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गुरु दीक्षाः जीवन का सौभाग्य

Updated: Aug 7

एक ऐसी दीक्षा जिसका प्रभाव पूरे जीवन तो रहता ही है और, जीवन के बाद भी रहता ही है । क्योंकि एक बार गुरु से डोरी जुड़ जाए तो फिर गुरु उसे अपने से अलग नहीं होने देते ।


जब मुझे गुरु दीक्षा प्राप्त हुयी थी, तब मुझे तो इसका अहसास भी नहीं था कि गुरु दीक्षा का आखिर मतलब क्या है, आखिर गुरु दीक्षा क्यों लेनी चाहिए?


वैसे सच बताऊं तो ये क्षमता मुझमें आज भी नहीं आ पायी है कि गुरु दीक्षा के महत्व को शब्दों का रुप दे सकूं । आखिर आप पूरे समुद्र को एक बर्तन में कैसे भर सकते हैं? गुरु के महत्व को तो शास्त्र, वेद और पुराण भी पूरी तरह से नहीं समझा पायें हैं, हमारी तो खैर हैसियत ही क्या है ।


पर सरल भाषा में इसको अगर समझना चाहें तो इसको ऐसे समझिये कि अगर आपको अपने घर में बिजली का कनेक्शन लेना है तो आप सीधे तो उस लाइन से बिजली का कनेक्शन नहीं ले सकते जो किसी परमाणु बिजली घर से या किसी पानी के डैम पर तैयार होकर एक राज्य से दूसरे राज्य में जाती है । आप सब जानते हैं कि इन लाइनों की वोल्टेज लाखों में होती है । यानी कि अगर हाथ छू भी जाए तो समझ लीजिए कि मृत्यु ही एक मात्र विकल्प रह जाता है ।


ऐसा ही कुछ आध्यात्मिक जगत में भी होता है । अगर हम गुरु दीक्षा लिये बिना ही किसी साधना में बैठ जाते हैं तो हमारा भी वही हाल हो सकता है जैसे कि लाखों वोल्टेज का करंट लिए किसी बिजली के तार को छूने मात्र से हो सकता है ।


और यहां कहने का तात्पर्य ये भी है कि अगर हम गुरु को बाईपास करके, सीधे उस देवी या देवता से ही शक्ति प्राप्त करने का प्रयत्न भी करते हैं तो भी हाल वही होगा जो कि लाखों वोल्टेज का करंट लिए किसी बिजली के तार को छूने मात्र में हो सकता है ।


कल्पना करिये कि आप गुरु से दीक्षित नहीं हैं और, आप किसी देवी या देवता की उपासना करते हैं अथवा साधना करते हैं । तो आप जान लीजिए कि आप जो भी साधना करेंगे तो उसकी ऊर्जा या उसका फल आपको सीधे ही प्राप्त होगा । उन देवी या देवताओं को इस बात से चिंता अवश्य हो सकती है कि उनका साधक उस ऊर्जा को झेल पायेगा या नहीं लेकिन, वो इस बात के लिए बाध्य नहीं होते हैं कि वो आपकी साधना का फल आपको न दे सकें । बात सीधी सी है; आप उनकी साधना करेंगे तो आपको उस साधना का फल प्राप्त होगा ही और वह ऊर्जा आपको स्वतः ही प्राप्त हो जाएगी । पर आपके इष्ट को, उससे होने वाले लाभ या हानि से ज्यादा सरोकार नहीं रहता । वो आपको समझाने का प्रयत्न तो कर सकते हैं पर आपको साधना का फल लेने से रोक नहीं सकते । और, यहीं पर काम गड़बड़ हो जाता है । इतिहास साक्षी है कि जितने भी साधक शक्ति प्राप्त किये हैं, गुरु के अभाव में वही शक्ति उनके लिए दोधारी तलवार ही साबित हुयी है ।

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