आवाहन भाग - 25
मेरे सवालों के जवाब अब मुझे खुद ही प्राप्त करने थे और इस लिए अब मेरे पास आवाहन का ही सहारा था; त्रिनेत्र त्राटक और सूक्ष्म जगत की प्रक्रिया के माध्यम से मैंने एक बार फिर से सूक्ष्म जगत में निवास करने वाली दिव्य आत्माओं से संपर्क किया।
इसी प्रक्रिया में, मैं एक दिव्यात्मा के परिचय में आया, मन को तसल्ली हुई कि इनके पास मेरे सवालों का जवाब जरुर होगा। फिर रोक नहीं पाया मैं अपने आपको एक क्षण भी, बोलने के लिए तो कुछ था ही नहीं, हमेशा की तरह महात्मा सब कुछ जानते थे। मैंने पूछा, "आखिर क्या कहना चाहती थी वो मुझसे"? मेरे इस अबोध सवाल पर महात्मा थोड़ा मुसकुराए, फिर बोले कि तुम्हें शायद ज्ञात नहीं कि साधना और तपस्या की ललक पृथ्वी लोक के मनुष्यों के अलावा दूसरे लोक के कई जीवों में भी होती है।
यक्ष, किन्नर आदि लोक लोकान्तरों का तो साधना के प्रति बराबर आकर्षण रहा ही है लेकिन भोग प्रवृत्ति के कारण ये जीव साधना संपन्न नहीं कर पाते, इनमें विलास प्रवृति ज्यादा होती है इस लिए साधना संपन्न करना सभी के बस की बात नहीं है। उच्चतम भोग प्राप्त करने के लिए मनुष्य को साधना करनी पड़ती है जो कि इनके लिए सहज सुलभ है। लेकिन इनकी यही भोग प्रवृति की लोलुपता इनको बाध्य करती है भोग से आगे जा कर मोक्ष की प्राप्ति में। फिर भी कुछ ऐसे जीव होते है जिनका आकर्षण भोग से ऊपर उठने की ओर भी होता है, इसीलिए समय - समय पर कुछ ऐसे जीव पृथ्वी लोक पर मनुष्य बन कर जन्म लेते हैं और उनके अंतर्मन में दबी हुई चेतना उनको साधना के मार्ग पर गतिशील करती है।
मृत्यु उपरांत जब वह इस योनि से मुक्त होते हैं, तब उन्हें अपने मूल रूप का बोध होता है। इसी प्रकार पृथ्वी पर कई ऐसे मनुष्य होते है जो साधना मार्ग पर होते हैं लेकिन उनको ये ज्ञात नहीं होता है कि वह किसी अन्य लोक से हैं, क्योंकि मनुष्य योनि में जब गर्भ में प्राण का संचार होता है तब उसकी चेतना पूर्ण रूप से जागृत होती है लेकिन गर्भ के बाहर आते ही उनकी इस चेतना का लोप हो जाता है।
और, इसके मूल में जो तत्व है वह है असुरक्षा या भय। स्मृति का भय से बहुत ही लेना देना है, भय स्मृति को बढ़ा या घटा सकता है, भयभीत मनुष्य कई बार संज्ञा शून्य भी हो जाता है तो कई बार उसे कई सालों पुरानी बातें याद आ जाती हैं, मनुष्य योनि की यह प्रक्रिया अंतर्मन के द्वारा प्रेरित होती है, इस लिए गर्भ में उसे सुरक्षा का आभास होता है, जन्म के समय शरीर में असुरक्षा का बोध जीव में भय का संचार करता है जिससे कि अंतर्मन उसकी पूर्व स्मृति शक्ति का निषेध कर देती है।
लेकिन प्राणतत्व, मन तत्व और आत्म तत्व जब इस योनि से मुक्त होते है तब वापस सुरक्षा बोध के माध्यम से चेतना शक्ति को जागृत कर स्मृति शक्ति को मूल रूप से कार्यरत कर देती है, इस लिए व्यक्ति को अपने जीवन के सभी बोध होने लगते है।
तुम जिससे मिले थे वह भी कभी इसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्य योनि से साधना कर चुकी है। लेकिन उसने तुम्हें वचन मांगा था इसलिए तुम्हारा अनुभव वहीं पर समाप्त कर दिया गया था।
स्वभावतः धारण किये हुए शरीर का आत्म तत्व पर बोध का संचार करता है, इसलिए धारण किये हुए शरीर के मुताबिक़ व्यक्ति के लक्षण और स्वभाव भी इसी प्रकार का हो जाता है, इसी लिए योगी उच्च कुल तथा साधनात्मक वातावरण वाले गर्भ में जन्म लेना ज्यादा पसंद करते है जिससे कि उनको आत्मतत्व की अशुद्धियों को दूर करने में ज्यादा समय ना लगे। या फिर जब परकाया प्रवेश किया जाता है तब भी किसी मृत योगी का या विशेष बोध वाले शरीर का चयन उच्च योगी करते है। साधना में पूर्ण बोध ना होने पर जब बाहरी जीव अपनी मूल योनि में वापस आते हैं तो स्वभाव से ही उनमें उनके पूर्व गुण कुछ अंश के रूप में ही सही लेकिन वापस आ जाते हैं, भोगजन्य देव योनि के जीव भी इससे छूट नहीं सकते, इस लिए उनमें भी भोग की वृति वापस आ ही जाती है।
वस्तुतः इसका शुद्धिकरण जरूरी है वरना एक बार ये संस्कार हावी हो जाएं तो फिर से नए रूप में साधना करनी पड़ती है, इस लिए गुरु की महत्ता निर्विवाद रूप से स्वीकार की जाती है, गुरु अपने शिष्य को इन चक्करों से बचा कर उसका मूल लक्ष्य बार - बार उसके सामने रखते है। ऐसा कई जन्मों तक होता रहता है, जब तक कि वह पूर्ण बोध को प्राप्त ना कर ले। जिसके बाद वह शरीर के बोध को या लक्षण को अपने ऊपर हावी ना होने दे।
इसी लिए साधक बार - बार जन्म ले कर अपना मार्जन करता रहता है और, गुरु उसको इस कार्य में मार्ग दिखाते ही रहते हैं। भले ही साधक इन सब बातों से अनजान हो लेकिन, उसके अंतर्मन में ये तथ्य हमेशा विद्यमान रहता है और, इसी के कारण जीवन में सब कुछ होते हुए भी वह अपने मूल तत्व को तलाशता रहता है और, एक दिन साधना मार्ग की और गतिशील हो ही जाता है।
यह सारी प्रक्रिया सिद्ध गुरु के माध्यम से होती है और, एक सिद्ध गुरु ही ऐसी प्रक्रिया कर सकता है। और इन सब कार्य में स्वः लोक के सिद्ध सहायता करते है।
(क्रमशः)
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