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सद्गुरु ब्रह्म तत्व साधना

Updated: Sep 1, 2023


जीवन का वह क्षण जब सदगुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है वह कभी भी आ सकता है । पर यह सब संभव होता है समर्पण से । अगर साधक समर्पण नहीं करता है तो फिर वो चाहे कितनी भी साधनायें कर ले, होना - जाना कुछ नहीं है । 2 - 4 अनुभव हो जायें तो वो अलग बात है पर साधनात्मक जीवन के मूल तथ्य को आत्मसात कर पाना असंभव ही होता है ।


वरिष्ठ गुरुभाई द्वारा प्रदत्त इस साधना का मैंने अपने जीवन में प्रयोग करके देखा है । और, देखा है इसके अद्भुत प्रभाव को भी । देखिये, हमारा जो प्रारब्ध है, हमें उसे भोगना ही पड़ता है पर, सद्गुरु अगर चाहें तो उसमें कुछ कमी की जा सकती है । पर इसके लिए अपने गुरु पर अगाध श्रद्धा, विश्वास और समर्पण होना चाहिए । मैंने भी अपने जीवन में जो भी पाया है वह सदगुरुदेव के आशीर्वाद से ही पाया । अपने व्यक्तिगत अनुभव को गुरु आज्ञा प्राप्त न होने के कारण नहीं लिख सकता क्योंकि कुछ रहस्य ऐसे होते हैं जिन पर पर्दा पड़ा ही रहे तो ही अच्छा है । जब आप स्वयं इस बात का अनुभव कर लेंगे तो शायद इस बात को समझ पायें ।


इस पोस्ट को वरिष्ठ गुरुभाई के शब्दों में ही लिखा जा रहा है । बहुत महत्वपूर्ण साधना है और जीवन को एक अलग ही आयाम प्रदान कर सकती है ।


ब्रह्म तत्व पर जितना लिखा जाए कम है । हजारों ग्रंथ रचे गए हैं इस तत्व पर लेकिन, ब्रह्म का व्याख्यान करना संभव नहीं है । क्योंकि व्याख्यान हमेशा अधूरा रहता है । शरीर का निर्माण पांच तत्वों से हुआ और, देवता तीन तत्वों से बने, इस लिए मनुष्य देवताओं से श्रेष्ठ माना जाता है । ऐसा इसलिए भी है क्योंकि देवता को मनुष्य अपनी भावना से प्रत्यक्ष कर लेता है और उसे वरदान देने को विवश कर देता है ।


जब आप किसी देव तत्व का चिंतन करते है तो शरीर में कुछ क्रियायें स्वतः ही उद्घटित हो जाती हैं और आप उस देव तत्व से एकीकरण कर लेते है और, उस देव तत्व का दर्शन होने लगता है । यह तब होता है जब आपका शरीर में दो तत्व और मिल जाते हैं, सद्गुरु तत्व और सत्य तत्व । गुरु दीक्षा लेने से आप सद्गुरु तत्व से मिल जाते हैं और सत्य तत्व है वो मंत्र जो गुरु प्रदान करते हैं।


इस तरह दो और तत्व जुडने से शक्ति से सायुज्य होता है और आप श्रेष्ठ श्रेणी में खड़े हो जाते हैं । इन दो तत्वों से ही शरीर के भीतर सातों शरीर क्रियाशील हो जाते है और, साधक ब्रह्म तत्व की ओर बढ़ जाता है । मगर ब्रह्म से साक्षात्कार सहज नहीं है, यह क्रिया ब्रह्म ऋषि के तप समान होती है और बिना गुरु कृपा के संभव नहीं है । इस लिए साधक को गुरु साधनाएं करनी चाहिए । ब्रह्म ऋषि सूर्य की किरण होता है और ब्रह्म स्वयं सूर्य। जब साधक ब्रह्म तत्व को पा लेता है तो ब्रह्म ऋषि की श्रेणी में आ जाता है। फिर उस के लिए कोई भी साधना कठिन नहीं रहती है । न ही देव शक्ति को पाने के लिए ज्यादा प्रयत्न करना पड़ता है । उस के एक आवाहन पर ही देवता को आना पड़ता है और जिस से भी जो कहता है उसे पूरा करना पड़ता है ।


शरीर में अंतर में अनेक ब्रह्मांड हैं और, उन को भेदना भी हर एक के वश में नहीं होता । एक ब्रह्मांड ऐसा है जहां सभी मंत्र देव ध्वनि के रूप में गूंजते है और शब्द का आकार अनंत है, उसका विस्तार भी अनंत । इसीलिए ब्रह्मवेत्ता उस ब्रह्मांड को भेदने में सक्षम होता है और उसे किसी भी साधना और सिद्धि के ज्ञान के लिए भटकने की जरूरत नहीं पड़ती । वह अंतर से ही सब कुछ पा लेता है और, उस लोक में अद्वितीय संतों से भेंट कर लेता है । इस प्रकार ज्ञान का नया स्रोत खुल जाता है ।


