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सदगुरु कृपा विशेषांकः सौन्दर्य बोध विशेषांक

अप्सरा - यक्षिणी रहस्य विशेषांक


जीवन में सौन्दर्य तत्व को नकारा नहीं जा सकता है । इसकी आवश्यकता ऐसे भी समझी जा सकती है कि अगर जीवन में सौंदर्य तत्व की कमी हो जाए तो आनंद ही समाप्त प्राय हो जाता है । इसकी पूर्ति के लिए लोग क्या - क्या नहीं करते, बाजार तो सौंदर्य प्रसाधनों से ही भरे रहते हैं, जगह - जगह ब्यूटी पार्लर आपको सजाने संवारने में लगे रहे हैं, सुंदरता का यह बाजार हजारों करोड़ों रुपये का है । इतने से भी बात नहीं बनती दिखी तो वैज्ञानिक लोग एक कदम आगे चलकर ऐसी - ऐसी दवायें और इंजेक्शन बना दिये हैं जिनको शरीर में इंजेक्ट करने से शरीर फिर से जवान नजर आने लगता है । उदाहरण के तौर पर बाजार में बोटॉक्स के इंजेक्शन भी आते हैं ताकि चेहरा जवान लगे । इससे कुछ समय के लिए चेहरा वास्तव में ही जवान लगने लग जाता है और, लोगों को लगता है कि उनको आत्मविश्वास हासिल करने में मदद मिलती है लेकिन क्या ये वास्तविक सौंदर्य है ? क्या इस सौंदर्य के बलबूते उनका आत्मविश्वास सदा के लिए लौट आया है? क्या इस नकली सुंदरता से जीवन को उच्च कोटि का बनाया जा सकता है? क्या इस तरह की सुंदरता के चक्कर में लोग कैंसर जैसी बीमारियों को आमंत्रण तो नहीं देने लग गये?


प्रश्न तो बहुत सारे हैं और दुनिया भेड़ चाल में मस्त है । सब सुंदर होने के लिए दौड़े जा रहे हैं, लेकिन वास्तविकता तो यह है कि इस प्रकार से सौंदर्य हासिल करने के चक्कर में सैकड़ों - हजारों लोगों ने अपनी जान गंवा दी है, कई के चेहरे तो लाइलाज समस्या से घर गये हैं और भी न जाने क्या - क्या ।


लेकिन भारतीय परंपरा में हमारे ऋषि मुनियों ने इसी तत्व पर बहुत शोध किये हैं और इस तत्व को जीवन में सदा - सदा के लिए कैसे प्राप्त किया जा सकता है, उस पर बहुत प्रामाणिक विचार प्रस्तुत किया है, साधनायें भी दी हैं । सदगुरुदेव प्रदत्त इस महत्वपूर्ण ज्ञान को प्रत्येक व्यक्ति और साधक तक पहुंचाना हम सबका कर्तव्य है । वरिष्ठ गुरुभाईयों द्वारा यह ज्ञान हमें प्राप्त हुआ और अब इस श्रृंखला को जारी रखने की जिम्मेदारी हम सबकी है ।


सौंदर्य के साथ ही कुछ विशेष तत्वों पर चर्चा बहुत आवश्यक है ।


Apsara
अप्सरा विग्रह

हमारा ये शरीर पंच तत्वों से बना है - भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश । इन तत्वों के बिना हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते । लेकिन इन तत्वों के अलावा भी कई और तत्व हैं जिनको देखा नहीं जा सकता लेकिन उनकी उपस्थिति महसूस की जा सकती है यथा - काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या इत्यादि । जब तक इन तत्वों की जीवन में उपस्थिति साधारण स्तर की रहती है तब ये अधिक घातक नहीं होते हैं । लेकिन जब इनकी मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है तब ये किसी अच्छे स्तर के साधक को भी धराशायी कर सकते हैं, एक साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या है ।


और, इन सभी में जिस तत्व से सबसे ज्यादा साधक भयभीत रहते हैं, वह है काम तत्व ।


वैसे तो सृजनात्मक रूप में काम तत्व की आवश्यकता सभी को है लेकिन एक साधक के जीवन में काम भाव बढ़ जाए तो काल शक्तियां साधना की ऊर्जा का क्षय पल भर में करा सकती हैं । ब्रह्मचर्य का खंडन होते ही खेल खत्म । कभी स्वप्नदोष के माध्यम से, कभी साधना काल में काम भाव की तीव्रता बढ़ जाने के कारण बिंदु आसन पर ही स्खलित हो जाता है ।


ऐसी स्थिति में साधना की ऊर्जा का क्षय हो जाता है और साधक को वापस वहीं से शुरुआत करनी पड़ती है । वैवाहिक जीवन में व्यक्ति धीरे- धीरे काम भाव पर नियंत्रण करना सीख जाता है लेकिन उनका क्या जो वैवाहिक जीवन में अभी आये ही नहीं हैं और अगर हैं भी तो जीवन में संतुष्टि नहीं हैं । ऐसे ही साधकों को जीवन में काम भाव पर नियंत्रण या विजय प्राप्त करने के लिए अप्सरा - यक्षिणी जैसी तीक्ष्ण सौंदर्य शक्तियों की आवश्यकता होती है ।


तंत्र के जानकार कहते हैं कि उच्च कोटि की तंत्र साधनाओं में सफलता के लिए भैरवी की आवश्यकता होती है जो साधक के लिए मातृस्वरूपा ही होती है । उसी प्रकार से अप्सरा और यक्षिणियां भी किसी साधक के लिए भैरवी स्वरूप में ही सहायक होती हैं जो कि साधक के काम भाव का नियमन करके बिंदु की ऊर्ध्वगति कैसे करनी है, ये सिखाती हैं । रही बात संबंध की तो, मित्र, सखा, सखी, मां, बहिन के रुप में भी जो स्नेह रूपी प्रेम - सौंदर्य किसी साधक या साधिका को प्राप्त होता है, वह अपने आप में बहुत ही विलक्षण होता है । हालांकि, एक सत्य यह भी है कि साधक द्वारा इनको प्रेयसी के रूप में सिद्ध करना कहीं ज्यादा आसान होता है और सदगुरुदेव ने तो इसका अनुमोदन भी कई बार किया है


इनका साहचर्य एक सामान्य साधक को भी असामान्य सफलता प्रदान कर सकता है । इनका स्पर्श साधक की मलिनता का नाश करके ऊर्ध्वगामी भावनाओं का संचार कर सकता है और जब साधक ऊर्ध्वागामिता की कला से युक्त हो जाता है तो उसका बिंदु वीर्य से ओजस् के रूप में परिवर्तित हो जाता है । ऐसे ही साधक वासना देह से उठकर मनोमय शरीर तक पहुंच पाते हैं और, ऐसे ही साधकों को उच्चस्तरीय साधनाओं में सफलता प्राप्त हो पाती है ।

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