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गुप्त नवरात्रि और माला सिद्धि विधान-1

Updated: Aug 8

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सर्व विद्या साध्य कामना पूर्ती विजय माला

“कालो अश्वो वहति सप्तरश्मि: सहस्राक्षो अजरो भुरिरेता:

तमारोहन्ति कवयो वियश्चितस्तस्य चक्रा भुवनानि विश्वा ।।”


अर्थात, काल सात रस्सियों वाला और हजारों धुरियों को चलाने वाला तथा निर्जरादेह से युक्त और अमर है । वह महाबली अश्व के समान निरंतर अपने पथ पर दौड़ रहा है । समस्त संसार, उत्पन्न पदार्थ तथा जीव आदि उसके इसी चक्र में फंसकर घूम रहे तथा उसे पार नहीं कर पा रहे हैं...मात्र स्थिरप्रज्ञ, ज्ञानी और मन की आसक्ति से मुक्त साधक ही इस काल रुपी अश्व की सवारी कर इससे परे जा सकते हैं या साध सकते हैं ।


कुछ ऐसा ही तो है एक साधक का जीवन, जहां वो लगातार प्रयास करता रहता है, काल के रहस्यों से परिचित होने का । किन्तु बिना उचित परिश्रम, सतत अभ्यास और प्रामाणिक मार्गदर्शन के ऐसा होना मात्र कपोल कल्पना ही कहलाती है । किन्तु इसके साथ साथ ये भी ध्यान रखना आवश्यक है कि साधक को काल के उपयुक्त क्षणों का ज्ञान भी हो, अतः किन क्षणों का कैसा प्रयोग करना है, उनमें किन क्रियाओं को पूर्णता दी जा सकती है, ये जानकारी भी होना आवश्यक है ।


मानस तो बना था कि उन महत्वपूर्ण साधनाओं पर चर्चा की जाती जो सदगुरुदेव ने दशकों पहले ही प्रदान कर दी थीं; वरिष्ठ गुरुभाइयों के स्नेहवश वो हमें भी प्राप्त हुयीं । लेकिन अभी तैयारी अधूरी है ।


पिछला आलेख आपने आसन सिद्धि पर आत्मसात किया । पर जनाब, अभी तैयारी पूरी नहीं है । जब भी हम किसी साधना में बैठते हैं तो आसन के अलावा दूसरे महत्वपूर्ण उपकरण होते हैं माला और यंत्र । यंत्र पर अगले आलेखों में चर्चा की जाएगी, पहले माला पर बात की जाए ।


प्रत्येक बार जब भी साधना में बैठते हैं तो क्या हर बार एक नयी माला...!?


कभी मन में ऐसा विचार नहीं आया कि काश कोई ऐसी भी माला बनायी जा सकती, जिससे लगभग सभी साधनाओं को संपन्न किया जा सकता?


जो लोग गुरुधाम से यंत्र और माला मंगा लेते हैं, उनके लिए तो ठीक है । पर उनका क्या जो किसी कारणवश यंत्र और माला से वंचित रह जाते हैं या ऐसा भी होता है जब आपके पास इतना समय ही नहीं होता कि आप यंत्र और माला किसी प्रामाणिक जगह से मंगा सकें । तब क्या?

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