हिंदू नववर्ष पर आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनायें, चैत्र मास की नवरात्रि के साथ ही शुरु होने वाले इस नववर्ष में आप सभी इस कोरोना वायरस के दौर में भी सुरक्षित रहें और स्वस्थ रहें, यह नया वर्ष आप सभी के लिए सफलता के नये मार्ग प्रशस्त करें, ऐसी ही शुभकामना है ।और इससे बढ़कर, सदगुरुदेव का आशीर्वाद सभी गुरुभाई-बहनों पर बना रहे, ऐसी ही कामना करता हूं ।
पिछली पोस्ट से अब तक लगभग 2 महीने का समय बीत चुका है, बहुत से गुरुभाइयों ने व्यक्तिगत रुप से पूछा है कि आखिर क्या बात है, अब पोस्ट करने में इतना समय क्यों लग रहा है...!
सबके अपने प्रश्न हैं पर जब से सद्गुरु कृपा विशेषांक की साधनाओं को सामने रखा गया है तबसे एक संतुष्टि का भाव मन में रहा है कि जो साधनायें इतनी उच्च कोटि की हैं और अब गुरु भाइयों के बीच रख दी गयी हैं, उनके होते हुये तो जीवन में किसी प्रकार की असफलता या अभाव का रहना असंभव ही है । ब्रह्मांड की उच्चतम साधनायें जो एक गृहस्थ व्यक्ति के लिए भी उतनी ही उपयोगी और आसान हैं जितनी किसी सन्यासी के लिए, तो, उसके बाद कहने के लिए शेष कहां रह जाता है :-)
हालांकि गुरु का ज्ञान भी गुरु की तरह ही अनंत होता है और सदगुरुदेव तो इतने कृपालु हैं कि अपने गृहस्थ शिष्यों के बीच गुह्यतम साधनाओं को भी हीरे - मोतियों की तरह बिखेर देते हैं । अब ये तो आपके ऊपर निर्भर है कि इन साधनाओं को परखें, इनका अभ्यास करें, जीवन को संवारें या फिर बाकी साधनाओं की तरह इनको भी कहीं संभालकर रख दें ।
ध्यान रखिये, सदगुरुदेव ने तो जीवित-जाग्रत ग्रंथ तैयार किये थे । अगर आप साधनाओं के माध्यम से जीवन को संवारना चाहते हैं तो एक भेड़ बनना छोड़ दीजिए । छोड़ दीजिए उन रास्तों को जो पहले से ही समाज ने आपके लिए तय कर रखे हैं और मंत्रों की असीम शक्ति का अहसास करना सीखिये । इसके लिए आपको कहीं हिमालय में जाने की आवश्यकता नहीं है, सब कुछ इसी समाज के बीच रहकर, अपने घर पर ही, अपने आसन पर ही, मंत्रों के अभ्यास से संभव है । नित्य प्रतिदिन के 1 - 2 घंटे भी पर्याप्त हैं ।
चूंकि इस विषय पर ब्लॉग पर पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चुका है, इसलिए बार - बार इसको दोहराना उचित नहीं है लेकिन जैसा कि मैंने सबसे पहली पोस्ट आध्यात्म की अनंत यात्रा में कहा था इस अंतर्यात्रा पर जाने के लिए कोई आपसे कहने नहीं आयेगा, सिवाय गुरु के । केवल गुरु ही वह व्यक्तित्व हैं जो आपके हर जन्म में आपको आवाज देते हैं, आपका आवाहन करते हैं कि इस माया के भंवर से बाहर निकलना है तो गुरु का हाथ थाम लो । थाम लो इस प्रकार कि, फिर गुरु आपको इस माया से बाहर निकाल ही लें ।
