अष्टक वर्ग पर सबसे पहला WhatsApp मैसेज बिहार के गया जिले से आया है । बिहार के सियाराम कुमार जी ने अपने जन्म से संबंधित डिटेल भेजे हैं जो कि निम्न प्रकार हैं -
नामः सियाराम कुमार
जन्म तिथिः 4 मई 1980
जन्म समयः रात्रि 10 बजे
जन्म स्थानः खिजेरसराय (चूंकि यह एक छोटा स्थान है तो हम इसके आसपास के बड़े शहर का नाम प्रयोग करेंगे) । यहां सबसे नजदीकी स्थान *गया* है तो इनका जन्मस्थान गया माना जाएगा ।
अष्टक वर्ग बनाने से पहले जन्मांग चक्र बनाया जाता है जो आप किसी भी कुंडली वाले एप्लीकेशन से या सॉफ्टवेअर के माध्यम से बना सकते हैं । सियाराम जी का जन्मांक चक्र निम्न प्रकार है -
जन्मांग चक्रः सियाराम कुमार (बिहार)
इस कुण्डली में 2 खास बातें हैं -
इनका सूर्य उच्च का है
इनका शनि अपनी शत्रु राशि में विराजमान है ।
सूर्य का उच्च राशि का होना
सूर्य मेष राशि में है और उच्च का है । सूर्य का स्वभाव राजा के समान है। वह किसी भी मामले में समझौता पसंद नहीं करता। हालांकि सूर्य दंभी है, लेकिन विशाल हृदय है। यही कारण है कि जिन जातकों की पत्रिका में सूर्य की अच्छी स्थिति होती है, उनका रहन-सहन, तौर तरीके राजसी होते हैं। ऐसे लोगों को स्वभाव से कई बार अहंकारी समझा जाता है क्योंकि वे आसानी से किसी से घुल मिल नहीं पाते, ना ही परिस्थितियों में आसानी से समझौता कर पाते हैं। लेकिन वे अपने मन में किसी तरह का मैल नहीं रखते, ना ही किसी से दुश्मनी रखते हैं। वे जरूरत के अनुसार क्रोधी हो सभी को लेकर चलते हैं।
शनि का अपनी शत्रु राशि में स्थित होना
ज्योतिष शास्त्र में शनि नौ ग्रहों में से सातवां ग्रह है। शनि ग्रह को आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल आदि का कारक माना जाता है। सूर्य पुत्र शनि के मित्र ग्रहों में बुध और शुक्र आते हैं, जबकि सूर्य, चंद्रमा और मंगल, शनि के शत्रुओं की श्रेणी में आते हैं। सियाराम कुमार की कुण्डली में शनि की स्थिति सिंह राशि में है जिसका स्वामी सूर्य है । इस प्रकार शनि अपने शत्रु की राशि में हैं ।
अब बात करते हैं इनके अष्टक वर्ग की, जो कि निम्न प्रकार है -
जन्मचक्र के हिसाब से सर्वाष्टक वर्ग (सियाराम कुमार)
इस सर्वाष्टक वर्ग में प्रत्येक राशि के सामने 7 ग्रहों और लग्न का अष्टक वर्ग बनाया हुआ है । प्रत्येक अष्टक वर्ग के नीचे कुछ संख्यायें लिखी हुयी हैं जिनका मान 0 से 8 के बीच में है ।
कुल 8 अष्टक वर्ग और 12 राशियों के संयोग से बनी हुयी इस टेबल में कुछ 96 वर्ग या खाने हैं । इन्हीं 96 वर्गों में ही हमारे पूरे जीवन का गणित छिपा हुआ है ।
इस गणित को समझना ही मुख्य चाबी है अपने जीवन के भाग्य को पढ़ने की । वैसे तो ये गणित समझना बहुत ही कठिन है लेकिन सदगुरुदेव ने बहुत ही आसान शब्दों में इस गणिक की बारीकियों को समझाया है ।
अगर आप इस गणित को समझना चाहते हैं तो सबसे पहले इन 96 अंकों को तीन प्रकार की श्रेणी में विभाजित करना चाहिए -
पहली श्रेणी - रेखायें जिनका मान 0 से 3 के बीच में होता है ।
दूसरी श्रेणी - रेखायें जिनका मान 4 है ।
तीसरी श्रेणी - बाकी रेखायें जिनका मान 5 से 8 के बीच है ।
सुविधा के लिए हमने इन सभी अंकों को इस टेबल में -
0 से 3 तक जितने भी अंक हैं उनको गुलाबी रंग में हाईलाइट कर दिया है ।
4 अंक वाली जितने भी अंक हैं उनको पीले रंग में हाईलाइट कर दिया है
5 से 8 वाले सभी अंक हरे रंग में हाईलाइट किये गये हैं ।
सदगुरुदेव ने कहा है कि फलकथन के लिए मुख्य रुप से 3 विधियां प्रचलित हैं -
जन्म कुंडली द्वारा
चंद्र कुंडली द्वारा
नवांश कुंडली द्वारा
जन्म कुंडली द्वारा शरीर, शारीरिक स्थितियों का विचार किया जाता है । चंद्र कुंडली या जन्म राशि द्वारा व्यक्ति की मानसिक स्थितियों का ज्ञान किया जाता है । नवांश कुंडली से विभिन्न समस्याओं का हल जाना जाता है ।
