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महाशांति साधना विधान (मूल प्रयोग)

Updated: Aug 7

षटकर्मः शांति कर्म


अभी तक हमने कई श्रृंखलायें देखी हैं जिनमें आवाहन श्रृंखला, मंत्र चिकित्स्या, ज्योतिष आधारित अष्टक वर्ग, मंत्र शक्ति इत्यादि शामिल हैं । कुछ श्रंखलायें पूरी हो गईं, कुछ पर मात्र कुछ ही पोस्ट करके छोड़ दिया गया है । इस विषय पर हमारे पाठकों के मन में कई सवाल आते हैं जो वे हमें WhatsApp के माध्यम से भेजते रहते हैं ।

मैं यहां स्पष्ट करना चाहुंगा कि यहां इस ब्लॉग पर जो भी कुछ पोस्ट होता है, वह सब कुछ सदगुरुदेव की ही प्रेरणा से होता है और उन्ही का दिया हुआ ज्ञान है ये सब । हमारे वरिष्ठ गुरुभाइयों ने बहुत परिश्रम से जो कुछ भी सदगुरुदेव से सीखा था, उसे उन्होंने, हम लोगों तक पहुंचाया था । अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम आप लोगों तक पहुंचा दें ।


कभी - कभी किसी विषय पर तुरंत ही सब कुछ बताने की आवश्यकता नहीं होती है । सदगुरुदेव इस बात को जानते हैं और शिष्यों की आवश्यकतानुसार ही किसी विषय पर लिखने के लिए हम जैसे लोगों को प्रेरित करते हैं । मैंने कई बार इस बात को महसूस किया है कि न चाहते हुये भी मैं जब किसी विषय पर लिखता हूं तो, उस समय तो मुझे खुद भी अहसास नहीं होता है कि आखिर मैं इस विषय पर पोस्ट क्यूं लिख रहा हूं । पर शीघ्र ही मुझे भी इस बात का जवाब मिल जाता है जब संबंधित गुरुभाई या व्यक्ति धन्यवाद कहने के लिए फोन करते हैं । अब धन्यवाद आप कहते तो हमें हैं पर, हम तो जानते ही हैं कि


मेरा आपकी दया से सब काम हो रहा है

करते हो तुम निखिल जी, मेरा नाम हो रहा है :-)


सच्चाई भी यही है, कि सब कुछ, करते भी सदगुरुदेव आप ही हैं पर, यश हम लोगों को दे देते हैं । हे सदगुरुदेव! आपके चरणों में इस साधक का कोटि - कोटि प्रणाम स्वीकार करें और हम सब शिष्यों पर अपनी कृपा यूं ही बरसाते रहें ।

आज का विषय बहुत ही महत्वपूर्ण और गंभीर है । दरअसल, जैसे - जैसे हम सब लोग सीखते जा रहे हैं, हमें धीरे - धीरे गंभीर विषयों पर भी अपनी समझ बनानी आवश्यक है । ये चीजें कठिन नहीं होती हैं पर इनकी आवश्यकता के हिसाब से इनकी महत्ता को समझना बहुत आवश्यक है ।


हम लोगों ने षटकर्मों के बारे में अवश्य सुना होगा - ये हैं शांति, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तंभन और मारण । ये सभी क्रियायें बहुत ही उच्च कोटि की क्रियायें हैं पर, काल क्रम में इनका प्रयोग तथाकथित तांत्रिकों ने अपने फायदे के लिए अपने मन मुताबिक करना शुरु कर दिया जिससे समाज में इन क्रियाओं का मूल स्वरुप ही विकृत होकर दिखाई देने लगा । और, इसका प्रभाव ये हुआ कि समाज में षटकर्म के नाम से भी लोग नफरत करने लग गये ।


आपने सुना भी होगा जब भी कोई व्यक्ति किसी अजीब सी प्रक्रिया में संलग्न होता है (जो दूसरों की समझ में न आती हो) तो लोग बहुत सहज स्वभाव से कह जाते हैं कि क्या खटकर्म में लगे पड़े हो?


षटकर्म जैसी अद्भुत और उच्च कोटि की क्रियाओं पर समाज में इस प्रकार का तिरस्कार....!


इस सोच को बदलने की आवश्यकता है और, इन विषयों पर विस्तार से श्रंखला में बताया जाएगा कि आखिर मोहन, वशीकरण अथवा मारण किसका करना चाहिए ।


खैर, काल क्रम में हुयी इन चीजों को तो हम बदल नहीं सकते, पर आपका परिचय सदगुरुदेव प्रदत्त उस ज्ञान से अवश्य करवा सकते हैं जो आपकी सोच में ही आमूल-चूल परिवर्तन कर दे ।

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