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मृत्योर्माऽमृतं गमय

Updated: Sep 3, 2023

।। मृत्योर्मा साधना ।। अमृतं साधना ।। गमय साधना ।।


जीवन के सबसे जटिल प्रश्नों में से कुछ प्रश्न हैं -


मृत्यु क्या है?


और क्या कोई ऐसी विधि है जिससे हम जान सकें कि क्या मृत्यु से परे भी कोई चीज है, क्या मृत्यु अवश्यंभावी है, क्या हम मृत्यु को टाल सकते हैं और भी न जाने कितने प्रश्न हैं जो मनुष्य युगों - युगों से जानने का प्रयत्न करता रहा है । और, आज भी करता ही है ।


वैज्ञानिकों की एक बहुत बड़ी संख्या जीवन की उत्पत्ति के रहस्य को जानने के लिए ही तो स्विट्जरलैण्ड के एक शहर में महाविस्फोट प्रयोग के माध्यम से वर्षों से कार्यरत हैं । स्विट्ज़रलैंड और फ़्रांस की सीमा पर अरबों डॉलर लगाकर यह प्रयोगशाला स्थापित की गई है। ज़मीन से 175 मीटर नीचे 27 किलोमीटर पाइप लाइन बिछाई गई है और इसमें प्रोटॉनों को लगभग प्रकाश की गति से छोड़ा जाएगा फिर किसी एक क्षण में विपरीत दिशा से प्रोटानों को टकराया जाएगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे वही परिस्थितियाँ पैदा होंगी जो ब्रह्मांड के निर्माण की थीं, जिसे बिग बैंग भी कहा जाता है।


जो लोग इस प्रयोग के बारे में जानते हैं वो आसानी से समझ सकते हैं कि मनुष्य जीवन की उत्पत्ति के रहस्य को जानने के लिए सदैव से कितना व्याकुल रहा है ।


हम सबने एक श्लोक बचपन से पढ़ा है -


असतो मा सद् गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्माSमृतम् गमय


अर्थात, उपनिषद भी इस बात को स्वीकार कर सकता है कि मृत्यु तो अवश्यंभावी है । आप चाहें या न चाहें लेकिन मृत्यु का वरण करना पड़ता है । लेकिन श्लोक के आधे हिस्से में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि मृत्यु से अमृत्यु तक कैसे पहुंचा जा सकता है ।


तो क्या हमें इस बात पर चिंतन नहीं करना चाहिए कि ऐसी क्या चीज है जिससे एक क्षण मात्र में ही मनुष्य मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । जो मनुष्य एक क्षण पहले जीवित था, जाग्रत था, वह मात्र एक क्षण बाद कैसे मृत हो जाता है, पर सत्य यह है कि मृत्यु पर हमारा नियंत्रण नहीं है । अगर यह सत्य है तो यह भी सत्य ही है कि जन्म पर भी हमारा नियंत्रण नहीं है ।


शास्त्र कहते हैं कि मृत्यु के बाद भी प्राणी का अस्तित्व इस भूमंडल पर बना रहता है, उसका प्राण ही सूक्ष्म रुप में इस वायुमंडल में विचरण करता रहता है । पर इस वायुमंडल में तो करोड़ों-करोड़ों आत्मायें विचरण करती रहती हैं, इस आशा में कि कब उनको जन्म मिले । पर पृथ्वी पर इतने गर्भ तो हमेशा खुले नहीं रहते तो, ये करोड़ों - करोड़ों आत्मायें वायुमण्डल में विचरण करती रहती हैं कि कब कोई गर्भ खुले और कब वे उसमें प्रवेश करके नया जन्म ले सकें ।


अब, जो छल-कपट रहित हैं, सरल हैं, वे पीछे खड़े रहते हैं, कोई धक्कामुक्की नहीं कर सकते । वो तो इंतजार करते रहते हैं । पर जो दुष्ट आत्मायें होती हैं वे जबरन गर्भ में प्रवेश कर जाती हैं । वो जीवन रहते हुये भी छल, कपट करना जानती थीं और मरने के बाद भी उनके स्वभाव में कोई फर्क नहीं आता है। इसलिए इस पृथ्वी पर सरल व्यक्तियों का जन्म कम होने लगा है ।


परंतु जो उच्च कोटि की साधनायें संपन्न करते हैं, उनके हाथ में होता है कि वो किस प्रकार से मृत्यु का वरण करें और कहां करें । उनके लिए तो मृत्यु श्रंगार है, वो कोई ड़रने वाली चीज नहीं है । उच्च कोटि की साधना करने वाले व्यक्ति ही अपने जन्म पर भी नियंत्रण कर सकते हैं । वो जब चाहें, जहां चाहें, जिसके यहां चाहें, वहां जन्म लेने की क्षमता रखते ही हैं ।


