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महाशांति साधना विधान (मूल प्रयोग)

Updated: Sep 1, 2023

षटकर्मः शांति कर्म


अभी तक हमने कई श्रृंखलायें देखी हैं जिनमें आवाहन श्रृंखला, मंत्र चिकित्स्या, ज्योतिष आधारित अष्टक वर्ग, मंत्र शक्ति इत्यादि शामिल हैं । कुछ श्रंखलायें पूरी हो गईं, कुछ पर मात्र कुछ ही पोस्ट करके छोड़ दिया गया है । इस विषय पर हमारे पाठकों के मन में कई सवाल आते हैं जो वे हमें WhatsApp के माध्यम से भेजते रहते हैं ।

मैं यहां स्पष्ट करना चाहुंगा कि यहां इस ब्लॉग पर जो भी कुछ पोस्ट होता है, वह सब कुछ सदगुरुदेव की ही प्रेरणा से होता है और उन्ही का दिया हुआ ज्ञान है ये सब । हमारे वरिष्ठ गुरुभाइयों ने बहुत परिश्रम से जो कुछ भी सदगुरुदेव से सीखा था, उसे उन्होंने, हम लोगों तक पहुंचाया था । अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम आप लोगों तक पहुंचा दें ।


कभी - कभी किसी विषय पर तुरंत ही सब कुछ बताने की आवश्यकता नहीं होती है । सदगुरुदेव इस बात को जानते हैं और शिष्यों की आवश्यकतानुसार ही किसी विषय पर लिखने के लिए हम जैसे लोगों को प्रेरित करते हैं । मैंने कई बार इस बात को महसूस किया है कि न चाहते हुये भी मैं जब किसी विषय पर लिखता हूं तो, उस समय तो मुझे खुद भी अहसास नहीं होता है कि आखिर मैं इस विषय पर पोस्ट क्यूं लिख रहा हूं । पर शीघ्र ही मुझे भी इस बात का जवाब मिल जाता है जब संबंधित गुरुभाई या व्यक्ति धन्यवाद कहने के लिए फोन करते हैं । अब धन्यवाद आप कहते तो हमें हैं पर, हम तो जानते ही हैं कि


मेरा आपकी दया से सब काम हो रहा है

करते हो तुम निखिल जी, मेरा नाम हो रहा है :-)


सच्चाई भी यही है, कि सब कुछ, करते भी सदगुरुदेव आप ही हैं पर, यश हम लोगों को दे देते हैं । हे सदगुरुदेव! आपके चरणों में इस साधक का कोटि - कोटि प्रणाम स्वीकार करें और हम सब शिष्यों पर अपनी कृपा यूं ही बरसाते रहें ।

 

आज का विषय बहुत ही महत्वपूर्ण और गंभीर है । दरअसल, जैसे - जैसे हम सब लोग सीखते जा रहे हैं, हमें धीरे - धीरे गंभीर विषयों पर भी अपनी समझ बनानी आवश्यक है । ये चीजें कठिन नहीं होती हैं पर इनकी आवश्यकता के हिसाब से इनकी महत्ता को समझना बहुत आवश्यक है ।


हम लोगों ने षटकर्मों के बारे में अवश्य सुना होगा - ये हैं शांति, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तंभन और मारण । ये सभी क्रियायें बहुत ही उच्च कोटि की क्रियायें हैं पर, काल क्रम में इनका प्रयोग तथाकथित तांत्रिकों ने अपने फायदे के लिए अपने मन मुताबिक करना शुरु कर दिया जिससे समाज में इन क्रियाओं का मूल स्वरुप ही विकृत होकर दिखाई देने लगा । और, इसका प्रभाव ये हुआ कि समाज में षटकर्म के नाम से भी लोग नफरत करने लग गये ।


आपने सुना भी होगा जब भी कोई व्यक्ति किसी अजीब सी प्रक्रिया में संलग्न होता है (जो दूसरों की समझ में न आती हो) तो लोग बहुत सहज स्वभाव से कह जाते हैं कि क्या खटकर्म में लगे पड़े हो?


