आवाहन - भाग 2
गतांक से आगे...
प्रवीन के शब्द मेरे कानों में हथौड़े की तरह पड़े, और मैं तुरंत खड़ा हो गया, वो अपनी ही धुन में बेखबर मुझे बराबर बताता जा रहा था, एक दम सटीक वर्णन भावना के बारे में ही था। बीच बीच में उस सुंदरी को याद करते-करते उसकी आंखें कही शून्य में खो जाती थी।
मेरे और प्रवीन के बीच में भाई जैसा सम्बन्ध था, अतः मैंने उसे बताया कि मैं उससे परिचित हूं तो वो तब रुका और अपनी बड़बड़ाहट बंद कर मुझे पागलों की तरह देखने लगा । पूरी बात तो मैं उसे बता नहीं पाया । वो भी कुछ सोचता हुआ वापिस चला गया. पूरे दिन मैं यही सोचता रहा कि हो न हो, ये संयोग मात्र ही था।
ऐसा कभी हो सकता है कि सूक्ष्म जगत से कोई…….नहीं नहीं ये मात्र संयोग है । मगर फिर भी क्या खूबसूरत संयोग है। रात को आवाहन की क्रिया शुरू करके जैसे ही प्रवेश किया सूक्ष्म जगत में, तुरंत ही वह सामने प्रकट हो गयी अपनी मोहक मुस्कान के साथ । उसे देख के मुझे दिल में इतनी ख़ुशी हो रही थी कि जैसे मैं उससे सालों से बिछुड़ा हुआ हूं । और उसके गुलाब जैसे होंठ खुले और धीरे से बोली…..क्यों अब तो मानते हो न???
सब कुछ सामने ही तो था मगर फिर भी मन का तर्क यूं ही थोड़े मिटता है। मैंने उसे जवाब दिया कि नहीं, आत्माओं की शक्तियों के बारे में मैं भली भांति परिचित हूं, तुमने जरुर कोई संयोग का निर्माण किया है । वह तो मुझे उलाहने के स्वर में बोली कि तो फिर मैं क्या करूं? मैंने कहा कि अगर तुम सही में अपना स्थूल रूप ले सकती तो फिर तुम मुझे दिखाई देती, मेरे मित्र को क्यों?
तब वह मेरी आँखों में आँखें डाल के मेरे पास आकर बोली, क्यों, मुझे देखने की इतनी जल्दी है? और एक मुस्कराहट के साथ वो ताकने लगी मेरे चेहरे पर । मेरा मन पता नहीं क्या आडोलन विडोलन में पड गया कि मैं उसकी बात का कुछ जवाब न दे पाया । तुरंत ही मैं अपनी प्रक्रिया बंद करके लौट आया स्थूल जगत में । छत पे जाके बैठा, आसमान की ओर तकते हुए पता नहीं कितनी देर बैठा रहा मैं, यही सोचते हुए कि आखिर क्या उसने जो कहा वो सच था…??? क्या मैं उसकी और आकर्षित हो रहा हूं ??? पर मेरा लक्ष्य तो तंत्र है । ये सब संभव नहीं है ।
पर दिल से तो मैं कमज़ोर हो ही चुका था । बस, कुछ बात हम जान बूझ के स्वीकार नहीं करना चाहते हैं, मेरी दशा भी उस दिन कुछ वैसी ही थी । न जाने क्यों मेरे मानस पट पर बार-बार उसका ही चेहरा घूम जाता था । और रहा नहीं जाता था उसे देखे बिना । मगर क्या । अभी तो सिर्फ २ दिन ही तो हुए हैं । मैं ये सब क्या सोच रहा हूं । महादेव, ये क्या हो रहा है? पूरी रात मैं सो नहीं पाया । दूसरे दिन एक-एक पल काटना मुश्किल हो गया था, इंतज़ार रात का था कि कब आवाहन करूं । पर अब मेरा जोश आवाहन की ओर कम, किसी और चीज़ की तरफ ज्यादा हो रहा था।
