आवाहन भाग - 18
नाद संबंधित प्रथम प्रक्रिया के दो चरण के बारे में पिछले लेखों में हमने चर्चा की है। इसी प्रक्रिया का अंतिम और अत्यधिक महत्वपूर्ण चरण है - इसका तृतीय चरण। दिव्यात्मा से जब इस तृतीय चरण पर चर्चा चली तो उन्होंने कहा कि इस चरण के बाद साधक अपने आंतरिक ब्रह्माण्ड के माध्यम से लोक लोकांतरों की यात्रा कर सकता है। वहां की रीति - रिवाजों से परिचित हो सकता है तथा निवासियों से वार्तालाप कर सकता है। साथ ही साथ उनसे साधनात्मक ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है।
किसी भी साधक के लिए ये एक अत्यधिक महत्वपूर्ण पड़ाव है जहां से अध्यात्म के क्षेत्र में उसकी प्रगति अपने आप में ऐतिहासिक हो सकती है। जब मैंने इससे संबंधित विवरण जानने की इच्छा प्रकट की तब, उन्होंने कहा कि पहले दो चरणों की तरह यह प्रक्रिया भी २१ दिन में पूरी होती है। इस प्रक्रिया में साधक को सुबह एवं शाम दोनों समय, एक मंत्र का स्फटिक माला से जप करना होता है। वस्त्र सफ़ेद रहें तथा दिशा उत्तर। आसान भी सफ़ेद ही हो।
साधक सर्वप्रथम सद्गुरु का पूजन करे, प्रत्यक्ष या फिर प्रतीक पर (फोटो / यन्त्र)। इसके बाद साधक को निम्न मंत्र की २१ माला जप सुबह तथा २१ माला रात्रि में करे। अगर साधक के लिए संभव हो तो उसे दोपहर में भी २१ माला जप करना चाहिए। यूं दिन में ३ बार या २ बार।
सुबह ६ बजे के बाद, अगर दोपहर में साधक जप करे तो १२ बजे के बाद तथा रात्रि में ९ बजे के बाद जप करे।
इस साधना में साधक को अपनी आंखें बंद कर ह्रदय पर ध्यान केंद्रित करते हुए मंत्र जप करना है।
मंत्र -
।। ॐ सोऽहं हंसः स्वाहा ।।
मेरे आश्चर्य का कोई पार नहीं रहा। ये मंत्र तो मैंने कई बार सुना है। सदगुरुदेव ने शिविरों में तथा लेखों में इस मंत्र को २-३ बार दिया है। लेकिन हर बार की तरह उनसे प्राप्त मंत्रों को सामान्य समझ कर हमने लाभ नहीं उठाया। आज जब इन दिव्यात्मा से इस संबंध में पता चला तो एकबारगी ही अंतर-आत्मा भाव विभोर हो गई। सदगुरुदेव ने सच में हीरक खंड हमारे सामने बिखेरे थे लेकिन हम उसे सिर्फ कंकड़ पत्थर मान कर ही....
कुछ कहा नहीं गया मुझसे......
रात्रि काल में छत पर लेटा हुआ सितारों को देख रहा था, लग रहा था जैसे सदगुरुदेव मुस्करा रहे हैं। ये कोई प्रथम बार की घटना नहीं थी, इससे पहले भी एक बार मैं ऐसी ही कुछ गलती कर चुका था। सोचता था कि सदगुरुदेव का साहित्य अपनी जगह ठीक है लेकिन, मुझे तो अज्ञात मंत्रों को जानना है; कुछ ऐसा ही सोच कर इधर उधर भटकता रहता था। एक सिद्ध तांत्रिक से परिचय हुआ - उन्होंने कहा कि तुम्हारे इष्ट को प्रत्यक्ष कर दिखा दूं अभी? रात्रि काल में ऐसा उन्होंने कर के भी दिखाया। अभिभूत हो गया था मैं अपने उस अनुभव से। उनसे पूछा कि आपने यह कैसे किया, तब उनकी तरफ से जवाब आया कि तंत्र के क्षेत्र में ज्ञान ऐसे ही नहीं मिल जाता, जब अपनी योग्यता सिद्ध कर मेरा विश्वास जीत लोगे तब बताऊंगा। तब बताऊंगा वो एक मंत्र जिससे मैंने ये मुकाम पाया है।
और, पूरे डेढ़ साल तक कष्ट पीड़ा को सहते हुए उनका विश्वास जीता। और एक दिन वह आया जब उन्होंने मुझे मंत्र दिया लेकिन विषाद सा फ़ैल गया अपने अंदर। ऐसा लगा जैसे एक साथ हजारों सांप मुझे अभी डस लें और मैं मर जाऊं। जिस मंत्र से उन्होंने इतनी सिद्धता पायी थी और जो मुझे उन्होंने कृपा कर प्रदान किया था वह त्रिबीज मंत्र था जो की सदगुरुदेव कम से कम १००० बार अपने शिष्यों के मध्य दे चुके हैं। और मैंने भी वह मंत्र कई बार सुना था। ग्लानि भाव भर आया कि मैंने अपने सदगुरुदेव के द्वारा दी गई साधनाओं का महत्व कभी समझा ही नहीं।
उनको एक-एक मंत्र प्राप्त करने के लिए कितना कष्ट हुआ होगा और वह मंत्र हमारे बीच.....
आंखों से आंसू निकलने लगे....
फिर से उन सितारों को देखने लगा....
आकाश में उनका चेहरा जैसे अभी भी साफ़-साफ़ नज़र आ रहा था, मुसकुराते हुए। शायद इसी लिए उन्होंने मुझे कहा था कि आवाहन से इन प्रक्रियाओं को प्राप्त करो, आवाहन तथा साधना से संबंधित कई रहस्यों से पर्दा उठ जाएगा ....
गुरुभाई वो त्रिबीज मंत्र क्या कोनसा है, क्या ये मंत्र नर्वाण मंत्र है ?