षटकर्म जैसी अद्भुत और उच्च कोटि की क्रियाओं पर समाज में इस प्रकार का तिरस्कार....!


इस सोच को बदलने की आवश्यकता है और, इन विषयों पर विस्तार से श्रंखला में बताया जाएगा कि आखिर मोहन, वशीकरण अथवा मारण किसका करना चाहिए ।


खैर, काल क्रम में हुयी इन चीजों को तो हम बदल नहीं सकते, पर आपका परिचय सदगुरुदेव प्रदत्त उस ज्ञान से अवश्य करवा सकते हैं जो आपकी सोच में ही आमूल-चूल परिवर्तन कर दे ।


आज आपका परिचय हो रहा है, शांति कर्म की सबसे महत्वपूर्ण साधना, महाशांति साधना विधान से


जीवन में अक्सर हम सब कुछ हासिल कर पाने में सक्षम हो जाते हैं क्योंकि पैसों से आप लगभग सब कुछ खरीद सकते हैं । पर एक चीज जो नहीं खरीदी जा सकती, वह है मन की शांति । और इसी शांति की तलाश में लोग न जाने कहां - कहां भटकते फिरते हैं, साधुओं के यहां चक्कर लगाते हैं, साधना करते हैं, यज्ञ, पूजा, हवन इत्यादि सब कुछ करते हैं । जो कुछ भी लोगों के बस में होता है, वह सब कुछ करते हैं । कुछ को भाग्यवश मन की शांति मिल भी जाती है पर कुछ लोग, हताश भी हो जाते हैं ।


तो अगर आपको अपने जीवन में शांति चाहिए तो आपको शांति कर्म की इस महत्वपूर्ण साधना को अवश्य ही करना होगा । पर आपको ये भी समझना आवश्यक है कि हम यहां पर तांत्रोक्त विधि से शांति कर्म संपन्न करने की विधि बता रहे हैं । विधि वेदोक्त भी होती है जिसमें विभिन्न यज्ञ और मांत्रिक अनुष्ठानों का प्रयोग होता है । पर वेदोक्त विधि न सिर्फ लंबी हो जाती हैं बल्कि खर्चीली भी साबित होती हैं । जो कि प्रत्येक के बस की बात नहीं होती ।

तांत्रोक्त विधि में ज्यादा तामझाम नहीं होता है क्योंकि यहां मंत्र तो प्रमुख है ही, पर यहां प्रक्रिया पर भी ध्यान दिया जाता है । एक निश्चित प्रक्रिया के माध्यम से एक निश्चित शक्ति अथवा देवी/देवता से कार्य सफलता के लिए देवबल को प्राप्त करना तांत्रिक क्रिया कहलाता है ।


उदाहरण के लिए अगर आपको अपने घर में पंखा चलाना है तो आपको जिस क्रिया का ज्ञान होना चाहिए वह सिर्फ इतनी सी है कि किस बटन से पंखा चलता है ? अगर आपके घर में सभी कनेक्शन ठीक हैं और बिजली आ रही है तो मात्र एक बटन दबाने से पंखा चल जाएगा । अब आपको इस बात से कोई मतलब नहीं होता है कि पंखा किस कंपनी का है, या घर की वायरिंग किस मिस्त्री ने बनायी थी या बिजली कौन सी कंपनी बनाकर भेज रही है । यहां प्रक्रिया मुख्य है । आपको सिर्फ बटन दबाने का ज्ञान होना चाहिए और कौन सा दबाना है, ये भी जानना उतना ही जरुरी है । यही तंत्र है ।


यहां एक चीज और भी स्पष्ट हो जाती है कि तंत्र में जितनी आवश्यक प्रक्रिया है, उतना ही आवश्यक उपकरण भी है ।


