माला में प्राण संस्कार के सरलतम और श्रेष्ठतम प्रयोग
प्राण प्रतिष्ठा से तात्पर्य है कि किसी वस्तु में प्राणों का संचार करना । बिना प्राणों के किसी भी वस्तु में स्वयं की न तो कोई ऊर्जा होती है और, न ही वह किसी अभीष्ट प्राप्ति में सहायक ही सिद्ध हो सकती है ।
हम लोग बहुधा गुरुधाम से माला और यंत्र सामग्री मंगाकर निश्चिंत हो जाते हैं कि हमें प्राण प्रतिष्ठित सामग्री पहले से ही तैयार की हुयी मिल गयी है । बात सच भी है कि हमें इस कार्य में ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ता और हमारे हिस्से का कार्य सदगुरुदेव स्वयं करके भेज देते हैं ।
कुछ परिस्थितियों में ये उचित है पर, हमेशा ऐसे ही करते रहें, ये उचित नहीं है ।
कारण ये है कि सदगुरुदेव ने अपने शिष्यों को सभी प्रकार का ज्ञान बहुत पहले से प्रदान किया हुआ है । और, वो हमसे ये भी उम्मीद करते हैं कि हम उस ज्ञान को न सिर्फ प्रयोग करेंगे बल्कि, उस ज्ञान को संरक्षित करके आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी धरोहर स्वरूप प्रदान भी करेंगे ।
प्राण संस्कार भी उनमें से ही एक बेहद महत्वपूर्ण क्रिया है । अब तक हमने प्राण प्रतिष्ठा के कुछ प्रयोगों को पिछली कई पोस्ट के माध्यम से देखा और सीखा है जिसमें शामिल हैं -
ये सभी प्रयोग बहुत दुर्लभ हैं और ये हम लोगों का सौभाग्य है कि हम सदगुरुदेव के श्री चरणों में रहकर इन प्रयोगों को प्राप्त कर पाने और उनको संपन्न कर पाने में सफल हुये हैं । आप ये कदापि न सोचिये कि ये सब प्रयोग आपको हम दे रहे हैं, ये प्रयोग तो सदगुरुदेव हमारे माध्यम से आप सब तक पहुंचा रहे हैं । ये तो आपकी अपनी प्रबल भावनाएं हैं कि सदगुरुदेव कृपालु होकर इस ज्ञान की वर्षा से हम सबको भिगो रहे हैं ।
पर ये भी सोचिए कि क्या हो जब हम विजय सिद्धि माला न बना पाये हों ? तब एक साधारण रुद्राक्ष, मूंगा या कमलगट्टे की माला को ही कैसे प्राण प्रतिष्ठित करें कि वह भी एक विशेष तांत्रिक माला बनकर हमें हमारे अभीष्ट की प्राप्ति में सहयोगी सिद्ध हो ।
आज की यह पोस्ट इसी महत्वपूर्ण विषय पर है ।
आप जानते हैं कि विभिन्न प्रयोगों के लिए विभिन्न मनकों की माला का उपयोग होता है , कभी 51 तो कभी 31 पर अधिकांश प्रयोगों और साधनाओं में 108 मनकों से युक्त माला का प्रयोग होता है।
पर १०८ ही क्यों?
यूं तो सभी का एक विशेष अर्थ हैं पर सदगुरुदेव ने कई जगह स्पष्ट किया है कि मानव शरीर में 7 नहीं बल्कि 108 चक्र होते हैं, और उन्होंने इस संदर्भ में विभिन्न उदाहरण भी दिए हैं । साथ ही साथ इस हेतु एक बार एक विशिष्ट दीक्षा १०८ चक्र जागरण दीक्षा भी उन्होंने प्रदान की थी, तो जब भी हम 108 मनकों की माला से मंत्र जप करते हैं तब हर मनके के माध्यम से एक विशेष चक्र पर स्पंदन होता ही है । फिर उसे हम महसूस कर सकें या न कर सकें । यही एक गोपनीय तथ्य है इन मनको का 108 होने का, तभी तो 108 मनको वाली माला सर्वार्थ सिद्धि प्रदायक कही जाती है । और, जब इसको प्राण संस्कारित करके कोई साधना की जाती है तो सफलता मिलना तो स्वाभाविक ही है ।
और यह माला ही तो इस साधना का एक विशेष उपकरण है । सदगुरुदेव ने स्पष्ट कहा है कि क्यों एक छोटी से छोटी बात के लिए अपने सदगुरुदेव पर भी निर्भर रहना ...! उन्होंने ही तो अनेक बार माला और यंत्रों को प्राण प्रतिष्ठित करने की विधियां बताई हैं, उस समय के अनेक साधक इस बात के प्रमाण हैं ।
आप ही सोचिये कि हम लोग साधनाओं के माध्यम से सिद्धाश्रम तक जाने की बात करते हैं और स्वयं एक सामान्य सी माला को भी प्राण प्रतिष्ठित नहीं कर पाते हैं । तो आप स्वयं ही सोच सकते हैं कि हम कहां पर खड़े हैं ।
माला में प्राण प्रतिष्ठा
प्रथम तरीका
सर्वाधिक सरल तरीका तो यह है कि आप किसी भी माला अथवा मालाओं को किसी भी ज्योतिर्लिंग या शक्ति पीठ के मुख्य विग्रह से स्पर्श करा दें । उनकी प्राण ऊर्जा से माला स्वतः ही प्राण प्रतिष्ठित हो जाती है ।
द्वितीय तरीका
