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Writer's pictureRajeev Sharma

सदगुरु कृपा विशेषांकः दरिद्रता निवारण

Updated: Aug 29, 2023

मनुष्य जीवन बहुत ही दुर्लभ है । कितना दुर्लभ है, इसको इस बात से समझा जा सकता है कि देव शक्तियां भी इस पृथ्वी लोक में अपना हक नहीं जता सकतीं । भले ही भगवान भोलेनाथ, भगवान विष्णु, माता जगदंबा इत्यादि परम शक्तियों की आराधना इस जगत में होती है और मनुष्यों को उनकी कृपा भी प्राप्त होती है लेकिन अगर भगवान शिव स्वयं किसी जगह पर आधिपत्य जताना चाहें तो वह उनके लिए भी संभव नहीं है ।


क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि फलाना प्रॉपर्टी भगवान शिव की है? या देवराज इंद्र ने कहीं पर कोई जगह खरीद ली है? या अग्निदेव ने स्वयं ही प्रकट होकर विभिन्न भोज्य पदार्थों का आनंद ले लिया?


शिव कण - कण में पूजे जाते हैं लेकिन यहां के भोगों का रस वह नहीं भोग सकते । वह ही क्यों, कोई भी देवी - देवता यहां के भोगों का रस नहीं भोग सकते । वह वरदान दे सकते हैं कि आप अपने जीवन में यह प्राप्त करें या वह प्राप्त करें लेकिन स्वयं के लिए वह ऐसा नहीं कर सकते ।


शायद इसीलिए सदगुरुदेव ने अपने एक प्रवचन में स्पष्ट कहा था कि आप ये न सोचिये कि सिर्फ आपको ही देवताओं की आवश्यकता है; देवताओं को भी आपकी उतनी ही आवश्यकता है । आप जो मंत्र जप करते हैं, यज्ञ करते हैं, आहुतियां चढ़ाते हैं वो आपके किसी काम की नहीं हैं, उसे तो केवल देवता गण ही प्राप्त और प्रयोग कर सकते हैं, बदले में वे आपके मनोरथ पूरा करने में मदद करते हैं । वो स्वयं यज्ञ नहीं कर सकते क्योंकि वो भोग योनि में हैं, कर्म योनि में नहीं । कारण यही है कि यह सुविधा केवल इस पृथ्वी लोक के निवासियों के लिए है ।


अगर आप इस पृथ्वी लोक के भोगों को भोगना चाहते हैं, ऐश्वर्य चाहतें हैं, इंद्रिय सुख चाहते हैं, दुःखों का अनुभव करना चाहते हैं, स्पर्श का अहसास करना चाहते हैं, बारिश की बूंदों में भीगने का आनंद प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको इस लोक में पैदा होना पड़ेगा, और कोई रास्ता है ही नहीं यहां प्रवेश का । बिना जन्म लिए तो आप यहां की एक इंच जमीन भी पर अपना अधिकार नहीं जमा सकते । भोगों को भोगना तो बहुत दूर की बात है । यहां पैदा होना पड़ेगा, यहां का जीवन जीना पड़ेगा, कर्म बंधन में बंधना होगा और आखिर में मरना भी होगा ।


इतना दुर्लभ है यह मनुष्य जीवन, इतना दुर्लभ कि देवता भी यहां आने को तरसते रहते हैं । लेकिन उनको भी यहां आने का सौभाग्य भगवत्कृपा से ही प्राप्त होता है ।


वैसे, अगर यह इतना ही दुर्लभ है तो हम आखिर क्यूं नहीं इसकी महत्ता समझते?


