आवाहन - भाग 7
गतांक से आगे...
सन्यासी के हाव-भाव से साफ़ नज़र आ रहा था कि वे सहमे हुए हैं, घबराये हुए हैं. मैंने मेरे साथ आए दूसरे व्यक्ति की ओर देखा, वे कुछ गुस्से में नज़र आ रहे थे, उनके इशारे से हम तीनों आगे की ओर चल पड़े ।
रास्ते में मुझे सन्यासी जी से पता चला कि वे हिमालय में कई साल तक साधनारत रह चुके हैं । सन्यासी महोदय के गुरूजी को साधना मार्ग में परमहंस निखिलेश्वरानंद जी का अत्यधिक सहयोग एवं मार्गदर्शन मिला था । सन्यासी महोदय की भी इच्छा थी कि वे भी निखिलेश्वरानंद जी के चरणों में बैठें और कुछ ज्ञान प्राप्त करें । अपने गुरुजी से ये प्रार्थना बार-बार करने पर उन्होंने श्री निखिलेश्वरानंदजी से आज्ञा प्राप्त की ।
सन्यासी महोदय को अपने गुरु के सहयोग से आखिरकार निखिलेश्वरानंदजी की छत्रछाया मिल ही गयी ।
निखिलेश्वरानंदजी ने सन्यासी महोदय को योग तन्त्र का अभ्यास कराना शुरू किया और आवाहन की उच्चतम क्रियाएं सिखाईं जो अत्यधिक श्रमसाध्य और गुह्य हैं । सन्यासी महोदय ने भी अत्यधिक परिश्रम के साथ इन आवाहन की साधनाओं को सिद्ध किया ।
एक दिन सन्यासी महोदय, निखिलेश्वरानंदजी से आज्ञा प्राप्त कर देशाटन पर निकले, लेकिन बीच में जहां कहीं भी सिद्धों का जमावड़ा होता तो वहीं रुक जाते, उनकी सिद्धियों को देख के सिद्धों के भी होश उड़ जाते । ऐसी गज़ब की सिद्धियां प्राप्त इस व्यक्तित्व का जीवन अब बदलने वाला था ।
घूमते-घूमते जब वह बंगाल के पास पहुंचे तब, उनकी भेंट एक अघोरी से हुई, अघोरी भी अघोर साधनाओं में निष्णात था। दोनों सिद्ध साधकों ने अपने-अपने क्षेत्र में मिले ज्ञान को आपस में बांटा और अघोरी ने अपनी सिद्धियो का प्रदर्शन किया। तब सन्यासी महोदय ने भी अपनी सिद्धियों को अघोरी के सामने रखा।
न जाने क्यों, लेकिन अघोरी को क्या सूझा, उसने कहा कि अगर बात सिद्धियों की हो तो तुम सिद्ध हो, लेकिन जब बात ज्ञान की हो तो तुम अभी कच्चे हो…सन्यासी को अपनी सिद्धियों पर अब तक कुछ विशेष गर्व या यूं कहा जाए कि अभिमान सा हो गया था…उसने कहा कि मेरी सिद्धियों के सामने अच्छे-अच्छे सिद्ध भी पानी भरते हैं। अघोरी को भी चमक आ गयी…अघोरी ने कहा अगर यही बात हैं तो जाओ, यहां से कुछ ही दूरी पर योगिनियों का कस्बा है, हिम्मत है तो वहां जाकर अपनी सिद्धियों का प्रदर्शन करो। अभी तुम बच्चे हो, वहां जाने का नाम तो बड़े-बड़े तांत्रिक भी नहीं लेते…। दिखाओ, अब अपनी सिद्धियां वहां जाकर….।
सन्यासी की आंखों में खून उतर आया, अपमान में झुलस के रह गया वह एक बार में ही…। और, बिना कुछ कहे, वह चल दिया उस सूखे पथरीले रास्ते पर उस कस्बे की ओर….।
अगर सन्यासी को पता होता कि उसका यही कदम उसके लिए एक भयंकर आफत लाने वाला है तो वह शायद अघोरी की बात मान लेता…लेकिन अब तक तो उसके कदम उसे काफी दूर तक ले चले थे….. (क्रमशः)
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