मैं भी आपका आवाहन करता हूं कि अगर आप इस रास्ते पर चलते हैं तो कम से कम गुरु तक तो पहुंचा ही दुंगा । उसके बाद गुरु स्वयं ही आपका हाथ पकड़कर आपको खींच लेंगे । इतनी जिम्मेदारी लेने के लिए तो मैं भी तैयार हूं ।
अब ये जिम्मेदारी शब्द कोई छोटा - मोटा शब्द नहीं है । इसकी अहमियत समझनी हो तो महर्षि वाल्मीकि से समझिये ।
रामायण में वर्णित वाल्मीकि, महर्षि बनने से पहले एक ड़ाकू थे । जब उन्होंने देवर्षि नारद को पकड़ लिया था और उनकी हत्या करने वाले थे तब नारद ऋषि ने कहा कि ये सब आप जो कर रहे हैं छल, लूट, हत्या इत्यादि, क्या आपका परिवार इस सबका पाप आपके साथ भोगने के लिए तैयार है । आप सब जानते हैं कि वाल्मीकि के पाप का भोग भोगने के लिए उनकी अपनी पत्नि भी तैयार नहीं थी । सीधे शब्दों में उनकी कर्मों की जिम्मेदारी लेने के लिए कोई भी तैयार नहीं है । यहां तक वह लोग भी जिनके लिए उन्होंने इतने पाप किये थे ।
त्रेतायुग को तो पीछे छोड़ दीजिए - इस युग को ही ले लीजिए, जरा अपने चारों तरफ नजर घुमाकर देख लीजिए, है कोई ऐसा जो आपकी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हो?
जिम्मेदारी तो बहुत दूर की बात है, अगर आप अपनी नौकरी/व्यवसाय छोड़ दें तो वह आपको अपने साथ रखने के लिए भी तैयार न होंगे । अगर आप धन कमाकर नहीं दे सकते हैं तो आप उस परिवार और समाज पर एक बोझ बन जाते हैं । वहां आपके रिश्ते, मित्रगण, भाई, बहन और यहां तक कि माता - पिता भी पीछे हट जाते हैं ।
चलिए नौकरी मत छोड़िये, जरा यही कल्पना कर लीजिए कि नौकरी में थोड़ी दिक्कत आ गयी है । जैसा कि आजकल कोरोना वायरस के दौर में हो ही रहा है । लाखों लोगों की आजीविका चली गयी है या आमदनी में बहुत कमी आ गयी है । बहुत ही कम ऐसे भाग्यशाली लोग हैं जिनको उनको परिवारों का आज भी सहयोग प्राप्त हो रहा है और, ऐसा भी केवल वहां है जहां पहले से ही जीवन में गुरु तत्व की मौजूदगी है । लेकिन हर कोई इतना भाग्यशाली तो नहीं होता है ।
ये बातें आपके मन को झकझोरने के लिए काफी हैं या अब भी इंतजार है किसी का? या तब तक ड़टे रहना चाहते हैं जब तक कोई नारद ऋषि आकर आपको यह ज्ञान न दे दे?
