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सौन्दर्य बोध विशेषांक - भाग ‌‌‌4 (पंचदशी यंत्र निर्माण एवं दिव्य नेत्र जागरण क्रिया)

उत्थापन न्यास


किसी भी साधना में उत्थापन न्यास एक महत्वपूर्ण क्रिया होती है, जिसके द्वारा शक्ति को शरीर के विभिन्न अंगों में समाहित किया जाता है । इस क्रिया में मातृका और उसकी कलाओं के साथ शक्ति का योग कर, उस शक्ति को स्वयं के साथ एकात्म भाव में स्थापित किया जाता है । इस क्रिया को संपन्न करने से साधक, साध्य और सिद्धि में कोई भेद नहीं रह जाता है ।


ध्यान के बाद न्यास की क्रिया जहां संपन्न की जाती है, उसी समय अप्सरा मंडल को सामने स्थापित करते हुये यह क्रिया की जाती है । इसमें ये क्रम दो बार किया जाता है -


  1. अंगकला स्थापन एवं पूजन क्रियाः पूर्ण मंत्र के साथ स्थापयामि पूजयामि का प्रयोग कर मंडल पर कुमकुम मिश्रित अक्षत अर्पित करना है । इसके माध्यम से शक्ति के सभी अंगों का यंत्र में स्थापन और पूजन होता है ।

  2. उत्थापन न्यास क्रियाः पूर्ण मंत्र के साथ मात्र स्थापयामि शब्द का प्रयोग करना है (पूजयामि शब्द का नहीं), और जिस मंत्र के सामने शरीर के जिस अंग का नाम लिखा है, उसे स्पर्श करना है । इस क्रिया के माध्यम से शक्ति के सभी अंगों का स्वयं के शरीर में पूजन होता है । इस क्रिया के माध्यम से साधक स्वयं और मंत्र देवता के मध्य का भेद समाप्त कर स्वयं ही उस शक्ति के रूप में परिवर्तन कर लेता है ।


अंगकला पूजन मंत्र -


अं निवृत्ति कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - शिरसि

आं प्रतिष्ठा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - मुखे

इं विद्या कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण नेत्रे

ईं शांति कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम नेत्रे

उं इन्धिका कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण कर्ण

ऊँ दीपिका कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम कर्ण

ऋम् रेचिका कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्ष नासे

ऋृम् मोचिका कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम नासे

लृं परा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण कपोले

लृृं सूक्ष्मा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम कपोले

एं सूक्ष्मामृता कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - अधरे

ऐं ज्ञानामृता कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - ओष्ठे

ओं आप्यायिनी कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - अधोदंते

औं व्यापिनी कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - उर्ध्व दंते

अं व्योमरूपा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - जिव्हे

अः अनंता कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - ग्रीवाये

कं सृष्टि कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण बाहुमूले (काँख)

खं ऋद्धि कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण कूर्परे (कोहनी)

गं स्मृति कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण मणिबंधे

घं मेधा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि -दक्षिण अन्गुलमूले

ङ कांति कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण अन्गुल्यग्र

चं लक्ष्मी कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम बाहुमूले (काँख)

छं धृति कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम कूर्परे (कोहनी)

जं स्थिरा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम मणिबंधे

झं स्थिति कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम अन्गुलमूले

ञं सिद्धि कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम अन्गुल्यग्र

टं जरा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण ऊरुमूल (जंघा का मूल)

ठं पालिनी कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण जानु (जंघा)

डं शांति कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण गुल्फ (घुटना)

ढं ऐश्वरी कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण पादांगुलिमूल

णं रति कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण पादांगुलिग्र

तं कामिका कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम ऊरुमूल (जंघा का मूल)

थं वरदा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम जानु (जंघा)

दं आह्लादिनी कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम गुल्फ (घुटना)

धं प्रीति कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम पादांगुलिमूल

नं दीर्घा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम पादांगुलिग्र

पं तीष्णा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण कुक्षि (पेट)

फं रौद्री कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम कुक्षि (पेट)

बं भया कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - पृष्ठ

भं निद्रा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - नाभि

मं तन्द्रा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - उदर

यं क्षुत्कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - हृदय

रं क्रोधिनी कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - दक्षिण स्कंध (कंधा)

लं क्रिया कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - वाम स्कंध

वं उत्कारी कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - तालु (मुंह की छत)

शं मृत्यु कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि -हृदय तु दक्षिण हस्ते

षं पीता कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि -हृदय तु वाम हस्ते

सं श्वेता कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - हृदय तु दक्षिण पादे

हं अरुणा कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - हृदय तु वाम पादे

क्षं अनंता कला रूपेण अमुकं अप्सरा/यक्षिणी देव्यै नमः स्थापयामि/पूजयामि - ब्रह्मरन्ध्रे



अप्सरा/यक्षिणी साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए साधक को अप्सरा मंडल यंत्र के स्थापन के साथ - साथ दो अत्यंत महत्वपूर्ण यंत्रों का भी निर्माण या अंकन करना होता है -


  1. पंचदशी यंत्र

  2. मूल अप्सरा/यक्षिणी यंत्र

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