आकाशमंडल अत्यंत विस्तृत है । फलस्वरूप उसे नंगी आंखों से देखना और समझना संभव नहीं है । अतः जन्म कुंडली का निर्माण किया गया । यह जन्म कुंडली एक प्रकार से समस्त गगन मण्डल है और आकाश में जिस प्रकार से ग्रहों की स्थिति है उसी स्थिति को जन्म कुंडली के माध्यम से दर्शाया जाता है ।
जन्म कुंडली में 12 खाने होते हैं । ये एक प्रकार से पूरे आकाश को 12 भागों में विभाजित करना है जिससे कि आकाश मंडल को तथा उसमें स्थित ग्रहों को भली प्रकार से जाना जा सके । पूरा आकाश मंडल 360 अंशों में विभक्त है और इसको जब 12 खानों या 12 भागों (राशि) में विभाजित किया गया तो प्रत्येक भाग 30 अंश का बना । इस प्रकार प्रत्येक भाव में ग्रह किस अंश पर है यह भली प्रकार से जाना जा सका तथा इसी के आधार पर यह देखा जाने लगा कि एक ग्रह की दूसरे ग्रह से कितनी दूरी है तथा इस दोनों का परस्पर कितना आकर्षण - विकर्षण है, साथ ही साथ कोई ग्रह दूसरे ग्रह के कितनी चुंबकीय शक्ति में है आदि बातों का ज्ञान कुंडली के माध्यम से भली भांति होने लगा ।