कितनी ही बार हम इस सवाल से दो - चार हो ही जाते हैं कि क्या करुं, कौन सी साधना करुं, ऐसा क्या करुं कि सदगुरुदेव की कृपा मुझ पर बरसने लग जाए और मेरा जीवन सफल हो जाए । जो उत्साही साधक होते हैं वो फटाफट 15 - 20 साधना करके तुरंत सदगुरुदेव की तरफ देखने लगते हैं कि देखो गुरुजी, मैंने कितनी सारी साधनायें कर डालीं हैं । अब तो मुझे सिद्धि मिल ही जानी चाहिए ।
अब गुरुजी तो इस बात पर कुछ कहने से रहे । वो तो बस मुसकुरा देते हैं । साधक बेचारा परेशान, फिर से नयी साधना में लग जाता है कि चलो काली मईया की साधना से तो कुछ मिला नहीं, चलो अब भैरव बाबा की साधना करते हैं । अब भैरव बाबा भी बिज़ी निकले तो साधक बेचारा और परेशान कि, यहां से भी कुछ नही मिला । चलो भगवान कृष्ण की साधना करते हैं; कहते हैं कि भगवान कृष्ण तो जगतगुरु हैं, पक्का मेरा उद्धार तो वही करेंगे । पर कृष्ण तो कह गये थे कि तू कर्म किये जा और फल की इच्छा मत कर । तो यहां भी फल नहीं मिला ....
करते - करते सालों गुजर गये पर मुकाम नहीं मिला .... ।
यही बात है न मेरे भाई .... ;-)
अच्छा एक बार और भी है कि, समस्या बस यहीं खत्म नहीं हो जाती है । दरअसल समस्या तो यहां से शुरु होती है । होता क्या है कि हम सबको अपने बाहुबल पर बहुत भरोसा होता है और एक (ही) चीज हम सब सोचते हैं कि जब साधनाओं से सब कुछ संभव है तो हम भी अपना अभीष्ट प्राप्त करके ही रहेंगे, साधना करेंगे और जीवन में ये प्राप्त करेंगे, वो प्राप्त करेंगे, फलाना करेंगे, ढिमका करेंगे ... bla bla bla bla....
किसी - किसी को तो 5 - 7 साल में सदगुरुदेव की कृपा से अक्ल आ जाती है कि आखिर माया के पार कैसे जाना है लेकिन, कोई - कोई तो 20 - 20 साल बाद भी भटकता ही रहता है । इनमें वो लोग भी हैं जो सदगुरुदेव से दीक्षित हैं और वो भी हैं जो 15 - 20 साल पहले ही त्रिमूर्ति गुरुदेव से दीक्षा लिये थे ।
अभी कल ही एक गुरुभाई ने प्रश्न किया कि उनको समझ नहीं आता है कि क्या करें । वो ये भी कहते हैं कि करने को तो 51 लाख जप, 24 घंटे में लगातार बैठकर कर सकते हैं लेकिन वो करें तो करें क्या?
चूंकि प्रश्न महत्वपूर्ण है इसलिए मात्र खिंचाई करने से काम नहीं चलेगा । इसका उत्तर देना बहुत आवश्यक है क्योंकि बहुत से गुरुभाई इस अवस्था से होकर गुजरते ही हैं । उनको मार्गदर्शन की बहुत आवश्यकता होती है । सदगुरुदेव ने अपने अलग - अलग प्रवचन में जो कुछ कहा है, वह मैं यहां पर संकलित कर रहा हूं । आशा है कि इन गुरुभाई के प्रश्न का उत्तर उनके प्रश्नानुसार ही मिल जाएगा -
सदगुरुदेव तो सिद्धाश्रम में हैं तो हम उनकी सेवा कैसे कर सकते हैं ?
ये आपसे किसने कहा कि सदगुरुदेव केवल सिद्धाश्रम में ही रह सकते हैं? जो सर्वव्यापी, अविनाशी और अनंत हैं उनको आप केवल सिद्धाश्रम तक ही सीमित कर देना चाहते हैं?
इस तथ्य को आप ऐसे समझिये । ईश्वर तो निराकार है पर, उसका अगर कोई साकार स्वरूप हो सकता है तो वो गुरु ही हो सकते हैं और, आपने अब तक कहीं न कहीं तो यह सुना ही होगा कि गुरु एक शरीर मात्र नहीं है, गुरु तो एक तत्व है । जो हमारी जिंदगी में आता है, हमको संवारता है और हमको निखरने में मदद करता है । ताकि हम केवल जन्म लेकर यूं ही जीवन न गुजार दें । ताकि हम केवल जन्म लेकर मरने का इंतजार न करते रहें । साधनाओं के माध्यम से, ठोकर मारकर, कभी - कभी तो डंडा मारकर भी हमको समझाते हैं ताकि हम अपने जीवन को यूं ही व्यर्थ न कर दें ।
अब आप कहेंगे कि ऐसा कैसे संभव है?
