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नाद सिद्धि रहस्य

Updated: Sep 1

आवाहन भाग - 19


अब तक नाद से संबंधित प्रथम प्रक्रिया के तीनों चरणों के बारे में हमने जाना। अब नाद से संबंधित ही दूसरी प्रक्रिया जिसका मुख्य आधार ‘गुंजरण’ है। इस प्रक्रिया के बारे में सदगुरुदेव ने कई बार बताया है कि अगर, साधक इस प्रक्रिया को सही रूप से संपन्न करे तो साधक कुछ ही दिनों में ध्यानावस्था को प्राप्त कर सकता है


वस्तुतः गुंजरण और नाद में एक अत्यधिक गहरा संबंध है। नाद आंतरिक रूप से निरंतर गतिशील ध्वनि है जिसे वाह्य रूप से हम अपने अंदर सुन सकते है।

हमारी गतिशीलता पर नाद का बहुत ही प्रभाव रहता है। अगर उस नाद को तीव्र बनाना है तो वाह्य रूप से उसे विशेष ध्वनि के माध्यम से उन ध्वनि तरंगों का आघात किया जाता है जिससे उनकी तीव्रता बढ़ जाती है। नाद का मुख्य संबंध ह्रदय से रहता है वहां से आगे उस ऊर्जा को पहुंचाना कठिन है, इसलिए, उच्च कोटि के साधकों के द्वारा गुंजरण प्रक्रिया की जाती है जिससे वह ऊर्जा मस्तिष्क तक पहुंच सके।


मस्तिष्क पर वह ऊर्जा सीधे आघात नहीं करती वरन हमारे ज्ञान तंतुओं की शिथिलता को दूर करके उन्हें ऊर्जा प्रदान करती है। इस प्रक्रिया से व्यक्ति की ज्ञान शक्ति में तीव्रता आना स्वाभाविक है और, व्यक्ति कुछ दिनों तक नियमित अभ्यास करता रहे तो वह सहज ध्यान अवस्था को प्राप्त कर सकता है।


ध्यानावस्था के बाद भी नियमित अभ्यास से वह मुख्य नाद को सहज ही सुन सकता है।


इस प्रक्रिया को करने से पहले साधक के लिए अत्यधिक जरूरी है कि वह नाड़ी शोधन करे। इसके लिए अनुलोम विलोम के पांचों प्रकार को ‘ह्रीं’ बीज मंत्र के साथ करे। इस प्रकार की प्रक्रियाएं सोSहं क्रिया रहस्य के लेख में बता दी गई हैं अतः बार - बार उल्लेख करना उचित नहीं है ।


इस शोधन के बाद साधक आंखें बंद कर लंबी सांस खींच कर ‘ॐ’ का उच्चारण करे। 3 बार के उच्चारण के बाद साधक गुंजरण प्रक्रिया को शुरू करे।


इसमें भी दो प्रकार से प्रक्रियाएं होती हैं। पहले कुछ दिनों तक सामान्य प्रक्रिया से अभ्यास करें।


गुंजरण की सामान्य प्रक्रिया


इस प्रक्रिया में व्यक्ति पद्मासन या सिद्धासन में बैठे (अगर आसनों का ज्ञान न हो तो कृपया अवगत करा दें, उस पर भी एक लेख अलग से प्रकाशित कर दिया जाएगा) ।


उसके बाद साधक लंबी सांस खींच कर अपने हाथों की मदद से आंखें, कान, नाक तथा मुख बंद करे और, अंदर ही अंदर गुंजरण चालू कर दे...। पहले कोशिश करे कि ‘ॐ’ का गुंजरण हो। जब तक हो सके गुंजरण को एक सांस में ही करते रहें। इस बीच में आंख, कान, नाक और मुख बंद रहे तथा अंदर खींची गई सांस बाहर न निकले। फिर से सांस लें और गुंजरण करें।


इस प्रकार यह प्रक्रिया १५ मिनिट तक करें, उसके बाद ‘हूं’ का गुंजरण करे। यह प्रक्रिया भी १५ मिनिट तक हो।

उसके बाद साधक ‘ॐ हूं’ बीज की २१ माला जाप आंखें बंद करके स्फटिक माला से करे। यह प्रक्रिया सुबह या शाम के समय की जा सकती है। लेकिन पूरे दिन में इसे एक बार ही करें।


यह क्रम ११ दिन तक रहे तो उत्तम है। जिसके बाद साधक को इस प्रक्रिया के दूसरे चरण की तरफ जाना चाहिए।


(क्रमशः)

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