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गुरु मंत्र और साधना का महत्व-भाग २

Updated: Aug 7

न्यास और उनका जीवन में महत्व


जीवन का आधार गुरु हैं और गुरु ही इस समस्त सृष्टि का आधार भी हैं । इस बात को जितना आसान कहना है, उतना ही कठिन इस बात को आत्मसात करना भी है ।

अगर आत्मसात करना इतना कठिन न होता तो आज की तारीख में न जाने कितने ही गुरुभाई इस तरह से भटकाव से न गुजर रहे होते ....!


एक बार गुरु से दीक्षा प्राप्त हो जाए और उसके बाद भी जीवन में भटकाव बना रहे तो यह कोई सामान्य बात नहीं है । जीवन में गुरु का आगमन ही इस बात की गारंटी है कि अब भटकाव खत्म होने का समय आ गया है । पर आखिर में ऐसा क्यों होता है कि हम बार - बार उसी बिंदु पर आकर खड़े हो जाते हैं जहां से यात्रा शुरु की थी? आखिर हम १ कदम भी आगे बढ़ पाने में सफल क्यों नहीं हो पाते हैं?


पिछली पोस्ट में हमने क्षेत्रज्ञ शब्द को लेकर चर्चा की थी । मैं नहीं जानता कितने लोगों ने इस शब्द को लेकर आत्ममंथन किया था लेकिन ऐसा करना उचित अवश्य है । मैं इस बात को बार - बार कहना चाहुंगा कि जो लोग साधना के पथ अग्रसर हैं, अगर वे आत्ममंथन की क्रिया नहीं करते हैं तो उनको ऐसा करना शुरु कर देना चाहिए । अगर हम साधक बनना चाहते हैं तो हमको एक सफल क्षेत्रज्ञ भी बनना होगा ।


बिना सफल क्षेत्रज्ञ बने, एक सफल साधक बन पाना भी मुश्किल ही होता है ।


अगर हम आध्यात्म के क्षेत्र में हैं और खुद पर नजर नहीं रख पाते हैं तो ये भी मानकर चलिए कि भगवती महामाया की माया हमको बार - बार एक ही झूले में झुलाती रहेगी और हम बार - बार स्वयं को वहीं पर पाएंगे जहां से यात्रा शुरु की थी ।

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