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सूक्ष्म शरीरः गुप्त मठ और सिद्ध क्षेत्र-6

Updated: Sep 3, 2023

आवाहन भाग-34

गतांक से आगे...


सदगुरुदेव ने मेरे प्रश्न के सबंध में वृहद उत्तर देते हुए कहा कि किसी भी सिद्ध क्षेत्र से सबंधित अधिष्टात्री देवी देवता की साधना उपासना करने के बाद उस क्षेत्र में खोज करने पर निश्चय ही परिणाम प्राप्त होते हैं।


आबू क्षेत्र– अर्बुदा, जम्मू कश्मीर – श्रीविद्या, मनाली तथा देहरादून – शिव शक्ति सम्मिलित, पंजाब के उत्तर क्षेत्र – आदिनाथ, वाराणसी – विश्वेश्वर तथा विशालाक्षी, बंगाल में उग्रतारा, असम में तथा उत्तरीपूर्व राज्यों में कामाख्या, त्रिपुरसुंदरी तथा महाकाली, गोरखपुर अमरकंटक तथा जबलपुर के क्षेत्र में अघोरेश्वर तथा योगिनी साधना, उडीसा में सप्त मात्रिका साधना, गिर क्षेत्र में भगवान शिव तथा वल्गा साधना, पश्चिमी घाट में हयग्रीव या कमला साधना, तथा श्रीशैल से सबंधित क्षेत्र में विशेष रुचि लेने वालों को भगवान मलिकार्जुन अर्थात शिव उपासना करनी चाहिए। इसके माध्यम से साधक को लाभ प्राप्ति की संभावनाए और भी बढ़ जाती हैं।


लेकिन साधक के लिए सर्व प्रथम यह बहुत ही ज़रुरी है कि वह अपने चेतना स्तर का विकास करे क्योंकि बिना आतंरिक चेतना के विकास के बाह्य चेतना से सबंध स्थापित करना संभव नहीं है। चूंकि सिद्ध क्षेत्र तो पूर्ण चेतना बद्ध होता है, जब व्यक्ति खुद ही आतंरिक चेतना विहीन होगा तो वह उस क्षेत्र की चेतना को अनुभव कर भी कैसे सकेगा?


आचार्य कणाद ने अपने समय में तत्व विषय में विभिन्न खोज कर उस विषय को एक नया आयाम दिया था। पञ्चतत्वों के सबंध में उनके ग्रन्थ कणादरहस्य तथा कणादसूत्र में उन्होंने अद्भुत व्याख्या दी है। सर्व पदार्थो के बंधारण में पञ्च तत्व ही मुख्य होते हैं, इस सिद्धांत के माध्यम से उन्होंने ब्रह्माण्ड के कई अज्ञात रहस्यों को जाना तथा जनमानस के मध्य में रखा।


निश्चित रूप से सभी स्थूल तथा सूक्ष्म के ऊपर यह सिद्धांत लागू होता ही है। मनुष्य के सबंध में भी यही तथ्य मूल रूप से है, लेकिन उनकी खोज का विषय तत्व सबंधित पदार्थ के बंधारण के ऊपर था अर्थात उनकी खोज का दायरा तत्व तथा उसका कार्य किस प्रकार से किसी भी पदार्थ की या जीव के बंधारण में या उनके बाह्य तथा आतंरिक संरचना में कार्य करता है, यह था।


लेकिन सभी पदार्थ में यह पञ्च तत्व ही मात्र है यह बात अधूरी है। क्योंकि सभी पदार्थ बंधारण या जीव का चेतना स्तर अलग-अलग होता है। मनुष्य में चेतना स्तर का आधार मात्र पञ्च तत्वों पर नहीं बल्कि बारह प्रकार के तत्वों से होता है। जहां पर बात चेतना स्तर की हो या आध्यात्म की हो या आतंरिक ब्रह्माण्ड का बाह्य ब्रह्माण्ड से संपर्क स्थापित करने की, वहां पर साधक के बारह तत्वों का योग्य संचारण नितांत आवश्यक है तथा यह प्रथम अनिवार्य प्रक्रिया है। पञ्च तत्वों के अलावा ये तत्व है मानस तत्व, आत्म तत्व, प्राण तत्व, समयतत्व, प्रकाशतत्व, ओज़ तत्व, तथा जीव तत्व