जन्म राशि द्वारा जो भी फलकथन किया जाता है, वह स्थूल होता है । उसकी सूक्ष्मता के लिए गोचर पद्धति का आश्रय लिया जाता है । मगर गोचर पद्धति भी अपने आप में स्थूल है मगर चूंकि यह आवश्यकता है इसलिए इसे सूक्ष्मातिसूक्ष्म समझने के लिए अष्टक वर्ग विधि अपनायी जाती है ।
सदगुरुदेव के इसी कथन से अष्टक वर्ग की महत्ता स्पष्ट हो जाती है ।
इस अष्टक वर्ग में सूर्य कुंडली को सूर्याष्टक वर्ग, चंद्र कुंडली को चंद्राष्टक वर्ग, मंगल कुंडली को भौमाष्टक वर्ग, बुध कुंडली को बुधाष्टक वर्ग, गुरु कुंडली को गुर्वाष्टक वर्ग, शुक्र कुंडली को शुक्राष्टक वर्ग, शनि कुंडली को शन्याष्टक वर्ग और लग्न कुंडली को लग्नाष्टक वर्ग कहते हैं ।
इन आठों अष्टक वर्ग को सर्वाष्टक वर्ग कहते हैं ।
जब हम सूर्याष्टक वर्ग कहते हैं तो इसका अर्थ यह होता है कि संबंधित जन्मकुंडली में सूर्य की क्या स्थिति है? उसका बल कितना है? और उसका अन्य ग्रहों से क्या संबंध है? परंतु इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि इसे हम वैज्ञानिक ढंग से समझें न कि प्राचीन रुढ़िग्रस्त नियमों के आधार पर ही उसका विवेचन कर दें । हमको इस प्रकार के फलादेश करने से बचना चाहिए ।
आयु निर्णय में अष्टक वर्ग पद्धति ही प्रामाणिक मानी गयी है । मेरी दृष्टि में अष्टक वर्ग का उपयोग जीवन की किसी घटना को ज्ञात करने में और उसका सही - सही काल निर्णय में किया जा सकता है ।
इसको उदाहरण से समझें । मेष लग्न की कुंडली में यदि शुक्र दूसरे भाव में स्थित हो, यह स्वतः ही एक धन प्रदायक योग है क्योंकि ऐसी स्थिति में शुक्र स्वराशि का होकर धन भाव में स्थित होगा । शुक्र स्वयं ही धन प्रदाता ग्रह है, दूसरा भाव धन भाव भी कहलाता है । अब ऐसी स्थिति में यह योग विशेष धन प्रदायक बन जाता है ।
हो सकता है कि अभी आप ये न जानते हों कि पहला भाव, दूसरा भाव .... क्या होते हैं और इनको कैसे जाना जाता है । ये जानना बहुत सरल है और अगले लेखों में धीरे- धीरे सभी विषयों पर प्रकाश डाला जाएगा । तब तक इस उदाहरण को ऐसे ही समझिये । आखिर शब्दों से परिचय कहीं न कहीं तो जाकर होगा ही ।
ऊपर दिये उदाहरण के हिसाब से व्यक्ति को तो लखपति होना चाहिए पर कई बार देखा गया है कि ऐसा नहीं होता है और व्यक्ति साधारण स्तर का जीवन बिता रहा होता है । सदगुरुदेव के शोध केन्द्र पर एक बार मेष लग्न की ऐसी ही दो जन्म कुंड़ली आयी थीं जिनमें शुक्र दूसरे भाव में स्वराशि स्थित था । इनमें से एक दरिद्र जीवन जी रहा था और दूसरा लाखों में खेल रहा था ।
इस गुत्थी को केवल अष्टक वर्ग ही सुलझा सका । दोनों की कुंडलियों के अष्टक वर्ग स्पष्ट किये गये तथा, दोनों का शुक्राष्टक वर्ग देखा गया तो गुत्थी स्पष्ट हो गयी । एक कुंडली में शुक्राष्टक वर्ग में मात्र 1 ही शुभ रेखा थी और दूसरे में 8 शुभ रेखायें थीं । इस प्रकार अष्टक वर्ग से प्रत्येक ग्रह की शुभाशुभता एवं उनके बल को, उसके कारकत्व को ज्ञात किया जा सकता है तथा, उसके अनुसार ही फल स्पष्ट किया जा सकता है ।
सियाराम कुमार का जो सर्वाष्टक वर्ग तैयार किया गया है उसमें 96 वर्गों में जो अंक दिये गये हैं वो दरअसल शुभ रेखायें होती हैं । अगर किसी वर्ग में 5 का अंक है तो इसका तात्पर्य है कि उस वर्ग में 5 शुभ रेखायें हैं ।
इन शुभ रेखाओं को मोटी भाषा में समझना चाहें तो -
0 से 3 तक की रेखाओं की उपस्थितिः ये शुभ रेखायें बहुत कमजोर होती हैं और प्रत्येक ग्रह के स्वभाव के अनुसार अशुभ फल देती हैं ।
4 का अंक सम अंक है । अर्थात न तो यह शुभ है और न ही अशुभ । इस परिस्थिति में जातक को मिश्रित फल की प्राप्ति होती है ।
5 से 8 तक के अंक बहुत ही शुभ होते हैं । जैसे - जैसे शुभ रेखायें बढ़ती हैं, संबंधित ग्रह की शुभता और उसका बल भी बढ़ता है । 5 - 8 तक के ये अंक स्वभाव में जातक की उन्नति के सूचक होते हैं ।
क्रमशः...
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