सदगुरुदेव ने अपने प्रवचन में इस बात को बहुत विस्तार और स्पष्टता से समझाया है कि ऐसा केवल साधनाओं के माध्यम से हो सकता है । मृत्योर्मा साधना, अमृतम् साधना और गमय साधना के माध्यम से हम अपने जीवन के प्रत्येक पक्ष पर न सिर्फ नियंत्रण कर सकते हैं बल्कि आने वाले जीवन में भी हमें इस जीवन के सभी अंश याद रहते हैं । ये साधनायें बहुत ही उच्च कोटि की साधनायें हैं और केवल गुरु चरणों में बैठकर ही इन साधनाओं को संपन्न किया जा सकता है । यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारा मानस बन सके जो हम इन साधनाओं की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकें और उसके भी ऊपर, हमें अपने जीवन में ऐसे गुरु मिलें जो हमें इन साधनाओं को संपन्न करवा सकें ।


अब जीवन में ये साधनायें तो गुरु कृपा और प्रारब्ध दोनों के संयोग से ही प्राप्त हो सकती हैं । ऐसा संयोग आपके जीवन में बन सके, हम ऐसी ही प्रार्थना उस परम पिता परमेश्वर से करते हैं ।


यहां इस लेख में केवल उस मंत्र के बारे में बताया जा रहा है जो मृत्योर्मा, अमृतम् और गमय तीनों साधनाओं से संबंधित है । यदि प्रारब्ध वश हम इन साधनाओं को न भी कर पायें, तब भी यह मंत्र आपकी उस कमी की भरपायी तो कर ही सकता है।


(प्रवचन का मुख्य अंश जिसमें सदगुरुदेव मृत्योर्माSमृतं गमय साधनाओं से संबंधित मंत्र को स्पष्ट करते हैं)

 

मूल मंत्र की MP3 फाइल यहां से डाउनलोड़ की जा सकती है -

दुर्लभ और गोपनीय प्रकृति निर्मित मृत्योर्माऽमृतं गमय मंत्र Download here


यदि नित्य हम इन मंत्रों का मात्र एक बार भी श्रवण करते हैं तब भी हमारे जीवन की चैतन्यता बनती है, तब भी हम जीवन में उत्थान की ओर अग्रसर होते हैं, तब भी हम ऊंचाई की ओर अग्रसर होते हैं, तब भी हम मृत्यु पर विजय प्राप्त करने का साहस और क्षमता प्राप्त कर पाते हैं । और तब भी हम उस मृत्यु से अमृत्यु की ओर अग्रसर होते हैं जहां मृत्यु हम पर झपट्टा नहीं मार सकती, हमको दबोच नहीं सकती, हमको मार नहीं सकती, समाप्त नहीं कर सकती और हम जितने वर्ष चाहें, जितने युग चाहें, जीवित रह सकते हैं ।
डॉ नारायण दत्त श्रीमाली

इस मंत्र को तो बार - बार सुनना ही चाहिए । 1 बार, 5 बार, 11 बार, 21 बार या 101 बार, जितना आपको समय मिले । मगर नित्य इसको श्रवण करने से ही अपने आप में सफलता मिल जाती है ।


ये दुर्लभ मंत्र अपने आप में गोपनीय रहे हैं, इनका प्रयोग आपको किसी पुस्तक या वेदों में नहीं मिल सकता । किसी शास्त्र या धर्मग्रंथ में नहीं मिल सकता । ये मंत्र तो अपने आप में चैतन्य मंत्र हैं, प्रकृति द्वारा निर्मित मंत्र हैं, अपने आप में पूर्णत्व मंत्र हैं और, विशिष्ट योगियों और गुरुओं को ही प्राप्त हैं । इन मंत्रों का नित्य श्रवण करने से ही अथवा मात्र 11 बार उच्चारण करने से ही जीवन पवित्र और दिव्य बनता ही है । वह मृत्यु से अमृत्यु की ओर अग्रसर होता ही है, वृद्धावस्था उस पर व्याप्त नहीं होती, मृत्यु उस पर झपट्टा नहीं मार सकती, अकाल मृत्यु उसकी नहीं होती ।


जो व्यक्ति मृत्यु के निकट है, यदि उसको ये मंत्र सुनाया जाए तो उसकी जीवात्मा को इस जीवन का पूर्ण ज्ञान रहता है और उसको यह सुविधा रहती है कि वह सही गर्भ का चुनाव कर सके ।


इस लेख में केवल मूल मंत्र से संबंधित वीडिओ और MP3 फाइल को ही अपलोड़ किया गया है । अगर आप पूरा प्रवचन सुनने के इच्छुक हैं तो कृपया यूट्यूब पर इन प्रवचनों को यहां पर देख सकते हैं ।

 

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