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सदगुरु कृपा विशेषांकः सौन्दर्य बोध विशेषांक - भाग ‌‌‌2 (कामाक्षी माला)

कामाक्षी माला निर्माण रहस्य


प्सरा - यक्षिणी मंडल यंत्र के निर्माण की प्रक्रिया में जैसे - जैसे तेजी आ रही है तो उससे संबंधित लेखों को भी प्रकाशित करने का समय नजदीक आता जा रहा है ।


इसी क्रम में हम इन साधनाओं के लिए आवश्यक उपकरणों पर चर्चा करेंगे । सौंदर्य शक्ति की साधना करनी है तो उससे संबंधित उपकरणों में सबसे पहला स्थान अप्सरा मंडल यंत्र का आता है तो उसके बाद उससे संबंधित विशेष शक्ति युक्त माला का निर्माण करना भी है ।


सौंदर्य शक्ति से भरपूर सभी तीक्ष्ण और सौम्य साधनाओं के लिए जिस विशिष्ट माला की आवश्यकता होती है, उसे पूर्ण कामाक्षी शक्ति माला के नाम से जाना जाता है । विशिष्ट क्रियाओं और मंत्रों से इस माला का निर्माण किया जाता है । ये 108 मनकों की माला होती है, जिसका प्रत्येक मनका विशिष्ट मंत्र से अभिमंत्रित रहता है । इस माला में काम और सौंदर्य शक्ति के समग्र 108 रूपों की स्थापना की जाती है । उसके पश्चात सुमेरू में त्रयी शक्ति का आवाहन किया जाता है । इसके पश्चात यह माला अपने आप में ही विलक्षण क्षमता से युक्त हो जाती है । किसी भी प्रकार की सौंदर्य शक्ति की साधना, आकर्षण, वशीकरण इत्यादि की साधना इससे फलीभूत होती ही है ।

जो भी साधक या साधिक इस विशिष्ट माला को कुछ समय के लिए भी नित्य प्रति धारण करते हैं तो उनके व्यक्तित्व में तीव्र आकर्णण शक्ति का समावेश हो जाता है । लोग स्वतः ही उनका सहयोग करते हैं, जीवन की नकारात्मकता का परिवर्तन सकारात्मकता में स्वतः ही होने लग जाता है । शरीर का स्वतः ही कायाकल्प होने लग जाता है और सौंदर्य में भी वृद्धि होती ही है ।


कामाक्षी माला

कामाक्षी माला के निर्माण के लिए लाल हकीक, सफेद हकीक, मूंगा या स्फटिक की प्राण प्रतिष्ठित माला का प्रयोग किया जाना चाहिए । प्राण प्रतिष्ठा की विधि वेबसाइट पर पहले से उपलब्ध है, इसलिए यहां उसकी केवल लिंक दी जा रही है ।


माला में 108 दाने होने चाहिए (सुमेरू को छोड़कर) ।


यदि माला को मजबूती से गांठ वाली बनाकर स्वंय ही शास्त्रोक्त या तांत्रोक्त पद्धति से प्राण प्रतिष्ठित करके फिर प्रयोग किया जाए तब इसके शीघ्र खंडित होने या टूटने की संभावना क्षीण हो जाती है ।


साधना विधि


दिनः शुक्रवार

समयः रात्रि का दूसरा पहर अर्थात 10 बजे से

वस्त्र और आसनः लाल

दिशाः पूर्व या उत्तर


हालांकि आप दैनिक साधना इत्यादि पूजन क्रम को पहले ही संपन्न कर लें । मेरे विचार से रात्रि 9 बजे तक आप अपने साधना क्रम को प्रारंभ कर देंगे तो गणपति पूजन, गुरु पूजन, गुरु मंत्र, विशेष स्तोत्र इत्यादि अगर आप करते हैं तो अगले एक घंटे में आप उसको पूरा करके इस दिव्य माला के संस्कार के लिए तैयार हो सकेंगे । अगर माला की प्राण प्रतिष्ठा पहले से नहीं की है तो आप उसे भी इसी समय में संपन्न कर सकते हैं ।


बाजोट (चौकी) पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर तांबे का पात्र स्थापित कर लें ।


माला को गंगा जल से धोकर इस ताम्र पात्र में रख दीजिए । अगर गंगाजल नहीं है तो माला को शुद्ध जल से स्नान करा सकते हैं । जल को शुद्ध करने का सबसे आसान तरीका है कि एक तुलसी दल जल में डाल लीजिए और भगवान श्रीनारायण का ध्यान कर लीजिए । जल पवित्र हो जाएगा ।


अब एक पात्र में त्रिगंध या अष्टगंध का लेप बनाकर रख लीजिए । लेप की मात्रा कम से कम इतनी बनाकर रखनी है कि लगभग 800 बार बिंदी लगायी जा सके ।


अब सदगुरुदेव महाराज और आदिशक्ति माता कामाख्या से इस माला का संस्कार करने की आज्ञा प्राप्त करें ताकि वे अपने आशीर्वाद से इस माला को दिव्यता प्रदान कर सकें । गुरु आज्ञा प्राप्त करने के लिए आप गुरु से संबंधित किसी श्लोक का उच्चारण कर सकते हैं और उसके बाद उनसे आज्ञा प्राप्ति की प्रार्थना कर सकते हैं यथा -


गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः


ध्यान मूलं गुरुर्मूर्ति पूजा मूलं गुरुः पदम मंत्र मूलं गुरुर्वाक्य मोक्ष मूलं गुरुः कृपा


मूकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिं यत्कृपा त्वमं वंदे परमानंद माधवम


गुरु कृपा ही केवलं गुरु कृपा ही केवलं गुरु कृपा ही केवलं गुरु कृपा ही केवलं

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