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सदगुरु कृपा विशेषांकः दरिद्रता निवारण

Updated: Aug 6

मनुष्य जीवन बहुत ही दुर्लभ है । कितना दुर्लभ है, इसको इस बात से समझा जा सकता है कि देव शक्तियां भी इस पृथ्वी लोक में अपना हक नहीं जता सकतीं । भले ही भगवान भोलेनाथ, भगवान विष्णु, माता जगदंबा इत्यादि परम शक्तियों की आराधना इस जगत में होती है और मनुष्यों को उनकी कृपा भी प्राप्त होती है लेकिन अगर भगवान शिव स्वयं किसी जगह पर आधिपत्य जताना चाहें तो वह उनके लिए भी संभव नहीं है ।


क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि फलाना प्रॉपर्टी भगवान शिव की है? या देवराज इंद्र ने कहीं पर कोई जगह खरीद ली है? या अग्निदेव ने स्वयं ही प्रकट होकर विभिन्न भोज्य पदार्थों का आनंद ले लिया?


शिव कण - कण में पूजे जाते हैं लेकिन यहां के भोगों का रस वह नहीं भोग सकते । वह ही क्यों, कोई भी देवी - देवता यहां के भोगों का रस नहीं भोग सकते । वह वरदान दे सकते हैं कि आप अपने जीवन में यह प्राप्त करें या वह प्राप्त करें लेकिन स्वयं के लिए वह ऐसा नहीं कर सकते ।


शायद इसीलिए सदगुरुदेव ने अपने एक प्रवचन में स्पष्ट कहा था कि आप ये न सोचिये कि सिर्फ आपको ही देवताओं की आवश्यकता है; देवताओं को भी आपकी उतनी ही आवश्यकता है । आप जो मंत्र जप करते हैं, यज्ञ करते हैं, आहुतियां चढ़ाते हैं वो आपके किसी काम की नहीं हैं, उसे तो केवल देवता गण ही प्राप्त और प्रयोग कर सकते हैं, बदले में वे आपके मनोरथ पूरा करने में मदद करते हैं । वो स्वयं यज्ञ नहीं कर सकते क्योंकि वो भोग योनि में हैं, कर्म योनि में नहीं । कारण यही है कि यह सुविधा केवल इस पृथ्वी लोक के निवासियों के लिए है ।


अगर आप इस पृथ्वी लोक के भोगों को भोगना चाहते हैं, ऐश्वर्य चाहतें हैं, इंद्रिय सुख चाहते हैं, दुःखों का अनुभव करना चाहते हैं, स्पर्श का अहसास करना चाहते हैं, बारिश की बूंदों में भीगने का आनंद प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको इस लोक में पैदा होना पड़ेगा, और कोई रास्ता है ही नहीं यहां प्रवेश का । बिना जन्म लिए तो आप यहां की एक इंच जमीन भी पर अपना अधिकार नहीं जमा सकते । भोगों को भोगना तो बहुत दूर की बात है । यहां पैदा होना पड़ेगा, यहां का जीवन जीना पड़ेगा, कर्म बंधन में बंधना होगा और आखिर में मरना भी होगा ।

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