तो याद कीजिए न । जब आप छोटे से थे तो आपको बोलना किसने सिखाया, आपको चलना किसने सिखाया । वो गुरु आपकी मां बनकर आपने जीवन में आया । क्या आप ये नहीं जानते कि मां ही सबसे पहली गुरु होती है । उसके बाद गुरु कभी आपके चाचा के रुप में, कभी ताऊ के रुप में, कभी सगे-संबंधियों के रुप में आकर आपको कुछ न कुछ सिखाता रहा । वो गुरु नहीं तो और कौन था मेरे भाई ।
फिर आप स्कूल गये, कालेज में आये, यूनिवर्सिटी में पढ़े ... कौन सिखा रहा था आपको ?
एक पल के लिए गुरु तत्व को अपने जीवन से निकाल दीजिए और बताइये कि आपके जीवन में क्या बचा फिर ।
लेकिन ये गुरु का कार्मिक स्वरूप होता है । अर्थात हमारे भौतिक जीवन को संचालित करने के लिए जरूरी तथ्य हमारे कार्मिक गुरु ही बताते हैं ।
लेकिन आपके आध्यात्मिक गुरु एक अलग ही स्वरूप में आते हैं । वो आपसे आपका परिचय करवाते हैं और बाद में आपका परिचय उस ईश्वर से करवाते हैं । अब वो इसके लिए दीक्षाओं का सहारा लेते हैं या साधनाओं का या आसन - प्राणायाम का, ये तो वही जानें लेकिन, जिसको जिस रास्ते से पहुंचाना है, वो उसको उसी रास्ते से पहुंचाते हैं । और, पहुंचाते अवश्य हैं । ये गुरु का कर्तव्य है और वो इस काम को हमेशा और हर पल करते रहते हैं ।
तो अब आप मुझे यही बताइये कि आप किस गुरु की बात कर रहे थे ? उस गुरु की जो पहले से ही सर्वव्याप्त है या जिसको आप केवल एक फोटो मान बैठे हैं । क्या हमारे माता-पिता हमारे गुरु का स्वरुप नहीं हैं, क्या हमारे भाई - बहन हमसे अलग हैं, क्या हमारे मित्रों में उस गुरु का वास नहीं है, क्या ये समाज उस ईश्वर का, उस गुरु का प्रतिबिंब नहीं है ?
आप तो एक शरीर को ही गुरु मान बैठे हैं शायद । पर ये भूल गये हैं कि जब हम अपने आस-पास मौजूद लोगों की ही सेवा कर रहे होते हैं, तो वह भी गुरु सेवा ही होती है मेरे भाई ।
मेरी पढ़ाई चल रही है, मैं क्या करुं?
जीवन में एक बात गांठ बांधकर रख लीजिए । जो आपकी प्रथम जिम्मेदारी है, पहले उसे निभायें । उसके बाद ही कुछ करें । अगर आप शादी शुदा हैं तो पहले अपने परिवार की देखभाल कीजिए, अपने बच्चों को संभालिए, अपनी पत्नि का ख्याल रखिये, अपनी आजीविका का ध्यान करिये और फिर जब इससे समय मिले तो साधना अवश्य कीजिए ।
गुरु कभी ये नहीं कहते कि सब कुछ छोड़कर सिर्फ साधना करते रहो ।
हम लोग गृहस्थ हैं तो हमें पहले अपनी गृहस्थी देखनी चाहिए । उसके बाद अगर समय निकाला जा सके, तो साधना अवश्य करनी चाहिए ।
इसी प्रकार से, अगर आप अभी पढ़ रहे हैं तो पहले पढ़ाई करिये । ताकि समय रहते आप अपने कैरियर बना सकें । गुरु कहीं नहीं जा रहे; वो तो आपकी प्रतीक्षा कई जन्मों से कर रहे हैं । जब पढ़ाई पूरी हो जाए तब, समय निकालकर साधना में जुट जाइये । पढ़ाई के दौरान भी आप उन साधनाओं को अवश्य कर सकते हैं जिनसे एकाग्रता में मदद मिलती है और ऐसा करने से प्रतियोगी परीक्षाओं में भी सफलता प्राप्त होती है । पर पढ़ाई के दौर में साधनाओं में ही लगे रहने से न तो आप पढ़ाई ही कर सकेंगे और न ही साधनाओं में सफलता प्राप्त हो सकेगी ।
मन में चलता रहता है कि कितनी ही जल्दी गुरु मंत्र का जप कर सकें?
ये तो वैसा ही सवाल है कि साल भर का हलवा एक दिन में खा जायें तो कैसा रहेगा?