एक बार मेरे पास एक साधु आया, उस ने कहा मेरी विद्या मुझे भूल गई है और स्थिति ऐसी हो गयी है कि मैं कोई पुस्तक भी नहीं पढ़ सकता । समस्या गंभीर थी तो मैंने उसे अपने पास रखा और सद्गुरु जी से प्रार्थना की और, गुरु मंत्र का जप करते हुये कब अनंत ब्रह्मांड में ध्यान पहुंच गया, पता ही नहीं चला और, तेज सूर्य जैसा प्रकाश मेरे सामने था । कुछ सुनहरी आभा लिए हुये एक खास ध्वनि आ रही थी । ध्यान से सुना तो एक मंत्र गूंज रहा था जिससे वह प्रकाश अवतरित था और वहां का आनंद अकथनीय है । वहां न गर्मी का एहसास था न सर्दी का और, मन उसी में रमे जा रहा था । कब कितना टाइम हो गया पता ही नहीं चला । फिर धीरे धीरे वापस लौटा और उसे मैंने वह मंत्र करने को कहा । आज वह साधु एक श्रेष्ठ संत पदवी पर है । उसे कई साहित्य कंठस्थ हैं । महाभारत जैसा ग्रंथ पूरा याद है । यहां तक कि एक-एक पात्र का नाम भी उसे याद है, कोई भी किताब देखने की उसे जरूरत नहीं।


मैं जब उससे मिला तो उसने बताया कि एक बार यह मंत्र करते-करते मेरा सूक्ष्म शरीर अलग हो कर एक परम संत के चरणों में पहुंच गया जो कि नाम पर (मंत्र जप) बैठे थे । समाधि में थे और, मैं उनके पास बैठ गया । वहां जब मैंने ध्यान दिया तो वह संत अंदर ही अंदर यह मंत्र जप रहे थे । जब वह उठे तो उन्होंने इस मंत्र की महिमा का व्याख्यान किया जो कि अनंत है । धीरे - धीरे मुझे ज्ञान का स्वतः ही आभास होने लगा । मैं किसी पंचांग के बारे में नहीं जानता लेकिन पूरा पंचांग देख लेता हूं और, आनंद में रहता हूं । जब पूर्ण गर्मी होती है तब धूनी लगाता हूं लेकिन गर्मी का एहसास नहीं होता । जल धारा तब करता हूं जब पूर्ण सर्दी होती है लेकिन, सर्दी का एहसास नहीं ।

मेरा मानना है कि यह साधना किसी भी साधक की ज़िंदगी बदल सकती है । इसी लिए यह साधना लिख रहा हूं । यह सद्गुरु तत्व की ही साधना है । जब गुरु कृपा करते हैं तो गुरु स्वतः हाथ पकड़ कर ब्रह्म तत्व से साक्षात्कार करा देते हैं और वह उस सूर्य की किरण बन कर हमेशा चमकता रहता है । ज्ञान का स्रोत उस के अंतर में से स्वतः फूट पड़ता है । बस विश्वास के साथ सद्गुरु पूजन कर इस साधना को करें ।


आपको सुखासन में बैठ कर एक घंटा मंत्र जप करना है और, ध्यान दोनों भोहों के मध्य एकाकार करना है । धीरे धीरे वहां एक प्रकाश की ज्योति दिखाई देगी और, आप अपने शरीर की गहराई में उतरते चले जाएंगे । फिर एक त्रिकोण जो लाल रंग का होगा, उसके बाद हल्के पीले रंग का एक आयताकार सा आकार दिखाई देगा । आगे अनेक दृष्टांत आएंगे जो लिखने संभव नहीं हैं । आप स्वतः करके देखें । धीरे - धीरे आप अपने आंतरिक ब्रह्मांड से जुड़ जाएंगे और उस ब्रह्ममयी सद्गुरु तत्व से साक्षात्कार कर अपना जीवन संवार लेंगे ।


समय निर्धारित नहीं है फिर भी, इस मंत्र का सुबह के समय अभ्यास करना उचित है । एक घंटा जप करना है, माला की आवश्यकता नहीं है । आप इसे 21 दिन करें या आगे नियमित रखें, यह आपके ऊपर है । यह साधना स्वतः ही ब्रह्म ज्ञान का बोध करा देती है । अगर माला से करना चाहते हैं तो स्फटिक माला लें और 11 माला 21 दिन करे । गणपति पूजन और सद्गुरु पूजन अनिवार्य है ।


।। मंत्र ।।

।। ॐ सद्गुरु साक्षेभ्यो ब्रह्म तत्वाये नमः ।।


आप सब अपने जीवन में सदगुरुदेव का आशीर्वाद और उनकी कृपा प्राप्त कर सकें । इसी जीवन में ही ब्रह्म तत्व का बोध कर सकें, ऐसी ही सदगुरुदेव से प्रार्थना है ।


अस्तु ।

 

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