आवाहन भाग - 14
गतांक से आगे...
मेरी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए सदगुरुदेव ने पूरा विधान बताया कि पहले व्यक्ति को महाकाली बीज क्रीं (क्रीन्ग) का सवा लाख मंत्र का अनुष्ठान करना चाहिए, जिसे किसी भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी से किया जा सकता है।
अपने सामने महाकाली का चित्र व यन्त्र को स्थापित कर पूर्ण नियम के साथ इस बीज का अनुष्ठान एक हफ्ते में कर ले। जिसमें वस्त्र व आसन काले रंग का हो तथा माला काले हकीक की हो।
इस अनुष्ठान के समाप्त होते ही इसी प्रकार धूमावती बीज ‘धूं’ का सवा लाख मंत्र जप का अनुष्ठान हो। इसमें वही माला का प्रयोग करे जो माला महाकाली बीज में प्रयोग की गयी है।
जब यह अनुष्ठान समाप्त हो जाए तब फिर से “धूं क्रीं धूं” मन्त्र का सवा लाख मंत्र जप का अनुष्ठान करने पर साधक की यह स्थिति आ जाती है कि वह योग तंत्र के अभ्यास के माध्यम से अपने वास्तविक काल खंड से अलग हो कर सूक्ष्म रूप में भूत काल में उपस्थित हो सकता है। साधक को यथा-संभव कुण्डलिनी योग का भी अभ्यास करते रहना चाहिए। धीरे धीरे अभ्यास के माध्यम से साधक फिर वास्तविक काल से जितना भी संभव हो पीछे जा सकता है।
कुण्डलिनी योग का अभ्यास कैसे किया जाए?
साधक को चाहिए कि वह शांत वातावरण में बैठ कर आंखें बंद कर अपनी कुण्डलिनी को देखने का प्रयत्न करे और यह अनुभव करे कि वह अपने शरीर की अनंत गहराई में अंदर उतर रहा है। इस वक्त साधक किसी भी प्रकार के चिंतन को अपने मन में न रखे । धीरे धीरे अभ्यास करने पर साधक को बाहरी आवाजें सुनाई देना बंद हो जाती हैं और, वह अपने शरीर की अनंत गहराई में उतरता ही जाता है। व्यक्ति को धीरे - धीरे अपनी कुण्डलिनी साफ़ दिखने लग जाती है । जब वह पूर्ण रूप से अंदर उतर जाता है तब, वह मूलाधार चक्र पर स्थिर हो जाता है। उसके बाद साधक अभ्यास को आगे बढ़ते हुए ऊपर उठे और धीरे - धीरे आंतरिक चक्रों को देखने का प्रयत्न करे। इस प्रकार जब साधक आज्ञा चक्र को देखने में समर्थ हो जाता है तब, वह योग की पूर्णता को प्राप्त कर लेता है तथा नाद योग की तरफ आगे बढ़ सकता है.
नाद योग क्या है?
ब्रह्माण्ड की संरचना में जो मुख्य ध्वनि रही है उस ध्वनि को नाद कहा जाता है। वह ध्वनियों में मूल है तथा वह सर्व जड़ चेतन में निहित है। उसी नाद को ओम की ध्वनि कहा गया है। हमारे शरीर में नित्य वह ध्वनि गुंजरित रहती है। उसी ध्वनि को आत्मसात कर ब्रह्माण्ड से अपना संपर्क बनाने के लिए जो योग है, वही नाद योग है। वैसे तो शरीर में मुख्य नाद के अलावा दो गौण नाद भी हैं। साधक नाद की ध्वनि को प्राप्त कर लेता है तो उस ध्वनि में निहित ऊर्जा का क्षय होने से बचता है तथा वह ऊर्जा योग के माध्यम से संग्रहित होती रहती है। और, साधक अपने इष्ट को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है।
तो क्या इन विविध योगों का काल से कोई संबंध है?
योग तांत्रिक प्रक्रियाओं में इन विविध योग पद्धतियों का संयोग तांत्रिक मंत्रों के साथ कराया जाता है जिससे कि इसका प्रभाव तीव्र तथा त्वरित हो। जैसे कि दोनों प्रक्रियाएं अपने आप में पूर्ण यौगिक प्रक्रियाएं हैं लेकिन, अगर इनके साथ ही साथ तांत्रिक मंत्रों का संयोग करा दिया जाए तो साधक कम समय में ही अपने लक्ष्य पर पहुंच सकता है।
तुम्हारी इच्छा इस प्रकार की प्रक्रियाओं की प्राप्ति की है तो, आवाहन के माध्यम से तुम्हें वह प्रक्रियाएं प्राप्त हो जाएंगी । साथ ही साथ आवाहन से संबंधित कई गोपनीय तथ्य भी तुम्हारे सामने साकार हो सकेंगे....।
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