बिना उपकरण के साधना में सफलता मिलना सिर्फ और सिर्फ गुरु कृपा पर ही ही निर्भर करता है । मैंने ऐसा इसलिए लिखा है कि मैंने कई बार साधनायें सिर्फ गुरु यंत्र पर ही संपन्न की हैं और सफलता भी पायी है । पर फिर भी, जिस यंत्र का वर्णन साधना पद्धति में किया गया हो, उसकी आवश्यकता साधना में होती ही है ।

 

महाशांति साधना विधान (मूल प्रयोग)


यह साधना प्रयोग किसी भी व्यक्ति के जीवन में महाशांति की प्राप्ति करवाने में समर्थ है । यह प्रयोग भगवान मृत्युंजय से संबंधित है शांति कर्म में भगवान मृत्युंजय का विशेष ही महत्व है क्योंकि अशांति मृत्यु का ही द्योतक है तथा, मृत्यु की गति को तीव्रता देती है । ऐसी स्थिति में मनुष्य को आंतरिक और वाह्य रुप से पूर्ण शांति की प्राप्ति करने के लिए भगवान मृत्युंजय की शरण में जाना चाहिए ।


यह प्रयोग तीन यंत्रों की सहायता से किया जाता है, मृत्युंजय यंत्र, अनिष्ट निवारण यंत्र और, षटकर्म सिद्धिदात्री महायंत्र ।


चूंकि तंत्र कर्म सिद्धि मंड़ल बहुत ही कम संख्या में बनाये गये थे, इसलिए इस साधना के लिए सहज ही उपलब्ध नहीं हो सकते । इसका दूसरा तरीका यह है कि महामृत्युंजय यंत्र आप गुरुधाम से मंगा लें, ऐसा इसलिए कि इस यंत्र को भोजपत्र पर बनाना सहज नहीं है । अनिष्ट निवारण यंत्र और षटकर्म सिद्धिदात्री महायंत्र को भोजपत्र पर बनाना अपेक्षाकृत आसान है, तो आप उनको अष्टगंध की स्याही से, अनार की कलम से भोजपत्र पर बना लीजिए । यंत्रों की प्राण प्रतिष्ठा का विधान ब्लॉग पर पहले से ही उपलब्ध है तो इन यंत्रों को आप घर पर ही प्राण प्रतिष्ठित कर सकेंगे । इस प्रकार साधना के सभी उपकरण आप स्वयं ही तैयार कर सकते हैं ।

(सर्व अनिष्ट निवारण यंत्र)

(षटकर्म सिद्धिदात्री महायंत्र)


महाशांति साधना विधान, तांत्रिक शैव संप्रदाय से संबंध रखता है । प्राचीन समय में यह प्रयोग कश्मीरी शैव सिद्धों के मध्य प्रचलित रहा है । काल क्रम में यह प्रयोग कुछ ही सिद्धों के बीच रह गया । दरअसल कश्मीरी शैव सिद्धांत, तंत्र क्षेत्र का एक ऐसा मत था जिसकी प्रक्रियायें अत्यंत गोपनीय रहती थीं । ऐसा इसलिए था कि ये शैव सिद्ध जनमानस से दूर, अपने आत्मचिंतन और शिवत्व प्राप्ति में ही हमेशा लीन रहते थे । इसलिए इस मार्ग से संबंधित साधनायें जनमानस के बीच प्रकट नहीं हुयीं ।


प्रस्तुत प्रयोग भी इसी मार्ग का एक विशेष गोपनीय प्रयोग है जो कि गुप्तता की मर्यादा में ही रहा है । यह प्रयोग कई विशेषताओं को अपने अंदर समाहित किये हुये है और साधक को निम्न लाभों की प्राप्ति करवाता है -

  1. साधक को शांति अवस्था की प्राप्ति होती है, साधक के सभी मानसिक रोग, अवसाद, दुःख, तनाव, निराशा, खिन्नता आदि से मुक्ति मिलती है । साधक एक स्वस्थ चिंतन को प्राप्त होता है तथा अपने जीवन में खुशियों को स्थान देता है, मानसिक रुप से तुष्ट बनता है ।

