राच्यै नमः ॐ परम आग्नेय्यै नमः ॐ तत्वाय दक्षिणायै नमः ॐ नारायणाय नैऋत्यै नमः ॐ गुरुभ्यो प्रतीच्यै नमः ॐ नमः वायव्यै नमः ॐ परम तत्वाय नारायणाय ऊर्ध्वायै नमः ॐ गुरुभ्यो नमः भूम्यै नमः
इसके बाद मानस पूजन करें ।
जप समर्पण – मंत्र द्वारा जप समर्पण करें ।
आप सभी इन न्यासों के माध्यम से अपने जीवन में आध्यात्मिक धरातल को मजबूत कर सकें और जीवन में वह सब प्राप्त कर सकें जो आपका अभीष्ट है, ऐसी ही शुभेच्छा है ।
अस्तु ।
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