मेरे प्रिय भाई, साधना तो सतत चलने वाली क्रिया है । इसके लिए कैसी जल्दबाजी? जल्दी करके भी कहां पहंच जाएंगे आप । नहीं तो याद कर लीजिए, आज तक जितनी भी जल्दबाजी की है, उससे आज कहां आकर खड़े हैं आप?
बात अगर 11 लाख गुरु मंत्र जप की है तो, हम तो 24 घंटा बैठकर 51 लाख का जप कर लें?
वैसे तो ये बात सामान्य ही प्रतीत होती है लेकिन इसमें 2 चीजें छुपी हुयी हैं -
हमारी अज्ञानता
हमारा अहंकार
अज्ञानता इस मायने में कि आपको अभी तक ये नहीं पता है कि अगर आप मात्र 5 लाख भी गुरु मंत्र का जप कर लें तो शरीर आपका फटने लगेगा ।
अहंकार इस मायने में कि आपमें इतनी क्षमता है कि आप 24 घंटे में ही 51 लाख जप कर सकते हैं । 51 लाख जप करना तो बहुत दूर की बात है, अभी आप 51 माला प्रतिदिन करते हुये 51 दिन भी नहीं बैठ सकेंगे । इतनी ऊर्जा को आत्मसात करने के लिए गुरु के प्रति समर्पण भाव होना चाहिए । और मुझे नहीं लगता कि अभी आपके अंदर वह समर्पण भाव आ पाया है । क्योंकि अगर समर्पण भाव होता तो ये सारे सवाल ही नहीं होते ।
खैर, अब आप कह सकते हैं कि 51 माला करते हुये 51 दिन बैठना कौन सी बड़ी बात है? ठीक भी है । पर मैं आपको एक प्रसंग सुनाता हूं ।
करीब 3 महीने पुरानी ही बात है । मार्च 2020 में कोरोना वायरस का प्रकोप फैला था, उससे पहले की ही बात है । अपने एक वरिष्ठ गुरुभाई हैं, फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) के नजदीक ही उनका गांव है ।
एक दिन उनका फोन आया कि राजीव, बताओ हम क्या करें, हमारा शरीर जल रहा है और हम रात - रात भर सो नहीं पाते हैं । नींद की दवाई लेते हैं पर उसका कोई असर नहीं होता है । ऐसा लगता है कि जैसे उनके ऊपर बहुत बड़ा बोझा रखा हुआ है । बहुत परेशान हैं । कुछ रास्ता बताओ ।
पहली बार में मैं भी कुछ समझ नहीं पा रहा था । तो मैंने उनसे विस्तार से बात की । पता चला कि कुछ दिन पहले ही उन्होंने गुरु मंत्र का 5 लाख का जप संपन्न किया था । साथ ही साथ माता बगलामुखी का ब्रह्मास्त्रमाला मंत्र का भी जप किया था । उसके साथ - साथ गुरु प्राणश्चेतना मंत्र का भी जप किया था । और भी कुछ किया था पर मुझे ज्यादा याद नहीं है ।
वो दिन में लगभग 12 घंटे साधना किया करते थे । और इतना सब कुछ उन्होंने मात्र 2 या 3 महीने में पूरा किया था ।
मैं भी सोचता रहा कि इनमें ऐसा तो कुछ भी नहीं है जिसका शरीर पर कोई दुष्प्रभाव पड़े । खैर सदगुरुदेव की प्रेरणा से ही वह सवाल मैंने पूछा जिसके कारण उनकी प्राण रक्षा हो सकी । प्राण रक्षा शब्द का इस्तेमाल किया है क्योंकि इतनी ऊर्जा हमारा शरीर नहीं झेल सकता । हमारे शरीर की अपनी कुछ सीमायें होती हैं और इसकी क्षमता भी धीरे - धीरे ही बढ़ती है ।
खैर, जब मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने अपना समस्त मंत्र जप सदगुरुदेव के चरणों में समर्पित किया या नहीं?
तो उनका जवाब था... नहीं ।
बाकी तो सब स्पष्ट ही था अब । शाम का समय था । मैंने उनको सलाह दी कि उनको तुरंत ही कुछ भोग लेकर सदगुरुदेव के चरणों में प्रार्थना करनी चाहिए और अपना समस्त मंत्र जप और तप सदगुरुदेव के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए । क्योंकि इतनी ऊर्जा को केवल वही संभाल सकते हैं । हम नहीं ।
उन्होंने वैसा ही किया और सदगुरुदेव ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार करके, उनको उस साधना के बोझ से मुक्त कर दिया । करीब 20 दिन बाद ये समय था जब वो रात्रि को चैन से सो पाये थे ।
घटना असाधारण नहीं है पर हमें बहुत कुछ सिखा जाती है । बशर्ते हम सीखने को तैयार तो हों ।
कुछ भी समझ नहीं आ रहा है कि किसको साधूं....?