रात घिरी और मैं प्रवेश कर गया सूक्ष्म जगत में। सामने वही बैठी थी जैसे मेरे इंतज़ार में । उसने अभिवादन के साथ स्वागत किया मेरा । जैसे कोई अपना बहुत करीबी हमें दुखी देख के प्यार से समझता है, उसने भी कुछ यूँ ही प्यार से मेरी तरफ देख के बोली "क्यों भाग रहे हो इतना खुद से… कि कट रहे हो । नियति को स्वीकार करो । प्रकृति को समझो और उसकी दी हुई उपलब्धियों को स्वीकार करो"। वो मेरी मनःस्थिति से पूर्णतः वाकिफ थी। मैंने कहा शायद मैं तुम्हारा साथ न दे पाउं, मेरा लक्ष्य कुछ और है, वो मेरे पास आकर सटकर बैठ गयी, और कहा, "नियति का काम नियति पर छोड़ो । तुम आज को पहचानो। मैं हूं और तुम हो, इस क्षण की उपलब्धि को देखो, और मैं हूं तुम्हारे साथ, मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ुंगी।"
मैंने उसकी आँखों में ताका, वहां मुझे दुनिया का सबसे ज्यादा प्यार उमड़ता हुआ सा दिखाई दिया और उसके आलिंगन में जैसे मुझे पूरी दुनिया ही मिल गयी थी । और उस दिन के बाद न जाने मैं किस ओर जा रहा था पर जैसे दुनिया का चेहरा ही बदल गया था। कई बार वो दिखाई दी मुझे उसके स्थूल शरीर में भी और मैं बस उसकी यादों में ही खोया रहता था। मेरे लिए दुनिया का मतलब सिर्फ और सिर्फ मेरे और उसके दरम्यां ही था। और उन दिनों, उसके सहयोग से क्या-क्या नहीं समझा मैं आवाहन की उपलब्धियों के बारे में……!!
आवाहन का उद्देश्य सिर्फ मृत आत्माओं को बुलाना मात्र नहीं है। आवाहन अपने अन्दर आवाहन प्रकृति को धारण करना है। आवाहन की सम्पूर्णता का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। आवाहन की उपलब्धियां अनेकों हैं, फिर चाहे वह -
किसी भी जगत का भ्रमण हो,
या फिर दूर जगह पर सन्देश भेजना,
या फिर किसी को मोहित करना,
बिना किसी को बताये उसकी सहायता करवाना,
किसी दुष्ट को पीड़ा पहुंचाकर उसकी अक्ल ठीक करना,
विविध वर्ग की आत्माओं से विविध ज्ञान प्राप्त करना,
पूर्वजों से मुलाकात,
या फिर किसी के भी गोपनीय इतिहास को जानना,
आत्माओं के द्वारा भविष्य जानना
अगर आवाहन में साधक आगे बढ़ता रहे तो वो देवता का आवाहन भी कर सकता है। ये सब तो मात्र प्रारंभिक उपलब्धियां गिनी जाती हैं आवाहन में । आवाहन एक सम्पूर्ण कला है, जिसमें मनुष्य खुद की आत्मा को ही इतना सिद्ध कर लेता है कि आत्माओं की जो भी शक्ति हे और जो भी कार्य वे कर सके, वह खुद अकेला ही कर लेता हे। आत्मा की शक्ति मनुष्य से कई गुना ज्यादा होती है मगर मनुष्य में भी आत्मा होती तो है ही, बाहरी आत्माओं को सिद्ध करने के बाद मनुष्य खुद की आत्मा सिद्ध कर ले तो वो भी आत्मा की शक्ति से हरेक चीज़ संभव कर सकता है । आवाहन के अत्यंत उच्चस्तरीय सिद्ध साधक कोई भी पदार्थ का निर्माण, अणु आवाहन से कर लेते हैं । किसी भी जगह वायु या वर्षा का आवाहन कर के बारिश करा सकते हैं, अग्नि का आवाहन कर के प्रलय की परिस्थिति का निर्माण कर देते हैं।
क्योंकि आवाहन का अर्थ सिर्फ आत्मा का आवाहन नहीं है, आवाहन की प्रारंभिक स्थिति आत्मा आवाहन है, आवाहन तो अनंत है।
और यूं ही भावना के सहयोग से न जाने कितनी माहिती मिली मुझे आवाहन के बारे में। लेकिन सब से ज्यादा उपयोगी मुझे एक रहस्य प्राप्त हुआ सहयोगी या आत्म पुरुष, जो कि योग तंत्र की एक दुर्लभ साधना है आवाहन के माध्यम से, सुना तो मैंने भी था लेकिन आज क्रियात्मक रूप से जान पाउंगा । मैंने पूछा "क्या है वह और क्या किया जा सकता है सहयोगी के माध्यम से?"
(क्रमशः)
Comments