जन्मकुंडली में कोई भी ग्रह कहीं भी बैठा हो वह, दूसरे ग्रह और भाव पर भी दृष्टि डालता है । उस दृष्टि का प्रभाव शुभ भी हो सकता है और अशुभ भी। आप अपनी कुंडली के ग्रहों की स्थिति जानकर उनकी दृष्टि किस भाव या ग्रह पर कैसी पड़ी रही है यह जानकार आप भी उनके शुभ या अशुभ प्रभाव को जान सकते हैं।
दृष्टि क्या होती है?
दृष्टि का अर्थ यहां प्रभाव से लें तो ज्यादा उचित होगा। जैसे सूर्य की किरणें एकदम धरती पर सीधी आती है तो कभी तिरछी। ऐसा तब होता है जब सूर्य भूमध्य रेखा या कर्क, मकर आदि रेखा पर होता है। इसी तरह प्रत्येक ग्रह का अलग-अलग प्रभाव या दृष्टि होती है।
किस ग्रह की कौन-सी दृष्टि?
प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से सप्तम् स्थान पर सीधा देखता है। सीधा का मतलब यह कि उसकी पूर्ण दृष्टि होती है। पूर्ण का अर्थ यह कि वह अपने सातवें घर, भाव या खाने में 180 डिग्री से देख रहा है। पूर्ण दृष्टि का अर्थ पूर्ण प्रभाव। हालांकि कुछ ग्रह जैसे कि मंगल, गुरु इत्यादि ऐसे भी होते हैं जो सातवें स्थान के अलावा दूसरे स्थान पर भी अपनी पूर्ण दृष्टि रखते हैं ।
ग्रहः पूर्ण दृष्टि
इसके अतिरिक्त प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से तीसरे और दसवें स्थान को आंशिक रूप से भी देखते हैं।
शनि की दृष्टि का अलग अलग ग्रहों पर क्या असर पड़ता है ?
अगर सूर्य पर दृष्टि हो तो व्यक्ति का दांपत्य जीवन ख़राब होता है. पिता पुत्र में सम्बन्ध अच्छे नहीं होते हैं ।
अगर चन्द्रमा पर हो तो तीव्र वैराग्य पैदा होता है. जिसके कारण या तो व्यक्ति सन्यासी होता है या मानसिक रोगी हो जाता है ।
अगर मंगल पर हो तो विस्फोट जैसी स्थिति आती है, प्रचंड दुर्घटना के योग बनते हैं ।
बुध पर दृष्टि हो तो व्यक्ति धूर्त, चालाक होता है, त्वचा की समस्या हो जाती है ।
बृहस्पति पर दृष्टि होने से व्यक्ति पेट का रोगी तो होता ही है, साथ ही ज्ञानी और अहंकारी भी हो जाता है ।
शुक्र पर दृष्टि हो तो चरित्र दोष होता है, व्यक्ति निम्न कर्म में लिप्त रहता है ।
राहु या केतु पर दृष्टि हो तो व्यक्ति नशे का शिकार हो जाता है, कभी-कभी राजनीति में सफलता भी प्राप्त होती है ।
शनि की दृष्टि कब लाभकारी होती है ?
जब शनि अपनी राशि या उच्च राशि को देखता है ।
जब शनि मेष ,कर्क या सिंह राशि में आता है ।
जब शनि पर बृहस्पति की दृष्टि होती है ।
जब शनि कुम्भ राशि में होता है ।
जब शनि की दृष्टि लाभकारी हो तो व्यक्ति को धन और प्रशासन का वरदान मिलता है. साथ ही व्यक्ति घर से दूर जाकर सफल होता है ।
ग्रहों की उच्च व नीच राशि
कोई भी ग्रह किसी निश्चित राशि में पहुंचकर उच्च का हो सकता है, नीच का हो सकता है या स्वराशि में भी हो सकता है -
ग्रहों का मैत्री चक्र
इस मैत्री चक्र की सहायता से ये पता लगाया जा सकता है कि कोई भी ग्रह अपना शुभ फल क्यों दे रहा है या क्यों नहीं दे पा रहा है ।
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जीवन में कुछ ही क्षण ऐसे आते हैं जब हम सदगुरुदेव प्रदत्त ज्ञान को पूरी तरह से आत्मसात करने की स्थिति में होते हैं । पता नहीं सदगुरुदेव की क्या इच्छा रही होगी जो इतना दुर्लभ और महत्वपूर्ण ज्ञान अपने भाइयों और बहनों के बीच में बांटने के लिए हमें ही चुना है । उनकी इच्छा है, वही जानें ।
अब आप क्या चुनते हैं अपने लिए.... ये तो आप ही जाने प्रभु :-)
क्रमशः...
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