आवाहन भाग - 24
गतांक से आगे...
मैंने पूछा, "कौन सा लोक"? उत्तर में उस देव कन्या ने मुझे जो बताया वह योग तंत्र जगत का एक गुप्त पृष्ठ था। उसने मेरे प्रश्न का जवाब देते हुए कहा “वैश्वानरलोक”।
नाम सुनते ही मैं एक बार के लिये अतीत के गर्भ में चला गया, सदगुरुदेव ने जब कुण्डलिनी तथा चक्रों के बारे में बताया था तब उन्होंने इस लोक का जिक्र किया था । कुण्डलिनी चक्रलोक स्थान में जो तीसरा लोक है वह यही लोक है।
निश्चय ही कुण्डलिनी एक अत्यधिक गूढ़ विषय है जिसे समझना बहुत ही कठिन है, इस लोक को आत्म शक्ति लोक भी कहा जाता है। यह एक शुभ्र लोक है जहां पर उच्चकोटि के योगी अपने देहत्याग उपरांत अपने सूक्ष्म या दिव्य शरीर के माध्यम से निवास करते है ।
वैसे भी कई तंत्र ग्रंथों में इस लोक का जिक्र यदा कद मिल ही जाता है। कुण्डलिनी के सप्त चक्रों का संबंध सात लोकों से है - वे सप्त लोक है भू, भुवः, स्वः, मः, तपः, जन और सत्यं। वैश्वानर लोक ही ये तीसरा लोक अर्थात स्वः लोक है, जिसका सबंध मणिपुर चक्र से है।
शरीर में समस्त प्राणों का संचार और नियंत्रण मणिपुर चक्र से होता है। योगी जब इस चक्र को पूर्ण रूप से उसके वर्णों के साथ साध कर उसका भेदन कुण्डलिनी से कर चक्र को पूर्ण विकसित कर देता है तब उस सिद्ध योगी का सबंध इस लोक से हो जाता है। वस्तुतः इस लोक में योगी अपनी जरूरत के मुताबिक़ खुद ही आवश्यक चीजों का सृजन कर लेता है। फिर वह चाहे अपनी साधना स्थली हो या पेड़ पौधे या ज़मीन। इस प्रकार उनकी गतिशीलता किसी भी रूप से बाधक नहीं होती।
हेमऋता ने अपनी बात आगे बढ़ाई, “इस लोक में महासिद्धों में ज्यादातर सिद्ध वे होते है जिन्होंने समाधि ले ली हो और वह फिर जन्म लेने के लिए बाध्य नहीं हो। ऐसी दिव्य-आत्मायें साधकों की सदैव मदद करती हैं। साधक के साधनात्मक अनुभव में कई बार इन सिद्धों की कृपा ही होती है। अगर कोई साधक बार बार कोशिश करता है और किसी सामान्य चूक के कारण से उसे सफलता नहीं मिल रही होती है तब उनको प्रोत्साहन के लिए कई प्रकार के अनुभव इन्हीं सिद्धों के द्वारा साधकों को कराये जाते हैं, जिससे कि साधक की मन: शक्ति बनी रहे या विकसित हो। तुम्हारे यहां पर आगमन का भी यही रहस्य है।
मेरे सामने से रहस्य का पर्दा उठ गया था। मैंने पूछा कि तुम कौन हो? और, ये सब कैसे जानती हो? उस देव कन्या का चेहरा अचानक गंभीर हो गया, उसने कहा कि मैं तुम्हें इसके बारे में बता सकती हूं लेकिन तुम्हें एक वचन देना होगा। मैंने उससे पूछा, "क्या"? उसने जवाब दिया कि पहले वचन दो कि मैं जैसा कहती हूं वैसा करोगे।
एक क्षण लगा मुझे यह सोचने में कि इसे वचन दूं या नहीं । लेकिन इससे पहले कि मेरे मुख से हां शब्द का उच्चारण हो, मुझे जोर से खिंचाव महसूस हुआ और मेरा सूक्ष्म शरीर वापस मूल शरीर से जुड़ गया। वापस पृथ्वी लोक पर था मैं। मुझे समझते देर नहीं लगी कि स्वः लोक के सिद्धात्मा जिन्होंने मुझे यह अनुभव कराया था, यह उनकी ही मर्जी थी कि मेरा अनुभव यहीं पर समाप्त हो जाए।
