क्लीं जगत वश्य प्रयोग
Updated: Aug 29
देवर्षि नारद प्रणीत एक अद्भुत साधना
जीवन के सभी सुखों में प्रेम सर्वोपरि उपहार है उस विधाता का, जो सुख तो है ही साथ ही परमानंद की तृप्ति भी स्वतः मन को प्रदान करता है ।
किन्तु प्रेम सुख का अभाव मानव जीवन को इस कदर सालता है कि वो सामान्य तौर पर विक्षिप्त ही हो जाता है, या ये कहा जाये कि जीवन जीने की उसकी ललक ही समाप्त हो जाती है और वो अनमने ढंग से स्वयं के परिवार के लिए मात्र औपचारिकता ही निभाता है ।
मित्र ने विश्वासघात किया हो या प्रेम में धोखे की बात हो या फिर, दाम्पत्य सुख का अभाव हो, पत्नी या पति निष्ठुरता का व्यवहार दिखाकर हमारे आत्म सम्मान को पग - पग पर छलते हों, हमारा प्रेम हमसे दूर हो गया हो या फिर एक सच्चे प्रेम के लिए परिवार अपनी रुढिवादिता को छोड़ने के लिए तैयार ना हो । जाने कितनी ही चीजें हैं जो आपके मन के व्यथित कर सकती हैं ।
उपरोक्त सभी परिस्थितियाँ मरण तुल्य ही तो होती हैं, और तो और कभी - कभी मन आकर्षण को प्रेम समझने लगता है । परन्तु आकर्षण को प्रेम समझना बहुत बड़ी गलती है, परन्तु आखिर ये भेद समझाए भी तो कोई कैसे ? और कोई समझे भी तो कैसे?
सदगुरुदेव ने व्याख्या करते हुए कहा था कि “क्लींकारी कामरूपिण्यै” अर्थात “क्लीं” बीज जीवन की उपरोक्त सभी अवस्थाओं का स्वयं सिद्ध हल है, और यदि साधक मात्र इसी बीज को समझ ले तो उसके जीवन में सभी रिश्तों के प्रेम की आपूर्ति सतत होते रहती है, यदि पिता पुत्र का घोर विरोधी हो गया हो या पुत्र पथ भ्रष्ट हो गया हो, तब भी ये बीज मंत्र अपना अचूक प्रभाव प्रदान करता ही है, अर्थात प्रेम की जहाँ पर भी कमी हो ऐसे प्रत्येक क्षेत्र में इसका प्रभाव तीव्र और सटीक होता है, उन्होंने बताया था कि
१ - यदि नौकरी में मालिक विपरीत हो गया हो. २ - व्यापार में नौकर धोखा दे रहा हो. ३ - पड़ोसी आपके विपरीत हो गए हो. ४ - सास बहु के, बहु सास के या ननद भाभी के या भाभी ननद के विपरीत हो गयी हो. ५ - आपको स्वयं से ही घृणा हो गयी हो या फिर आप को लगता हो कि आप से कोई बहुत बड़ी त्रुटि हो सकती है .
उपरोक्त सभी स्थितियों में भी ये उतना ही प्रभावकारी होता है. इस अद्भुत काम बीज का सर्वोत्तम विधान “नारद पंचरात्रम” नामक ग्रन्थ में वर्णित है, लेकिन वो भी बहुत ही गोपनीय ढंग से दिया गया है, हालाँकि उस अद्वितीय ग्रन्थ में मूल मन्त्र से सम्बंधित प्रयोग भी वर्णित है, परन्तु काम बीज का प्रयोग बहुत ही सूक्ष्मता और गोपनीयता से उसमें वर्णित किया गया है, याद रखने वाली बात ये है कि प्रायः हम सभी को उपरोक्त वर्णित किसी न किसी स्थिति से पीड़ित रहना पड़ता है, तब यदि हर ६ माह में हम प्रतिदिन के ढेड़ घंटे ७ दिन तक दे दें तो उन स्थितियों पर विजय पाई जा सकती है और यदि तीन बार ये क्रम कर लिया जाये तो सम्पूर्ण जीवन इस प्रभाव को पाया जा सकता है ।
एक घटना बताता हूं। अपने एक गुरुभाई के पिताजी नये - नये साधक बने थे । जोश तो था ही, साथ में सुननी भी किसी की नहीं है । ठाकुर जो ठहरे । एक माला में १०८ मनके होते हैं तो किसी भी मंत्र की कम से कम १ माला तो करना बनता ही है ... पर नहीं, वो एक ही माला में ही कई सारे मंत्र जप पूरे कर लेते .... :-)
चलो, ये तो कोई बात नहीं है । सदगुरुदेव तो यही कहते हैं कि साधना करिये, कैसे करते हैं उससे फर्क नहीं पड़ता । इसलिए मैंने भी कभी टोकना उचित नहीं समझा ।
लेकिन कभी - कभी साधनात्मक हठ भारी भी पड़ जाता है ।
उनके एक हठ के कारण घर में ही दिक्कतें होने लग गयीं । दिक्कतें इतनी बढ़ गयीं कि गुरुभाई ने आकर मुझे बताया कि पिताजी घर में आजकल सबको परेशान कर रहे हैं, किसी को भी नहीं बख्शते । माताजी को भी नहीं ।
शुरुआत में तो मुझे समझ ही नहीं आया कि जो व्यक्ति साधना कर रहा हो वह उग्र कैसे हो सकता है या घर में सबको परेशान कैसे कर सकता है?? खैर, मैंने जब विस्तार से पूछा तो पता चला कि माजरा क्या है ।
हुआ दरअसल यूं, कि उनके पिताजी कुछ दिन से माता बगलामुखी के माला मंत्र का जप कर रहे थे । आप जानते ही हैं कि माता बगलामुखी की शक्ति तीव्रतम शक्तियों में से एक है । मैं भी जब किसी को माता बगलामुखी की साधना करने के लिए परामर्श देता हूं तो साथ ही यह भी कह देता हूं कि इस शक्ति को केवल सदगुरुदेव ही संभाल सकते हैं, इसलिए जितने पाठ आप माता बगलामुखी के माला मंत्र या ब्रह्मास्त्र माला मंत्र के करें, उतने ही पाठ गुरु प्राणश्चेतना मंत्र के करें । पुराने साधक गुरु प्राणश्चेतना मंत्र के स्थान पर गुरु मंत्र का जप कर सकते हैं ।
तो पिताजी ने माता बगलामुखी के माला मंत्र का जप तो जारी रखा लेकिन सदगुरुदेव को भूल गये .....
