सद्गुरु ब्रह्म तत्व साधना
- Rajeev Sharma
- Jul 2, 2020
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Updated: Aug 7
जीवन का वह क्षण जब सदगुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है वह कभी भी आ सकता है । पर यह सब संभव होता है समर्पण से । अगर साधक समर्पण नहीं करता है तो फिर वो चाहे कितनी भी साधनायें कर ले, होना - जाना कुछ नहीं है । 2 - 4 अनुभव हो जायें तो वो अलग बात है पर साधनात्मक जीवन के मूल तथ्य को आत्मसात कर पाना असंभव ही होता है ।
वरिष्ठ गुरुभाई द्वारा प्रदत्त इस साधना का मैंने अपने जीवन में प्रयोग करके देखा है । और, देखा है इसके अद्भुत प्रभाव को भी । देखिये, हमारा जो प्रारब्ध है, हमें उसे भोगना ही पड़ता है पर, सद्गुरु अगर चाहें तो उसमें कुछ कमी की जा सकती है । पर इसके लिए अपने गुरु पर अगाध श्रद्धा, विश्वास और समर्पण होना चाहिए । मैंने भी अपने जीवन में जो भी पाया है वह सदगुरुदेव के आशीर्वाद से ही पाया । अपने व्यक्तिगत अनुभव को गुरु आज्ञा प्राप्त न होने के कारण नहीं लिख सकता क्योंकि कुछ रहस्य ऐसे होते हैं जिन पर पर्दा पड़ा ही रहे तो ही अच्छा है । जब आप स्वयं इस बात का अनुभव कर लेंगे तो शायद इस बात को समझ पायें ।
इस पोस्ट को वरिष्ठ गुरुभाई के शब्दों में ही लिखा जा रहा है । बहुत महत्वपूर्ण साधना है और जीवन को एक अलग ही आयाम प्रदान कर सकती है ।
ब्रह्म तत्व पर जितना लिखा जाए कम है । हजारों ग्रंथ रचे गए हैं इस तत्व पर लेकिन, ब्रह्म का व्याख्यान करना संभव नहीं है । क्योंकि व्याख्यान हमेशा अधूरा रहता है । शरीर का निर्माण पांच तत्वों से हुआ और, देवता तीन तत्वों से बने, इस लिए मनुष्य देवताओं से श्रेष्ठ माना जाता है । ऐसा इसलिए भी है क्योंकि देवता को मनुष्य अपनी भावना से प्रत्यक्ष कर लेता है और उसे वरदान देने को विवश कर देता है ।
जब आप किसी देव तत्व का चिंतन करते है तो शरीर में कुछ क्रियायें स्वतः ही उद्घटित हो जाती हैं और आप उस देव तत्व से एकीकरण कर लेते है और, उस देव तत्व का दर्शन होने लगता है । यह तब होता है जब आपका शरीर में दो तत्व और मिल जाते हैं, सद्गुरु तत्व और सत्य तत्व । गुरु दीक्षा लेने से आप सद्गुरु तत्व से मिल जाते हैं और सत्य तत्व है वो मंत्र जो गुरु प्रदान करते हैं।
इस तरह दो और तत्व जुडने से शक्ति से सायुज्य होता है और आप श्रेष्ठ श्रेणी में खड़े हो जाते हैं । इन दो तत्वों से ही शरीर के भीतर सातों शरीर क्रियाशील हो जाते है और, साधक ब्रह्म तत्व की ओर बढ़ जाता है । मगर ब्रह्म से साक्षात्कार सहज नहीं है, यह क्रिया ब्रह्म ऋषि के तप समान होती है और बिना गुरु कृपा के संभव नहीं है । इस लिए साधक को गुरु साधनाएं करनी चाहिए । ब्रह्म ऋषि सूर्य की किरण होता है और ब्रह्म स्वयं सूर्य। जब साधक ब्रह्म तत्व को पा लेता है तो ब्रह्म ऋषि की श्रेणी में आ जाता है। फिर उस के लिए कोई भी साधना कठिन नहीं रहती है । न ही देव शक्ति को पाने के लिए ज्यादा प्रयत्न करना पड़ता है । उस के एक आवाहन पर ही देवता को आना पड़ता है और जिस से भी जो कहता है उसे पूरा करना पड़ता है ।



