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सूक्ष्म शरीरः गुप्त मठ और सिद्ध क्षेत्र-3

Updated: Sep 3, 2023

आवाहन भाग-31

गतांक से आगे...


निश्चित रूप से इस बार मेरी प्रार्थना में कौतुहल की जगह पर जिज्ञासा थी, ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रार्थना थी, तभी तो रात्रि काल में फिर से वही हुआ, अचेतन हो कर शरीर कुछ ही क्षणों में तन्द्रा अवस्था को न जाने कैसे प्राप्त हो गया और, वही शुभ्र धवल वस्त्र धारी महात्मा को अपने सन्मुख खड़े हुए पाया। उन्होंने सीधे ही अपनी बात शुरू की।

मां दुर्गा की प्रत्यक्ष कृपा प्राप्ति के लिए जो क्रम है वह असहज और कठिन है। उनकी कृपा प्राप्ति के लिए सर्व प्रथम साधक को यक्षिणियों तथा ६४ योगिनियों से सबंधित साधन प्रयोग करने चाहिए, इस प्रकार देवी की सहचरी शक्तियों का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष साहचर्य प्राप्त होने पर भी सिद्ध क्षेत्रो से सबंधित ज्ञान प्राप्त हो जाता है। लेकिन यक्ष सबंधित साधनाएं भी वास्तव में गूढ़ है, योगिनियों में भी ६४ योगिनी अधिष्ठात्री है तथा यह तीक्ष्ण देवियां है, इनकी साधना सामान्य साधक के लिए असहज ही है, इसलिए प्रारंभ में अन्य योगिनीओं की साधना करने पर फल की प्राप्ति संभव हो सकती है।

पर, एक नूतन साधक के लिए सर्वोत्तम मार्ग यह है कि वह महासिद्ध मंत्र का प्रयोग करे, यह साधन सहज है तथा कोई भी व्यक्ति इसे कर सकता है। यह साधन तुम्हे खुद ही प्राप्त करना होगा। मां तुम्हारा कल्याण करे, इतना कह कर महात्मा सहज भाव से अदृश्य हो गए और पीछे छोड़ गए न जाने कितने ही सवाल।


विचारों के आडोलन विडोलन की मौजों में बहता हुआ पता नहीं कब तक सोचता रहा । सुबह हुई तब सोचा इस साधन को ही ढूंढ़ा जाए। कई तंत्र ग्रंथो में खोज के बाद भी मैं इस प्रकार का विवरण कहीं भी प्राप्त नहीं कर पाया । दिन धीरे धीरे निकलते गए और जैसे - जैसे साबर साधना तथा आवाहन क्रियाओं का ज्ञान मिलता गया वैसे-वैसे ही सब धूमिल होता गया। जैसे किताब का एक पन्ना पढ़ लेने पर भूतकाल बन जाता है और नया पन्ना वर्तमान बन कर उसे दबा देता है, ऐसा ही कुछ जीवन की किताब में भी होता है।


पुरानी यादें अब पुरानी सी हो गयी और कुछ साल निकल गए। एक दिन ऐसे ही किन्ही साधक का अनुभव ध्यान में आया, महाशय किसी तांत्रिक पाण्डुलिपि के आधार पर सिद्ध क्षेत्र की खोज में गए थे तथा उन्होंने आश्चर्यपूर्ण और रहस्यमय रोचक स्व अनुभूति की अभिव्यक्ति की थी। आखिरी शब्दों में उन्होंने उस सिद्ध क्षेत्र के संरक्षक धवल वस्त्र धारी, सफ़ेद लंबी दाढ़ी तथा बाल वाले सिद्ध महात्मा से अपनी मुलाकात का विवरण दिया कि किस प्रकार वे अचानक से प्रकट हुए तथा उनको सिद्ध क्षेत्रों की खोज के लिए ज्ञान दिया। वह विवरण अक्षरतः वैसा ही था जैसा मैंने उस सिद्ध के बारे में तथा उनकी वाणी के बारे में अनुभव किया था।


अचानक ही सारी चीजें एक-एक करके मेरे मानस में आने लगी। अपनी जिज्ञासाओ के दबाव में आकर फिर खुद को रोक नहीं पाया, सदगुरुदेव से इस सबंध में पूछना आवश्यक नहीं अब अनिवार्य सा था। जैसे जैसे सदगुरुदेव ने मेरी जिज्ञासाओं का समाधान किया वैसे-वैसे सिद्ध जगत के अनेकों आश्चर्यचकित करने वाले तथ्यों के सबंध में पता चला।


सिद्ध क्षेत्र क्या है?