  2. जीवन में दुर्भाग्य कारक ग्रह दोष की निवृत्ति होती है, किसी भी ग्रह की विपरीत दृष्टि एवं दुष्प्रभाव का निराकरण होता है ।

  3. साधक जीवन में आने वाली बाधाओं का पूर्वाभास साधक को होने लग जाता है तथा उससे संबंधित निराकरण की प्राप्ति भी साधक को होने लगती है ।

  4. यह मृत्युंजय विधान है अतः इस साधना को करने से साधक को अकाल मृत्यु का भय व्याप्त नहीं होता है ।

  5. साधक को शत्रु बाधा में रक्षण की प्राप्ति होती है तथा, साधक शत्रु षड्यंत्रों से मुक्ति प्राप्त करता है ।

इस प्रकार साधक को एक ही प्रयोग के माध्यम से कई प्रकार के लाभों की प्राप्ति होती है । साथ ही साथ यह विधान एक और विशेषता को धारण किये हुये है - इसी प्रयोग के माध्यम से साधक तीन विशेष प्रयोगों को भी संपन्न कर सकता है -

  1. आरोग्य प्राप्ति प्रयोग

  2. लक्ष्मी सिद्धि प्रयोग

  3. राज्य सिद्धि प्रयोग

साधक पहले इस साधना का मूल क्रम कर ले तो फिर सहज रुप से उपरोक्त प्रयोगों को भी सिद्ध किया जा सकता है ।


साधना विधि


दिनः शांति कर्म के नियम अनुसार दिन अथवा सोमवार


समयः यह विधान रात्रिकालीन है अतः साधक रात्रि को 10 बजे के बाद ही इस प्रयोग को संपन्न करे


वस्त्र और आसनः सफेद


दिशाः उत्तर


साधक स्नान करके, वस्त्र धारण करके ही साधना में प्रवत्त हो । सर्वप्रथम गणेश पूजन, गुरु पूजन और गुरु मंत्र जप करके सदगुरुदेव की आज्ञा और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें ।


इसके बाद साधक तंत्र कर्म सिद्धि मंड़ल को अपने सामने स्थापित करे, साधक को मृत्युंजय यंत्र का पूजन करना है ।


यंत्र पूजन


ॐ ऐं जूं सः गन्धं समर्पयामि

ॐ ऐं जूं सः पुष्पं समर्पयामि

ॐ ऐं जूं सः धूपं आघ्रापयामि

ॐ ऐं जूं सः दीपं दर्शयामि

ॐ ऐं जूं सः नैवेद्यं निवेदयामि


इसके बाद साधक न्यास करे -


करन्यास


ॐ ऐं जूं सः अंङ्गुष्ठाभ्यां नमः

ॐ ऐं जूं सः तर्जनीभ्यां नमः

ॐ ऐं जूं सः मध्यमाभ्यां नमः

ॐ ऐं जूं सः अनामिकाभ्यां नमः

ॐ ऐं जूं सः कनिष्ठिकाभ्यां नमः

ॐ ऐं जूं सः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः


ह्रदयादिन्यास


ॐ ऐं जूं सः ह्रदयाय नमः

ॐ ऐं जूं सः शिरसे स्वाहा

ॐ ऐं जूं सः शिखायै वषट्

ॐ ऐं जूं सः कवचाय हूं

ॐ ऐं जूं सः नेत्रत्रयाय वौषट्

ॐ ऐं जूं सः अस्त्राय फट्


न्यास के बाद साधक भगवान मृत्युंजय का ध्यान करे -


ध्यान

।। हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसैराप्लावयन्तं

शिरो द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवली द्वाभ्यां वहंतं परम्