यही तो माया है प्रभु जी । हम यहां आने से पहले न जाने कितनी कसमें खाकर आते हैं कि एक बार मनुष्य शरीर मिल जाए तो यह करेंगे, वह करेंगे, ऐसे करेंगे, वैसे करेंगे । लेकिन जैसे ही जन्म लिया, माया घेरकर खड़ी हो जाती है । कभी माता - पिता के रुप में, कभी सगे - संबंधियों के रुप में, कभी पत्नि के रुप में तो कभी संतान के रुप में । वह हमको कभी इतना समय देती ही नहीं है कि हम माया से परे भी कुछ सोच सकें । कभी कुछ प्रयास व्यक्ति करे भी तो नौकरी, व्यवसाय, जीवन में सुखों की प्राप्ति, शत्रुओं से लड़ाई... इन सबसे ही छुट्टी नहीं मिलती । इनसे छुट्टी मिले तब तो कुछ करे बेचारा ।


रही - सही कसर समाज पूरी कर देता है ।


अलबत्ता प्रारब्ध वश अगर सद्गुरु जीवन में आ जाएं तो बात अलग है । फिर तो गुरु ही इस माया के साथ रहना भी सिखा देते हैं और साथ रहकर भी उससे अलग होना भी सिखा देते हैं । ठीक उसी प्रकार से जैसे मछली पानी में रहती तो है लेकिन पानी कभी नहीं पीती । उसकी त्वचा भी स्लाइम की मौजूदगी की वजह से भीगती नहीं है । गुरु भी एक सुरक्षा घेरा बना देते हैं अपने शिष्य के जीवन में । फिर शिष्य रहता तो इसी माया में ही है लेकिन उसमें लिप्त नहीं होता ।


इसलिए दोनों ही चीजें दुर्लभ हैं - मनुष्य शरीर का प्राप्त होना और जीवन में सद्गुरु का प्राप्त होना । अगर जीवित रहते ये दोनों ही चीजें प्राप्त हो जायें तभी जीवन पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है ।


अगर आप इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं तो एक बात तो पक्की है कि जन्म आपको मिल ही चुका है । इसलिए अगर जीवन में गुरु नहीं मिले हैं तो प्रयास कीजिए कि इसी जीवन में गुरु की प्राप्ति हो जाए और अगर, गुरु मिल गयें हैं तो जाकर उनके चरणों में समर्पण कर दीजिए, बाकी तो गुरु स्वयं ही रास्ता प्रशस्त करते हैं ।

 

दरिद्रता निवारण


दरिद्रता एक ऐसा अभिशाप है जो व्यक्ति को अंदर तक तोड़ देता है । एक दरिद्र व्यक्ति की समाज में कोई मान - मर्यादा नहीं रह जाती है । अपने भी पराये हो जाते हैं और जीवन अभिशप्त ही हो जाता है । बाकी ज्यादा क्या लिखना, जो इस अवस्था से गुजर रहा होता है, उसकी पीड़ा को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता ।


अक्सर देखा जाता है कि ऐसी परिस्थिति आने पर ज्यादातर गुरु भाई/बहिन लक्ष्मी साधनाओं पर केंद्रित हो जाते हैं लेकिन मेरी राय में दरिद्रता निवारण को लक्ष्मी प्राप्ति से जोड़कर देखना एक बहुत ही अजीब परिस्थिति है ।


दरिद्रता और लक्ष्मी जी को आप दो बहनें समझिये - अगर एक बहन घर में मौजूद है तो दूसरी बहन वहां रह ही नहीं सकती । ठीक इसी प्रकार से जब दरिद्रता जीवन में मौजूद हो तब लक्ष्मी जी का आगमन हो ही नहीं सकता ।

तो अगर जीवन में लक्ष्मी जी की प्राप्ति चाहते हैं तो पहले दरिद्रता का निवारण करना ही होगा । आपको वह प्रयास करने होंगे जिससे दरिद्रता आपके घर से, आपके जीवन से निकल जाए । उसके बाद ही आप भगवती लक्ष्मी जी का अपने जीवन में आवाहन कर सकते हैं ।


अब इस परिस्थिति को पहले समझा जाए कि दरिद्रता का आगमन जीवन में कब होता है । कुछ विशेष परिस्थितियां इसके बारे में स्पष्ट बता देती हैं जैसे कि आप मेहनत तो बहुत करते हैं लेकिन काम बनते - बनते रह जाते हैं, कारोबार में नुकसान बहुत हो जाता है, नौकरी में परेशानियां चल रही हैं इत्यादि ... इत्यादि । और, जब ऐसा होता है तो एक समय ऐसा भी आता है जब आपकी जेब में अगर 100 रुपये भी बच गये हों तो बहुत बड़ी बात बन जाती है ।