पत्रिकाओं में जो भी साधना आती हैं, जरूरी नहीं कि वो सबके लिए ही हों । अधिकतर साधनायें तो हमारे स्तर की ही नहीं होती हैं । इस बात को ऐसे समझिये कि आप तीसरी क्लास के बच्चे से MSc के लेवल का गणित हल नहीं करवा सकते । साधनाओं के मामले में हमारी भी परिस्थिति भी लगभग वैसी ही होती है । लेवल तो हम लोगों का तीसरी क्लास के बच्चे का है पर, हम साधनायें करते हैं बहुत उच्च स्तर की । तो भाई मेरे, सफलता कहां से मिल जाएगी ।
लेकिन आपका सवाल सही है कि फिर हमें करना क्या चाहिए?
इस सवाल का उत्तर बहुत ही आसान है । जो काम तीसरी क्लास का बच्चा करता है, वही आप भी करिये । इतने छोटे बच्चे हर काम के लिए अपनी मां के पास भागते हैं । किसी ने मार दिया तो मां के पास भागे, किसी ने कुछ बोल दिया तो मां के पास भागे, किसी ने कुछ छीन लिया तो मां के पास भागे ।
तो भाई जी, गुरु भी हमारी मां ही हैं । जब तक आप बड़े नहीं हो जाते, तब तक हर बार, हर चीज के लिए, गुरु के पास भागो । जब आप बड़े हो जाएंगे तो गुरु स्वतः ही आपको बड़ी साधनाओं में बैठा देंगे ।
तो फिर साधना करें तो किस प्रकार करें?
मैं आपको कुछ क्रम बता देता हूं । आप इसमें अपनी सुविधानुसार चयन कर सकते हैं या फेरबदल कर सकते हैं । ये सभी साधनायें ब्लॉग पर पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं इसलिए यहां उनके बार में न बताकर, सिर्फ विवरण और लिंक दिया जा रहा है -
गुरु पूजनः आप मानसिक गुरु पूजन करें या पंचोपचार पूजन करें, पर करें अवश्य । बिना इसके बाकी चीजें भूल जायें ।
गुरु मंत्र जपः कम से कम 5 माला करें । आराम से करें और बिलकुल भी जल्दबाजी न करें । मंत्र की ऊर्जा को आत्मसात करते हुये, सदगुरुदेव का ध्यान करते रहें ।
माता प्रत्यंगिरा मंत्रः महाविद्याओं की साधना में बैठने से बेहतर है कि उनके विशिष्ट मंत्रों की साधना की जाए । इनमें समय भी कम लगता है और जीवन में सकारात्मक बदलाव स्वयं ही आने लगते हैं ।
गुरु प्राणश्चेतना मंत्रः जो लोग चैतन्य संस्कार मंत्र की रिकॉर्डिंग नहीं सुन पाते, उनको गुरु प्राणश्चेतना मंत्र का अवश्य अभ्यास करना चाहिए ।
चैतन्य संस्कार मंत्रः ये 28 मिनट की रिकॉर्डिंग हैं और सदगुरुदेव की ही आवाज में है । अगर संभव है तो प्रत्येक साधक को इसे अवश्य सुनना और मनन करना चाहिए । दरअसल ये हमारे भाग्योदय की चाबी है ।
दुर्लभोपनिषदः मात्र 9 श्लोकों में समस्त ब्रह्मांड की शक्तियां समाहित हैं । जब ये श्लोक याद हो जाएं तो मात्र 3 - 4 मिनट ही लगते हैं । पर कुछ दिन तो हमें अवश्य ही उन दोनों रिकॉर्डिंग को सुनना चाहिए जिनमें सदगुरुदेव ने इन 9 श्लोकों का महत्व समझाया है । ये दोनों रिकॉर्डिंग 25 - 25 मिनट की हैं । अगर समय मिले तो पूरी रिकॉर्डिंग सुनना चाहिए । अगर समय न हो तो मात्र 9 श्लोकों का सस्वर उच्चारण करना चाहिए ।
प्रातः स्मरणीय वेद श्रुतियांः ये कैसेट भी सुनने के लिए ही है । अपने घर में इनको रोज बजाना चाहिए ।
आप अगर इस क्रम के छोटे से हिस्से को भी अपने जीवन में अपना पाते हैं तो फिर जान लीजिए कि आपको साधना पथ पर कोई भी नहीं भटका सकता है और, आपको आध्यात्मिक जीवन में सफलता प्राप्त करने से भी कोई नहीं रोक सकेगा । जीवन में ऐसी कोई भी चीज नहीं है जो गुरु साधना से प्राप्त न की जा सके ।
अस्तु ।
:-)
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