अंकन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकान्तं शिवं

स्वच्छाम्भोजगतं नवेन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे ।।


ध्यान के बाद साधक निम्न मंत्र की 21 माला मंत्र जप तंत्र सिद्धि माला से करे । जिस प्रकार से विजय सिद्धि माला का निर्माण किया जाता है, उसी प्रकार से तंत्र सिद्धि माला का भी निर्माण किया जाता है । जिससे कि तंत्र की विशिष्ट क्रियाओं में शीघ्र ही सफलता प्राप्त हो सके । इस माला के निर्माण की विधि भी शीघ्र ही पोस्ट की जाएगी । जिन साधकों के पास अभी तंत्र सिद्धि माला नहीं है, वे इस महाशांति साधना विधान के लिए प्राण संस्कारित रुद्राक्ष माला का प्रयोग कर सकते हैं ।


मंत्र


।। ॐ ह्रां ऐं जूं सः मृत्युन्जयाय सर्व शांतिं कुरु कुरु नमः ।।

(Om Hraam Aing Zoom Sah Mrityunjayaay Sarv Shantim Kuru Kuru Namah)


जब साधक जप संपन्न कर ले, तब उसे अग्नि प्रज्वलित करके 108 आहुतियां उपरोक्त मंत्र से ही अग्नि में समर्पित करनी हैं । साधक को सफेद तिल में शुद्ध घी और शक्कर मिलाकर ही होम करना है ।


इस प्रकार 108 आहुति होने के बाद साधक भगवान मृत्युंजय को वंदन करें ।


साधक इस विधान को स्वयं के लिए अथवा किसी और के लिए भी संपन्न कर सकता है । अगर किसी और व्यक्ति के लिए इस विधान को करने की आवश्यकता हो तो साधक को साधना से पूर्व ही संकल्प लेना चाहिए कि मैं, अमुक व्यक्ति (व्यक्ति का नाम) के लिए इस विधान क्रम को संपन्न करना चाहता हूं, भगवान मृत्युंजय आज्ञा प्रदान करें ।


इस प्रकार यह अद्भुत विधान पूर्ण होता है और, साधक को जीवन के विविध पक्षों में शांति का अनुभव होता है ।

 

तंत्र कर्म सिद्धि मंड़ल

हम लोग सौभाग्यशाली रहे कि इस तंत्र कर्म सिद्धि मंड़ल को वरिष्ठ गुरुभाईओं से प्राप्त कर पाये । आज ये यंत्र मात्र गिने - चुने ही लोगों के पास रह गया है । हम लोग भविष्य में प्रयास करेंगे कि इस यंत्र को फिर से बनवाया जाए और सभी गुरुभाइयों के समक्ष प्रदान किया जाए ।


तब तक आप इस साधना को पारद शिवलिंग, शिव मंदिर, नर्मदेश्वर शिवलिंग, द्वादश शिवलिंग, अथवा गुरु यंत्र पर ही संपन्न करें । क्योंकि एक बात ध्यान रखिये, गुरु ही शिव हैं और शिव ही गुरु हैं । इनको अलग करके देखना उचित नहीं होता ।


जिसके पास ये भी नहीं हो तो वह इस मंत्र की नित्य प्रति 1 माला भी करता रहे तो भी जीवन में शांति बनी रहेगी ।

वैसे तो इस दुर्लभ प्रयोग को जीवन में मात्र एक बार करना ही पर्याप्त रहता है लेकिन मैंने अपने जीवन में महाशांति साधना विधान के इस मूल क्रम को कई बार संपन्न किया है । सदगुरुदेव साक्षी हैं कि आज मेरे जीवन में जो भी शांति है, उसके मूल में इस अद्भुत और दुर्लभ साधना का भी उतना ही योगदान है । आप सभी इस साधना को संपन्न कर सकें और जीवन में परम शांति का अनुभव कर सकें, ऐसी ही शुभेच्छा है ।


इस साधना की PDF फाइल आप यहां से डाउनलोड़ कर सकते हैं -


 

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