जब जीवन में ऐसी परिस्थितियां आती हैं तब घर - परिवार में भी उथल - पुथल मच जाती है । ज्यादातर केसों में देखा गया है कि सबसे पहले परिवार वाले ही साथ छोड़ते हैं । उस समय आपका कोई भी ज्ञान, विज्ञान, साधना, मंत्र जप, कोई भी विद्या किसी भी काम नहीं आती है । यार - दोस्त भी उसी समय किनारे हो जाते हैं । मुख्य चीज यह है कि उस कठिन समय में आप अकेले ही लड़ रहे होते हैं और कोई आपके साथ खड़ा हुआ (कम से कम) दिखाई तो नहीं देता है ।

ये दरिद्रता के आगमन का संकेत है । हालांकि असली लड़ाई तो उसके बाद शुरु होती है । आपके आर्थिक संसाधन सीमित हो जाते हैं । चूंकि यह सब घटनायें प्रारब्ध वश होती हैं और आपने अष्टक वर्ग की गणना के समय देखा था कि जब भी शनि-अष्टक वर्ग में शनि को 3 या उससे कम शुभ रेखायें प्राप्त होती हैं तब यह इस बात का संकेत होता है कि आपने चाहे जिस भी जीवन में गड़बड़ कार्य किये थे, उन सबके फलित होने का समय आ गया है ।


शनि न्याय के देवता हैं और उनकी नजरों से बचकर जाना लगभग असंभव ही है । तो, जब न्याय की घड़ी आती है तो शनि अष्टक वर्ग में शनि की शुभ रेखाओं में भी अप्रत्याशित कमी आती ही है और साथ में आती है जीवन में दरिद्रता । अगर दरिद्रता नहीं भी हो तो भी आपकी आर्थिक गतिविधियां न्यूनतम स्तर पर आ जाएंगी, ये पक्का है ।

हालांकि अन्य ग्रहों की स्थिति का भी प्रभाव रहता ही है । इसलिए सिर्फ शनि अष्टक वर्ग में 3 या उससे कम शुभ रेखायें मिलने से ही दरिद्रता आ जाएगी, नहीं कहा जा सकता । हो सकता है कि आपका शुक्र ग्रह हो और उसको 5 या 6 शुभ रेखायें मिली हों तो ऐसी परिस्थिति में भले ही जेब में पैसे कम रहेंगे, आर्थिक गतिविधियां न्यूनतम हो जाएंगी लेकिन फिर भी आपके कार्य के लिए धन की व्यवस्था होती रहेगी । ऐसा इसलिए कि शुक्र एक धन प्रदाता ग्रह है ।


इसलिए ज्योतिष को समूल रुप में देखने की आवश्यकता होती है ।


लोग कहते अवश्य हैं कि मैंने ऐसा क्या किया था जो मुझे ऐसा देखने को मिल रहा है, पर आप इतना तो विश्वास कर ही सकते हैं कि आपने किसी समय जरूर ऐसा कुछ किया था जिसका परिणाम आपको आज देखने को मिल रहा है । अच्छा है या खराब, आपके खुद से बेहतर कौन जान सकता है । अष्टक वर्ग ज्योतिष की गणनायें तो केवल एक प्रतिबिंब की तरह कार्य करती हैं - उन गणनाओं के माध्यम से आप जान पाते हैं कि ज्योतिष के माध्यम से आपके अपने जीवन में हो रही घटनाओं का सटीक मिलान किया जा सकता है ।


जब मेरे पास इस तरह की समस्या से ग्रस्त किसी गुरु भाई या बहिन का फोन आता है तो ज्यादातर समय मैं कोशिश करता हूं कि उनकी अष्टक वर्ग की गणनायें भी उनको भेजता ही हूं । इससे उनके दिमाग में एक बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि जब उनको यह पता चल जाता है, "ऐसा मेरे साथ ही क्यूं हो रहा है?"