यदि आप रुद्राभिषेक कर सकते हैं अथवा आपके घर में किसी व्यक्ति अथवा पंडित द्वारा रुद्राभिषेक किया जा रहा हो तो, उस काल में किसी भी पात्र में यह माला, जिसे प्राण प्रतिष्ठित किया जाना है, उसे रख दें, यह स्वयं ही प्राण प्रतिष्ठित हो जाती है । रुद्राभिषेक की विधि आप गीता प्रेस की किताबों से प्राप्त कर सकते हैं ।
तृतीय तरीका
आपके जो भी गुरु हों, उनके हाथों के स्पर्श मात्र से भी यह प्रक्रिया सुगमता पूर्वक संपन्न हो जाती है :-)
चतुर्थ तरीका
माला को गंगा जल से स्नान करायें और निम्न मंत्र उसी माला से 108 बार जप लें । यह भी एक सुगम तरीका है -
माले माले महामाले सर्व तत्व स्वरुपिणी । चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्त स्तस्मंमे सिद्धिदा भव ।।
(Male Male Mahaamale Sarv Tatva Swarupini, chaturvargastwayi Nyasta Stasmame Sidhhida Bhav)
पंचम तरीका (शास्त्रीय प्रक्रिया)
पीपल के नौ पत्ते इस प्रकार से रखें कि एक पत्ता बीच में रहे और बाकी अन्य पत्ते उसे केन्द्र मानते हुये इस प्रकार रखें जैसे कि एक अष्ट दल कमल बन जाए । बीच के पत्ते पर अपनी माला रखे दें और हिंदी वर्ण माला के वर्ण ॐ अं से लेकर क्षं तक सभी का उच्चारण करते हुए उस माला को पंचगव्य से स्नान करायें ।
फिर सद्योजात मंत्र का उच्चारण करें -
ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः । भवे भवे नाति भवे भवस्य माँ भवो द्वावाय नमः ।।
निम्न वामदेव मन्त्र से चन्दन माला पर लगायें
बलाय नमो बल प्रमथ नाय नमः सर्व भूतदहनाय नमो मनोन्मथाय नमः ।।
धुप बत्ती अघोरमंत्र से दिखाएं
ॐ अघोरेभ्योSथ घोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य:
फिर तत्पुरुष मंत्र से लेपन करे
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवी धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात ।।
फिर इसके एक-एक दाने पर एक बार या सौ-सौ बार ईशान मंत्र का जप करें
ॐ ईशान: सर्व विद्यानामिश्वर: सर्व भूतानां ब्रह्माधिपतिर ब्रह्मणोSधिपतिर्ब्रह्मा शिवो में अस्तु सदाशिवोSम ।।
अब बात आती है कि कैसे देवता की स्थापना की जाए तो यदि आप इस माला को शक्ति कार्यों में उपयोग करना चाहते हैं तो "ह्रीं " इस मंत्र के पहले लगा कर और लाल रंग के पुष्पों से इसका पूजन करें.
और वैष्णवों के निम्न मन्त्र का उपयोग करें
ॐ ऐं श्रीं अक्षमाला यै नमः ।।
फिर हर वर्ण मतलब अं से लेकर क्षं तक लेकर इनसे संपुटित करके १०८-१०८ बार अपने इष्ट मन्त्र का उच्चारण करें ।
फिर यह प्रार्थना करे
ॐ त्वं माले सर्वदेवानां सर्व सिद्धिप्रदा मता । तें सत्येन में सिद्धिं देहि मातर्नामोSस्तुते ||
आपको जो भी विधि उचित लगे उसका उपयोग करके एक प्राण प्रतिष्ठित माला का निर्माण आप कर सकते हैं और उसे साधना में प्रयोग कर सकते हैं और, अब इस माला को हर किसी के सामने दिखाए नहीं ।
विशेष शक्ति युक्त तांत्रिक माला का निर्माण
अब तक की प्रक्रिया मणि माला को संस्कारित करने की हैं पर विशेष शक्ति युक्त तांत्रिक माला का निर्माण कैसे किया जाए , यह विधान पहली बार ही सामने आ रहा हैं, तो इसमें आपको -
।। ॐ सर्व माला मणि माला सिद्धि प्रदात्रयि शक्ति रुपिंयै नमः ।।
(Om sarv mala mani mala siddhi pradatrayi shakti rupinyai namah)
इस मंत्र का १०८ बार उच्चारण करना है । इस दौरान माला हाथ में घुमाते रहें ।
इस विधान के माध्यम से हम किसी भी प्रकार की माला को प्राण संस्कारित कर सकते हैं जैसे कि रुद्राक्ष माला, कमलगट्टे की माला (लक्ष्मी साधनाओं के लिए सर्वोत्तम माला), स्फटिक एवं मूंगा माला इत्यादि । हमने ये भी सीखा है कि हम एक प्राण संस्कारित माला को विशेष शक्ति युक्त तांत्रोक्त माला में भी बदल सकते हैं ।
आप सब अपने जीवन में प्राण संस्कार की इस क्रिया को न सिर्फ आत्मसात करें बल्कि, प्राण संस्कारित माला के प्रयोग से अपनी साधनाओं में भी सफलता प्राप्त करें ।
ऐसी ही सदगुरुदेव से प्रार्थना है :-)
अस्तु ।
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