निश्चय ही स्वः लोक की प्राप्ति अपने आप में एक दुर्लभ सिद्धि है। आगे तंत्र के अभ्यास में मुझे पता चला कि आवाहन की कई प्रक्रियाएँ है, जिनसे इन सिद्ध आत्माओं का आवाहन किया जा सकता है या उनसे संपर्क स्थापित किया जा सकता है। कई महासिद्ध इस लोक में सशरीर विचरण करते हैं। ऐसे दिव्य सिद्धों के संपर्क में आना अपने आप में सौभाग्य ही है। लेकिन इनसे संपर्क स्थापित करने के लिए आवाहन का सहारा नहीं लिया जाता क्योंकि मंत्र के आधीन करके किसी सिद्ध को बुलाना योग्य नहीं कहा जा सकता। उनका एक एक क्षण अमूल्य होता है। कई बार तंत्र के प्रकांड साधक भी अगर ऐसे सिद्धों को उनकी मर्जी के खिलाफ आवाहित करें तो ये उन पर क्रोधित भी हो सकते है। इस लिए ऐसे सिद्धों से संपर्क बहुत ही मुश्किल होता है।
योग तंत्र में एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कोई भी साधक ऐसे सिद्धों से मानसिक रूप से संपर्क स्थापित कर सकता है। साधक को इस साधना का अभ्यास ब्रह्म मुहूर्त या रात्रि काल में ११:३० बजे के बाद करना चाहिये। इसके लिये साधक पहले स्नान करे और उसके बाद अपने आसन पर बैठ कर श्रीं बीज के साथ अनुलोम विलोम कर शरीर की चेतना को मणिपुर चक्र पर केंद्रित करे अर्थात मणिपुर चक्र पर आंतरिक रूप से ध्यान लगाए। इसके बाद साधक मन ही मन निम्न मंत्र का जप करे -
।। ह्रों ह्रीं ह्रों महासिद्धाय नमः ।।
(hrom hreem hrom mahasiddhay namah)
ऐसा अभ्यास एक घंटे तक करने पर धीरे धीरे साधक में ये सामर्थ्य आ जाती है जिसके माध्यम से वह सिद्धों से संपर्क करने में सफल हो जाता है। ऐसा संपर्क स्वप्नावस्था या भाव अवस्था में होता है। तब साधक उनसे साधनात्मक ज्ञान को प्राप्त कर सकता है। यह सहज नहीं है लेकिन नित्य अभ्यास से निश्चित रूप से ऐसा संभव हो जाता है।
इस प्रक्रिया के अलावा भी तंत्र मार्ग में एक गुप्त तथा अद्भुत साधना है, जिसे सम्प्रेषण साधना या सिद्ध सम्प्रेषण साधना कहते है। इस साधना के माध्यम से व्यक्ति का कुछ ही दिनों में स्वः तथा अन्य लोक के महासिद्धों से विचारों का आदान प्रदान संभव हो जाता है और तब वह अपनी खुशी से साधक को योग्य मार्गदर्शन देते हैं।
खैर, हेमऋता का अनुभव अपने आप में कई प्रश्नों के उत्तर देता गया और, पीछे छोड़ गया कई और नए प्रश्न । इस रहस्य का अनावरण क्यों नहीं हुआ? क्या बताना था उसे? क्या वचन चाहिए था उसे? किसने ये अनुभव कराया, मुझे ही क्यों? क्या उन्हें भी कोई निर्देश देता है? इतने समय तक ही क्यों? गन्धर्वलोक ही क्यों? और क्यों हेमऋता से मुलाकात? कुछ समझ नहीं पाया। सैकड़ों सवाल आ गए दिमाग में, लेकिन मेरे कमरे में मैं अकेला था, कोई नहीं था जो मुझे जवाब दे सके इस बात का...
Comments