अष्टक वर्ग की गणनायें एक व्यक्ति को जीवन की सच्चाई को स्वीकार करना सिखाती है ।


अगर आपने अभी तक अपना अष्टक वर्ग नहीं बनवाया है तो बनवा लीजिए । खुद भी बना सकते हैं, मैं तरीका सिखा दुंगा, आसान है । पर अभी बात करते हैं कि दरिद्रता चाहे जिस कारण से हो, उसे हम अपने जीवन से दूर कैसे कर सकते हैं?


अब अगर आप लक्ष्मी साधनाओं की बात करेंगे तो ये ऐसा ही होगा जैसे कचरे के ढेर पर अगरबत्ती रखकर उससे खुशबू आने की प्रतीक्षा करना । पहले दरिद्रता निवारण करिए, लक्ष्मी जी तो आपके अपने स्वयं के ही प्रयास से आ जाएंगी, हालांकि साधना करेंगे तो और भी अच्छा है ।


और, दरिद्रता जाएगी केवल एक ही तरीके से - वह है गुरु मंत्र के जप से ।


अब आप सोच रहे होंगे कि गुरु मंत्र तो हम रोज ही जपते हैं, फिर भी हमारे जीवन में दरिद्रता क्यों है?


इसका जवाब है कि अकेले गुरु को ही पूजेंगे तो कभी भी पूजन संपूर्ण हो ही नहीं सकता । जब भी पूजन करें तो माता जी का भी पूजन साथ में करें । तभी पूजन का फल सार्थक माना जाता है । और जब पूजन में माता जी के बिना पूर्णता नहीं मिल सकती है तो फिर गुरु मंत्र भी बिना माता जी के दरिद्रता से बाहर नहीं निकाल सकता ।

आप सबने क्रीं बीज की महत्ता को बारे में पढ़ रखा है - सबको पता है कि जब भी जीवन में कोई समस्या आए उस समय क्रीं बीज को जपने मात्र से रास्ते खुल जाते हैं । इसी क्रीं बीज को जब गुरु मंत्र के सायुज्य में जप किया जाता है तब ही जाकर जीवन से दरिद्रता का निवारण हो सकता है ।


महाकाली सायुज्य गुरु मंत्र


।। ॐ क्रीं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ।।

(Om Kreem Param Tatvaay Narayanaay Gurubhyo Namah)


इस मंत्र को सदगुरुदेव ने न जाने कितनी बार और न जाने कहां - कहां बताया था लेकिन लगता है कि साधक गण सदगुरुदेव की कही बातों को जल्दी भूल जाते हैं । क्रीं बीज सायुज्य गुरु मंत्र ही वह मंत्र है जो आपके जीवन से दरिद्रता के अभिशाप को दूर कर सकता है ।


तो, मेरे सभी भाई - बहन इस बात को अच्छे से जान लें कि लक्ष्मी साधनायें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण है, अपने जीवन से कचरे को हटाना । माता महाकाली के बीज मंत्र क्रीं से संयुक्त गुरु मंत्र ही वह शक्ति है जो हमारे जीवन से कचरे को हटा सकती है । अब कचरा चाहे दरिद्रता का हो, मन का हो, विषय -वासनाओं का हो या फिर जन्म-जन्मांतरों से कर्म बंधन का हो । इससे केवल माता महाकाली और गुरु - दोनों की संयुक्त कृपा से ही बाहर आया जा सकता है ।


इस मंत्र का कम से कम सवा लाख तो जप कर ही लेना चाहिए । दिन की संख्या 25 दिन से कम न रखें । ऐसा इसलिए कि इस मंत्र की ऊर्जा बहुत तीव्र है और जब यह हमारे शरीर से होकर गुजरती है तो एक - एक नाड़ी को शुद्ध करती हुयी गुजरती है । अगर साधक शरीर से तैयार नहीं है तो शरीर टूटने लगेगा और साधना ठीक से नहीं हो पाएगी । इसलिए बेहतर यही रहता है कि सुबह - शाम 21 - 21 माला जप कर लीजिए । आसानी से पूरा मंत्र जप भी हो जाएगा और आगे के रास्ते भी खुल जाते हैं । रास्ते खुलेंगे, इस बात की गारंटी है । इसलिए पूर्ण विश्वास और समर्पण के साथ इस मंत्र का जप करें ।


बाकी साधना के सामान्य नियमों का पालन करें । जैसे कि धुले हुए वस्त्र पहनें, सफेद, लाल या पीले रंग के वस्त्रों का चयन कर सकते हैं । गणपति पूजन और गुरु पूजन अनिवार्य है । गुरु मंत्र की 5 माला जप करके ही महाकाली सायुज्य गुरु मंत्र का प्रारंभ करें ।


संकल्प लें या न लें?


यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है कि आप संकल्प लेकर साधना करते हैं या बिना संकल्प लिए । मेरी राय यह है कि जब व्यक्ति दरिद्रता के भंवर में फंसा हो तब संकल्प इत्यादि का प्रयोग करना व्यर्थ है । संकल्प एक प्रकार से अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी होता है । संकल्प में कहीं न कहीं एक साधक का अहं भी छुपा होता है कि मैं इस साधना को संपन्न करके दिखा सकता हूंअगर आप कुछ करना ही चाहते हैं तो सदगुरुदेव से प्रार्थना करें, जब भी प्रार्थना करें, तब भाषा केवल आंसुओं की ही होनी चाहिए, शब्दों का प्रयोग निरर्थक है । और हर समय प्रार्थना न करें - प्रार्थना तब ही फलदायी होती है जब वह ह्रदय की गहराइयों से निकलती है ।


बाकी समय अपना ध्यान केवल मंत्र जप पर रखें ।


 

गणपति साधना


जब हम दरिद्रता के भंवर में फंसे हों, तब क्रीं सायुज्य गुरु मंत्र के साथ भगवान गणपति की भी साधना साथ ही करनी चाहिए । अब वह चाहे संकट नाशक गणपति स्तोत्र हो या फिर गणपति मंत्र हो, उसका भी पाठ साथ ही करना चाहिए । सदगुरुदेव ने इस संदर्भ में कहा है कि -


जय श्री गणेश ... काटो कलेश


अब जब सदगुरुदेव स्वयं ही इस बात को कह रहे हैं तो समझ जाइये कि जीवन में अगर उन्नति का श्रीगणेश करना है तब भी भगवान गणपति की कृपा पानी होगी । और, इसमें सदगुरुदेव प्रदत्त गणपति मंत्र यहां लिख रहा हूं जिसका मैंने अपने जीवन में प्रयोग करके देखा है और भगवान गणपति की कृपा का अहसास किया है -


।। वक्रतुण्डाय हुं ।।

(Vakratundaay Hum)


मंत्र बेशक बहुत छोटा है और बंदूक की गोली भी बहुत छोटी होती है - लेकिन आशय आप समझ गये होंगे । इस मंत्र को अपने दैनिक पूजन में अवश्य शामिल करें । मंत्र छोटा है, आसानी से 11 माला संपन्न की जा सकती हैं । और जब, क्रीं सायुज्य गुरु मंत्र का सवा लाख जप संपन्न हो जाए, तब इस मंत्र का भी कम से कम 50 हजार या सवा लाख जप अवश्य संपन्न कर लें ।


किसी भी मंत्र का सवा लाख जप करने के बाद कम से कम 150 माला अतिरिक्त जप कर लेना चाहिए । इसमें मार्जन, तर्पण और हवन का हिस्सा भी जप करने से पूरा हो जाता है । अगर हवन कर सकें तो बहुत उत्तम, अगर असुविधा हो तो जैसा कहा है, 150 माला अतिरिक्त कर लीजिए, उसी में सब हो जाएगा ।


अगर आप इतना कर लेते हैं और मंत्र के प्रति आपकी श्रद्धा है, गुरु के प्रति समर्पण है तो गुरु सत्ता की कृपा से ही आप दरिद्रता के बंधन से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त हो जाएंगे, अपने गुरु को साक्षी रखकर ये वादा मैं स्वयं आपसे कर रहा हूं और, मुझे पूरा यकीन है कि सदगुरुदेव अपने इस तुच्छ सेवक के इस वायदे का मान हमेशा रखेंगे ।


आप सब अपने जीवन में उन्नति कर सकें और जीवन में वह सब प्राप्त कर सकें जो आपका अभीष्ट है, ऐसी ही शुभेच्छा है ।


अस्तु ।

 

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