आवाहन भाग - 15
सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानंद जी के सानिध्य में योग तंत्र के माध्यम से जटिल व गोपनीय रहस्यों से पर्दा उठता ही जा रहा था । अब इंतज़ार था रात्रि काल का। आवाहन के माध्यम से मुझे उन गोपनीय प्रक्रियाओं को प्राप्त करना था, वस्तुतः ये प्रक्रियाएं सदगुरुदेव खुद भी दे सकते थे, लेकिन इसके पीछे उनका क्या चिंतन रहा होगा कुछ पता नहीं। यूं भी उनका ये स्वभाव ही रहा है कि वह कभी - कभी अपने शिष्यों के पास या अन्य सिद्धों के पास ज्ञान प्राप्ति के लिए अपने शिष्यों को भेजते हैं, इसके पीछे क्या चिंतन रहा होगा, कुछ कह पाना सामर्थ्य के बाहर की बात है।
शाम का समय और, शुरू हुई आवाहन की गूढ़तम प्रक्रिया में से एक; सूक्ष्म जगत में प्रवेश। शुभ्र प्रकाश के मध्य कई दिव्यात्मा अपने आप में ही लीन।
तभी किसी तरफ से एक दिव्यात्मा मेरे पास आ गए। कौन थे वह कुछ ज्ञात नहीं। उन्होंने सीधे ही कहा, "एक प्रक्रिया तो मैं तुम्हें दे रहा हूं लेकिन इसके पूर्ण नियमों का पालन करना आवश्यक है।" मुझे आश्चर्य नहीं हुआ कि उन्हें मेरे बारे में कैसे मालूम हुआ । क्योंकि इन सिद्धात्मा तथा दिव्यात्मा के लिए कोई भी चीज़ असंभव नहीं है । इसका मैं कई बार अनुभव कर चुका था। फिर भी मैंने कहा कि यह प्रक्रिया किस सबंध में है? तब उन्होंने कहा कि कुण्डलिनी योग में इस मंत्र का प्रयोग करने पर शरीर अपने आप ही नीचे स्थिर हो जाता है तथा ऊर्ध्व गति त्वरित हो जाती है। इसी प्रक्रिया के माध्यम से मनुष्य अपनी आत्मा से सूक्ष्म लोकों की यात्रा भी कर सकता है।
लेकिन साधक को चाहिए कि वह इस मंत्र का जाप कुण्डलिनी योग के कुछ दिनों के अभ्यास करने के बाद ही करे। साथ ही साथ इस मंत्र का जप अभ्यास के साथ ही होना चाहिए। जो मंत्र उन्होंने बताया था वह भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित था जो कि इस प्रकार से है-
।। ॐ कृष्ण रुपस्ये क्लीं सर्व सर्वाय फट् ।।
कुण्डलिनी योग के मध्य इस मंत्र का अभ्यास करने पर साधक कुछ ही दिनों में मूलाधार पर स्थिर होने लगता है और, बाद में उसकी गति ऊर्ध्व होने लगती है। साधक को ज्ञान मुद्रा में इसका जप करना चाहिए तथा वस्त्र सफ़ेद पहनना चाहिए।
इस मंत्र का उच्चारण नहीं किया जाता, इसे आंतरिक रूप से जपना होता है। साधक के लिए यह विशेष नियम है कि यह मंत्र कम से कम ३ साल तक वो किसी को नहीं बताये।
फिर मैंने पूछा कि क्या नाद योग से संबंधित भी कोई प्रक्रिया है?
इस पर उन्होंने कहा कि नाद योग तथा उसकी योग तांत्रिक प्रक्रियाओं में बहुत ही तफावत है। इससे संबंधित २ प्रक्रियाएं हैं।
पहला मंत्र जो है वह है -
।। सोऽहं ।।
मैंने कहा कि आगे?
उन्होंने हंसते हुए कहा कि यही मंत्र है। ये २ बीज हैं, जिसमें शिव तथा शक्ति का समन्वय है। आज बीज मंत्रों के बारे में साधक रुचि नहीं लेते लेकिन, ये सामान्य सी बात है कि कितना भी बड़ा मंत्र हो लेकिन, ज्यादातर मंत्रों में बीज होंगे ही।
अगर साधक बीज मंत्रों को ही ठीक से साध ले तो, किसी भी सिद्धि को प्राप्त करना एक सामान्य सी बात हो जाएगी।
(क्रमशः)
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