यह सब सूक्ष्म तत्व हैं। इन सब में भी अलग अलग तत्व समाहित है। मन ठोस नहीं है, मन सूक्ष्म है लेकिन सूक्ष्म की संरचना में भी कोई न कोई तत्व तो चाहिए ही, इस लिए जो तत्व, मन की संरचना का मुख्य आधार है उसे, मानस तत्व कहा गया है। इसके अलावा प्राण संरचना से सबंधित प्राण तत्व, समय के बिना मनुष्य की कल्पना भी संभव नहीं है, मनुष्य के आतंरिक तथ्य बाह्य समय को जोड़ने वाला तथा समय का बोध देने वाला समय तत्व है। प्रकाश या अंधकार या जीव के सभी तत्वों को आतंरिक या बाह्य रूप से  अनुभव करने के लिए उसका दृश्यमान होना ज़रुरी है तथा यह जो निहारने की प्रक्रिया के लिए जो अनिवार्य तत्व है वह प्रकाश तत्व है, ओज तत्व विशुद्धता का प्रमाण है जो कि मनुष्य को आतंरिक तथा बाह्य रूप से स्थूल तथा सूक्ष्म शुद्धि या अशुद्धि विहीन मूल बंधारण की तरफ ले जाने वाला तत्व है। तथा जीव तत्व या जीव द्रव्य शरीर में निहित धातुओं का विशुद्ध स्वरुप है जो कि मनुष्य में जीवन की तथा सृजन की अनन्य क्षमता प्रदान करता है।


पुरातन काल में महर्षि कपिल ने १२ प्रकार के तत्वों से सबंधित क्रियाएं प्रदान की थी जो कि आज लुप्त हैं लेकिन साधक के लिए यह नितांत आवश्यक है कि साधक इन तत्वों को जागृत करे।


सभी सिद्ध क्षेत्रों से सबंधित कल्पों में भी ऐसी ही साधनाएं वर्णित हैं जिसके माध्यम से साधक को सहायता की प्राप्ति हो सके। लेकिन साधक को सर्व प्रथम अपने चेतना स्तर के विकास के लिए तत्व संचार से सबंधित साधना क्रम करना चाहिए।


इसके लिए साधक को एक या चार सोमवार को यह प्रक्रिया करनी चाहिए। साधक को हविष्यभोज (भोजन में मात्र दूध तथा चावल को ही लेना) करना चाहिए तथा पारद शिवलिंग पर त्राटक करते हुए एक घंटे तक ‘शिवशिवाय नमः’ का जाप करना चाहिए। यह कार्य रात्रि में एकांत में होना चाहिए। इसके साथ ही साथ साधक को यह प्रक्रिया करने के बाद जितना संभव हो, अघोर मंत्र का जाप करना चाहिये । यह प्रक्रिया भी साधक को त्राटक करते हुए करनी चाहिए। साधक को उत्तर दिशा की तरफ बैठ कर यह क्रिया करनी चाहिए तथा सफ़ेद वस्त्र और आसन का प्रयोग करना चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार की माला या दूसरे पदार्थों की कोई अनिवार्यता नहीं है। पारद शिवलिंग पर त्राटक करते हुए जप करने पर साधक में तात्विक संचलन होने लगता है जिसके फल स्वरुप शरीर के सभी तत्व जागृत होते है।


इस प्रकार के तत्व जागृत होने पर व्यक्ति कई प्रकार की अलौकिक अनुभूतियों से परिपूर्ण होता है तथा साधक को कई परालौकिक अनुभवों की प्राप्ति होती है। विशुद्ध पारद निश्चित रूप से सभी तत्वों का सार तत्व ही है। क्योंकि जो शिव का जीव द्रव्य है, जिसके माध्यम से शिव सृष्टि का कार्य, नियमन, संचलन करते हों, जो सर्व उत्पत्ति का केन्द्र बिंदु है, उसके ऊपर त्राटक के साथ जप करने पर निश्चय ही सर्व सिद्धि की प्राप्ति होती ही है।


पारद शिवलिंग मात्र शिव स्वरुप न हो कर शिव शक्ति का सम्मिलित स्वरुप है। इस प्रकार साधक को शिव तथा शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करने पर विभिन्न कल्पों की सिद्धि प्राप्त करना सहज हो जाता है। यूं भी अगर साधक इस साधना को संपन्न करता है तो साधक को निश्चित रूप से कई प्रकार के साधनात्मक लाभों की प्राप्ति होती है।


(क्रमशः)...

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