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सदगुरु कृपा विशेषांकः दादा गुरुदेव

Updated: Aug 7

दादा गुरुदेव श्री सच्चिदानंद जी


वो हमारे गुरु के भी गुरु हैं, महागुरु हैं और सही अर्थों में कहा जाए तो ईश्वर का साकार स्वरूप हैं । जो कुछ भी जानकारी उनके बारे में उपलब्ध है, वह अनंत ब्रह्मांड में एक धूल के कण के बराबर भी नहीं है । पर फिर भी, जो कुछ जाना है वह सदगुरुदेव के श्रीमुख से ही जाना है । उनकी करुणा सभी सन्यासी और गृहस्थ शिष्यों पर बराबर बरसती है, अब चाहे इस बात का अहसास आप कर सकें अथवा नहीं ।


वैसे भी अहसास तो साधनात्मक लेवल के हिसाब से ही होते हैं । किसी - किसी को उस परम सत्ता की करुणा बरबस ही आंखों में आंसू ला देती है और, कोई - कोई सिद्धि प्राप्त करने के लिए लाखों मंत्र जप कर लेता है पर अनुभूति भी नहीं हो पाती । क्या गजब का खेल है उस रचनाकार का ।


पर जो प्रेम में डूबे होते हैं, उनके लिए तो साधनात्मक धरातल बहुत पहले ही तैयार हो जाता है । अब वो साधना करें या न करें, उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता । फर्क पड़ता है तो इस बात से कि वो कब साधना करने के लिए अपने मनोभाव सदगुरुदेव के सामने रखें । गुरु भी ऐसे शिष्यों को तैयार करने में बहुत रुचि रखते हैं क्योंकि ऐसे साधक या शिष्य ही समाज में नयी चेतना दे सकते हैं ।


अब सवाल उठता है कि आखिर प्रेम किससे किया जाए ।


अपने चारों तरफ नजर घुमा कर देख लीजिए, क्या ऐसा कोई भी नजर आता है जिससे आप प्रेम न कर सकें???

कहीं ऐसा तो नहीं कि आप किसी को ज्यादा पसंद करते हों और किसी को ज्यादा नापसंद । अगर ऐसा कुछ है तो फिर आपको थोड़ा विचार करने की आवश्यकता है, अपने अंदर झांकने की आवश्यकता है । ऐसा इसलिए कि प्रेम तो सभी बंधनों से ऊपर होता है, प्रेम तो बिना शर्त होता है और प्रेम तो समर्पण का ही दूसरा नाम होता है । बेशक आपका कोई शत्रु भी हो सकता है, पर आपको प्रेम उससे भी करना आना चाहिए ।

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