यानी एक ऐसी शक्ति का शरीर में प्रवाह होना जो साधक को उग्र बना सकता है (यह व्यक्ति - व्यक्ति पर भी निर्भर करता है कि किस पर कैसा असर होगा), उसको संतुलित करने के लिए उन्होंने कुछ भी नहीं किया ।
अब आप सोचिए कि ऐसी परिस्थिति में क्या किया जा सकता है? तब सदगुरुदेव प्रदत्त इसी साधना का प्रयोग करने की सलाह मैंने गुरुभाई को दी थी । इसी साधना के प्रयोग से उनके घर में, जीवन में और बाद में अन्य परिस्थितियों में भी शांति और प्रेम की स्थापना हुयी ।
साधना विधि
इसके लिए किसी भी शुक्रवार या कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात्रि से प्रयोग किया जाता है, अक्षतों को लाल कुमकुम से रंग लिया जाना चाहिए ।
रात्रि का दूसरा प्रहर हो ।
स्नान कर पीले वस्त्र धारण कर पीले आसन पर बैठकर सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा ले और उस पर सदगुरुदेव का चित्र तथा भगवान कृष्ण का मोहक चित्र स्थापित कर ले और उसी वस्त्र पर कुमकुम से एक गोल घेरा जो लगभग ३ इंच व्यास का हो अंकित कर लें और उसमें “क्लीं” अंकित कर दे ।
उस घेरे के बायीं (अर्थात अपने दाई ओर) घृत का दीपक प्रज्वलित कर ले, दीपक की बत्ती हल्दी या केसर से रंग कर पीली कर लेनी चाहिए और सुखाने के बाद प्रयोग करना चाहिए ।
अब अक्षत, धूप, दीप गुलाब पुष्प, खीर, पान, लौंग और इलायची से सदगुरुदेव, गणपति और कृष्ण जी का पूजन करना चाहिये, और मुझे पूर्ण निश्छल प्रेम की सतत प्राप्ति हो ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए ।
तत्पश्चात उस अंकित “क्लीं” का भी वैसे ही पूजन कर के दीपक की लौ पर दृष्टि स्थिर कर अर्थात त्राटक करते हुए “क्लीं” (kleem) बीज का १५ मिनट तक उपांशु उच्चारण करना चाहिए । यथासंभव पलकें स्थिर रखें या कम से कम झपकायें ।
इसके बाद लाल अक्षतों को उस अंकित बीज मंत्र पर निम्न मंत्र बोल कर अर्पित करें अर्थात एक बार मंत्र और १ अक्षत अर्पित करना है, ये क्रम ३० मिनट तक करना है –
।। क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामांग्लाय नमः ।।
Kleem Gloum Kleem Shyamanglaay Namah
इस के बाद पुनः बीज मंत्र का उच्चारण करते हुए १५ मिनट तक त्राटक करें और जप गुरु चरणों में समर्पित दें ।
ये क्रम 7 दिन तक किया जा सकता है ।
जब पूरा विधान हो जाये तो एक तो परिस्थितियाँ विपरीत यथा संभव नहीं होंगी और यदि हुयी भी तो ७ पीपल के पत्तों पर कुमकुम से बीज मंत्र अंकित कर और अपनी योग्य कामना बोलकर और प्रार्थना कर आप बहते साफ़ जल या मंदिर में कुछ दक्षिणा के साथ अर्पित कर दें । प्रभाव स्वयं ही आपके सामने होगा ।
आप सबको अपने जीवन में प्रेम की प्राप्ति हो, शांति की प्राप्ति हो और जीवन में सदगुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त हो, ऐसी ही मंगल कामना करता हूं ।
अस्तु ।