सोSहं रहस्य
- Rajeev Sharma
- Sep 24, 2019
- 3 min read
Updated: Sep 1, 2023
आवाहन भाग - 16
दिव्यात्मा के द्वारा जैसे कहा गया था कि सोऽहं अपने आप में एक अत्यधिक विशेष मंत्र है। योगियों का मत रहा है कि १२ प्रकार की विशेष सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए यह एक मंत्र ही काफी है। इस मंत्र के भी कई उपभेद है। योग तंत्र में यह मंत्र अपने आप में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
यूं तो यह अजपा मंत्र है जिसका उच्चारण या जप किसी भी वक़्त किया जा सकता है लेकिन इस मंत्र विशेष की आवाहन में सूक्ष्म जगत में प्रवेश के लिए एक अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
प्राणायाम के मुख्य प्रकारों में एक है, अनुलोम विलोम।
इस प्रक्रिया से पहले कुछ जरूरी बाते हैं। हकीकत में यौगिक प्रक्रियाओं के बारे में आज जो धारणा फ़ैल गयी है वह यथा योग्य नहीं कही जा सकती। योग कोई शारीरिक व्यायाम मात्र नहीं है, योग का अर्थ अत्यधिक संकीर्ण कर दिया गया है। कुछ-एक उलटे सीधे पैर कर शरीर की लचक को बनाना यह आज के युग में योग की धारणा बनी हुई है।
आसन तो एक प्रकार के योग जिसका नाम अष्टांग योग है, उसके ८ मुख्य पक्षों में से एक है। वस्तुतः यह मात्र शारीरिक रूप से सक्षम बनने का विज्ञान नहीं है अपितु, आध्यात्मिक जगत में स्व-प्राप्ति का मार्ग है। इसी प्रकार से प्राणायाम में भी कई प्रकार की गलत धारणायें समाज में फ़ैल गयी हैं।
प्राणायाम से संबंधित एक सामान्य नियम है कि बाहर से शुद्ध वायु को अंदर खींच कर प्राणायाम उसे ऊर्जा के रूप में शरीर को प्रदान होती हो और, दूषित वायु को शरीर से बाहर होती हो। आज कल के शहरी वातावरण में जो वायु होती है उसकी अशुद्धता के बारे में हर कोई जानता है।
भला उस वायु को अंदर खींच कर शरीर को फायदा होगा या नुकसान? प्राणायाम शुद्ध वातावरण में ही किया जाए यह अत्यधिक जरूरी है। साथ ही साथ प्राणायाम का संबंध चक्रों से है इस लिए बिना पूरी जानकारी लिए इसे करना फायदा नहीं, नुकसान कर सकता है।
अनुलोम विलोम के संबंध में बात आगे बढ़ाते हैं। इस प्राणायाम के ५ भेद है। अनुलोम विलोम प्राणायाम की इस योग तांत्रिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण चिंतन यह है कि सांस में ली गयी वायु फेफडों में न भर कर, उसे मणिपुर चक्र यानी नाभि तक लाया जाए । तथा, उसे सिर्फ उतनी देर तक ही रोका जाए जब तक वह अपने आप रुके। किसी भी प्रकार की जोर ज़बरदस्ती ना की जाए।
प्राणायाम मात्र खाली पेट ही किया जाना चाहिए। प्राणायाम के लिए ब्रह्म मुहूर्त सबसे उपयुक्त समय है। बरगद तथा पीपल के पेड़ के नीचे दिन में प्राणायाम करना अच्छा है। बिल्व के वृक्ष के नीचे दिन के अंतिम प्रहर में सूर्यास्त से पहले प्राणायाम करना अच्छा है।
किसी भी वृक्ष के नीचे या नजदीक बैठ कर रात्रि काल में प्राणायाम की प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए।
प्राणायाम में मुख्य 3 चरण हैं -
पूरक – वायु को शरीर के अंदर लेना
कुम्भक – वायु को शरीर में स्थिर करना या रोकना
रेचक – वायु को शरीर से बाहर निकालना
योग तांत्रिक प्रक्रियाओं में प्राणायाम को सगर्भयाम या सगर्भप्राणायाम कहा जाता है जिसका अर्थ है कि प्राणायाम की प्रक्रिया को मंत्रों के साथ करना। मंत्र की ऊर्जा का वायु के माध्यम से पूरे शरीर में संचरण करना।
सोऽहं बीज शिव तथा शक्ति से निहित है। इस लिए यह प्रक्रिया अपनाने पर साधक अपने आप ही कई प्रकार के ज्ञान को स्वतः प्राप्त करने लगता है।
(क्रमशः)




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