मनुष्य के ज्ञान की सोच की एक सीमा होती है, अगर वह उस सीमा के दायरे से बाहर निकले तो अनंत रहस्य से उसका सामना होता है। लेकिन वो एक कुंए के मेढक के सामान जीवन जीता है। जो सिर्फ उतनी ही दुनिया को मानता है जिसे वो देख रहा है। ऐसे कई क्षेत्र, प्रदेश या भूमि है जो कि सामान्य जन के मानस की कल्पना से परे हैं। ऐसे कई विशेष स्थान है जो कि अगोचर शक्तियों से आबद्ध हैं, जिन पर मात्र वातावरण का प्रभाव नहीं है, जहां पर एक निश्चित शक्ति या शक्तियों का प्रभाव है।


उससे बद्ध वह सीमा क्षेत्र की ऊर्जा सामान्य मनुष्य की कल्पना से कई गुना ज्यादा हैं, वहां का चेतना का स्तर इस भौतिक जगत की चेतना स्तर से कम से कम २१ गुना ज्यादा होता है। ऐसे ही विशेष स्थानों को सिद्ध क्षेत्र कहते हैं। सब प्रकार के स्थान को यूं तो सिद्ध क्षेत्र ही कहा जाता है लेकिन दरअसल ऐसा नहीं है। इसके भी कई प्रकार है। मैंने जिज्ञासा भाव से उनके सामने देखा...


मेरे मुख पर आ रहे हावभाव को देख कर उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाई...


चेतन स्थान

सिद्ध स्थान

दिव्य स्थान


यह तीन मुख्य प्रकार हैं।


चेतन स्थान वह है जहां पर सामान्य जगत से ज्यादा प्राण उर्जा और संस्पर्षित चेतना स्तर हो। यह कोई भी स्थान हो सकता है. कई स्थानों पर जाने पर मन अपने आप खुश हो जाता है। पूर्ण प्राकृतिक जगह, सिद्धों के समाधि स्थल, तपस्या भूमि, नित्य हवन होने वाले स्थान, स्मशान इत्यादि सभी चेतन स्थान हैं। ऐसे स्थानों पर जाने पर व्यक्ति अपने आप में अंदर डूबता जाता है। उसे घर, परिवार, समाज या अपने भौतिक स्तर की पहचान नहीं रहती, वह मात्र और मात्र अपने स्व के विचारों में खोने लगता है ।


धीरे धीरे अपने अंदर ही स्व के बारे में मंथन करने लगता है। चेतन स्थान में सभी व्यक्तियो के साथ निश्चित रूप से ऐसा होता ही है, क्योंकि वहां पर चेतना का स्तर सानी स्थान से ज्यादा होता है और वही चेतना व्यक्ति की अन्तःश्चेतना के स्तर का विकास कर देती है, इस लिए व्यक्ति अपने अंदर उतरने लगता है तथा स्व चिंतन में रत होने लगता है। चेतन स्थानों पर ज्ञान शक्ति का विकास होता है, लेकिन जैसे ही वह उस स्थान से बाहर निकलता है, वह अपने सभी पुराने विचारों में वापस लिप्त हो जाता है क्योंकि वह स्तर वापस से सामान्य हो जाता है।


लेकिन वह चिंतन, वह मानसिकता जो व्यक्ति उस समय अनुभव करता है, वह उस स्थान से बाहर आने पर लुप्त हो जाती है, उसको कैसे स्थायी बनाया जाए? प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा ऐसी स्थिति को स्थायित्व देना इतना आसान नहीं है, एक औघड़ अपना पूरा जीवन स्मशान में बिता देता है। उसका मानस उस जगह में ऐसा क्या देखता है कि उसे फिर आलीशान महल भी रास नहीं आते? क्योंकि उसे अपने विचारों में स्थायित्व की प्राप्ति उस जगह पर मिलती है।


एक निश्चित साधना स्तर के बाद व्यक्ति की आंतरिक चेतना का पूर्ण विकास उस स्तर तक हो जाता है कि फिर उसे स्व में डूबने की स्थिति डॉवाडोल न हो कर स्थायी बनी रहती है। लेकिन तब तक उसे इस प्रकार से स्थान विशेष का सहारा ले कर चलना ही होता है। शुरुआत में साधक को ऐसे स्थानों पर कई-कई बार जाना चाहिए ।


जब भी व्यक्ति ऐसे स्थानों पर जाए और अपने अंदर ऐसी स्थिति को महसूस करे, विचारों में चेतना का विकास अनुभव करे तब ऐसे स्थानों पर मूलतः तारा, नील सरस्वती, सरस्वती, श्रीकुल की सभी शक्तियां, सत् तथा रजस् भाव से युक्त सभी देवी देवता के स्वरुप का चिंतन, मनन, ध्यान या संभव हो तो मंत्र का जाप करना उत्तम है।


सिद्ध स्थान वो स्थान है जिसमें यह स्तर सामान्य रूप से २१ गुना ज्यादा हो। इस स्थान को सिद्ध स्थान तथा इसे पूरे क्षेत्र को सिद्ध क्षेत्र कहा जाता है। ऐसे स्थान पर व्यक्ति मात्र विचारों से ही नहीं अपनी क्रियाओं के माध्यम से.........


(क्रमशः)

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