अरे भाई! अगर गुरु तक पहुंचने का रास्ता नहीं जानते हैं तो मेरा ही हाथ पकड़ लीजिए । वहां तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मेरी - ये वादा है मेरा । लेकिन हाथ छुड़ाकर मत भाग जाना, यह वादा आपका होना चाहिए । और आपका हाथ पकड़कर गुरु तक पहुंचाने की इस क्रिया में अगर मुझे भी जहर पीना पड़े तो पी लुंगा लेकिन मैं आपका हाथ नहीं छोडुंगा, इस बात का आप विश्वास कर सकते हैं । जिनको इस मार्ग में रास्ता दिखाकर गुरु तक पहुंचाया है वह सब लोग इस बात को साक्षी हैं ।
गुरु का सेवक हूं - अपने गुरु की सेवा में इतना तो कर ही सकता हूं । अब आपको क्या करना है यह तो आपको ही तय करना होगा ।
सामने चैत्र नवरात्रि का समय है । जिन लोगों को अपनी विजय सिद्धि माला का निर्माण करना है, इससे अच्छा समय नहीं मिल सकता है । इस माला की विशेष बात यह है कि इस माला से आप किसी भी साधना को संपन्न कर सकते हैं और इस माला की शक्ति प्रत्येक साधना के बाद बढ़ती ही रहती है । इसको कभी विसर्जित नहीं किया जाता है जिससे यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी उतनी ही उपयोगी बनी रहती है ।
नवरात्रि से संबंधित अन्य साधनायें पहले भी पोस्ट की जा चुकी हैं इसलिए चुनाव आपके हाथ में है कि आप इस समय का उपयोग कैसे करना चाहते हैं ।
सदगुरुदेव ने होली के मौके पर जो विशिष्ट यंत्र और मंत्र प्रदान किया है, उनकी आज्ञा और प्रेरणा से आप सभी गुरुभाई और बहनों के समक्ष रख रहा हूं -
(सर्व सिद्धि प्रदायक यंत्र)
इस यंत्र को किसी सफेद कागज (बिना लाइन वाला) अथवा भोजपत्र पर केसर अथवा कुमकुम की स्याही बनाकर बना लेना चाहिए । यंत्र को फ्रेम करवाकर, यंत्र का सामान्य पूजन करके पूजा स्थान में रखने से जीवन में उन्नति के रास्ते खुलते हैं । मैं इस यंत्र की PDF फाइल इस पोस्ट के अंत में अपलोड़ कर दुंगा । आप इसका प्रिंट करवाकर भी फ्रेम करवा सकते हैं । इस यंत्र को अलग से सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि यह स्वयं सिद्धि यंत्र होते हैं ।
इस यंत्र में वर्णित बीज मंत्रों का महात्म्य वर्णित करना मेरी वाणी से संभव नहीं है लेकिन फिर भी मौटे तौर पर हमें ये अवश्य जानना चाहिए कि कौन सा बीज मंत्र मुख्य रुप से क्या कार्य कर सकता है -
इस प्रकार से इस यंत्र से संबंधित मंत्र भी इन्ही बीज मंत्रों के संयोग से बना है जो निम्न प्रकार से है -
।। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ह्लीं न्रीं ॐ ।।
।। Om Shreem Hreem Kleem Hleem Nreem Om ।।
सदगुरुदेव ने स्पष्ट किया है कि इस मंत्र का प्रयोग संकल्प लेकर करने से कार्य सिद्ध होते हैं और नवरात्रि में इस मंत्र की कम से कम 11 माला प्रतिदिन अवश्य करनी चाहिए ।
दिशा - पूर्व या उत्तर ही रखें
वस्त्र - अपनी इच्छानुसार लाल या पीला वस्त्र धारण कर सकते हैं । इस मंत्र में माता महालक्ष्मी, माता भुवनेश्वरी, भगवान कृष्ण, माता बगलामुखी और स्वयं सदगुरुदेव से संबंधित बीज मंत्र हैं । इसलिए आप इन परम शक्तियों से संबंधित किसी भी प्रकार का वस्त्र धारण कर सकते हैं ।
माला - विजय सिद्धि माला, रुद्राक्ष, स्फटिक, मूंगा, हकीक या आपकी गुरु माला ।
समय - प्रातः या रात्रि जो भी आपको उचित लगे
विधानः गणपति पूजन, गुरु पूजन के पश्चात गुरु मंत्र की 5 माला अवश्य करें । उसके बाद ही इस मंत्र की साधना करें।
आप सब आध्यात्म के इस रास्ते पर चलकर अपना अभीष्ट प्राप्त कर सकें, आपको सदगुरुदेव की पूर्ण कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हो सके, ऐसी ही शुभेच्छा है ।
अस्तु ।
इस महत्वपूर्ण यंत्र को आप PDF में यहां से डाउनलोड़ कर सकते हैं -
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